Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 49
________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४४॥ भोसद्दाई ॥ २४-२-७/१२६ अणवजं निरुवहयं भुजंति य साहुणो भिक्ख ॥ ५२-६-९ किं जाणंति बराया हलं जहित्ताण जे उ पव्वइया। | १२७ अतिसेसदेवतणिमित्तमादिवितहपवित्ति सोऊण। एवंविहो अवपणो मा होहि तेण कथयंति । २६-१-५ णिग्गमण हो पुवं अणागते रुद्धचोच्छिपणे ॥ (५४-१-१२) १२० जपच्छसि अप्पणतो जं च न इच्छसि अप्पणतो। । | १२८ आराहणा उ कप्पे विराहणा होइ दप्पेणं । (७२-१-१) तं इच्छ परस्स बियारह, इत्तियगं जिणसासणयं ॥ २७-१-२१२९ कामं सवपदेसुवि उस्सग्गवचायता जुत्ता। १२१ सय्यारंभपरिगहनिक्लेवो सबभूयसमया य । मोत्तुं मेहुणभावं ण विणा सो रागदोसेहि ॥ (७२-१-२) पकरगमणसमाहाणया य अह एत्तिओ मोक्खा॥ १३० गीयत्थो जयणाए कडजोगी कारणमि निहोसो। ७२-१-११ (२७-१-४)| १३१ तिब्बकसायपरिणतो तिव्ययरागाणि पावइ भयाणि। १२२ सव्वभ्यऽप्पभूयस्स. सम्मं भूयाई पासओ। मयगस्स दंतभंजण सममरणं ढोकणुकिरणे ॥ ७८-१-७ पिहियासबस्स दंतस्स पावं कम्म नबंधर ॥ (२७-१-७)| १३२ अतिशयज्ञानी वा उपशान्तोऽयमिति मत्वा तस्यापि १२३ सपणेण कहेयचा तव यमकहा चिरागसंजुत्ता। (कषायदुष्टस्यापि)लिंग दद्यात् । । (७८-२-१) सोऊण मणसो घण्णा संगामिवेयं ॥ (२७-२-५)| १३३ सम्वेहिथि घेत्तव्यं गहणे य निमंतणे य जो उ विही। १२४ अण्णपि ताव नेण्णं रह परलोकेऽपहारिणामहियं । । भुजंती जयणाय, अजयणदोसाइमे हुँति ॥ (७८-२-१) परओ जाणिलालह किं पुण मणुप्पहरणेसु ॥ (३२-२-२)/१३४ गुरुभत्तिमं जो हिययाणुफलो, सो गिण्हती णिस्सम१२५ तरह धम्म कार्ड मा हुपमा खणंपि कुवित्था। | पिस्सितो वा । तस्सेय सो गिति यरेसि, अलम्भबहुविग्धो हु मुहुत्तो मा अवरई पहिच्छाहि ॥ माणमि व थोवं थोवं ॥ ७९-२-१ (२८-२-८) | १३५ मुंचेर य साबसेसं जाणइ उघयारभणियं च ॥ (७९.१.४) ॥४४॥ ~49~

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