Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 54
________________ श्री आगमीय सूक्ताचली ॥४९॥ आ ग मो द्वा wh भा गः श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [ व्यवहारसूक्तानि पुन: संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी साहित्य मुनि दीपरत्नसागरेण ५ परीणामियबुद्धीए उपवेओ होइ समणसंघाओ । कजे निच्छयकारी सुपरिच्छिय कारगो संघो ॥ (३१४-२-९) ६ आसासो बीसासो सीयघरसमो य होइ मा भाहि । अम्मापतिसामाणो संघो सरणं तु सब्बेसिं ॥ (३१५-१-६) ७ सीसो पढिच्छओ वा कुल गण संघो न सोग्गतिं नेति । जे सच्चकरणजोगा ते संसारं विमोऐति ॥ (३१५-१-१४) ८ सीसो पढिच्छतो वा आयरिओ वा न सोग्गई नेय । जे सणजोगा ते संसारा विमोपति ॥ (३१५-१-९) ९ मिहिसंघायं जहि संयमसंघाय उबगओ णं । णाणचरणसंघायं संघायं तो हव संघो (३१५-२-७) १० नाणचरणसंघायं रागद्दोसेहिं जो विसंघाए । अहो गिहिसंघायंमि अध्यार्ण मेलिओन से संघो (३१५-२-७) ११ णाणचरणसंघायं रागद्दोसेहिं जो विकिंसुए। सो भमिही संसारे चउरंगगतं अणवदग्गं ॥ (३१५-२-७) १२ दुक्खेण लहर बोहिं युद्धोष य न लभते चरितं तु । उम्मग्गदेसणार तित्थंकरासायणाए ये ॥ १३ इहलोए य अकित्ती परलोए दुग्गई धुवा तेसिं । (३१५-२) अणणाएँ जिणिदाणं जे ववहारं ववहरति ॥ (३१७-१-१०) १४ एते उ कज्जकारी तगराए आसि तम्मि उ जुगम्मि । जेहिं कया बवहारा अक्खोभा अन्नरजेसु ॥ ३१७-१-१५ १५ परिवार इहि धम्मक बादि खमगे तद्देवऽहमिहिं । विजा रायणियार गारवा इति अट्टहा होइ ॥ (३१८-२-३) ग मो १६ न हु गारवेण सका वह रिडं संघमज्झयारम्मि । नासेर अगीयत्थो अप्पाणं चैव कर्ज तु ॥ (३१९-१-३) जा इत्यागमीय सूक्तानि ~54~ X X X -- X व्यवहारस्य सूक्तान श्री आ आगमीयसुभाषितानि च --- ॥४९॥

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