Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 15
________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय विशेषावइयकस्य सूक्तानि का सूक्तावली ॥१०॥ सगया निमित्ताई सुभासुभफलं निवेति॥ (१३८)|१५ अह देवेणं भणियं जिणिउ घेप्पंसि रयणाई॥ (१२०) ३ एगपएसं खेत सत्तपएसा य से फुसणा॥ (२४५)| १६ केषाश्चित् तीथिकानामयं प्रवादः 'पुण्यमेवैकमस्ति ४ दो बारे विजयाईसु गयस्स तिनऽच्चुए अहव ताई।। न पापम् । अन्ये त्याहु-पापमेवैकमस्ति न तु पुण्यम्'। अइरेग नरभवियं नाणाजीवाण सम्वद्ध॥ (२४६) अपरे तु वदन्ति-'उभयमप्यन्योऽन्यानुविद्धस्वरूपं ५जं वत्धुमत्थि लोए तं सब्वं सवपज्जायं ॥ (२६६) मेचकमणिकल्पं संमिश्रसुख-दुःखाख्यफलहेतुः ६ आसज्ज उ सामित्तं लोइय-लोउत्तरे भयणा । (२८३)| साधारणं पुण्यपापाख्यमेकं वस्तु' इति । अन्ये तु ७ जइ उबसंतकसाओ लहइ अर्णतं पुणोवि पडिवार्य प्रतिपादयन्ति स्वतन्त्रमुभयं विविक्तसुख-दुःखकारणं नहु मे वीससियव्वं थेबेचि कसायसेसम्मि ॥ 'होजत्ति' भवेदिति । अन्ये पुनराहुः-'मूलत : कर्मव ८ अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च नास्ति स्वभावसिद्धः सवोऽप्ययं जगत्प्रपञ्च:। (७९२) नहु मे बीससियवं थेपि हुतं पहुं हो। (५६९)/१७ जे जत्तिया पगारा लोए भयहेअयो अबिरयाणं । दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पतो। ते चेव य विरयाणं पसत्थभावाण मोक्खाय ॥ (१०२६) सवस्सदाहमग्गी दिति कसाया भवमर्णतं ॥ (५७०)/१८ अणुरत्तो भत्तिगओ अमुई अणुअत्तभोधिसेसग्नू (१९९३) १० सीसोवि पहाणयरो गंतेणाबियारियग्गाही (६१८) पियधम्मो ददधम्मो संविग्गोऽबजऽभीरु असढो य । ११ अविगलगोविक्केया ब जो बिमहक्खमो सुगंभीरो ॥ (६१९) खंतो दंतो गुत्तो घिरव्यय जिइंदिओ उज्जू ॥ १२ अधिणासियसुत्तत्था सीसा-यरिया विणिहिट्ठा। (६९) असदो तुलासमाणो समिश्रो तह साहुसंगहरओ य ।। १३ संभवइ, जं अगहिउँ परदोसं चिट्ठए कोई (६२०) गुणसंपभोवयोओ जुग्गो सेसो अजुग्गो य ॥ (१९९४) १४ गरुया पिच्छंति परस्सन हुदोसं। (६२०)/१९ नाणस्स होइ भागी थिरतरओ दसणे चरिसे य । ॥१०॥ ~15

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