Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीयसूक्तावल्यादि नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः आगमीय सूक्तावलि-आदिः [आगम-संबंधी- साहित्य ] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) पुनः संकलनकर्ता→ मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) jain_e_library's Net Publications 28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५ मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) ~1~ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्रीआगमोद्धारसंग्रहे भागः ८ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवो महावीरस्स श्रीआगमीयसक्तावल्यादि (आगामीयसूक्तावलि १ सुभाषित २ संग्रहश्लोक ३ लोकोतयः ४ प्रकाशिका-सूर्यपुरीया श्रीजैनपुस्तकप्रचारकसंस्था इदं पुस्तकं सूर्यपुरे श्रीसरस्वतीमुद्रणालये बालुभाइ हीरालालद्वारा मुद्रयित्या प्रकाशितम् प्रतयः २५०] विक्रमसंवत् २००५, वीरसंवत् २४७५, इ. स. १९४९ [वेतनम् रु. २-४ . ... मूल संपादकेन मुद्रापित: मुखपृष्ठः ~2~ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम २ 3 ४ श्री आगमीयसूक्तावल्यादि विषयानुक्रमः विषय आगमीय सूक्तावलि आगमीय सुभाषित आगमीय संग्रहश्लोक • आगमीय लोकोक्ति • ~3~ पृष्ठांक: of ५५ ५६ ५८ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीयसूक्तावल्यादि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत "श्री आगमीयसूक्तावल्यादि" के नामसे सन १९४९ (विक्रम संवत २००५) में श्री 'सूर्यपूरीया जैनपुस्तकप्रचारक संस्था' नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | * इस प्रतमे पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने चार विषयो का संग्रह किया है । (१) आगमीय सूक्तावलि, (२) आगमीय सुभाषित, (३) आगमीय संग्रहश्लोक, (४) तथा आगमीय लोकोक्ति | इन चार विषयोमे 'आगमीय सूक्तावलि' का वर्णन विस्तार से प्राप्त है, 'आगमीय लोकोक्ति' में भी कुछ-कुछ विस्तार तो दिखाई देत है, मगर आगमीय सुभाषित और आगमीय संग्रहश्लोक ये दो विषयमे बहोत कम माहिती दिखाई दे रही है | जैसा वडीलो के पास से सुना था, उस हिसाब से तो पूज्यपाद आगमोद्धारकरी संकलित माहिती कुछ ज्यादा ही थी, परंतु इस प्रत को छपने से पहेले उस संकलनमे से कितना कुछ नष्ट हो गया था | ( हो शकता है ये बात सच हो) । *पूज्यपाद आगमोद्धारकश्रीने इसमे 'विशेषावश्यकभाष्य'का भी समावेश किया है। *हमारा ये प्रयास क्यों? - आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा विषय आदि चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने ऐसे ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है । * अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ..... मुनि दीपरत्नसागर. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य मा धर्नु नाम श्रीभागमीयमुक्तावत्यादि डे. तेनी अंदर परमतारक आगमोद्धारक आचार्यदेव श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजभीए आगमोमाथी तारबेला तेप्पन (५३) विषयोमाथी (१) आगमीयमुक्तावलि (पत्र. ४९ सुधी.), (२) आगमीयसुभाषित (पत्र. ४१ थी ५० सुधी), (३) आगमीयसंग्रहलोको (पत्र, ५० थी ५१ सुधी) भने (७) भागमीयलोकोक्ति (पत्र. ५२ थी अंत्य पत्र सुधी)-एम चार विषयो आपवामां आव्या छे. आ सर्व वस्तुने समजवाने माटे जे पत्र अंक अने पंति अंक आपवामा आवेल छे ते आगमोदय समिति अने देवचंद लालभाइना छपायेला आगमोना . छेद ग्रंथोना ज विभाग अंक, पत्र अंक अने पंक्ति अंक जे आपेला ते तेओधीना भंडार श्रीजनानंद पुस्तकालयनी हाथपोथी उपरथी आपवामां आवेला छे. आ ग्रंथ पत्र ५१ सुधी जैन विजयानंद प्रिन्टिंग प्रेसमा अने बाकीना पत्रो सरस्वती प्रिन्टिंग प्रेसमा छपायेला छे. आ ग्रंथर्नु आटलुं मूल्य वर्तमानकालने आभारी छे. आ ग्रंथना प्रूफोर्ने कार्य मुनि श्रीकंचनविजयजी तथा मुनि श्रीक्षेमंकरसागरजीए कयु हे. उपरांत, ते कार्यमा ज्यारे ज्यारे शंका पडी त्यारे त्यारे आगमोद्धारक आचार्यदेवधीना पट्टधर, दीर्घदीक्षित, विद्याव्यासंगी अने निरभिमानी आचार्य महाराजश्री माणेक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजने पूठीने तेनुं निवारण करवामां आव्यु छे. वळी तेोधीप प्रूफ उपर पण इष्टिपात कों छे. तेथी तेओश्रीओना अमे ऋणी डीए. आ. ग्रंथ- प्रकाशन श्रीजैन पुस्तक प्रचारक संस्था तरफथी श्रीआगमोद्धारसंग्रह भाग ८ तरीके यहार पाडवामां आव्यु छे. सजन पुरुषो आ सूक्तावलि आदिनो उपयोग करशे अने आ प्रयत्नने सफल करशे. वि. सं. २००५ लि. प्रकाशक. अक्षयतृतीया. ~5~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि नन्दिसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्रीआगमोद्धारसंग्रहे भागः ८ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रीआगमीयसूक्तावली बा श्रीनन्दे सूक्तानि श्रीआगमीयसक्तावलिः ॥१॥ नन्दिसूक्तानि र १ जयति भुवनकभानु : सर्वधाविहतकेवलालोकः। ६ जयइ सुआणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जथइ । सं| नित्योदितः स्थिरस्तापवर्जितो वर्धमान जिन:॥ (१पत्रे) जयह गुरु लोगाणं जया महप्पा महावीरो॥ (१५) प्र|२ जयति जगदेकमङ्गलमपाहतनिःशेषदुरितधनतिमिरम्। सुनिश्चितं नः परतंत्रयुक्तिषु स्फुरति याः काश्चन सूक्तिसम्पदः। रविबिम्बमिव यथास्थितवस्तुविकाशं जिनेशवचः ॥ (१) तवैव ताः पूर्वमहार्णवोत्थिता, जगत्प्रमाणं जिन! वाक्य३ भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके। विशुषः॥ | तद्रव्यं तत्वज्ञः सचेतनाचेतनं कथितम् ॥ (२) |८ भई सबजगुज्जोयगस्स भई जिणस्स वीरस्स। ४ जयइ जगजीवजोणीबियाणओ जगगुरू जगाणंदो। | भई सुरासुरनमंसियस्स भई धुयरयस्स ॥ जगणाहो जगबंधू जया जगपियामहो भयवं ॥ (२) | ९ जैनेश्वरे हि वचसि, प्रमासंवाद इण्यते। ५ दुर्गतिप्रस्तान जन्तून् , यस्माद्धारयते ततः। प्रमाणबाधा स्वन्येषामतो दश जिनेश्वरः॥ धत्ते चतान शुने स्थाने, तस्माजर्म इति स्मृतः ॥ (१५) १० नाणी तबंमि निरओ चारित्ती भावणाएँ जोगोत्ति॥ (३४) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीपसूक्तावली आ ग ॥ २ ॥ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दितानि मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य ११ जं कुच्छियाणुयोगों पयइविसुद्धस्स होइ जीवस्स । एएसिमो नियाणं बुहाण न य सुंदरं पयं ॥ १२ रुपि संकिलेसोऽभिसंगो पीइमाइलिंगो उ परमसुहपश्चणीओ एयंपि असोहणं चैव ॥ १३ विसओ य भंगुरो खलु गुणरहिओ तह य तहतहारूवो । संपत्तिनिष्फलो केवलं तु मूलं अणस्थाणं ॥ द्धा १४ जम्मजरामरणाई विचित्तरूवा फलं तु संसारो । बुहजनित्रेयकरो एसोऽवि तहाविहो चैव ॥ (३४) १५ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिर्दिव्यो ध्वनिश्चामरमासनं च । भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥ (४१) १६ पिंडस जा विसोही समिईओ भाषणा तवो दुविहो । पडिमा अभिग्गहावि य उत्तरगुणमो बियाणाहि ॥ (४२) १७ गुणभवणगहणसुपरयणभरिय दंसणविसुद्धरत्यागा । संघनगर ! भदं ते अखंडचारितपागारा ॥ १८ संजमतचतुंबारयस्त नमो सम्मत्तपारियलस्स । अप्पढचकरस जभ होउ सया संघचकस्स || (४२) (४३) भा गः (४३) १९ पञ्चाश्रवाद्विरमणं पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डविरतिश्चेति संयमः सप्तदशभेदः ॥ २० अनशनमूनोदरता वृत्तेः सङ्क्षेपणं रसत्यागः । कायक्लेश: संलीनतेति वाद्यं तपः प्रोक्तम् ॥ २१ प्रायश्चित्तध्याने वैयावृत्त्य विनयावथोत्सर्ग । (४३) (४३) स्वाध्याय इति तपः पदप्रकारमाभ्यन्तरं भवति ॥ (४३) २२ भदं सीलपडासियस्स तवनियमतुरयजुत्तस्स ।' संघरहस्स भगवओ सज्झायसुनंदिघोसस्स ॥ २३ कम्मर जलोह विणिग्गयरस सुयरंयणदीहनालस्स | पंचमहञ्चयथिरकन्नियस्स गुण केसरालस्स || २४ सावगजण मडुअरिपरिघुडस्स जिणसूरतेययुद्धस्स । संघपमस्त भई समणगणसहस्वपत्तस्स || २५ संपतदंसणाई पर्यादियहं जइजणा सुनेई थ (४४) (**) सामायारिं परमं जो खलु तं सावगं विति ॥ २६ यः समः सर्वभूतेषु वसेषु स्थावरेषु च । तपश्चरति शुद्धात्मा श्रमणोऽसौ प्रकीर्त्तितः ॥ २७ तच संजयमण अकिरियराहुमहदुइरिस नियं (8) ~7~ श्री xhd श्रीनन्देः सूक्तानि ॥ २ ॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दिसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीयसूक्तावली सा जय संघचंद ! निम्मलसम्मतविमुद्धमोण्हागा!॥ (४५) |३६ निघुइवहसासणयं जयर सया सम्यमावदेसणयं। श्रीनन्दः २८ परतिस्थियगहपहनासगरस तवतेयदिशसस्स। कुसमयमयनासणयं जिणिंदवरवीरसासणयं ॥ (४८) मुक्तानि नाणुजोयरस जप भई दर्गसंघसूरस्स। |३७ न य कत्था निम्नाओ न य पुच्छर परिभवस्स दोसेणं । २९ भई घिइवेलापरिगयस्स सज्झायजोगमगरस्त । वस्थिव्य वायपुण्णो फुड गामिल्लयविभो ॥ (६४) HI अपलोहस्स भगवओ संघसमुदस्स दस्त ॥ |३८ पिंडविसोही समिई५ भावण १२ पडिमा१२ व इंदियमा ३० सम्मइंसणवरवडरविढढगाढावगाढ पेहस्त । निरोहो५। पढिले हण२५ गुत्तीभो३ अभिग्गहा चेव दा धम्मवररयण मंडेअचामीयरमेहलागल्स ॥ करणं तु ॥ (५०, २१०) र ३१ नियमूसियकणयसिलायलुजलजलतचित्तकूडस्स । | ३९ नत्तेगसहावते आभिणियोहाइ किओ भेदो। नंदणवणमणहरसुर मिसीलगंधुद्धमायस्ल ॥ नेयविसेसाओ चे न सबबिसयं जओ चरिमं ॥ प्र ३२ जीयदयासुंदरकंदरुद्दरियमुग्विवरगइंदइन्चस्स । ४० अह पडियत्तिबिसेसा मेगंमि अणेगमेयभावाओ। हेउसयधाउपगलंतरयणदित्तोसहिगुहस्स ॥ आवरणविमेओवि हु सभावभेयं विणा न भवे ॥ -|३३ संपरवरजलपगलियउज्झरपपिरायमाणहारस्स। ४१ तम्मि य सइ सब्वेसिं खीणावरणस्स पावई भावो। सावगजणपउररवंतमोरनच्चंतकुहरस्स ॥ तहम्मत्ताउ च्चिय जुत्तिविरोहा स चापिट्ठो ॥ ३४ विणवनयपवरमुणिवरफुरंत विज्ज लंतसिहरस्स। | ४२ अरहावि असवन्नू आभिणियोहाइभावओ नियमा। विविहगुणकप्परुपवगफलभरकुसुमाउलवणस्स ॥ केबलभाषाओ चे सवण्णू नणु विरुद्धमिणं ॥ (६७)! ३५ नाणवररयणदिप्पंतकंतवेलियविमलचूलस्स। |४३ तम्हा अवग्नहाओ आरम्भ इहेगमेव नाणंति । वंदामि विषयपणो संघमहामंदरगिरिस्स ॥ (४६) । जु छउमस्थस्सासगलं इयरं च फेवलिणो ॥ (६८) ~8~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि नन्दि+अनुयोगद्वारसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री- ४ न य पडिवत्तिबिसेसा पगंमि य णेगमेयभावेवि । माणसमित्तो छउमविसयभावाइसाहम्मा ॥ (७१) श्रीनन्धआगमीयजंतेतहा विसिट्टे न जाइभेष विलंह ॥ (६९) अथानुयोगद्वारसूक्तानि नुयोगद्वारा४५ नत्तेगसहावत्तं ओहेण बिसेसओ पुण असिद्ध । १ यस्याः प्रसादमतुलं समाप्य भवन्ति भव्यजननिवहाः। सूक्तावली एगंततस्सहावत्तणओ कह हाणिवुडीओ? ॥ अनुयोगबेदिनस्तां प्रयतः श्रुतदेवतां वन्दे ॥ (१) आवश्यकानां ॥४॥ ४६ जं अविचलियसहावे तत्ते एगंततस्सहावचं । २ सम्यकसुरेन्द्रकृतसंस्तुतिपादपत्रमुद्दामकामकरिराजकठोर- सूक्तानि ___नय तं तहोवलद्धा उकरिसावगरिसविसेसा ॥ सिंहम् । सद्धर्मदेशकवरं वरदं नतोऽस्मि, वीरं विशुद्धतरद्वा४७ तम्हा परिथूराओ निमित्तमेयाओ समयसिद्धाओ। बोधनिधि सुधीरम् ॥ उबवत्तिसंगओ च्चिय आभिणियोहाइओ मेओ। ३ अनुयोगभृतां पादान बन्दे श्रीगीतमादिसूरीणाम् । सं| ४८ घाइक्खओ निमित्तं केवलनाणस्स बनिओ समप । -निष्कारणवन्धूनां विशेषतो धर्मदातृणाम् ॥ । मणपज्जवनाणस्स उ तहाविहो अप्पमाउत्ति ॥ ४ अम्भुअतरमिह एत्तो अन्नं किं अस्थि जीवलोगंमि। है|४९ ओहीनाणस्स तहा अणिदिएरॉपि जो खओवसमो। जंजिणवयणे अत्था तिकालजुत्ता मुणिज्जति ?॥ (१३६) | महसुयनाणाणं पुण लक्खण मेयाविभो भेओ॥ (६८) अथावश्यकसूक्तानि । ५० जं सामिकालकारणविसयपरोक्खत्तणेहिं तुलाई। |१तित्थयरे भगवंते, अणुत्तरपरको अमियनाणी। तभावे सेसाणि य तेणाईए मासुयाई॥ (७०) तिष्णे सिद्धगइगए, सिद्धिपहपदेसप वंदे ॥ ५१ दो वारे विजयाइसु गयरस सिनऽसचुए अहव ताई।। २ पड़दाहपिपासानामपहारं करोति यत् । भइरेग नरभषियं नाणाजीवाण सव्यशा॥ (७०)| तद्धर्मसाधनं तथ्य, तीर्थमित्युच्यते बुधः ॥ ५२ कालविवजयसामित्तलाभसाहम्मोऽवही सच्चो। | ३ बंदामि महामार्ग महामुणि महायसं महावीरं । ॥४ ॥ ~9~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आवश्यकस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसूक्तावला ॥५॥ अमरनररायमहि तित्थपरमिमरस तित्थरस ॥ . (६०)।१२ अह बहर सो भयवं दियलोयचुभो अणोचमसिरीओ। ४ त्वद्वाक्यतोऽपि केपाश्चिदबोध इति मेऽद्भतम् । देवगणसंपरिखुडो नंदाइ सुमंगला सहियो । भानोमरीचयः कस्य, नाम नालोकहेतवः ॥ १३ असिअसिरओ सुनयणो बिवुट्ठो धवलदंतपंतीओ। ५न चागतमुलूकस्य, प्रकृत्या क्लिष्टचेतसः। ___ वरपऊ मगभगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥ स्वच्छा अपि तमस्त्वेन, भासन्ते भास्वत: कराः॥ (६८) | १४ जाइस्सरो अभयवं अप्परिवढिपहि तिहि उ नाणेहिं। ६ संसारसागराओ उचुडो मा पुणो नियुडिजा। ___कंतीहि य बुद्धिहि य अभहिओ तेहि मणुएहि ॥ (१२६) चरणगुण विष्पहीणो बुडा सुबहुंचि जाणतो ॥.. (७०) १५ अमूढलक्खा तित्थयरा. ७ उबसामं उवणीआ गुणमहया जिणचरित्तसरिसंपि। १६ दुम्भासिपण इकण मरीई दुक्खसायरं पत्तो।। पडिवायंति कसाया कि पुण लेसे सरागत्ये?॥ ___भमिओ कोडाकोडि सागरसरिनामधेजाणं ॥ ८ जइ उवसंतकसाओ लहर अर्णतं पुणोऽवि पडियायं । १७ तम्मूलं संसारो नीआगोतं च कालि तिवरंमि । ण हु मे वीससियचं थेवे य(बि) कसायसेसंमि ॥ ___ अपडिकतो बंमे कविलो अंतद्धिओ कहए ॥ (१७१) ९ अणथोयं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । १८ जस्स प इच्छाकारो मिच्छाकारोय परिचिया दोऽवि । णहु मे वीससियवं थेपि हुतं बहुं होई ॥ (८३)| ताओ य तहकारो न दुलभा सोग्गई तस्स .. १० कस्स न होही बेसी अनभुवगमओ अनिरुचगारी अ। | १९ एगग्गस्स पसंतस्स म हाँति इरियाश्या गुणा होति । ___अप्पच्छंदमईओ पट्टिअओ गंतुकामो अ॥ गंतव्यमवस्सं कारणंमि आवस्सिया होए ॥ २६५ : ११ विणओणपहिं कयपंजलीहि उंदमणुमत्तमाणेहिं । २०-णिहाविगहापरिवजिएहि गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं। आराहिमओ गुरुजणो सुर्य बहुविहं लहुं देव ॥ (१००)। भत्तिबहुमाणं पुज्वं उपउत्तेहिं सुणेययं ॥ - L ~10~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आवश्यकस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावला २१ अभिकखतेहिं सुहासियाई चयणाई अत्थसाराई। . चरणकरण पहनो निव्वाणपहो जिणिदेहिं॥ (३८६) विम्हियमुहेहिं हरिसागपाहिं हरिसं जणंतेहिं ॥ ३० सिद्धिवसहिमुवगया निव्वाणसुहं च ते अणुप्पत्ता। २२ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणपणं ।। सासयमव्याचाहं पत्ता अपरामरं ठाणं ॥ (३८६) इच्छियसुत्तस्थाणे सिप्पं पारं समवयंति ॥ (२६९)|३१ पाति जहा पारं सम्म निजामया समुदस्स। २३ माणुस्स खेत्त जाई कुलरुवाऽऽरोग्गमाउयं बुद्धी। भवजलहिस्स जिणिंदा तहेव जम्हा अओ अरिहा ॥ (३८६) सवणोग्गहसखा संजमो य लोगंमि दुलहाई॥ ३२ मिच्छत्तकालियावायविरहिए सम्मत्तगज्जभपवाएं । २४ इदियलद्धी निब्वत्तणा व पजत्ति निरुवहय समं । एगसमरण पत्ता सिद्धिवसहिपट्टणं पोया ॥ धायारोग्ग सदा गाहगउवभोग भट्ठोय ॥ (अन्यदीया.) |३३ निजामगरयणाणं अमूढनाणमाकण्णधाराणं ।' २५ चोल्लग पासग घण्णे जूए रयणे य सुमिण चफो य । दामि विणयपणओ तिबिहेण तिदंडविरयाणं ॥ चम्मजुगे परमाणू दस दिटुंता मणुयल मे ॥ (३४१) | ३४ पालंति जहा गावो गोवा अहिसावयारदुग्गेहिं । २६ जा तमिह सत्थवाहं नमः जणो तं पुरं तु गंतुमणो ॥ | परतणपाणिपाणि अ घणाणि पावंति तहःथेष ॥ परमुवगारित्तणो निबिग्घत्थं च भत्तीप ॥ ३५ जीवनिकाया गावो जं ते पालंति ते महागोचा। २७ अरिहो उ नमुकारस्स भावो खीणरागमयमोहो। मरणाइभया उजिणा निब्याणवणं च पावंति ॥ मुफ्वस्थीर्णपि जिणो तहेच जम्हा अओ अरिहा ॥ ३८५ | ३६ तो उवगारित्तणो नमोऽरिहा भविभजीचलोगस्स । २८ संसाराअडवीए, मिच्छत्तऽमाणमोहिअपहाए। सब्यस्सेह जिणिंदा लोगुत्तमभावओ तह य॥ जेहिं कय देसितं ते अरिहंते पणिवयामि ॥ ३७ रागहोसकसाए य, इंदिआणि अपंचवि । २९ सम्मइंसणदिट्टो नाणेण य सुट्ट तेहिं उवलद्धो। | परीसहे उबसग्गे, नामयंता नमोऽरिहा ॥ (३८७) ॥६॥ ~11~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्रीआगमीया सूक्तावली आवश्यकस्य सूक्तानि FEEME ३८ नेह लोके सुखं किश्चिच्छादितस्याहसा भृशम् । मंगलाणं च सब्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥ (४०७) मितं च जीवितं गुणां, तेन धर्म मतिं कुरु ॥ . (३९९)|४७ उपभोगविट्ठसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । ३९ इंदियविसयकसाए, परीसहे वेयणा उवस्सग्गे। साहुकारफलई कम्मसमुत्था हवा बुद्धी॥ (४१६) एए अरिणो हंता अरिहंता तेण पुच्चति ॥ ४८ अणुमाणहेउदिटुंतसाहिया वयविवागपरिणामा । ४० भट्टविहंपि य कम्म अरिभू होह सम्यजीवाणं । हिअनिस्सेअसफलवई, बुद्धी परिणामिश्रा नाम || (४२७) तं कम्ममरि हंता अरिहंता तेण बुच्चंति ॥ ४९ निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहति साहुणो । ४१ अरिहंति बंदणनमंसणाई अरिहंति पूअसकारं । समा य सयभूएसु, तम्हा ते भावसाहुणो॥ (५४९) सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण बुच्चंति ॥ ५० विसयसुहनियत्ताणं विसुद्धचारित्तनिअमजुत्ताणं । ४२ देवासुरमणुएसुं अरिहा पूना सुरुत्तमा जम्हा । तञ्चगुणसाहयाणं सदायकिच्चुजयाण नमो ॥ ____ अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण बुच्चंति ॥ ५१ असहाइ सहायत्तं करंतिमे संजमं करितस्स ।। ४३ अरहंतनमुक्कारो, जीवं मोएइ भवसहस्साओ । एपण कारणेणं नमामिऽहं सव्यसाहणं ॥ (४५०) ___ भावेण कीरमाणो, होइ पुणो बोहिलाभाए.॥ (४०६) ५२ जीवो अणाइनिहणो तम्भावणभाविओ य संसारे । ४४ अरिहंतनमुकारो, धमाण भवक्खयं कुर्णताणं । सिप्पं सो भाविजद, मेलणदोसाणुभावेणं ॥ (५२१) हिअयं अणुम्मुभंतो विसुत्तियावारओ होइ ॥.' ५३ सव्वाओबि गईओ अविरहिया, नाणदसणधरेहि। ४५ अरहंतनमुकारो एवं खलु चण्णिओ महत्थुत्ति । - ता मा कासि पमायं नाणेण चरित्तरहिएणं ॥ (५३२) जो मरणमि उवग्गे, अभिक्खणं कीरए बहुसो ॥ ५४ जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । ५५ अरिहंतनमुकारो, सबपावप्पणासणो । चारित्तजया विंति उ विसिस्सए तेण चारित्तं ॥ (५३३) ॥७॥ ~12~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आवश्यकस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसूक्तावली ॥८॥ ५५ उरजममाणस्स गुणा जह हुंति ससत्तिओ तवसुपसुं। | तम्हा उ वयंति विऊ विणउत्ति विलीनसंसारा ॥ (५४५) एमेव जहासत्ती संजममाणे कहं न गुणा!॥ |६४ तरियब्बा य परपिणया मरियव्यं वा समरे समत्थपणं । ५६ अणिगृहंतो विरियं न विराहेद चरणं तयसुपसुं। असरिसजणउलावा नहु सहियब्वा कुलपस्यपणं ॥ (५५७) जा संजमेऽवि विरियं न निगृहिज्जा न हाविज्जा ॥ (५३४)| ६५ जीव ! तुमे संसारं हिंडतेणं निरयतिरियगईसुं कहमवि ५७ सुत्तत्थबालबुद्ध य असहुदब्बाइआवईओ या। माणुसत्ते सम्मत्तणाणचरिताणि लद्धाणि, जेसिं पसाएण निस्साणपयं का संथरमाणावि सीयंति ॥ (५३८) सब्बलोयमाणणिजो पूयणि जो य, ता मा गव्वं काहिसि ५८ जे जत्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणपभट्ठा । जहाअहं बहुस्सुओ उत्तिमचरित्तो वत्ति ॥ (५६१) जंते समायरंती आलंबण मंदसहाणं ॥ ६६ थोबाहारो थोवभणिओ य जो होइ थोवनिहो य । ५९ किदकम्मं च पसंसा सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय । थोबोयहि उवगरणो तस्स हुदेवावि पणमंति ॥ जे जे पमायठाणा ते ते उववृहिया इंति ॥ (५३९)/६७ सिद्धे नमंसिऊणं संसारत्था य जे महाविज्जा । ६० पसंते आसणत्थे य, उबसंते उपट्टिए। वोच्छामि दंडकिरियं सब्वविसनिवारणि विजं ॥ अणुनवित्तु मेहावी, किनकम्म पउंजए ॥ (५४१)|६८ सय्वं पाणइवायं पापखाई मि अलियवयणं च । ६१ विणओययार माणस्स भंजणा पूयणा गरुजणस्स। ____ सबमदत्तादाणं अम्बंभ परिग्गरं स्वाहा ॥ (५६८) तित्थयराण य आणा सुअधम्माराहणाऽकिरिया ॥ ६९. पुब्बा वरसंजुत्तं वेरग्गकर सतंतमविरुद्धं । ६२ विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । पोराणमद्धमागहमासानिययं हवा सुत्तं ॥ (६२८) विणयाउ विप्पमुकस्स, कओ धम्मो ? को तवो? ॥ ७० असम्यकत्वपरीषह-सर्वपापस्थानेभ्यो विरतः प्रक६३ जम्हा विणयइ कम्मं अट्टविहं चाउरंतमुक्खाए । एतपोऽनुष्ठायी निःसंशश्वाहं तथापि धर्माधर्मात्मदेव ~13~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय सूक्तावली ॥९॥ आवश्यकविशेषावइयकयोः RTEASERSEFELEM सूक्तानि नारकादिभाषान्ने क्षे अतो मृषा समस्तमेतदिति अस- | ७५ मायाए उस्लग्ग सेसं च तवं अकुव्वओ सहुणो । म्यक्त्वपरीषहः, तत्रैवमालोचयेत्-धर्माधौ पुण्यपाप को अम्मो अणुहोही सकम्मसेसं अणिजारियं? ॥ लक्षणो यदि कर्मरूपौ पुबलात्मको ततस्तयोः कार्यदर्श ७६ निक्कूड सबिसेसं बयाणुरुवं बलाणुरुवं च । नानुमानसमधिगम्यत्वम्, अथ क्षमाक्रोधादिकी धर्मा- खाणुव्य उददेहो काउस्सगं तु ठाइजा ॥ (७९७-७९९) धमाँ ततः स्वानुभवत्वादात्मपरिणामरूपत्वात् प्रत्यक्ष ७७ अनं इमं सरीरं अनो जीवुत्ति एवकयबुद्धी। विरोधः, देवास्त्वत्यन्तसुखासक्तत्वाम्मनुष्यलोके कार्या दुश्वपरिकिलेसकरं छिद मम सरीराओ । भावात् दुष्यमानुभावाचन दर्शनगोचरमायान्ति, नार ७८ जावइया किर दुक्खा संसारे जे मए समणुभूया । कास्तु तीनवेदनातः पूर्वकृतकर्मोदय निगडयन्धनय- इत्तो दुधिर हतरा नरपसु अणोधमा दुक्खा ॥ (८०२) शीकृतत्वादस्वतन्त्राः कथमायात ति, एवमालोचय- ७९ पच्चक्वाणमि कए आसबदाराई हुंति पिहियाई। तोऽसम्यक्त्वपरीषहजयो भवति ॥ आसबबुच्छेएर्ण तण्हाबुक अणं होई ॥ ७१ जहा जलंता(त) कट्ठाई, उहाई न चिरं जले। 100 तण्हायोच्छेदेण य अडलोवसमो भवे मणुस्साणं । घट्टियार प्रत्ति, तम्हा सहह घट्टणं ॥ | अउलोचसमेण पुणो पच्चक्खाणं हवा सुद्धं ॥ ७२ सुचिरपि बंकुडाई होहिंति अणुपमजामाणाई। ८१ तत्तो चरित्तधम्मो कम्मविवेगो तओ अपुव्वं तु । - करमहिदास्याई गयंकुसागारवटाई ॥ (७२१) तत्तो केवलनाणं तओ अ मुक्खो सयासुक्खो। (८५९) ७३ अङ्गठपर्वमात्रो द्वीन्द्रियाचारमेति । (७३०) ___अथ विशेषावश्यकसूक्तानि ७४ एमेच बलसमग्गो न कुणइ मायाइ सम्ममुस्सगं। | १ नामाइतियं दवट्टियस्स भावो य पजवनयस्स। (५०) मायावडिय का पावा उस्सग्गकेसं च ॥ (७९७)/२ देहप्फुरणं सहसोइयं च सिमिणो य कारयाईणि । SE VIRRER ~14~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय विशेषावइयकस्य सूक्तानि का सूक्तावली ॥१०॥ सगया निमित्ताई सुभासुभफलं निवेति॥ (१३८)|१५ अह देवेणं भणियं जिणिउ घेप्पंसि रयणाई॥ (१२०) ३ एगपएसं खेत सत्तपएसा य से फुसणा॥ (२४५)| १६ केषाश्चित् तीथिकानामयं प्रवादः 'पुण्यमेवैकमस्ति ४ दो बारे विजयाईसु गयस्स तिनऽच्चुए अहव ताई।। न पापम् । अन्ये त्याहु-पापमेवैकमस्ति न तु पुण्यम्'। अइरेग नरभवियं नाणाजीवाण सम्वद्ध॥ (२४६) अपरे तु वदन्ति-'उभयमप्यन्योऽन्यानुविद्धस्वरूपं ५जं वत्धुमत्थि लोए तं सब्वं सवपज्जायं ॥ (२६६) मेचकमणिकल्पं संमिश्रसुख-दुःखाख्यफलहेतुः ६ आसज्ज उ सामित्तं लोइय-लोउत्तरे भयणा । (२८३)| साधारणं पुण्यपापाख्यमेकं वस्तु' इति । अन्ये तु ७ जइ उबसंतकसाओ लहइ अर्णतं पुणोवि पडिवार्य प्रतिपादयन्ति स्वतन्त्रमुभयं विविक्तसुख-दुःखकारणं नहु मे वीससियव्वं थेबेचि कसायसेसम्मि ॥ 'होजत्ति' भवेदिति । अन्ये पुनराहुः-'मूलत : कर्मव ८ अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च नास्ति स्वभावसिद्धः सवोऽप्ययं जगत्प्रपञ्च:। (७९२) नहु मे बीससियवं थेपि हुतं पहुं हो। (५६९)/१७ जे जत्तिया पगारा लोए भयहेअयो अबिरयाणं । दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पतो। ते चेव य विरयाणं पसत्थभावाण मोक्खाय ॥ (१०२६) सवस्सदाहमग्गी दिति कसाया भवमर्णतं ॥ (५७०)/१८ अणुरत्तो भत्तिगओ अमुई अणुअत्तभोधिसेसग्नू (१९९३) १० सीसोवि पहाणयरो गंतेणाबियारियग्गाही (६१८) पियधम्मो ददधम्मो संविग्गोऽबजऽभीरु असढो य । ११ अविगलगोविक्केया ब जो बिमहक्खमो सुगंभीरो ॥ (६१९) खंतो दंतो गुत्तो घिरव्यय जिइंदिओ उज्जू ॥ १२ अधिणासियसुत्तत्था सीसा-यरिया विणिहिट्ठा। (६९) असदो तुलासमाणो समिश्रो तह साहुसंगहरओ य ।। १३ संभवइ, जं अगहिउँ परदोसं चिट्ठए कोई (६२०) गुणसंपभोवयोओ जुग्गो सेसो अजुग्गो य ॥ (१९९४) १४ गरुया पिच्छंति परस्सन हुदोसं। (६२०)/१९ नाणस्स होइ भागी थिरतरओ दसणे चरिसे य । ॥१०॥ ~15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ॥११॥ आ ग म Wwwh भा गः श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यक+दशवैकालिकसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी साहित्य धन्ना आपकहाए गुरुकुलवासं न मुंचति ॥ (१३०८) २० गीयावासो र धम्मे अणाययणवज्जणं । निग्गहो य कसायाणं, एवं धीराण सासणं ॥ ( १३०९ ) २१ किचकिच्च गुरवो विति विणयपडिवत्तिहेडं च । उस्सासार पमोत्तुं तदणापुच्छाई पडिसिद्धं ॥ २२ विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाड विप्यमुकस्स, कओ धम्मो ? कओ तवो ? ॥ २३ विणओवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स । तित्थयराण य आणा सुयधम्माराहणाऽकिरिया ॥ (१३१०) अथ दशवेकालिकसूक्तानि १ जयति विजितान्यतेजाः सुरासुराधीशसेदितः श्रीमान् । विमलासविरहितत्रिलोकचिन्तामण्विीरः ॥ (१) २ अन्नं पिथ से नामं कामा रोगति पंडिया बिंति । कामे पत्थमाणे रोगे पत्थे खलु जंतू ॥ ३ इंदिबियकसाया परीसहा धेयणा य उवसग्गा पर अवराहपया जत्थ विसीयंति दुम्मेहा ॥ अपना १ जयति जिनवर्धमानः परहितनिरतो विधूतकर्मरजाः । मुक्तिपथचरणपोषकनिरवद्याहारविधिदेशी ॥ २ अवि नाम होज्ज सुलभो गोणाईणं तणाद आहारो । शिच्छिकारयाणं न हु सुलहो होइ सुणगाणं ॥ ३ केलासभयणा एए, आगया गुज्झगा महिं । चरंति जक्खरुवेणं, पूषाऽपूया हियाऽहिया ॥ ४ भुंजंति चित्तकम्मंठिया व कारुणिय दाणरुणो वा । अवि कामगइहेसुवि न नस्सई किं पुण जईसु ॥ ५] 'लोयाग्गहकार भूमीदेयेसु बहुफलं दाणं अवि नाम बंभवं किं पुण छकम्मनिरपसु ॥ व्याख्या-पिण्डपदानादिना लोकोपकारिषु भूमिदेषेषु ब्राह्मणेष्वपि नाम ब्रह्मबन्धुष्वपि जातिमात्रब्राह्मणेष्वपि दानं दीयमानं बहुफलं भवति, किं पुनर्यजनयाजनादिरूपषट्कर्मनिरतेषु तेषु विशेषतो बहुफलं भविष्यतीति भावः । (८६) (८८) | ६ किवणेसु तुम्मणेसु य अबंधघायंकजुंगियंगेसुं च । ~ 16~ (१३१) (१३१) 334 + 5 ww bho विशेषावश्य कदशका आ लिकपिण्डनियुक्तीनां सूक्तानि ॥११॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [पिंडनियुक्ति+उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य ISH आगमीयसूक्तावली ॥१२॥ श्री आ ग पिण्डयुक्त्युत्तराध्यय नयोः सूक्तानि FEN पूयाहिज्जे लोए दाणपडागं हरा दितो ॥ १३१ | २ भयपि थूलभहो तिक्खे चंकम्मिमो न उण छिन्नो। ७ पापण देह लोगो उवगारिसु परिचिएसु झुसिए वा । | अग्गिसिहाए घुत्थो चाउम्मासे न उण दहो ॥ (१०४) जो पुण अशांखिन्नं अतिहिं पूपडतं दाणं ॥ (१३१)/३ माणुस्सं धम्मसुई सद्धा तब संजमंमि विरिअंच। ८दीहरसील परिषालिऊण बिसपसु यच्छ!मा रम। । एए भावंगा खलु दुल्लभगा हुंति संसारे ॥ (१४४) को गोपयंमि बुट्टा उहि तरिऊण वाहाहि ॥ १.३७ | ४ माणुस्स खिप्त जाई कुल रुपाऽऽरोग्ग भाडयं बुद्धी । ९ उमस्थो मुथनाणी उचडतो उज्जुजो पयो । सवणुग्गह सदा संजमो अलोगंमि दुलहाई ॥ (१४५) भावन्नो पणवीसं सुयनाणपमाणो मुदो॥ (१५७)/५ चुलग पासग धम्ने जूए रयणे असुमिण चके य । १० ओहो ओवउत्तो मयनाणी जावि गिहण्ट अस। | चम्म जुगे परमाणू दस दिता मणुअलंमे ॥ (१४५) तं केवलीवि भंजा अपमाण सयं भवेदहरा। आलस्स मोहऽयन्ना थंभा कोहा पमाय किविणचा। १९ मुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स। । | भय सोगा अशाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ॥ मोक्स्सऽविय अभावे दिक्खपवित्ती निरत्था उ ॥ (१४८) एएहिं कारणेहि लढूण सुदुल्लहंपि माणुस । | न लहर सुई हिसकरि संसारुत्सारिणि जीयो ॥ अथ उत्तराध्ययनसूक्तानि ७ मिच्छाविट्ठी जीवो उचश्टुं पवयणं न सहहह । १ कचित् सौच्या शैल्या कचिदधिकृतप्राकृतभुया, कथि | सहहद असम्भावं स्वार्ट्स या अणुवाटू ॥ उचापत्या कचिदपि समारोपविधिना । कचिच्चाध्या- ८ सम्म हिट्ठी जीवो उपार्ट्स पषवणं तु सदहए । हारात कचिदविकलप्रक्रमवलादियं व्याख्या ज्ञेया कचि | सहइ असम्भावं अणभोगा गुरुनिमोगा वा ॥ दपि तथाऽऽनायवशतः ॥ (७१)|९ खित्तं वत्थु हिरणं च, पसबो दास पोरुसं । (१५) ॥१२॥ ~17~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्रीआगमीय उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि सूक्तावला ॥१३॥ चत्तारि कामखंधाणि, तत्थ से उवबजाइ ।' |१६ अहे वयह कोहेणं, माणेणं अहमा गई। १०मित्तवं नावं होइ, उच्चागोत्ते य वण्णवं । माया गइपडिग्घाओ, लोहामओ दुहओ भयं (३१८) ___ अप्पायके महापन्ने, अभिजायजसोबले ॥ (१८७) १७ एवं खलु जाया! णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केव११ मुक्समग्गं पवन्नेसु, सासु बंभयारिसु । लिए एवं जहा पडिक्कमणे जाव सयदुक्खाण अंतं करेति, ___ अहिथत्यं निवारितो, न दोसं वत्तुमरिहसि ॥ (३००), किंतु अहीव एतदिट्ठीए खुरो इव एगंतधाराए लोहमया वा १२ एकोऽहं न च मे कश्चित्राहमन्यस्य कस्यचित् । जवा चावेयव्वा वालुयाकवले इब निस्साए। (३२८) मतं पश्यामि यस्याहं, नासी दृश्योऽस्ति यो मम ॥ (३०७) १८ धणे सि तुम देवाणुप्पिया! एवं सपुण्णोऽसि णं, कयत्वे, १३ यद् ब्रुभे महति पक्षिगणा विचित्राः, कृत्वाऽऽयं कयलक्खणे, जुलद्दे णं तब देवाणुपिया! माणुस्सए हि निशि यान्ति पुनः प्रभाते । तद्वजगत्यसकृदेव कुटुम्ब जम्मे जीवियफले। जीदाः, सर्वे समेत्य पुनरेव दिशो भजन्ते ॥ RI १४ आरमाथै सीदमानं स्वजनपरिजनो रीति हाहारवार्ता, .. |१९ तए गं से अधारणि जमितिकट्ट करयलपरिग्गहियं जाव | भार्या चात्मोपभोगं गृहविभवसुखे स्वं च यस्याश्च कार्यम् ।। अंजलि कटु णमोऽत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव संपक्रन्दत्यन्योऽन्यमन्यस्त्विह हि बहुजनो लोकयात्रा निमित्तं, ताणं, नमोऽरधुणं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाणं यो वाऽन्यस्तत्र किश्चिमृगयति हि गुणं रोदितीष्ठः स धम्मोचएसयाणं पुबिपि य णं मए थेराणं अतिते सब्वे तस्मै॥ पाणाइवाए पच्चक्खाए जावजीचाए जाष सम्बे अकर१५ एकोऽहन च मे कश्चित्, स्वपरो वाऽपि वियते। णिज्जे जोगे पच्चक्खाए, इयाणिपि तेसिं चेवणं भगवंताणं यदेको जायते जन्तुर्मियतेऽप्येक एव हि ॥ (३५०)/ अंतिते जात्र सब्बं पाणातिवायं जाव सवं अकरणिज्ज GEEV ॥१३॥ ~18~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीय सूक्तावली ॥१४॥ उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि PROFEv जोगं पक्खामि, जंपिय मे इमं सरीरगं जाव पयंपि! बिरतकामाण तबोधणाणं, जंभिक्खुणं सीलगुणे रयाण(३८६) चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं पोसिरामिति । (३३१) | २८ जाणमाणोऽपि ज धम्म, कामभोगेसु मुच्छिो ॥ (३९०) आ| २० दुलहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेणवि सचपाणिणं । । | २९ सव्वं जगं जह तुहं, सव्वं वावि धणं भये। गाढा य विवागकम्गुणो, समयं गोयम मा पमायण ॥ (३३५), सव्वंपि ते अपजतं, नेव ताणाय तं तव ॥ (१०८) |ग २१ भवसिद्धिया उ जीवा सम्महिट्ठी उजं अहिज्जति । ३० देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिनारा। तं सम्मसुपण सुर्य कम्मट्टविहस्स सोहिकरं । भयारि नममंति, दुकरं जे करति तं ॥ (४३०) २२ मिच्छट्ठिी जीया अभवसिद्धी य ज अहिजति । ३१ नाणी संजमसहिओ नायबो भावो समणो। (४३१) तं मिच्छसुएण सुयं कम्मादाणं च तं भणियं ॥ (३४३)। ३२ अभयं तुज्झ नरवई ! जलबुचुअसंनिमे अमाणुस्से। २३ अह चोदसहि ठाणेहि, बट्टमाणो उ संजण । ____किं हिंसाइ पसजलि जाणतो अप्पणो दुक्ख? (५४१) अविणीए बुधती सो उ, णिव्वाणं च ण गाद ॥ (३४५) ३३ सबमिणं चदऊणं अबसरस जया य होइ गंतवं। . २४ अह पन्नरसहिं ठाणेहि, सुविगीएत्ति बुच्चाइ । किं भोगेसु पसज्जसि? किंपागफलोचमनिमेसुं॥ (४४२) नीयाबित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥ ३४ अम्मताय ! मए भोगा, भुत्ता विसफलोचमा । २५ भदएगेव होमवं, पाषर भद्दाणि भइओ। पच्छा कडुयविवागा, अणुबंधदुहावहा ॥ सविसो हम्मए सप्पो, भेरंडो तत्थ मुच्चा ॥ ३५४ | ३५ इमं सरीरं अणिच्वं, असुई असुइसंभयं । २६ सव्वं विलवियं गीर्य, सव्वं नर्से विडवणा। ___असासयावासमिणं, दुक्खफेसाण भायणं । सत्रे आभरणा भारा, सब्जे कामा दुहावहा ॥ ३६ असासए सरीरंमि, नोबलभामहं।। २७ वालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु रायं!। पच्छा पुरा व चश्यब्बे, फेणबुबुयसंनिमे ॥ (४५३) बाबा ॥१४॥ ~19~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीयसूक्तावली ॥१५॥ उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि ३७ माणुसत्ते असारंमि, वाहीरोगाण आलए । एव धम्म चरिस्सामि, संजमेण तवेण य॥ - जरामरणपत्थंमि, खणंपि न रमामहं ॥ ५६ जया मिगस्स आयंको महारण्णंमि जायई । ३८ जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अच्छतं रुक्खमूलंमि, को गं ताहे चिगिच्छई। ॥ अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो॥ ४७ को वा से ओसह देइ, को वा से पुच्छई सुई । ३९ खित्तं वत्थं हिरणं च, पुत्तदारं च बंधवा । को से भत्तं व पार्ण वा, आहरित्तु पणामई? ॥ चहत्ताण इमं देहं, गंतव्यमवसरस मे ॥ ४८ जया य से सुही होइ, तया गच्छर गोअरं । |४० जह किंपागफलाणं, परिणामो न सुंदरो। भत्तपाणस्स अट्टाए, बल्लराणि सराणि य । एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो ॥ (४५४) ४९ खाइत्ता पाणिय पाउं, बल्लरेहि सरेहि य । ४१ तं बितऽम्मापियरो, पवमेयं जहाफुडं। मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं ।। इहलोगे निपिवासस्स, नस्थि किंचिवि दुकरं ॥ ५० एवं समुट्ठिए भिक्ख, एवमेव अणेगए । ४२ सारीरमाणसा चेव, बेयणा उ अणंतसो। मिगचरियं चरिताणं, उई पक्कमई दिसं ॥ मए सोदाभों [*] भीमामो [1], असई दुक्खभयाणि य ॥ | ५१ जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोभरे भा एवं ४३ जरामरणकंतारे, चाउरते भयागरे । मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नोवि य खिंसहजा ॥ (४६२) मया सोढाणि भ.मार, जम्माई मरणाणि य॥ (४५८)/५२ सीहत्ता निक्खमिडं सीहत्ता चेव विहरसु पुत्ता। ४४ सो वितऽम्मापियरो! एवमेयं जहाफुडं। जह नवरि धम्मकामा विरत्तकामा उ विहरति । , परिकम्मै को कुणई, अरन्ने मिगपक्खिणं? ॥ |५३ नाणेण दंसणेण य चरित्ततवनियमसंजमगुणेहिं। ५ एगम्भूयो भरग्ने था, जहा ऊ चरई मिगो। | खंतीण मुत्तीए होहि तुम यहमाणोड . (४६४) ॥१०॥ ~ 20~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य उत्तराध्यय श्रीआगमीयसूक्तावली ॥१६॥ सूक्कानि ५५ पंचमहन्वयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो भ। | एसेच धम्मो विसभोववन्नो, हणाइ याल यायियत्रो (४७) सम्भितरबाहिरिण, तबोकम्ममि उज्जुभो ॥ ५८ दंसमसगसामाणा जलूयकविच्छ्यसमा य जे हुँति । निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । ते किर हति खलुका तिक्वमिउचंडमद्दविया ॥ समो अ सब्वभूएसु, तसेसु थावरेसु अ॥ ५९ जे किर गुरुपडिणीआ सबला असमाहिकारगा पाया। लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। अहिगरणकारगप्पा जिणवयणे ते किर खलुका ॥ समो निंदापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ६० पिसुणा परोयताबी मिनरहस्सा परं परिभवति ।' गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभपसु अ। निविअणिज्जा य सढा जिणवयणे ते किर खलुका ॥ (५४२) नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबंधणो॥ ६१ नाणेण जाणाई भावे, संमत्तेण य सद्दहे। अणिस्सिमो इह लोए, परलोए अणिस्सिभो। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई॥ वासीचंदणकप्पो अ, असणे अणसणे तहा॥ ६२ आहारमिच्छे मियमेसणिजं, सहायमिच्छे निउणस्थवुद्धि । अप्पसत्येहिं दारेहि, सवओ पिहियासवो। निकेयमिच्छिज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्ती॥ अज्झप्पझाणजोगेहि, पसत्थदमसासणो॥ (४६४)|६३ तस्सेस मग्गो गुरुविद्यसेवा, वियजणा बालजणस्स दूरा।। ५५ अप्पा नई बेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। सज्झायपगतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिंतणया धिई य॥(६२२) गः अप्पा. कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदर्ण वर्ण ॥ ६४ जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडे बलागष्पभवं जहा य । ५६ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । __पमेव मोहाययणं खुतण्हं, मोहं च तण्हाययणं वयंति । अप्पा मित्तममित्तं च, दुष्पट्ठियसुपट्टिओ॥ (४७६)| ६५ रागो य दोसोषिय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। ५७ विसं तु पीयं जह कालकूड, हणार सत्थं अह कुरगहीयं। कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥ ॥१६|| ~21~ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्रीआगमीयखुक्तावली ॥१७॥ उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि FERMEEVRRIBER ६६ दुक्ख इयं जस्सन होर मोहो, मोहो हो जस्सन | इस्वीजणस्सारियाणजुग्गं, हियं सया बंभषए रयाणं ॥ होइ तण्हा । तन्हा हया जस्स न हो लोभो, लोभो |७३ कामं तु देवीहिं विभूसियाहिं, न चाश्या खोभाउ तिगुत्ता। हओ जस्सन किंचणाई ॥ (६२३) तहावि एगंतहियंति नचा, विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो । ६७ रसा पगामं न हु सेबियच्या, पायं रसा दित्तिकरा |७४ मुक्वाभिकंखिस्सवि माणवस्त, संसारभीरुस्स ठियस्स नराणं । वित्तं च कामा समभिवंति, दुर्म जहा धम्मे । गेयारिस्सं दुत्तरमस्थि लोए, जहस्थिओ बालसाउफलं व पक्खी ॥ | मणोहराओ॥ ६८ जहा दबग्गी पडरिंधगे बणे, समारुओ नोवसमं | ७५ पए य संगा समइक्कमित्ता, सुहुत्तरा व हवंति सेसा । उवेइ । एबिंदियग्गीवि पगामभोइणो, न बंभयारिस्स जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥ हियाय कस्सा। ७६ कामाणुगिद्धिप्पभवं खुदुक्खं, सव्यस्स लोगस्स सदेव६९ बिवित्तसिज्जाऽऽसणजंतियाणं, ओमासणाणं दमिइंदियाणं । ___गस्स । जे काइयं माणसियं च किच्चि, तस्संतयं नरागसत्तू धरिसेद चित्तं, पराइभो बाहिरिबोसहेहिं ॥ गच्छद बीयरागो॥ . ७० जहा विरालायसहस्स मूले, न मूसगाणं पसहीपस- ७७ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण बन्नेण व भुजमाणा। स्था । एमेव इस्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स ते खुदए जीषिय पच्चमाणा, एओषमा कामगुणा विधागे (१२५) खमो निवासो ॥ ७८ न कामभोगा समयं उविति, न यावि भोगा बिगई उचिंति । ७१ न रूबलावण्णबिलासहासं, न जंपिइंगिय पहियं वा। जे तप्पभोसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उबेद ॥(६३५) इत्थीण चित्तसि निबेसहत्ता, दट्ट, वयस्ले समणे तवस्सी॥ | ७९ अच्चणं रयणं वेष, बंदणं पूअणं तहा । ७२ असणं चेच अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्तणं च । । इहीसकारसम्माण, मणसावि न पत्थए । RERRENA.ANE4 ॥१७॥ ~22~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली आ ग ||१८|| मो 255 Who डा श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययन+आचारांगसुक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी साहित्य ८० जिणवयणे अणुरता जिणवयणं जे करेंति भावेणं । अमला असंकिलिट्टा ते हुति परित्तसंसारी ॥ ८१ बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चैव बहुयाणि । मरिहंति ते वराया जिणवयणं जे न याति ॥ ( ७०८) अधाचारांगसूक्तानि १ एकं हि चक्षुरमलं सहजो विवेकस्तद्वद्भिरेव सह संवसतिर्द्वितीयम् । एतद् द्वयं भुवि न यस्य स तत्वतोऽन्धस्तस्यापमार्गचलने खलु कोऽपराधः ॥ (४१-११९) २ विजिओ कसायलोगो सेयं खु त नियति होइ । कामनियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्यं ॥ (cv) (८९) ४ दृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थितं, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यनास्ति तत् पश्यति । कुन्देन्दीवरपूर्णचन्द्रकलशश्रीमल्लतापल्लवानारोप्याशुचिराशिषु प्रियतमागात्रेषु यन्मोदते ॥ ३ पंचसु कामगुणेसु य सद्दष्फरिसरसरुवगंधेनुं । जस्स कसाया बर्हति मूलद्वाणं तु संसारे ॥ ५ जह सव्वपायवार्ण भूवी पट्टियाई मूलाई । इय कम्मपायवाणं संसारपट्टिया मूला ॥ ६ अहिकम्मरुखा सधे ते मोहणिजमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलगं च संसारो ॥ ९ ७ संसारस्य उ मूलं कम्मं तस्सवि हुति य कसाया । (९१) ८ पुत्रा मे भ्राता मे स्वजना मे गृहकलत्रवर्गों मे । इति कृतमेमेशब्द पशुमिव मृत्युर्जनं हरति ॥ पुत्रकलत्रपरिग्रहममत्वदोषैर्नरो वजति नाशम् । कृमिक इव कोशकारः परिग्रहाः खमाप्नोति ॥ १० संसारं छेत्तुमणो कम्मं उम्मूलऍ तदट्टाए । उम्मूलिज कसाया तम्हा उ चदज सयणाई ॥ ११ माया मेति पिया मे भगिणी भाया य पुत्तदारा मे अत्यंमि चेव गिद्धा जम्मणमरणाणि पार्वति ॥ १२ स्वतोऽन्यत इतस्ततोऽभिमुखधावमानापदामहो निपुणता नृणां क्षणमपीह यज्जीव्यते। मुखे फलमतिक्षुधा सर समयमायोजितं, कियच्चिरमचर्चितं दशनसङ्कटे स्थास्यति ॥ १३ उच्छ्वासावधयः प्राणाः, स बोष्वासः समीरणः । (१०१) ~23~ (९०) 2555555 श्री उत्तराध्यय नाचारां आ गयोः सूक्तानि ॥१८॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आचारांगस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसूक्तावली ॥१९॥ समीरणाच्चयलं नान्यत् , क्षणमप्यायुरद्भुतम् ॥ (१०३) च तत्र गुणोऽस्ति ते ॥ १५ गात्रं सचितं गतिबिंगलिता दन्ताश्च नाशं गताः, रष्टिनं-२१ तमानमेव न भवति यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः। पति रूपमेव हसते वक्त्रं च लालायते । वाक्यं नैव करोति | तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाप्रतः स्थातुम् ॥ पान्धवजनः पत्नी न शुश्रूषते, धिकष्टं जरयाऽभिभूतपुरुष | २२ अज्ञानान्धाश्चटुलवनितापाङ्गविक्षेपितास्ते, कामे सक्ति पुत्रोऽप्यवशायते॥ (१०६) दधति विभवाभोगतुङ्गार्जने वा। बिच्चित्तं भवति १५ न विभूषणमस्य युज्यते, न च हास्यं कुत एव विभ्रमः।। | हि महन् मोक्षमार्गकतान, नाल्पस्कन्धे बिरपिनि कषअथ तेषु च वर्तते जनो, ध्रुवमायाति परां विडम्बनाम् ॥ | त्येशभित्ति गजेन्द्रः॥ (११२) १६ जे जं करेइ तं तं न सोहए जोवणे अतिकते। | २३ अशानं खलु कष्टं क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । पुरिसस्स महिलिया इच एक धम्म पमुत्तूर्ण ॥ ___ अर्थं हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥ १७ सम्प्राप्य मानुषत्वं संसारासारतां च विशाय । २४ स्वेच्छाविरचितशास्त्रैः प्रव्रज्यावेषधारिभिः क्षुः । हे जीव! किं प्रमादान्न चेष्टसे शान्तये सततम् ॥ नानाविधैरुपायैरनाथवन्मुष्यते लोकः॥ १८ ननु पुनरिदमतिदुर्लभमगाधसंसारजलधिविभ्रष्टम् । | २५ इन्द्रियाणि न गुप्तानि, लालितानि न चेच्या । मानुष्यं खद्योतकतदिल्लताविलसितप्रतिमम् ॥ ___मानुष्यं दुर्लभ प्राप्य, न युक्तं नापि शोषितम् ॥ (१९३) १९ नरवेगसमं चवलं च जीवियं जोवणं च कुसुमसमं। |२६ धावेद रोहणं तरइ सायरं भमद गिरिणिगुंजेसुं। सोक्षं च अणिच्चं तिषिणवि तुरमाणभोज्जाई॥ (१०७) मारेर बंधवंपि हु पुरिसो जो होइ धणलुद्धो ॥ २० सह कलेवर! दुःखमचिन्तयन् , स्ववशता हि पुनस्त- |२७ अडर बहुं यह भर सहइ छुहं पायमायरा चिट्ठो। च दुर्लभा । बहुतरं च सहिष्यसि जीव हे !, परवशो न । कुलसीलजाइपच्चयधिरं च लोभइओ चयर ॥ (११४) ॥१९॥ ~24~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीयसूक्तावली आचारांगस्य सूक्तानि ॥२०॥ RANA.AABARMER २८ तिथिपर्वोत्सवाः सर्वे, त्यक्ता येन महात्मना।। ३६ जीवन्नेव मृतोऽन्धो यस्मात्सर्वक्रियासु परतन्त्रः । अतिथि तं विजानीयाच्छेषमभ्यागतं विदुः ॥ नित्यास्तमितदिवाकरस्तमोऽन्धकारार्णवनिमग्नः ॥ २९ आराध्य भूपतिमयाप्य ततो धनानि, भोक्ष्यामहे किल | ३७ लोकद्वयव्यसनयह्विविदीपितानमन्ध समीक्ष्य कृपणं वयं सततं सुखानि । इत्याशया धनविमोहितमानसाना, परयष्ठिनेयम् । को नोद्विजेत भयकृजननादिबोनात् , कालः प्रयाति मरणावधिरेव पुंसाम् ॥ कृष्णाहिनैकनिचितादिव चान्धगर्त्तात् ॥ (१२०) ३० एहि गच्छ पतोत्तिष्ठ, वद मौनं समाचार। ३८ धर्मश्रुतिश्रवणमङ्गलबर्जितो हि, लोकश्रुतिश्रवणसंव्यच ___इत्याद्याशाग्रहप्रस्तः, क्रीडन्ति धनिनोऽथिभिः ॥ (११५) | वहारवाह्यः । किं जीवतीह बधिरो भुवि यस्य शब्दाः, ३१ सर्वसुखान्यपि बहुशः प्राप्ताम्यटता मयाऽत्र संसारे। | स्वमोपलब्धधननिष्फलतां प्रयान्ति ॥ उच्चैः स्थानानि तथा तेन न मे विस्मयस्तेषु ॥ ३९ स्वकलप्रयालपुत्रकमधुरबच श्रवणबाह्यकरणस्य । ३२ जर सोऽवि निज़रमओ पडिसिद्धो अट्ठमाणमहणेहिं । | बधिरस्य जीवितं किं जीवन्मृतकाकृतिधरस्य । अवसेस मयट्ठाणा परिहरिअब्बा पयत्तेणं । ४० दुःखकरमकीर्तिकरं मूकत्वं सर्वलोकपरिभूतम् । ३३ अवमानात्परिभ्रंशाद्वधबन्धधनक्षयात् । प्रत्यादेश मूढाः कर्मकृतं किं न पश्यन्ति । प्राप्ता रोगाश्च शोकाश्च, जात्यन्तरशतेष्वपि ॥ ४१ काणो निमग्नविषमोन्नतरप्टिरेकः, शाक्तो विरागजनने ३४ संते य अविहार असोइड पंडिएण य असंते । जननातुराणाम् । यो नैव कस्यचिदुपैति मनःप्रियत्षसका दुदुमोबमिथं हिअएण हि धरतेण ॥ मालेख्यकर्म लिखितोऽपि किमु स्वरूपः॥ (१२०) ३५ होऊण चकवट्टी पुहरबई विमलपंडरच्छत्तो। ४२ दाराः परिभवकारा बन्धुजनो बन्धनं विषं विषयाः । सो चेष नाम भुजो अणाहसालालभो होड ॥ (१२८)। कोऽयं जनस्य मोहो? ये रिपवस्तेषु सुहृदाशा ॥ ॥२०॥ ~25~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री. आगमीय गायत ॥२१॥ आ ग द्धा भा गः ८ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य ४३णमेव नावति, जे जणा धुवचारिणो जाईमरणं परिचाय, चरे संकमणे ददे । नत्थि कालस्स नागमो, सध्धे पाणा पियाडया, सुहसाया दुक्ख पडिकूला अपियवा विजविणो जीविकामा, ससिं जाधियं प्रियं तं परिगिज्झ दुपयं चउपयं अभिजुंजिया णं संसिंचिया णं तिविद्वेण जाऽवि से तत्थ मत्ता भवर अप्पा वा बहुया वा से तत्थ गढिए चि भोभणार, तो स एगया विविहं परिसि संभूयं महोदगरणं भवर, संषि से एगया दायाया वा विभ यंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलपति, नस्सर वा से विणस्सर वा से, अगारदाहेण वा से उज्झर इय से परस्सऽट्टाए राई कमाई वाले पकुव्यमाणे तेण दुक्खेण संमूढे विप्परियासमुबेर, मुणिणा हु एयं पश्यं, अणोहंतरा एए नोय ओहं तरित्तर, अतीरंगमा एए नो य तीरं गमित्तप अपारंगमा एए नो य पारं गमित्तर, आयाणिजं च आयाय तंमि ठाणे न चिर, वितह पप्पऽखे यन्ने तंमि * ठामि चिट्ठर । (१२१) ४४ सन्दिग्धेऽपि परे लोके, त्याज्यमेवाशुभं दुधैः । यदि नास्ति ततः किं स्यादस्ति चेनास्तिको हतः ॥ ४५ शिशुमशिशुं कठोरमकठोरमपण्डितमपि च पण्डितं, धीरमधीरं मानिनममानिनमपगुणमपि च बहुगुणम् । यतिमयति प्रकाशमवलीनमचेतनमथ सचेतनं निशिदिव सेऽपि साध्यसमयेऽपि विनश्य (नाशय) ति कोऽपि कथमपि ॥ ४६ रम विहवी बिसेसे ठितिमित्तं येवबित्थरो महई । मग्गर सरीरमहणो रोगी जीए च्चिय कयस्थो ॥ (१२२ ) ४७ कृमिकुलचित्तं लालाक्लिनं विगन्धि जुगुप्सितं, निरुपमरसप्रीत्या खादन्नरास्थिनिरामिषम् । सुरपतिमपि वा पार्श्वस्थं सशङ्कितमीक्षते न हि गणयति क्षुद्रो लोकः परिग्रहफल्गुताम् ॥ ४८ रागद्वेषाभिभूतत्वात्कार्याकार्यपरामुखः । एष मूढ इति शेयो, विपरीतविधायकः ॥ ४९ उतो यः स्वत एव मोहसलिलो जन्माऽऽलबालोऽशुभो, रागद्वेषक पाय सन्ततिमहानिर्विबीजस्त्वया। रोगैर ~ 26~ (१२३) श्री आ ग आचारांगस्य सूक्तानि ॥२१॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आचारांगस्य सूक्तानि श्री आगमीय सूक्तावली ॥२२॥ रितो विपत्कुसुमितः कर्मवमः साम्प्रतं, सोढा नो यदि ५६ मसट्रिरुहिरहारुवणशकलमलयमयमजासु । सम्यगेष फलितो दुःखैरधोगामिभिः ॥ - पुगणंमि चम्मकोसे दुग्गंधे असुइवीभच् ॥ ५० पुनरपि सहनीयो दुःखपाकस्त्वयाऽयं, न खलु भवति ५७ संचारिमजंतगलंतवञ्चमुत्तंतसेअपुग्णमि। नाशः कर्मणां संचितानाम् । इति सह गणयित्वा देहे हुज्जा कि रागकारणं असुइहेउम्मि ॥ (१३७) यद्यदायाति सम्यग् , सदसदिति विवेकोऽन्यत्र भूयः ५८ दुःखार्तः सेवते कामान् , सेवितास्ते च दुःखदाः । कुतस्त्यः ॥ ____ यदि ते न प्रियं दुःखं, प्रसङ्गास्तेषु न क्षमः ॥ (१३९) ५१ यल्लोके ब्रीहियवं, हिरण्यं पशवः स्त्रियः । ५९ दुःखहिट मुखलिप्सुमोहान्धत्वादरणगुणदोषः। नालमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शमं कुरु ॥ यां यां करोति चेष्टां तया तया दुःखमादत्ते ॥ (१४१) ५२ उपभोगोपायपरो वाञ्छति यः शमयितुं विषयतृष्णाम्। [६० विभव इति किं मदस्ते ? च्युतविभवः किं विषादमुपयासि ।। धावत्याक्रमितुमसौ. पुरोऽपराण्हे निजच्छायाम् ॥ (१२८) करनिहितकन्दुकसमाः पातोत्पाता मनुष्याणाम् ॥ (१४३) ५३ जरामरणदौर्गत्यव्याधयस्तावदासताम् ।। ६१ शिवमस्तु कुशास्त्राणां वैशेषिकषष्टितन्त्रबौद्धानाम् । मम्ये जन्मैव धीरस्य भूयो भूयत्रपाकरम् ॥ (१३२)। येषां दुविहितत्वाद् भगवत्यनुरज्यते चेतः॥ (१४५) ५४ लभ्यते लभ्यते साधुः, साधुरेव न लभ्यते । | ६२ सीउपहफाससुहतुहपरीसहकसायबेयसोयसहो। ____ अलब्धे तपसो वृद्धिलब्धे तु प्राणधारम् ॥१॥ (१३४) हुज समणो सया उज्जुओ य तबसंजमोषसमे ॥ (१५१) ५५ लज्जा गुणीघजननी जननीमिवार्यामत्यन्तशुद्धहृदया- ६३ नातः परमहं मन्ये, जग मनुवर्तमानाः । तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति, | यथाऽशानमहारोगो, दुरन्तः सर्वदेहिनाम्। (१५२) सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिक्षाम् ॥ (१३५) / ६५ रक्तः शब्दे हरिणः स्पर्श नागो रसे च वारिचर।। ॥२२॥ ~27~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ॥२३॥ ? *+F_FN ओ ग द्धा र ग्र भा गः श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य (१५३) कृपणपतको रूपे भुजगो गन्धे ननु विनष्टः ॥ पञ्चसु रक्ताः पञ्च विनष्टा यत्रागृहीतपरमार्थाः । एकः पञ्चसु रक्तः प्रयाति भस्मान्ततामबुधः ॥ ६५ रागद्वेषवशाविद्धं मिथ्यादर्शनदुस्तरम् । जन्मावर्ते जगत् क्षिप्त, प्रमादाद् भ्राम्यते भृशम् ॥ (१५४) ६६ यथेष्टविषयाः सातमनिष्ठा इतरतव । अन्यत्रापि विदित्वैवं न कुर्यादप्रियं जने ॥ (२५९) ६७ कुणमाणोऽवि निवित्ति परिचयतोऽवि सयणधणभोए । दितोऽवि दुहस्स उरं मिच्छदिट्ठी न सिज्झइ उ ॥ ६८ सम्म पत्ती साबण व विरए अनंतकम् । दंसणमोहक्खप उवसामन्ते य उबसंते ॥ खवर य खीणमोहे जिणे अं सेढी भवे असंखिज्जा । व्विरीओ कालो संखिजगुणाइ सेडीए ॥ .. . (१७७) ६९ आहारउवहिपूआइडीसु य गारवेसु कइतवियं । एमेव बारसविधे तबंमि न हु कइतवे समणो ॥ ७० वदति यदीह कचिदनुसंतत सुखपरिभोगलालितः । प्रयत्नशतपरोऽपि विगतव्यथमायुरवाप्तवान्नरः । (१७८) न खलु नरः सुरौघसिद्धासुरकिझरनायकोऽपि य । सोऽपिः कृतान्तदन्तकुलिशाक्रमेण कृशितो न नश्यति ॥ (१८३) नश्यति नीति याति बितनोति करोति रसायनक्रियाम् चरति गुरुप्रतानि विवराण्यपि विशति विशेष कातरः । तपति तपांसि खादति मितानि करोति च मन्त्रसाधनं, तदपि कृतान्तदन्तयन्त्रककचक्रमणैर्विदार्यते ॥ (१८४) ७१ संसार एवायमनर्थसारः कः कस्य कोऽत्र स्वजनः परो वा? सर्वे भ्रमन्तः स्वजनाः परे च भवन्ति भूत्वा न भवन्ति भूयः ॥ विचिन्त्यमेतद् भवताऽहमेको, न मेऽस्ति कश्चित् पुरतो न पश्चात् । स्वकर्मभिर्भ्रान्तिरियं ममैव अहं पुर स्तादहमेव पश्चात् ॥ सदैकोऽहं न मे कश्चित् नाहमन्यस्य कस्यचित् । न तं पश्यामि यस्याहं नासी भावीति यो मम ॥ एकः प्रकुरुते कर्म, भुनक्का तत्फलम् । जायते खियते बैंक, एको याति भवान्तरम् ॥ ७२ क्षितिलशयनं वा प्रान्तभैक्षाशनं वा, सहजपरिभवो ~28~ (१९१) आ मो द्धा भा गः आचारांगस्य सूक्तानि ॥२३॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ॥२४॥ आ ग डा र भा श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य वा मीचदुर्भाषितं वा । महति फलविशेषे नित्यमभ्युथतानां न मनसि न शरीरे दुःखमुत्पादयन्ति ॥ ७३ तणसंधारनिसण्णोऽवि मुनिबरो भट्टरागमय मोहो । जं पावर मुतिसुहं तं कत्तो चकवट्टीवि ? ॥ (१९७) ( १९८) ७४ लोगंमि कुसमयसु य कामपरिग्गहकुमग्गलग्गेसुं । सारो हु नाणदंसणतवचरणगुणा हियडाए । ७५ लोगस्स सार धम्मो धम्मंपि य नाणसारियं विति । नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं ॥ ७६ पाबोवर अपरिमाहे अ गुरुकुलनिसेवर जुत्ते । उम्मग्गबजण रागदोसविरए य से विहरे ॥ ७७ सुकृतपरिणतानां दुर्नयानां विपाकः पुनरपि सहनीयोऽन्यत्र ते निर्गुणस्य स्वयमनुभवतोऽसौ दुःखमोशाय सयो, भवशतगतिहेतुर्जायतेऽनिच्छतस्ते ॥ (२०६) ७८ जो चंदणेण बाहुं आलिंपर वासिणा व तच्छेति । (२०३) संथुण जो अ जिंदति महेसिणो तत्थ समभावा ॥ (२०९) ७९ सम्मार्ग तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां लज्जां तावद्विधत्तं विनयमपि समालम्बते तावदेव । चापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, याव लीलावतीनां न हृदि धृतिमुपो दृष्टिवाणाः पतन्ति ॥ (२१९) ८० किमिदमचिन्तितमसदृशमनिष्टमतिकष्ठमनुपमं दुःखम् । सहसैवोपनतं मे नैरयिकस्येव सत्यस्य ? | (२३४) ८१ श्रवणलवनं नेत्रोदारं करक्रमपाटनं हृदयदहनं नासाच्छेदं प्रतिक्षणदारुणम् । कटविदहनं तीक्ष्णापातत्रिशूलवि- सो भेदनं, दहनवदनेः कर्घोरैः समन्तविभक्षणम् ॥ तीक्ष्णैरसिभिः कुन्तैर्विपमैः परश्वधैश्वकैः । परशुत्रिशूलमुद्गरतोमरबासीमुपण्डीभिः ॥ सम्भिन्नतालुशिरसच्छिन्नभुजा छिनकर्णनासौष्टाः । freeदोदरामा भिन्नाक्षिपुटाः सुदुःखार्त्ताः ॥ निपतन्त उत्पतन्तो विचेष्टमाना महीतले दीनाः । नेक्षन्ते त्रातारं नैरयिकाः कर्मपटलान्धाः ॥ छिद्यन्ते कृपणाः कृतान्तपरशोस्तीक्ष्णेन धारासिना, क्रन्दन्तो विपचिभिः परिवृताः संभक्षणव्यापृतैः । पाठ्यन्ते कचेन दारुवदसिना प्रच्छिवाहुद्वयाः, कुम्भीषु प्रयुपानदग्धतनवो मूषासु चान्तर्गताः ॥ ~ 29~ श्री 5th ग द्धा र भा आचारांगस्य सूक्तानि ।।२४।। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आचारांगस्य आगमीय सूक्तावली ॥२ भूज्यन्ते ज्वलदम्बरीषहुतभुगज्वालामिराराविणो, दीप्ता-! तितापितेषु । आर्या! नस्तदिह बिचार्य संगिरन्त. कारनिमेषु वज्रभवनेष्वङ्गारकेत्थिताः । दह्यन्ते विकतो यत् सौख्यं किमपि निवेदनीयमस्ति ॥ (२३७) यवाहुबदनाः मान्दन्त भावनाः, पश्यन्त पणा ८३ दुर्बलान्यविनयवस्ति पेन्द्रियाणि, अचिन्त्या मोहशक्तिः, दिशो विशरणास्त्राणाय को नो भवेत् ॥ (२३६) विचित्रा कर्म परिणतिः किं न कुर्यादिति, उक्तश्च८२ भुत्तुहिमात्युष्णभयाहितानां, पराभियोगव्यसमातुराणाम् ।। कम्माणि गुणं घणचिक्षणाई गरुयाई बहरसाराई। अहो तिरश्चामतिदुःखितानां, सुखानुपङ्गाः किल वार्त्त । णाणट्ठिअंपि पुरिसं पंथाओ उप्पहं णिति ॥ (२४७) मेतत् ॥ (२३७)/ ८४ कह नाम सो तबोकम्मपंडिओ जो न निबुजुत्तप्पा । दुःखं स्त्रीकुक्षिमध्ये प्रथम मिह भवे गर्भवासे नराणां, | लहु वित्तीपरिक्षेचं वश्चद जेमंतओ चिय? ॥ बालत्वे चापि दुःखं मललुलिततनु स्त्रीपयःपानमिथम् । ८५ आहारेण विरहिओ अप्पाहारो य संवरनिमित्त । तारुण्ये चापि दुःखं भवति बिरहज वृद्धभावोऽप्यसारः, हासंतो हासतो एवाहारं निरुभिजा ॥ (२६४) संसारे रे मनुष्या ! वदत यदि सुखं स्वल्पमप्यस्ति ८६ पगे अहमंसि, न मे अस्थि कोई, न याहमवि कस्सवि। किश्चित् ॥ ८७ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारेमाणे बाल्यात्प्रभृति च रोगैर्दयोऽमिभवश्व यावदिह मृत्युः। नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारिजा शोकवियोगायोगैर्दुर्गतदोपैश्च नेकविधः॥ आसाएमाणे, दाहिणाोहणुयाओ चामं हणुयं नो क्षुत्तृहहिमोष्णानिलशीतदाहदारियशोकप्रियविप्रयोगैः। संचारिजा आसाएमाणे, से अणासायमाणे लायवियं दार्भाग्यमानभिजात्यदास्यवैरुप्यरोगादिभिरस्वतन्त्रः ॥ आगमेमाणे तबे से अभिसमन्त्रागए भवद । (२८३) देवेषु च्यवनबियोगदुःखितेषु, क्रोधेासदमदना- ८८ तित्थयरो चउनाणी सुरमहिओ सिजिझयव्यय धुपम्मि । ~30~ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आचारांगस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसूक्तावली ॥२६॥ अणिगृहियवलपिरिभो तवोविहाणंमि उज्जमइ ९४ साहुमहिंसाधम्मो सच्चमदत्तविर्य य वंभं च । किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिपहि। | साहु परिग्गाहविर साहु तयो वारसंगो य ॥ होइन उजमियचं सपच्चवायंमि माणुस्से ॥ |९५ बेगमप्यमाओ पगत्ता(ग्गे) भावणा य परिसंगं । ८९ जह खलु माल वत्थं सुज्झइ उदगाहपाहि दब्बेहि। इय चरणमणुगयाओ भणिया इत्तो तपो बुच्छं। एवं भावहाणेण सुजाए कम्ममट्टविहं ॥ २९७ | ९६ किह मे हविजयशो दिवसो किंवा परतवं कार्ड।। ९० नाणं भविस्सई एयमाझ्या बायणाइयाओ य । को इह बब्वे जोगो खित्ते काले समयभावे!॥ सज्झाए आउत्तो गुरुकुलबासो य इय नाणे॥ ३४० ९१ आलंबणे य काले मग्गे जयणाइ चेव परिसुदं । ९७ भावयितव्यमनित्यत्व १ मशरणत्वं २ तथैकता भंगेहि सोलसविहं जं परि मुद्ध पसत्थं तु ॥ ३७५ ३ऽन्यत्वे ४/ अशुचित्वं ५ संसारः ६ कर्माधव जम्माभिसेयनिक्खमणचरणनाणुष्पया य निब्याणे । ७ संबर ८ विधिश्च ।। निर्जरण ९लोकविस्तर १० धर्मस्वाख्याततत्त्वचिन्ता च दियलोअभवणमंदरनंदीसरभोमनगरेसु ॥ अट्ठावयमुजिसे गयग्गपयए य धम्मचके य। ११ । योधेः सुदुर्लभत्वं च १२ भावना द्वादश विशुद्धाः ॥ ४२० पासरहापत्तनगं चमरुपायं च बंदामि ॥ ४१८९८ अणिरचे पध्वए रुप्पे भुयगस्स तहा (या) महासमुदय।। गणियं निमित्त जुत्ती संदिट्ठी अवितहं इमं नाणं । । एए खलु अहिगारा अज्झयणंमी विमुत्तीए ॥ ४२९ इय एगंतमुवगया गुणपंचदया इमे अत्था ।। ९९ विऊ नए धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुणिस्स गुणमाहप्पं इसिनामकित्तणं मुरनरिंदपूया य । । झायओ। समाहियस्सऽग्गिसिहा वयसा, तवो पोराण वेश्याणि य इय एसा दसणे होर ॥ ४१९ य पन्ना य जसो य बहर ॥ ४३० ॥२६॥ ~31~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [सूत्रकृत+स्थान+भगवतीसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय सूत्रकृतांगस्थानांगभगवतीनां सूक्तानि सूक्तावली ॥२७॥ अथ सूत्रकृतांगसूक्तानि तप्पजायविणासो दुक्खुप्पामो य संकिलेसोय। र उवसग्गभीरुणो थीवसस्स णरएसु होज उववाओ। एस वहो जिणभणिओ बजोयव्यो पयत्तेणं॥ (२६) श्रा एवं महप्पा वीरो जयमाह तहा जपजाह ॥ (4)/४ छटाणाई सव्यजीवाणं णो सुलभाई भवंति, तं०-माणुस्सए आ| २ अघिय हुभारियकम्मा नियमा उक्करसनिरयटितिगामी। भवे । आयरिए खित्ते जम्म२ सुकुले पच्चायाती३ केवलिग तेऽवि हु जिणोबदेसेण तेणेब भवेण सिझंति ॥ (३०२) | पन्नत्तस्स धम्मस्स सवणता सुवस्स चा सद्दहणता५ सद्दहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्म कापणं अथ स्थानांगसूक्तानि फासणया ६ १ श्रीवीरं जिननाथ नत्वा स्थानाङ्गकतिपयपदानाम् । ५ आहारत्यागिनो हि ब्रह्मचर्य सुरक्षितं स्यादिति। (३६०) प्रायोऽन्यशास्त्रदृष्ट करोम्यहं विवरणं किञ्चित् ॥ (१), अथ भगवतीसूक्तानि २ स्याद्वादाय नमस्तस्मै, ये विना सकलाः क्रियाः। लोकद्वितयभाविन्यो, नैव साङ्गत्यमियूति ॥ (१३) १ ममं धम्मायरिप धम्मोवदेसए गोसाले मखलिपुत्ते नयास्तष स्यात्पदसत्त्वलाभिछता, रसोपविद्धाइव लोह व उत्पन्ननाणदसणधरे जाच सम्यग्नू सचदरिसी। धातवः। भवन्त्यभिप्रेतफला यतस्ततो, भवन्तमार्याः |२ आजाबिया थरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंबकूणप्रणता हितैषिणः ॥ गपडावणटुयाए पगंतमंते संगारं कुब्वंति। (६८१) ३ पाचेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च, उच्छवासनिःश्वासमथा- ३ गोसाले मंखलिपुत्ते अप्पणो मरणं आभोपडआजीन्यदायुः । प्राणा दर्शते भगवद्विरुक्तास्तेषां वियोजीकरण विए थेरे सहावेह आ०२ एवं वयासी-तुज्झे णं तु हिंसा ॥ देवाणुप्पिया! मम कालगयं जाणेत्ता सुरभिणा RERANAA ॥२७॥ ~32~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [भगवतीसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य भगवत्याः श्री आगमीय सूक्तावली सूक्तानि ॥२८॥ गंधोदपणे पहाणेहसु० २ पम्हलसुकुमालाए गंध | पं एगंतवालेत्ति बत्तव्य सिया।। कासाइए गायाई लूहेह गा० २ सरसेणं गोसीस- ५ अन्नइस्थिया ण 'भंते! एवमाइक्वंति जाव परूचंदणेणं गायाई अणुलिंपह स०२ महरिहं हंस- वेति पवं खलु पाणातिवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणलक्वर्ण पडसाडग नियंसेह मह० २ सव्वालंकार- सल्ले बट्टमाणस्स अने जीवे अन्ने जीवाया पाणाइवायविभूसियं करेह स०२ पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं बेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाच मिच्छादूरूहेह पुरि० सावत्थीए नयरीए सिंघाडगजाव- दसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया। (७२३) पहेसु महया महया सद्देणं उग्धोसेमाणा एवं वदह- |६ शरीरस्य प्राणातिपातादिषु वर्तमानस्य दृश्यत्वाचंछएवं खलु देवाणुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे रीरमेव तत्कर्तृ, न पुनरात्मेत्येके। जिणप्पलाबी जाय जिणसई पगासेमाणे विहरिता अन्ये त्याहुः-जीवतीति जीयो-नारकादिपर्यायः जीवात्मा इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसाए तित्थयराणं चरिसे तु सर्वमेदानुगामि जीवद्रव्य, द्रव्यपर्याययोश्चान्यत्वं तित्थयरे सिद्धे जाव सम्बदुक्खपहीणे, इडिस कारसमु- तथाविधप्रतिभासभेदनिबंधनत्वात् घटपटादिवत्, दएणं मम सरीरगस्स णीहरणं करेह, तए ण ते तथाहि-द्रव्यमनुगताकारां वुद्धिं जनयति, पर्यायास्त्वभाजीविषा थेरा गोलालस्स मखलिपुत्तस्स एवमट्ठ ननुगताकाराम्। विषएणं पढिसुणेति। (१८२)|८ अन्ये स्वाहुः--अन्यो जीवोऽन्यश्च जीवात्मा जीवला ४ अनउत्थिया णं भंते! पवमाइक्खंति' जाव परु- | स्पेव स्वरुपः। (७२४) बैति-पर्व खलु खमणा पंडिया समणोवासया बाल- ९ अन्नउस्थिया शं भंते ! एवमाइक्वंति जाय परुतिपंडिया जस्स एगपाणापयि दंडे अणिविखने से । एवं खलु केवली जक्खापसेणं आतिढे समाणे आहथ KAREENAEE VERSARE ॥२८॥ ~33~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [भगवतीसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय सूक्तावली भगवत्याः सूक्कानि दो भासाओ भासति, तै-मोसं वा सचामोसं वा । (४९) १० अन्नउत्थिया जेणेच भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छ न्ति उवागच्छइत्ता भगवं गोयम एवं वयासी-तुझे णं अज्जो! तिविहंतिबिहेणं असंजया जाव एगंतवाला यावि भवह, तप गं भगवं.गोयमे अन्नउस्थिए एवं बयासी-से केणं कारणेणं अज्जो ! अम्हे तिविहंतिविहेणं अस्संजया जाव पगंतवाला याविभवामो,तएणं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी-तुज्ने णं अज्जो !रीयं रीयमाणा पागे पेवेह अभिहणह जाव उबद्दवेह, तए णं तुझे पाणे देच्येमाणा जाव उबद्दवेमाणा तिविहतिविहेणं जाव एगंतवाला यावि भवह, तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिए एवं बयासी नो खलु अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेमो जाच उबद्दवेमो, अम्हे णं अज्जो ! रीयं रीयमाणा कायं च जोयं च रीयं च पडुच्छ दिस्सार पदिस्सार वयामो तए णं अम्हे विस्ता दिस्सा षयमाणा पदिस्सा पदिस्सा बयमाणा णो पाणे पेच्वेमो जाव णो उवहवेमो, तए णं अम्हे पाणे अपेच्चे माणा जाच अणोइवेमाणा तिविहंतिविहेणं जाच पगंतपंडिया यावि भवामो, तुज्झे णं अज्जो ! अप्पणा चेव तिविहंतिविहेणं जाब एगंतवाला यावि भवह, तए णं ते अन्न उत्थिया भगवं गोयम एवं य० केणं कारणेणं अजो! अम्हे तिविहंतिविहेणं जाय भवामो ?, तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिए एवं ब० तुझे गं अज्जो! रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेह जाव उबद्दवेह, तए णं तुझे पाणे पेच्चेमाणा जाव उबद्दथेमाणा तिविहं जाव एगंतबाला यावि भवह, तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिप एवं पडिहणइ पडिहणिवा जेणेष समणे भगवं महावीरे लेणेव उवाग०२ समणं भगवं महावीरं बंदति नमंसति बंदित्ता णच्चासत्ने जाब पज्जुवासति, गोयमादि ! समणे भगवं महापीरे भगवं गोयम एवं. वयासी-सुट्टणं तुमं गोते अवस्थिए एवं ब०, साहुणं तुमं गोषमा ते! अन्नउत्थिए एवं व०, अस्थि णं गो० यम बहवे अंतेवासी समणा निग्गंधा छउमत्था जे णं नो पभू पयं बागरण ॥२०॥ ~34~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री. आगमीय - सूक्तावली ॥३०॥ आ 최적의 의 प्र भा श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सूक्तावलि [भगवती+ज्ञाताधर्मकथासूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी साहित्य बागरेचर जहा गं तुमं तं सुट्ट गं तुमं गो० ते अन्नउत्थि एवं वयासी साहू णं तुमं गो० ते अन्नउत्थिर एवं बयासी । (ভ4) अथ ज्ञाताधर्मकथा सूक्तान १ उग्गतवसंजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्सवि जियस्स । धम्मविवि सुमाथि होइ माया अणत्थाय ॥ जह महिस्स महाबलभवमि तित्थयरनामवं धेऽवि । तयविसय थेवमाया जाया जुवदत्त उति ॥ (१५५) २. जह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा जह लाहस्थी बर्णिया तह सुहकाया हं जीवा ॥ जह तेहिं भीरहिं विट्टो आघायमंडले पुरिसो । संसारदुखीया पासंति तहेव धम्मकहं ॥ अह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं । ततो जय नित्थारो सेलगजखाओ नन्नन्तो ॥ तह धम्मकही भयाण साहए दिनुभविरसहावो । महभूम बिसया विश्यंति जीवाणं ॥ सत्ताणं दुहताणं सरणं चरणं जिदिपतं । आणंदरूयनिव्वाणसाहणं तहय देसे ॥ जह वेसि तरिय समुद्दो तहेब संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निव्वाणगमो तहा पत्थं ॥ जह सेलगपिट्टाओ भट्टो देवी मोहियमईओ । सावयसहस्रंमि सायरे पाविओ निहणं ॥ तह अविर नडओ चरणचुओ दुक्खसावयाइष्णे । frest अपारससारसायरे दारुणसरूवे ॥ जह देवी अखोही पत्तो सट्टा जीवियसुहाई । तह चरण ठिओ साह अक्खोही जाइ निव्वाणं ॥ चंदोव्य कापसे परिहाई पर पर पमायपरो । तह उग्घरविग्धरनिरंगणोवि न य इच्छियं लहर ॥ १७१ जह चंदो तह साह राहुवरोहो जहा तह पाओ । बण्णाई गुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो ॥ पुण्णोवि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्ले । तह पुण्णचरितोऽवि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥ १६९ ३. माओ साहू हायंतो पइदिणं खमाईहिं । जायद नटुचरितो ततो दुखाई पावे ॥ ~ 35~ 1225 dho भा गः भगवती ज्ञाताधर्म कथयोः सूक्तानि ||३०|| Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जाताधर्मकथासूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्कानि सूक्तावली ॥३१॥ तथा-हीणगुणो बिहु होउं सुहगुरुजोग्गाजणिय संवेगो। सब्णवि कीरत सहिज सपि पडिकलं ॥ (१७२) पुण्णसरुवो जाया विवहमाणो ससहरोष्य ॥ (१७१)/५ मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्ताधि पाणिणो विगुणा। ४ जहदायद्दवतरुवणमेवं साहू जहेव दीविच्चा। फरिहोदगं व गणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ ॥ (१७७) वाया तह समणाइय सपक्खवयणा दुस हाई ॥ ६ तिरियाणं बारित्तं निवारियं अह य तो पुणो सेसिं । जह सामुद्दयवाया तहऽषणतिस्थाइकडयवयणाई। सुबह बहुयाणपि हु महव्ययारोहणं समय ॥ कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥ न महब्वयसम्भाववि चरणपरिणामसम्भवो तेसि । जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। न बहुगुणाणंपि जओ .बलसंभूइपरिणामो॥ (१८३) जहदीवबाउजोगे बह इड्डी ईसि य अणिट्ठी॥ ७ संपन्नगुणोबि जओ सुसाहुसंसग्गिय जिभो पाये। तह साहम्मियवयणाण सहमाणाऽऽराहणा भवे बहुया। पाचा गुणपरिहाणी दहरजीवो प्य मणियारो॥ इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥ तित्थयरवंदणथं चलिओ भायेण पायए सगं । जह जलहिबाउजोगे थेविट्टी बहुयरा यऽणिड्डी य ॥ जह ददुरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥ (१८४) तह परपक्वक्त्रमणे. आराहणमीसि बहु-इयरं ॥ ८ जाय न दुक्ख पत्ता माणभंसं च पाणिणो पायं। जह उभयवाउविरहे सव्वा तरुसंपया बिणट्ठति ॥ ताब न धर्म गेण्हति भावओ तेयलीसुडम ॥ (१९२) अनिमिसोभयमच्छररुवे विराहणा तह य॥ ९ चंपा इव मणुयगती धणो व्व भयवं जिणो दपकरसो। जह उभयवाउजोगे सव्वसमिट्टी वणस्स संजाया ॥ अहिछत्तानयरिसमं इह निव्याण मुणेयव्यं ।। तह उभयवयणसहणे सिवमग्गाराहणा बुत्ता ॥ घोसणया इय तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्छ । ता पुनसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो॥ चरगाइणोव्व इत्थं सिवसुहकामा जिया वहवे ॥ । ॥३१॥ ~36~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सक्तावलि ज्ञाताधर्मकथासक्तानि। श्री आगमीय सूक्तावली ॥३२॥ ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्तानि नंदिफलाइ व्व इहं सिवपहपडिवण्णगाण विसया उ। । तह धम्मपरिम्भा अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥ तभक्खणाओं मरणं जह तह विसरहिं संसारो॥ पावेति कम्मनरबरबसया संसारवाहयालीए । तब्वजणेण जह इट्ठपुरगमो विसयबज्जणेण तहा। आसप्पमइएहि व नेरइयाइहिं दुक्खाई॥ (२३४) परमानंदनिबंधणसिषपुरगमणं मुणेयव्यं ॥ (१९५)| १३ जह सो चिलाइपुत्तो सुंसुमगिरो अकजपडियहो । १० सुबहुंपि तवकिले सो नियाणदोसेण दृसिओ संतो। घणपारदो पत्तो महाडवि बसणसयकलियं ॥ न सिवाय दोवतीए जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥ (२२७) तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियाओ। ११ अमणुन्नमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । कम्मवसेणं पायद भवाडवीप महादुक्खं ॥ जह कडुयतुंबदाणं नाग सिरिभबंमि दोवइए ॥ (२२७) धणसेट्टीदिय गुरुणो पुत्ता इब साहयो भयो अडवी । १२ जह सो कालियदीयो अणुवमसोक्खो तहेव जाधम्मो। सुयमंसमियाहारो रायगिह इह सिवं नेयं ॥ जह आसा तह साह वणियव्यऽणुकूलका रिजणा। जह अडविनयरनित्थरणपावणत्थं तपहि सुयमंस। जह सद्दाइअगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा । भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाएँ आहारं ॥ तह बिसपस अगिद्धा यज्झति न कम्मणा साह॥ भवलंघणसिवपावणहेउं भुजंति ण उण गेहीए। जह सच्छदविहारो आसाणं तहय इह घरमुणीर्ण । वण्णबलरुवहेउं च भावियप्पा महासत्ता ॥ (२४२) जरमरणाई विवजिय संपत्ताऽऽर्णदनिव्वाणं ॥ १४ वाससहरसंपि जई काऊणं संजमं सुबिउलंपि । जह सहाइसु गिद्धा बद्धा आसा तहेव विसयरया । अंते किलिटुभावो न विसुज्झइ कंडरीउ व्व ॥ पावति कम्मबंध परमासुहकारणं घोरं ॥ अप्पेणवि कालेणं कह जहागाहयसीलसामग्णा। जह से कालियदीवा णीया अन्नत्य दुहगण पत्ता । । साहिति निययकजं पुंडरीयमहारिसिव्व जहा ॥ (२४६) ॥३२॥ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य ~37~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [प्रश्नव्याकरणसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य HERI श्री आगमीय सूक्तावली प्रश्नव्याकरणस्य सूक्तानि 35FFE_FREE.VEBER अथ प्रश्नव्याकरणसूक्तानि पायेइ बेमणस्सं दुक्खाणि अ अत्तदोसेणं ॥ १ पंचविहो पण्णत्तो जिणेहि अण्हभो अणादीओ। ८ कृशः काणः खा श्रवणराहतः पुच्छावकला,क्षुधाक्षामा हिंसामोसमदत्तं अचंभपरिग्गहं देव ॥ . (४) जीर्णः पिठरककपालार्पितगलः। वर्णः पूक्लिनः २ जारिसओ जनामा जह य कओ जारिसं फल देति । । कृमिकुलचितरावृततनुः, शुनीमम्बेति वा हतमपि च जेवि व करेंति पाया पाणवहं तं निसामेह ॥ (४) हन्त्येव मदनः ॥ मा ३ नवि किंचि अणुनायं पडि सिद्धं वाबि जिणवरिंदेहि । ९ तिव्यकसाभो बहुमोहपरिणओ रागदोससंजुत्तो। बंधा चरित्तमोहं दुहिपि चरित्तगुणघाई ॥ मोत्तुं मेहुणमेगं न जं विणा रागदोसेहिं ॥ |१० अरिहंतसिडचेतवसुअगुरुसाहुसंघपडणीओ। ४ हरिहरहिरण्यगर्मप्रमुखे भुवने न कोऽप्यसौ सूरः। बंधति दसणमोहं अर्णतसंसारिओ जेणं । कुसुमविशिषस्य विशिखान् अस्खलयत् यो जिनादन्यः ॥ ११ संजइचउत्थभंगे चेइयदव्बे य पवयणुडाहे । ५ सन्मार्गे ताबदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां, | रिसिघाए य चउत्थे मूलग्गी बोहिलाभस्स ॥ लजां तावविधत्ते विनयमपि समालम्बते तावदेव । | १२ नामाऽपि नीति संहादि, विकरोत्येव मानसम् । भूचापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, किं पुनदर्शनं तस्या, विलासोल्लासितभ्रवः ? ॥ यावल्लीलावतीनां न हदि धृतिमुषो दृष्टियाणाः पतन्ति । १३ सवेऽनर्था विधीयन्ते, नरैरर्थकलालसैः। ६ किं किं ण कुणा कि किन भासए चिंतएऽवियन किं किं! अर्थस्तु प्रार्थ्यते प्रायः, प्रेयसीप्रेमकामिभिः॥ पुरिसो विसयासत्तो विहलंघलिउब मज्जेण॥ . १४ काम ! जानामि ते रूपं, सङ्कल्यात्किल जायसे । ७ जो सेवा किं लहई (धामं हार दुबलो होइ। | न त्वां सङ्कल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ (६६) RIERREFERRENEVRRRRRER ॥३ ॥ ~ 38~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [प्रश्नव्याकरणसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीयसूक्तावली प्रश्नव्याकरणस्य सूक्तानि ॥३४॥ १५ यच्चेह लोकेऽपरे नराणामुत्पद्यते दुःखमसह्यवेगम्। २२ जइ गणी [जद मोणी जद मुंडी बक्कली तबस्सी वा। विकाशनीलोत्पलचारुनेत्रा, मुक्त्वा खियस्तत्र न हेतुरन्यः॥| पत्थतो अ अबंभ संभापि न रोयए मज्झं ॥ १६ रसा पगार्म न निसेचियब्वा, पायं रसा दित्तिकरा हवंति। |२३ तो पढियं तो गुणियं तो मुणियं तो य येइओ अप्पा । दितं च कामा समभिवंति, दुर्म जहा साउफलंतु पक्खी । आवडियपेल्लियामंतिमोऽवि जइन कुणइ अकजं ॥] (६७) १७ प्रशान्तवाहिचित्तस्य, संभवन्त्यखिलाः क्रियाः। २४ परदारानिवृत्तानामिहाकी तिपिंडम्बना । मैथुनव्यतिरेकिग्यो, यद्विरागं न मैथुनम् ॥ परत्र दुर्गतिप्राप्तिामग्यि पण्डता तथा ॥ (८६) १८ दृश्य बस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थितं, २५ रसे-तीमनाऽऽरमालादो जाता रसजाः । (९०) रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन यनास्ति तत्पश्यति । २६ भीयाणविव- सरर्ण पक्खीणंपिव गमणं तिसियाणंपिय : कुन्देन्दीवर पूर्णचन्द्रकलशश्रीमल्लतापल्या नाशेप्या सलिले खुहियाणपिव असणं समुहमज्झेव पोतयहणं शुचिराशिषु प्रियतमागात्रेषु यन्मोदते ॥ चउप्पयार्णव आसमपयं दुहड़ियाणं च भोसहिबलं .१९ निकडकडक्खकडप्पहारनिभिन्नजोगसन्नाहा । अडवीमउसे विसत्थगमर्ण। महरिसिजोहा जुवईण जंति सेवं बिगयमोहा । २७ सत्येनाग्निभवेच्छीतो, गा, दत्तेऽग्दु सत्यतः । २० ये रामरावणादीनां, समामा प्रस्तमानवाः। नालिदिछनत्ति सत्येन, सत्याद्रज्जूयते फणी ॥ श्रूयन्ते स्त्रीनिमित्तेन, तेषु कामो निबन्धनम् ॥ २८ प्रियं सत्यं वाक्यं हरति हृदयं कस्य न जने?, गिरं २१ दुःखात्मकेषु विषयेषु मुखाभिमानः, सौख्यात्मकेषु निय सत्यां लोकः प्रतिपदमिमामर्थयति च। सुराः सत्या मादिषु दुःखवुद्धिः । उत्कीर्णवर्णपदपक्तिरिवान्यरूपा, द्वाक्याइदति मुदिताः कामिकफलमतः सत्याद्वाक्या सारूप्यमेति विपरीतगतिप्रयोगात् ॥ । गतमभिमतं नास्ति भुवने ॥ ॥३४॥ ~39~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [प्रश्नव्याकरण+प्रज्ञापना+जंबूदवीपप्रज्ञप्तिसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीयसूक्तावली प्रश्नव्याकरणप्रज्ञापना जंबूद्वीपप्रज्ञप्तीनां सूक्तानि ॥३५॥ २९ व्रतानां ब्रह्मचर्य हि, निर्दिष्टं गुरुकं व्रतम् अथ प्रज्ञापनासूक्तानि तजन्यपुण्यसंभारसंयोगाद् गुरुरुच्यते ॥ १ जिनवचनामृतजलधि बन्दे यविन्दुमात्रमादाय । ३० एकतश्चतुरो वेदाः, बह्मचर्यं च एकतः । अभवन्नूनं सत्दा जन्मजराव्याधिपरिहीणाः ॥ एकतः सर्वपापानि, मयं मांसं च एकतः ॥ २ प्रणमत गुरुपदपङ्कजमधरीकृतकामधेनुकल्पलतम् । मो| ३१ नवि किंचि अणुचाय पडिसिद्धं वावि जिणवरिंदेहि । यदुपास्तिवशानिरुपममश्नुवते ब्रह्म तनुभाजः ॥ ३ जयति नमदमरमुकुटप्रतिविम्बच्छन्नविहितबहुरूपः । मोत्तुं मेहुण भाष ण तं विणा रागदोसेहिं ॥ (१३३)। उद्धर्तुमिव समस्तं विश्वं भवपङ्कतो बीरः ॥ ३२ देवदाणवगंधञ्चा, जपखरक्खस्सकिनरा। अथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूक्तानि ___बभचारि नमसंति, दुकरं जं करिति ते॥ (१३७) | १ सर्वशोक्तोपदेशेन, यः सत्यानामनुग्रहम् । ३३ दानागा साध्येऽभवदानमिव प्रपरमिवं, तत्र दानानि- | करोति दुःखतप्ताना, स प्राप्नोत्यचिराच्छियम् ॥ ___ज्ञानधर्मोपग्रहाभयदानभेदात् त्रीणि ॥ (१३५)|२ सम्यम्भायपरिशानाद्विरका भवतो जनाः । ३४सकलकलाकलापकलितोऽपि कविरपि पण्डितोऽपि कियासक्ता ह्यविन, गच्छन्ति परमां गतिम् ॥ (३) हि, प्रकटितसर्यशाखतत्त्योऽपि हि वेदविशारदोऽपि ३ वैरं कृत्वा हि तदुत्थफलविपाके पुमाननुशेते। (१५३) हि । मुनिरपि वियति विततनानागतविभ्रमदशकोऽपि ४ सयपाणिगतमध्यपसव्यप्रापणावधि न रेवविलम्बः । हि, स्फुटमिह जगति तदपि न स कोऽपि हि यदि | न भुषत्वनियमः किल लक्ष्म्यास्तद्विलम्बनविधीन विवेकः ॥ नाक्षाणि रक्षति ॥ (१३७)/५ अविलम्बितदानगुणात् समुज्ज्वलं मानयो यशो लभते । अERALAWAABARREE ~ 40~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति+बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीय सूक्तावली ॥३६॥ जंबूद्वीपमज्ञप्तिबृहत्कल्पयो सूक्तानि PRENERAAHE KAAAA प्रथम प्रकाशदानाद्विशदः पक्षोऽपरः कृष्णः ॥ (१८७) मग्गप्पभावणाए जरधम्मकहा अतो पढमं ॥ १८९-१-११ ६ यत्तु लोकधीटीकाकता उभययोगीतिपदं व्याख्यानयता ५ जहणा(पहा)उत्तिषणगओ बहुअतरं रेणुयं भर अंगे। एतानि नक्षत्राण्यभययोगीनि चन्द्रस्योत्तरेण दक्षिणेन च । सद्रवि उज्जममाणो तह अण्णाणी मलं चिणा॥ १८९-२-१५ युज्यन्ते, कदाचिद्भेदमप्युपयान्तीति, तच वक्ष्यमाणज्ये- |६ सज्झायं जाणतो पंचेंदियसंखुडो तिगुत्तो या ठासूत्रेण सह विरोधीति न प्रमाणम् । ४९ होइ य रकग्गमणो विणपण समाहिमो साह॥ १९२-१-१४ | ७ आषाढाव्यमपि प्रमर्दयोगिनक्षत्रगणमध्ये कथं नोक्तमिति | आयहियमजाणतो मुज्झा मूढो समादिअति कम्म। बदतो निरासः, अनयोर्दक्षिणदिग्योगविशिष्टप्रमर्दयोगस्य | कम्मेण लेण जंतू परिति भवसागरमणतं ॥ १९२-१-८ सम्भवादिति । ४९८८ नाणेण सब्वभावा नजंते जे जहिं जिणक्खाया। अथ वृहत्कल्पसूक्तानि नाणी चरित्तगुत्तो भावेण उ संवरो हो। १९२-२-३ प्रथमे खंडे ९ जहर सुयमोगाहइ अइसयरसपसरसंजुयमपुवं । १ प्रमाणानि प्रमाणस्थ, रक्षणीयानि यत्नतः । तह२ पल्हाइ मुणी नवरसंबेगसद्धाओ ॥ १९२-२-५ विषीदन्ति प्रमाणानि, प्रमाणस्थविसंस्थुलः ॥ १६६-२-१० | १० णाणाणत्ती पुणो देसणतवनियमसंजमे लिया । २ नच्चा नरवणो सत्तसारबुद्धी परिक्कमविसेसे। । विहरर विसुज्झमाणो जावजीबपि निकंपो ॥ १९२-२-१० भाषेण परिक्षेतं तेण तमन्ने परिहरंति ॥ १८६-१-१२ | ११ वारसविहम्मिवि तवे सम्भितरवाहिरे कुसलदितु। ३ संसारदुक्खमहणो विबोहो भवियपुंडरीयाणं। | नवि अस्थि नवि अ होही सज्झायसमं तयोकम्मं ॥ १९२-२-१३ धम्मो जिणपणत्तो पगपजाणा कहेयव्यो॥ १८८-१-३ | १२ जं अन्नाणीकम्मं सवेद पहुयाहिं वासकोडीहिं । ४ तिस्थाणुसजणाए भावहियाए पर समुद्धरति। तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेद सासमित्तेण ॥ १९३-१-४ FFSH RWFEVER ~41~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य मुक्कानि श्री आगमीयसूक्तावली ॥३७॥ F"E_FM REF VEBER १३ धम्मोदएण रूवं करेंति रूवस्सिणोवि जा धम्मं । २२ रयणगिरिसिहरसरिसे जंबूणयपवरवेश्याकलिए । गिज्झयो य सुरुयो पसंसिमो रूवमेवं तु ॥ (१९८-१-१)। मुत्ताजालगपयरगखिखिपियरसोमितषिडंगे ॥ १४ वासोदगस्स व जहा बन्नादी होंति भावणबिसेसा ।। वेरुलियपयरविहुमखंभसहस्सोवसोभियमुदारे । सबेसिपि सभासं जिणभासा परिणमे एवं ॥ (१९८-१-१४) सारण वसहिदाणा लभती एयारिसे भवणे ॥ (२४५-२-२) १५ जम्मणनिक्वमणेसु य तित्थयराणं महाणुभावाणं । २३ एयरोसविमुकं कडजोगि नायसीलमायारं । इत्थ किर जिणवराणं भागादं सर्ण हो॥ (२०२-२-७) गुरूभत्तिमं विणीयं यावच्चं तु कारिजा ॥ (२४९-२-८) १६ को नाम सारहीणं स हो जो भदवाइणो दमए। |२४ जीयो पमायबहुलो पडिपक्वं दुकर ठवेडं जे। दु:थि उजो आसे दमेहतं आसियं विति ॥ (२०९-२५)| केत्तियमित्त वोज्झिति पच्छित्तं दुग्गयरिणीय ॥ (२५८-१-८) १७ होति हुपमायखलिया पुखम्भासा य दुचया भंते । २०९-२-८/२५ एगाणियस्स दोसा साणे इत्थी तहेव पडिणीए । भिक्ख१८ जेण उ आयाणेहिं न विणा कल्लुसाण होइ उप्पत्ती । तो । विसोहि महब्बय तम्हा सबिइज्जयं गमणं ॥ (२६५-२-९) तजयम्मि ववसिमो कलुसजयं चैव इच्छतो॥ (२११-२-१)/२६ दातुरुन्नतचित्तस्य, गुणयुक्तस्य चार्थिनः । १९ एगत्तभावणाए न कामभोगे गणे सरीरे या। दुर्लभः खलु संयोगः, सुबीजक्षेत्रयोरिव ॥ (२७३-१-१२) सजा बेरगगो फासे अणुत्तरं करणं ॥ (२१९-१-१०)|२७ जाईकुलरूपधणबलसंपन्ना रहिमंतनिरूखंता । २० खामिंतस्स गुणा खलु निस्सल्लय विणयदीवणा मम्गे।। जयणाजुत्ता य जई समेच्च तित्थं पभावंति ॥ २१९-२-६ लाधवियं एग अप्पडिबंधो अजिणकप्पे । (२२१-१-५)|२८ सोऊण जो गिलाणं उम्मग्गं गच्छ पपिचह बावि । २१ अनियताउ बसहीओ भमरकुलाण'च गोकुलाणं च। | मग्गाओ वा मग्गं संकई आणमाईणि ॥ २८८-१-३ समणाणं सतणाणं साहाणं च मेहाणं ॥ (२२५-२-४) | २९ सोऊण जो गिलाणं पंथे गामे य मिरुखधेलाए। ॥३७॥ ~42~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआगमीय सूक्तावली ||३८|| श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य जर तुरियं नागच्छा लग्गर गुरुप चम्मासे ॥ २८८-१-१०३८ न बओ एत्थ पमाणं न तबस्सितं सुयं न परिक्षाओ । श्री ३० जह भमरमहुयरिगणो निवर्तती कुसुमियंभि चूयवणे । इय होइ निचयप्यं गेलपणे कश्यचजणं ॥ २८८-१-१३ ३१ सोऊन ऊ गिलाणं जो उपयारेण आगओ सुद्धो । अविय स्त्रीणंम 'बेदे थीलिंगं सव्वहा रक्खं ॥ (३१५-१-४) श्री ३९ सीहं पालेर ग्रहा अविहातेण सा महिडीया । तस्स पुण जोधणंमि पओयणं किं गिरिगुहार | (३१६-१-१५) आ द्वितीये खंडे ग जो उ उबेहं जा लग्गह गुरुए स बित्थारे ॥ (२८८२-१३) ३२ पडिचरा ( रा ) मि गिलाणं गेलणे वावडा वा का। तित्थाणुसजना खलु भतीय कया हवइ एवं ॥ (२८८-२-१३) २३ बंधुजविण्यओगे अमायपुत्तेवि वट्टमाणमि तहवि द्धा र ४० न य सो भावो बिजाई अदोसवं जो अनिययस्स ॥ (२-२-२) मो ४१ वा सहीणरयणे भवणे कासह पमायासेणं । ति समादित्ते अणिच्छमाणस्सधि वसूनि ॥ श्यं संसणसंभाषणेहिं संदीविधो मयणवण्ही । बंभादी गुणरयणे उज्झइ ऽणिच्छस्सदि पमाया ॥ (४-१-५) ४२ पावस्त लोगे पडिहार पायो, कल्लाणकारिस्स य साहुकारी ॥ ४३ वारियामो वलियतरं वाहर मोहो ॥ ४४ मोहनभाहियवायाहऽहियवायाहिं । पिधिमत्था चलति किमु दुग्बलधिआ (१३-१-११) ४५ संदंसणेण पीई पीईओ रद्द रईड वीसभो । बीसंभाओ पणओ पंचविहं वहुए पेम्मं ॥ (१६-१-५) In 1. 14.3 गिलाणं सुविहिया वयंति वत्तणं साह ॥ (३०३-२-१४ ) २४ सव्वजगजीवहियं साहुं न जहामु एस धस्यो । जति य जहाको साहुं जीविते किं अम् ॥ (३०४-१-८) ३५ जर संजमो जर तो दडभित्तितं जहुतकारितं । जर वंभं जर सोयं एएसु परं न अनेषु ॥ (३०४-२-१) ३६ सच्यं तवो सीलं अणक्खिाओ अ एगमेगस्स । जर बंभ जर सोयं एयासु परं न अन्नासु ॥ ३७ बाहिरबरा सीलसुगन्धा तवोगुणचिसुद्धा | धन्नाण कुलुपपन्ना एया अवि होज अम्हंषि ॥ (३१३-१-२) ~ 43~ (११-१-१२) (१३-१-७) भा गः ८ बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ||३८|| Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआगमीय वी ॥३९॥ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य ४६ अपि संदेह हुं कंपंति जा ल्याओ व (४६-२-२) अबलाओ पगभयासँगा रक्खा अओ इत्थी ॥ (२३-२-५) ४७ जइभागगया मत्ता रागादीण तहा चओ कम्मे । रागाइविरयाविड पायं वत्थूण विहरते ॥ ४८ मोहोदरण जाता जीवितेवि इत्थी देहमि दिट्ठा दोसपविती किं पुण सजिए भवे देहे ॥ ( ५९-२-७) ४९ कम्मं चिति सबसा तस्सुदयंमि उ परम्या होति रुक्खं दुरुह सब गिलइ स परव्यसो तत्तो ॥ (६९-२- १०) ५० कम्मवसा खलु जीवा जीवबसाई कहिंचि कम्माई । कत्थ धणओ बलवं धारणिओ कत्थई वलवं ॥ (६९-२-१४) ५१ जो जस्स उ उसामा विज्झवणं तस्स सेण कायव्यं । जो उ उद्देहं कुजा आवज मासियं लहुयं ॥ (७१-२-२) ५२ परपत्तिया न किरिया मोपतुरठं च जयसु आयड्डे । अधिय उबेहादुत्ता गुणोवि दोसो हवा एवं ॥ ( ७२-२-१४) ५३ आयडे उपउता मा व परमि बावडा होह । हंदि परद्वाउत्ता आयडविणासगा होह ॥ ५४ ताम्रो मेलो अयसो हाणी दंसणचरितनाजाणं । (७२-१-९) साहुओसो संसारवणो साहिकरणस्स ॥ (७३-१-८) ५५ जह कोहार विबुडी तह हाणी होइ चरणेवि ॥ ( ७३-२४) ५६ साहूण पदोसेण य संसारं सोधि बढे । (७३-२-१०) श्री ५७ जं अजियं समीखहरहि तवनियमवंभ्रमइएहिं । आ तं दाणि पच्छनाहिस छहंतो सागपतेहिं ॥ (७४-१-८) ५८ जं अजियं चरितं देसूणापवि पुव्यकोडीए । (७४-२-१) तंपि कसाइयमितो हारेर नरो मुडुतेणं ॥ ५९ आरंभनियत्ताणं अकिणंताणं अकारविंताणं । धम्मट्ठा दायव्वं गिटीहि धम्मे कयमणाणं ॥ (८८-२४) ६० पगईपेलवसत्ता लोभिज्जर जेण तेण वा इत्थी । अविथ टु मोहो दिप्पइ सइरं तासि सरीरेसुं ॥ (९०-१-२) ६१ जहवियफासुगदव्वं कुंपणगाइ तहवि दुप्परसा । पच्चक्खनाणिणोऽविद्दु राईभत्तं परिहरति ॥ ( ९८-१-६) भा ६२ दोसे चैव विमग्गइ गुणदेखि सेण निच्च मुज्जुत्ता । (१३९-१-१५) गः ६३ संपुष्णमेव तु भवे गणित्तं, जं कंखियाणं पविणेंति कखं । (१४३-२-२ ) ६४ भीरू य किच्चेऽवला चला य, आसंकितेगा समणी ~ 44 ~ द्धा ग्र बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥३९॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कम्पस्य सक्कानि आगमीयसूक्ताचलो ॥४०॥ तु रायो । मा पुष्पभूयस्स भवे विणासो, सीलस्स थोवाण | बीएहि विष्पमुको उपस्सओ एरिसो होइ ॥ (१५७-१-५) ण देति गंतुं ॥ (१४६-१-२)/७१ जह सुत्ते भणियं तहेव जातं पियालणा नत्थि | ६५ गुत्ते गुत्तदुवारे कुलपुत्ते इत्थिमज्झनिहेसे। किं कालियाणुओगो दिवो दिटिप्पहाणेहिं ॥ (१५९-२-१०) भीतपरिसमहविए अजासिज्जावरे भणिए ॥ (१४६-१-६)/७२ उस्सग्गसुयं किंची किंची अवयाइयं भवे सुत्तं । मो६६ अपुग्वपुंसे अवि देहसाणी वारेसि धूतादि जहेव भज्ज।। तदुभयसुत्तं किंची सुत्तस्स गमा मुणेयच्या ॥ (१५९-२-१४) तहाऽचराहेसु मर्मपि पेकवे जीवो पमादी किमुजोऽवलाणं ॥७३ कत्था देसग्गहणं कस्थवि भण्णसि गिरवसेसाई । | ६७ पायं सकोगहणाऽलसे य, बुद्धी परस्थेसु उजागरू- उक्कमकमजुत्ताई कारणवसओ मिउत्ताई ॥ (१२०-२-११) का । तमाउरो परसति हकत्ता, दोसं उदासीणजणो |७४ उस्सग्गेण निसिहाई आई दव्याई संथरे मुणिणो। जर्ग तु॥ (१४७-१-१), कारणजाते जाते सब्वाणिवि ताणि कप्पंति ॥ (१६१-१-१) ६८ कुलं विणालेद सयं पयाता, नदीव कूल कुलटा उ मारी॥ |७५ णवि किंचि अणुण्णायं पढिसिद्धं घाचि जिणवरिंदेहिं । (१४९-२-३) एसा तेसिं आणा कम्जे सच्चेण होयध्वं (१६२-१-३) भा६९ न चित्सकम्मरस विसेसमधो संजाणते णावि मियंककति। ७६ दोसा जेण निरुज्झंति, जेण खिजंति पुवकम्माई। गः किं पीढसप्पी कह दूतकम्म, अंधो कहिं कत्था देसियत् ॥ सो सो मोक्खोवाओ, रोगावस्थासु समर्ण व ॥ (१६२-१-८) का बुद्धी बलंहीणवला वयंति किं सत्सजुत्तस्स करेन बुद्धी। ७७ अगीयस्सन कप्पति तिविहं जयणं तु सो न जाणाइ । किसे कही णेप सुता कयाई, वसुंधरेयं जह वीरऽभोज्जा ॥ अणुण्णवणा जयणं सपक्सपरपक्वजयणं च ॥ (१६२-१-१५) (१५०-१-४) |७८ ण सको सुत्तत्थो णिउणो खलु अपडियोहियो णार्ड। | ७० बलया कोट्ठागारा हेवाभूमी य होइ रमणिज्जा । (१६२-२-३) ॥४०॥ ~45~ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४१॥ AALA ७९ साहूर्ण बसहीए रति महिला न कप्पए पंती। (१६७-२-१) सुद्धपरिणामजुत्तो तस्स उ अणकमो पाली । (२०६-२-५) ८० जागरह मरा णिच्चं जागरमाणस्स बहुए बुद्धी। जो |८४ तेलोकदेवमहिया तिस्थयरा नीरया गया सिद्धिथेरावि सुवति न सो धष्णो जो जग्गति सोसया धण्णो (१६७-२-४) गया केई चरणगुणपभावया धीरा ॥ भी य सुंदरी या सीयंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था । । अनाधिय जाउ लोगजिट्ठाओ । ताओ चिय कालगया तम्हा जागरमाणा विधुणध पोराणयं कम्मं ॥ सुवति किं पुण सेसाउ अजाओ ॥ नहु होइ सोइयब्यो जो सुवंतस्स सुत्तं संकितखलियं भवे पमत्तस्स । जागर- कालगतो दढो चरित्तमि । सो होइ सोइयब्वो जो संजममाणस्म सुत्तं थिरपरिचितमप्पमत्तस्स ॥ जागरिया दुष्वलो बिहरे ॥ लण माणुसत्तं संजमसारं च दुलधमीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। (१६७-२) में जीवा । आणाइ पमाएणं दोग्गइभयवहूणा होति । सुबह य अयगरभूओ सुयं च से नासई अमयभूयं । (२१०-१-२) होहिर गोण भूभो नटुंमि सुए अमयभूए ॥ (१६८-१-३)/८५ संतविभवा जर तय करेंति अवउज्झिऊण रहीमोसीपंत८१ ज देउलादी उ निवेसणस्सा, मझमि गुत्तं सुपुरोहर्ड च।। थिरीकरणं तित्थविवड्डी य वषणो य। (२१२-२-११) अदुद्दगम्म णय दुहमज्झे, अदूरगेहं तहियं वसंति ॥ |८६सोऊण ऊ गिलाणि पंथे गामे य भिक्सवेलाए । जुधाणगा जे सविगारगा य, पुत्तादो तुज्झ इहं वसति ।। जा तुरियं नागच्छद लग्गा गुरुए चउम्मासे ।। (२१४-१-२) मा तेऽवि अम्हं वह संचयंतु, इच्छंति सत्ते य वसंति तत्थ ॥ ८७ गयो निम्मद्दयता निरबेक्यो निहयो निरंतरया ।। (१८१-२-८) भूताणं तुबघाओ कसिणे चम्ममि छद्दोसा ॥ (२२३-२-२) ८२ अभंतरं व बझं हरति रयं तेण होइ रयहरणं । (२०३-१-३)/ ८८ विरतो पुण जो जाणं कुणति गीयस्थो व अध्यनयो वा। ८३ संजममहातडागस्स णाणवेरग्गसुपडिपुषणस्स। | तत्थवि अज्झत्थसमा संजायति णिज्जरा न चओ (२३३-१-५) REARRERAL ॥४१॥ ~ 46~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआगनीय सूक्तावली ॥४२॥ श्री आ ग मो वा र प्र भा श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य ८९. संजमहेतुं जोगो पडजमाणो उ अदोनचं हो जह आरोग्गनिमित्तं गंडच्छेदो व विजस्स ॥ (२३५-१-१) २८ जहा तबस्सी घुणते तवेगं कम्पं तहा जाण तयो-णुमन्ता ॥ (२९२-१-८) ९० लक्खणीणो उची उवहणती णाणदंसणचरिते । (२३५-२-१२) ९९ यस्तं क्षुल्लकं सारयति शिक्षां ग्राहयति उभयं च संज्ञा९१ जोवि दुबरथ तिवत्थो एगेण अचेलगो व संधरह कायिकी लक्षणं तदीयं यो नयति तस्यैव पार्श्वे तं कुर्वन्ति ॥ (२९२-२-३) ते खिति परं येणवि तिनि घेत्तव्या ॥ (२३९-२-१३) ९२ गिण्हति गुरुविदिष्णे पगास पडिलेह सत्त ॥ (२४०-१-२) ९३ जो उ गुणो दोसकरो न सो गुणो दोसमेव तं जाण । अगुणोऽवि होति उ गुणो विणिच्छओ सुंदरी जस्स ॥ (२४७-१-५) ९४ न भूसणं भूसयते सरीरं विभूषणं सीलरी इत्थी । गिरा हि संखारजुयावि सन्ती अपेसला होइ असाहुबाइणी ॥ (२५५-२-१२) ९५ उदवि खलु पत्थो तित्थकराहारउदयादी ॥ (२७०-२-६) ९६ मूर्खजने प्रकृतिरेषा यद् तथाविधिज्ञानविकलोऽपि एप मुहति । (२८७-१-६) ९७ दुविबुद्धिमलणं सट्टा सेजायरेयराणं च । तित्थविभावण असारियं चैव कहते ॥ (२९१-२-५) १०० यस्य खेलः स्यन्दते तस्य मध्येऽवकाशः समायातः ततस्तेन विमुक्तेऽवकाशे यस्य संस्तारकः सोऽनुज्ञापनीयः यः पित्तलः स प्रवाते स्थातुमभिलषति, यस्तु वातलः स निवाते, एतयोः परस्परं संस्तारकपरावर्त्तः (२९२-२-११) तृतीये खंडे १०१ जह ते अणुहिंता हियसव्यस्ता उ दुक्खमाभागी । तह नाणे आयरियं अणुहिंताण वोच्छेदो ॥ (४-१-१०) १०२ उडाणसेज्जासणमासणेहिं, गुरुस्स जे होंति स्याणुकूला । णा विणी अहते गुरू ऊ संगिण्हई देश् य तेसि सुतं ॥ पज्जायजाई सुतओय बुट्टा, जच्चयण्णिया सीससमिद्धिमंता कुर्वतsaण्णं यह ते गणाओ, निज्जूहई णो य ददाइ सुतं ॥ ~ 47~ (४-२-१) श्री 55 Ww hd v आ ग दा र सं. ग्र भा बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४२॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - सूक्तावली ॥४३॥ १०३ परपले व सपकले होइ अगम्मत्तणं च उट्ठाणे सुय पूयणा विरतं प्रभावणा निजरा चैव ॥ (५-१६) ग जा १०४ अकारणा नस्थिह कजसिद्धी न याणुवारण वयंति तण्णा । उवायवं कारणसंपतो कज्जाणि साहेह पयत्तवं च ॥ (५-१-११) मो १०५ धम्मस्स मूलं विणयं वयंति, धम्मो य मूलं खलु सोग्ाईए । सा सोग्गई जत्थ अवाहयाऊ णिसेवितब्बों विणओ तदट्ठा ॥ ( ५-२- १) १०६ मंगल साजणणं विरियायारो न हाविओ चेव । एहिं कारणेहिं अतरंतगिलाण उड्डाणं ( ५-२-१) १०७ आचार्य चंक्रमणं कुर्वाणं दृष्ट्वा नाभ्युत्तिष्ठति पंचकं, प्रश्रवणभूम्या आगतं नाभ्युत्तिष्ठति भिन्नमासः ॥ (६-१-६) १०८ मणो उ वाया काओ य, तिविहो जोगसंगहो । ते अजुत्तस्स दोसाय, जुत्तस्स उ गुणावहा ॥ (६-१-६) १०९ जह गुत्तस्स रियाई न होति दोसा तहेब समियस्स । गुत्तट्ठियप्पमा भइ समिई सचेटुस्स ॥ ( ६-२-१) ११० जहि नत्थि सारणा वारणा य पडिचोयणा व गच्छमि । श्री आ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य भा सो उ अगच्छ गच्छो संजमकामीण मोतव्यो । (७-१-६) १११ नाणादितिगं मोतुं कारणमिहलोग साहगं होइ । पूयागारवहेडं णाणग्गहणेऽवि एमेव ॥ (१२-१-१) ११२ सेडीअआिण कितिक्रम्मं वाहिराण भइयव्वं । सुत्तत्थजाणपणं काय आणुपुरी ॥ १२३ निच्छयओ दुण्णेयं को भावे कीम बहई समणो । यवहारओ य की जो पुण्यढिओ चरितंमि । (१५-१-२) ११४ ववहारोबिनु बलवं जं छमत्यपि बंदए अरिहा । जा होइ अणाभिन्नो जाणतो धम्मयं एयं ॥ (१५-१-५) ११५ ते कित्तिया परसा सव्यागासस्स मग्गणा होइ । श्री आ (१४-२-१) ग मो ~48~ द्वा र सं प्र से जन्तिया परसा अविभागतओ अनंतगुणा ॥ (१५-१-५) ११६ अच्छित्तिसंजमा पा ंति जती जतिजणं तु ॥ (१९-२-३) ११७ तुच्छमबलंबमाणो पडति निरालंबणो य दुग्गंमि । (१९-२-१०) ११८ दंसणनाणचरितं तवविणयं जत्थ जन्तियं पासे । 17. जिणपतं भत्तीह पूयए तं तहिं भावं ॥ (२३-१-३) < ११९ ठाणं च कालं च तहेव वत्युं आसज्ज जे दोसकरे व ठाणे। तेणेव अण्णस्स अदोसवंते भवंति रोगिस्स व बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४३॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४४॥ भोसद्दाई ॥ २४-२-७/१२६ अणवजं निरुवहयं भुजंति य साहुणो भिक्ख ॥ ५२-६-९ किं जाणंति बराया हलं जहित्ताण जे उ पव्वइया। | १२७ अतिसेसदेवतणिमित्तमादिवितहपवित्ति सोऊण। एवंविहो अवपणो मा होहि तेण कथयंति । २६-१-५ णिग्गमण हो पुवं अणागते रुद्धचोच्छिपणे ॥ (५४-१-१२) १२० जपच्छसि अप्पणतो जं च न इच्छसि अप्पणतो। । | १२८ आराहणा उ कप्पे विराहणा होइ दप्पेणं । (७२-१-१) तं इच्छ परस्स बियारह, इत्तियगं जिणसासणयं ॥ २७-१-२१२९ कामं सवपदेसुवि उस्सग्गवचायता जुत्ता। १२१ सय्यारंभपरिगहनिक्लेवो सबभूयसमया य । मोत्तुं मेहुणभावं ण विणा सो रागदोसेहि ॥ (७२-१-२) पकरगमणसमाहाणया य अह एत्तिओ मोक्खा॥ १३० गीयत्थो जयणाए कडजोगी कारणमि निहोसो। ७२-१-११ (२७-१-४)| १३१ तिब्बकसायपरिणतो तिव्ययरागाणि पावइ भयाणि। १२२ सव्वभ्यऽप्पभूयस्स. सम्मं भूयाई पासओ। मयगस्स दंतभंजण सममरणं ढोकणुकिरणे ॥ ७८-१-७ पिहियासबस्स दंतस्स पावं कम्म नबंधर ॥ (२७-१-७)| १३२ अतिशयज्ञानी वा उपशान्तोऽयमिति मत्वा तस्यापि १२३ सपणेण कहेयचा तव यमकहा चिरागसंजुत्ता। (कषायदुष्टस्यापि)लिंग दद्यात् । । (७८-२-१) सोऊण मणसो घण्णा संगामिवेयं ॥ (२७-२-५)| १३३ सम्वेहिथि घेत्तव्यं गहणे य निमंतणे य जो उ विही। १२४ अण्णपि ताव नेण्णं रह परलोकेऽपहारिणामहियं । । भुजंती जयणाय, अजयणदोसाइमे हुँति ॥ (७८-२-१) परओ जाणिलालह किं पुण मणुप्पहरणेसु ॥ (३२-२-२)/१३४ गुरुभत्तिमं जो हिययाणुफलो, सो गिण्हती णिस्सम१२५ तरह धम्म कार्ड मा हुपमा खणंपि कुवित्था। | पिस्सितो वा । तस्सेय सो गिति यरेसि, अलम्भबहुविग्धो हु मुहुत्तो मा अवरई पहिच्छाहि ॥ माणमि व थोवं थोवं ॥ ७९-२-१ (२८-२-८) | १३५ मुंचेर य साबसेसं जाणइ उघयारभणियं च ॥ (७९.१.४) ॥४४॥ ~49~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ॥४५॥ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य १३६ गुरुणो भवरियं बालादसती य मंडलिं जंति । जं पुण सेसमहितं गिलाणमादीण तं देति ॥ ( ७९-१-७) १३७ परमवभाषितलाभं मुक्त्वा स न मण्डल्यां प्रक्षिप्यते, किंतु ग्लानादीनामेव दीयते । १३८ लिंगेण लिंगिणीए संपत्ति जो नियच्छद पावो । सव्य जिणाणजाओ संघो आसाइओ तेणं ॥ (७९-२-७) १३९ पावाणं पावयरो दिट्टिभासे न बहई काउं । जो जिण पुंगवमुद्द नमिऊण तमेव धरिसेइ ॥ ( ७९-२-११) १४० संसारमण यग्गं जाति जरामरणवेयणापरं । (७९-१-११) पापडलमण्णा भमंति मुद्दाधरिसणेणं ॥ ( ७९-२-१२) १४१ आणादर्णत संसारियत वोडीय दुल्लभन्तं च । साहम्मियतेर्णमी पमत्तछलाऽहिगरणं च ॥ ( ८८-२-१३) १४२ विणयस्स उगाहणया कण्णामोडगखडुचवेडाहिं । सावे हत्थता दलाति सम्माणि फेडिंतो ॥ (९२-१-३) १४३ कामं परपरिताको असायहेऊ जिणेहिं पण्णत्तो आय परहितकरो खलु छजर दुस्सले स पुण ॥ ( ९२-१-१०) १४४ इय भवरोगत्तस्सवि अणुकूलेणं तु सारणा पुवि । पच्छा पडिकूणवि पर लोगहिय कायव्या ॥ (बृहद्भाष्यं) (९२-२५) १४५ संविग्गो मद्दविभो अमुई अणुवत्तओ विसेसण्णू | उज्जुतमपरितो इच्छियमत्थं लहर साहू ॥ ( ९२-२-८) १४६ पुचाचरसंजुतं वैरग्गकरं सततमविरुद्धं । पोराणमदमागभासानिययं हव सुतं (१०३-१-३) मो १४७ इहरा व ता भइ अविणीओ भिओ किमु सुरणं ? । मा नो नासिहिती खप व खारोबसेओ उ ॥ (१०५-१-५) १४८ विण्याडीया विजा देइ फलं इह परे लोगंमि । न य फलइ दियहीणा सरसाणिव तोयहीणाई ।। (१०५-१-७) १४९ अतो न होइ जोगो न य फलए इच्छियं फलं विजा । अवि फलति बिलमगुणं साहणहीणा जहा बिजा ॥ (१०५-२-२) १५० जं तेहि अभिग्गहियं आमरणंताए तं न मुंचति । सम्मपि न लग्गति तेसिं कत्तो उ चरणगुणा ॥ (१०९-२-२) मोक्खपसाहणहेऊ णाणाई तप्पसाहणो देहो । देहा आहारो तेण तु कालो अणुष्णाओ | (१११-१-१) १५१ ~ 50~ 2555 आ भा गः बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४५॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - सूक्तावली आ ग ॥४६॥ श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी - साहित्य १५२ काले उ अणुण्णाए अरवि दु लग्गिज तेहि दोसेहिं । सुद्धोऽबुवादितो लग्गति उ विवज्जयपरेणं ॥ (११७-१-१४) १५३ कालसरीरावेक्खं जगस्सभावं जिणा वियाणित्ता । तह तह दिसंति धम्मं खिजति कम्मं जहा अखिलं ॥ (१२८-१-८) १५४ आचार्य उपाध्यायो वा तस्य स्वगणे सूत्रार्थविषये विस्मृते गच्छन्तरे संक्रमणं । (१२८-२-१) १५५ पडिलेहि दिनअट्टण निक्खिव आदाण विषय सञ्झाए । आलोग ठवण भत्तट्टमास पडलसेजराईसु ॥ गच्छसीदनस्थानानि ॥ (१४०-२-१०) १५६ जो जेण जंमि ठाणंमि ठाविओ दंसणे व चरणे था। सो तं शुभं तत्र तंमि चैव कार्ड भवे निरिणो ॥ (१४४-१-८) १५७ सच्देवि मरणधम्मा संसारी तेण कासि मा सोगं । जं चऽप्यणोऽवि होहिति किं तत्थ भयं परगयंमि १ ॥ (१४७-१-१३) १५८ अविओसियंमि डुगा भिक्स वियारे व वसहि गामे य गणसंकमणे भण्णति रपि तत्थेव वच्चाहि ॥ (१५४-१-८) । १५९ दोसा हु अणुवसंते न सुज्झई तस्स सामाइयं ॥ (१५९-१-१५) १६० नाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरिते य । धना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचति ॥ (१७२-१-१५) १६१ भी(गी) यावासी रई धम्मे, अणाययणवजणा । निग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं ॥ (१७२-२-३) १६२ जइमं साहसरिंग न वि मोक्खसि विमोक्खसि । उज्जतो व तवे निष्यं तथऽवाहो न होहिसि ॥ १६३ सच्छंदवत्तिया जेहिं सग्गुणेहि जढा जढा । अप्पणो से परेसिं च निच्वं सुविहिया हिया । जेसिं चायं गणे वासो, सजणाणुमओ मो दुहा बाऽऽराहियं तेहिं निव्विकल्पसुहं सुहं ॥ नवधम्मस्स हि पारण, धम्मे न रमती मती । वह सोऽवि संजुत्तो, गोरिवाऽविधुरं धुरं ॥ एगागिस हि चित्तार, विचित्तारं खणे खणे उप्पजंति वयंते य, वसेवं सजणे अणे ॥ (१७३-२) १९६४ वसिजा बंभचेरंसि भुजमाणी उ कादि उ तहावि तं न पूति, थेरा अयसभीरुणो ॥ तिब्बाभिग्गहसंजुत्ता, थाणमोणासणे रया। जहा सुज्झति जयओ, एगाणेग ~ 51~ 55F5Who भा बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४६॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४७॥ विहारिणो ॥ लज्जं बंभ च तित्थं च, रक्खंतीउ | १७० आलोएंतो बच्चति धूभादीणि व कहेति वा धम्म । तवोरता । गच्छे चेव विसुज्झंती, तहा अणसणादिहिं॥ | परियट्टणाणुयेहण न यावि पंथंमि उपउत्तो॥ (चक्षुलोलः) जोवि दहिंधणो हुजा, इथिचिंधो हु केवली । वसते (२४८-१-१४) सोवि गच्छंमी, किमु स्थीवेदसिंधणा? ॥ अलायं घट्टियं । १७१ इहपरलोयनिमित्तं अवि तित्थकरत्तचरमदेहत्तं । झाइ, फुफुगा हसहसायइ । कोवितो बहुती वाही, अणिदाणत्तं पसत्यं तु ॥ (२४८-२-१२) इत्थीबेपऽवि सो ममो ॥ (२००-२-१२) १७२ जा सालंबणसेवा तं बीयपयं वयंति गीयत्था। १६५ खामियबोसबियाई अहिगरणाई तु जे उईरंती। आलंबणरहियं पुण निसेवणं दप्पियं बेति ॥ (२५०-१-४) ते पावा णायचा तेसि व परूवणा इणमो ॥ (२२२-२-८) १७३ संग अणिच्छमाणो इहपरलोए य मुच्चति अवस्सं ॥ १६६ रागद्दोसाणुगया जीवा कम्मस्स बंधगा होति। (२५०-२-८) रागादिविसेसेण य बंधविसेसोवि अविगीओ ॥ (२३५-२-३)/१७४ छहं जीवनिकायाणं, अप्पज्झो उ बिराहओ। १६७ जो पिल्लिओ परेणं हेऊ वसणस्स होइ कायाणं । ____आलोइयपडिकतो मूलच्छेज्जं तु कारए ॥ (२५८-१-११) तस्थ न दोसं इच्छसि लोगेण समं तहा तं च ॥ (२३५-२-३)| २७५ अप्पच्छित्ते य पच्छितं, पच्छित्ते आइमत्तया । १६८ बिसस्स विसमेवेह ओसहं अग्गिमग्गिणो। धम्मस्साऽऽसायणा तिब्वा, मग्गस्स य विराहणा ॥ मंतस्स पडिमंतो उ, दुज्जणस्स विवजणं ॥ (२४०-२-२४) उस्सुत्तं च ववहरंतो, कम्मं बंधइ चिकणं । संसार १६९ य उपशमनालन्धिमान् तेनोपशमितव्यः कलहः, नोपेक्षा च पवढेती मोहणिज्जं च कुब्बती ॥ उम्मग्गदेसणाए विधेया (अन्यथा) स्वशक्तः नैष्फल्यमुपेक्षानिमित्ता य, मग्गं विप्पडिवायए । परं मोहेण रजिते, महामोहं प्रायश्चित्तापात्तिश्च। (२४०-२-१५)। पकुवति । ॥४७॥ ~52~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्प+व्यवहारसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री. आगमीयसुक्तावली ॥४८॥ बृहत्कल्पव्यवहारयोः सूक्तानि १७६ जति दोसो ते छिंदति असति दोसंमि णिज्जरं कुणति । । वन्तः आयुक्ता उपयुक्ता हिण्डंति-वाचनां च मुक्त्वा कुसलतिमिच्छरसायणमुषणीयमिदं पडिकमणं ॥ (२५९-१-५) नास्त्यन्या परस्परं संकथा, चत्वारोऽनुपारिहारिकाः १७७ एवं ठियंमि मेरै अट्ठियकप्पे य जो पमादेति । एकच कल्पस्थितस्तेषां पश्चानामप्येक एव संभोगः, सो बट्टति पासत्थे ठाणंमि तग विवज्जेजा ॥ (२६०-१-९) | यस्तु कल्पस्थितः स स्वयं न हिण्डते तस्य योग्य भक्त सरिकप्पे सरिछंदे तुल्लचरिते बिसिहतरए वा। पानमनुपारिहारिका आनयन्ति साहहि संथवं कुम्जा नाणीहि चरित्तगुत्तेहिं ॥ मध्यम अथ व्यवहारसूक्तानि तीर्थकृतां महाविदेहेषु च तीर्थषु नास्ति परिहार | तृतीयोद्देशके कल्पस्थितिः' सं १७८ यावद्भिः पारिहारिकगण ऊनस्तावत्साधन उपसंप १ जाया पितिवसा नारी, दत्ता नारी पतीवसा । दर्थमागतानां मध्याद्गृहीत्वा गणः पूर्यते, ये शेषाः | बिहवा पुत्तवसानारी, नस्थि नारी सयंवसा ॥ (३०४-१-४) ते पारिहारिकतपस्तुलनां कुर्वन्तस्तिष्ठन्ति, ते च । २ जायं पिय रक्खंती मात पिय सामु देवरा दिपणं । पारिहारिक साधं तिष्ठन्तोऽपि अविरुद्धाः ॥ (२६३-१-९) पिति भाय पुत्त विहवं गुरु गणिणी य एवं अजपि ॥ या एगाणि १८० यदि नव जनाः पूर्णाः ततः पृथग् गणो भवति, अथापूर्णा- | या य पुरिसा सकवार्ड घर परं तु नो पबिसे ॥ (३०४-१-९) स्ततः प्रतीक्षाप्यन्ते यावदन्ये उपसंपदर्थमागच्छंति। ।३ आयारे य९तो आयारपरूवणे भसंकेओ। (२१३-१-१३)| बायारपरिष्भट्ठो सुद्धचरणदेसणे भइओ (३१४-१-१४) १८१ अनुपरिहारिकाः पारिहारिकाणां भिक्षादौ पर्यटतां | संघो गुणाण पाओ संघो य विमोयगो य कम्माणं । गोपालाच गया पृष्ठतः स्थिता नित्यमुक्ताः प्रयत्न- । रागहोसबिमुक्को होइ समो सयजीवाणं । (३१५-२-५) ॥४८॥ ~53~ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्ताचली ॥४९॥ आ ग मो द्वा wh भा गः श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [ व्यवहारसूक्तानि पुन: संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम-संबंधी साहित्य मुनि दीपरत्नसागरेण ५ परीणामियबुद्धीए उपवेओ होइ समणसंघाओ । कजे निच्छयकारी सुपरिच्छिय कारगो संघो ॥ (३१४-२-९) ६ आसासो बीसासो सीयघरसमो य होइ मा भाहि । अम्मापतिसामाणो संघो सरणं तु सब्बेसिं ॥ (३१५-१-६) ७ सीसो पढिच्छओ वा कुल गण संघो न सोग्गतिं नेति । जे सच्चकरणजोगा ते संसारं विमोऐति ॥ (३१५-१-१४) ८ सीसो पढिच्छतो वा आयरिओ वा न सोग्गई नेय । जे सणजोगा ते संसारा विमोपति ॥ (३१५-१-९) ९ मिहिसंघायं जहि संयमसंघाय उबगओ णं । णाणचरणसंघायं संघायं तो हव संघो (३१५-२-७) १० नाणचरणसंघायं रागद्दोसेहिं जो विसंघाए । अहो गिहिसंघायंमि अध्यार्ण मेलिओन से संघो (३१५-२-७) ११ णाणचरणसंघायं रागद्दोसेहिं जो विकिंसुए। सो भमिही संसारे चउरंगगतं अणवदग्गं ॥ (३१५-२-७) १२ दुक्खेण लहर बोहिं युद्धोष य न लभते चरितं तु । उम्मग्गदेसणार तित्थंकरासायणाए ये ॥ १३ इहलोए य अकित्ती परलोए दुग्गई धुवा तेसिं । (३१५-२) अणणाएँ जिणिदाणं जे ववहारं ववहरति ॥ (३१७-१-१०) १४ एते उ कज्जकारी तगराए आसि तम्मि उ जुगम्मि । जेहिं कया बवहारा अक्खोभा अन्नरजेसु ॥ ३१७-१-१५ १५ परिवार इहि धम्मक बादि खमगे तद्देवऽहमिहिं । विजा रायणियार गारवा इति अट्टहा होइ ॥ (३१८-२-३) ग मो १६ न हु गारवेण सका वह रिडं संघमज्झयारम्मि । नासेर अगीयत्थो अप्पाणं चैव कर्ज तु ॥ (३१९-१-३) जा इत्यागमीय सूक्तानि ~54~ X X X -- X व्यवहारस्य सूक्तान श्री आ आगमीयसुभाषितानि च --- ॥४९॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सुभाषित-वाक्यानि मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य आगमीय सुभाषित-वाक्यानि अथागमीय सुभाषितवाक्यानि १ सुधतं शुद्धं निर्मलं जलानुगतं । (विशे० ५७३) २ कि 'विघ्नः' अन्तरायो निर्घातादिभिर्जायते ?, आदिशब्दाद्दिग्दाहादिपरिग्रहः, 'तस्य' इन्द्रस्य परमैश्वर्ययुक्त स्वेन विनानुपपत्तेरिति भावना, अथ वर्षति ऋतुसमये गर्भसङ्घात इति वाक्यशेषः । (द०-६६) (ठा०-११७) | ३ अशक्यप्रत्युपकाराश्च भगवन्तो धर्माचार्याः बजइ । ४ जलेसाई दब्बाई परियाहता कालं करेइ तल्लेसेसु उब(२०- १८८) ५] प्रणिपतितवत्सलाः प्रणम्रजनहितकारिणः खलु उत्तमपुरुषाः । (जं० २४७) * - * -- * ---X--- x --- x --- x --- ~ 55~ ॥४९॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] आगमीय संग्रह-श्लोका: ~56~ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली आ ग ॥५०॥ दा भा ग श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय संग्रह - श्लोकाः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य अथागमयसंग्रह श्लोकाः १ २ पिंडे उग्गमउप्पायनेसणा [सं] जोयणा पमाणं च । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुन्ती | (पि० १-१०) उभयमुहं रासिदुगं हिद्विलाणंतरेण भय पढमं । लहरासिविभते तस्सुवरि गुणिन्तु संजोगा | (पि०२१-२२) ३ पयसमदुगअभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा । पतरियं लघुगुरुदुगुणा डुगुणा व वामेसु ॥ (पि० १५३-२० ) ४ उपक्रमोऽथ निक्षेपोऽनुगमञ्च नयाः क्रमात् द्वाराण्येतानि भिद्यन्ते द्वेधा त्रेधा द्विधा द्विधा ॥ ' उपक्रम उपक्रान्तिर्दुरस्थनिकटक्रिया । निक्षेपणं तु निक्षेपो, नामादिन्यसनात्मकः ॥ सूत्रस्यानुगतिश्चित्रा ऽनुगमो नयनं नयः । अनन्तधर्मणोऽर्थस्यैकांशेनेति निरुक्तयः ॥ न्यासवेशागतं शास्त्रं न्यस्यते न्यस्तमेव तत् । अम्बीयतेऽन्विते नीतिस्तेनैतेषामयं क्रमः ॥ ( उत्त० ११-५) ५ शुद्धं द्रव्यं समाश्रित्य सङ्ग्रहस्तदशुद्धितः । नैगमव्यवहारौ स्तः, शेषाः पर्यायमाश्रिताः ॥ अन्यदेव हि सामान्यमभिन्नशानकारणम् । विशेषोऽप्यन्यमेवेति मन्यते नैगमो नयः ॥ सद्रूपतानतिक्रान्तस्वस्वभावमिदं जगत् । सरूपतया सर्व सहगृहन् सङ्ग्रहो मतः ॥ व्यवहारस्तु तामेव प्रतिवस्तुव्यवस्थिताम् । तथैव दृश्यमाणत्वाद्, व्यवहारयति देहिनः ॥ तत्रर्जुनीतिः स्यात्, शुद्धपर्यायसंस्थिता । नश्वरस्यैव भावस्य भावात्स्थितिवियोगतः ॥ अतीतानागताकारकालसंस्पर्शवजितम् । वर्त्तमानतया सर्वसूत्रेण सूक्ष्यते ॥ विरोधिलिङ्गसख्यादिभेदाद्भिन्नस्वभावताम् । तस्यैव मन्यमानोऽयं, शब्दः प्रत्यवतिष्ठते ॥ तथाविधस्य तस्यापि वस्तुनः क्षणवृतिनः । वृते समभिरुद्धस्तु संज्ञामेदेन भिन्नताम् ॥ ~57 ~ 2.4958 आ भा JT: आगमीय - सुभाषिता नि संग्रह लोकाय ॥५०॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआगमीय सूक्ताती शु श्री आ ॥५१॥ ग मो जा र ग्र भा ET: श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय संग्रह - श्लोकाः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य (१४१-१) अणण्हर तवे चैव, बोदागे अकिरिया सिद्धी ॥ (ठा० ३९३४) १४ किमियं रायगिति य उजोए अंधयार समए य । पासंतिवासिपुच्छा रातिंदिव देवलोगा य ॥ (२४८-१४) श्री १५ महवेदणे य बत्थे कदमखंजणमए य अहिगरणी । तणहत्थे य कबले करण महावेदणा जीवा ॥ (२५२-१५) १६ तमुका कप्पपण अगणी पुढवी व अगणिडवीसु । आऊतेऊवणस्सर कप्पुवरिमकण्हराई ॥ भ० २७९-२) १७ संविनिष्ठेव सर्वाऽपि विषयाणां व्यवस्थितिः । संवेदनं च नामादिविकलं नानुभूयते ॥ तथाहि घटोऽयमिति नामैतत् पृथुवुनादि चाकृतिः । मृद्रव्यं भवनं भावो, घटे दृष्टं चतुष्टयम् ॥ तत्रापि नाम नाकारमाकारो नाम मो बिना तो बिना नाम नान्योऽन्यमुत्तरावपि संस्थितौ ॥ मयूराण्डर से यद्वर्णा नीलादयः स्थिताः । सर्वेऽप्यन्योऽन्यमुम्मिश्रास्तङनामादयो घटे ॥ (जं० १३-१) एकस्यापि ध्वनेर्वाच्यं सदा तन्नोपद्यते । क्रियाभेदेन भिन्नत्वादेवंभूतोऽभिमन्यते ॥ ६ दुखाउए उदिने आहारे कम्मवन्नलेस्सा य । समवेयणसमकिरिया समाउप चेव बोद्धव्या ॥ भ० ४१-४) आहाराईतु समा कम्मे बने तहेब लेसाए । arrrr किरियाए आउयडववत्तिचभंगी ॥ कडचिया उचचिया उदीरिया वेदिया य निजिन्ना । आदितिए चडभेदातिय भेदा पच्छिमा तिनि ॥ ( ५३-१० ) ९ तइरण उदीरंति उवसामेति य पुणोवि बीएणं ।' ७ (४३-२) ८ बेइति निज्जरंति य पदमच उत्थेहिं सत्रेऽवि ॥ (५९-११) १० कद पडी कह बंध करहि व ठाणेहि बंधई पयडी । कइ वेदे य पयडी अणुभागो कहविहो कस्स १ (६३-१) ११ पुढपिट्ठिति ओगाहण सरीर संघयणमेव संठाणे । लिस्सा दिड्डी णाणे जोगुवओगे य दस ठाणा ॥ (६८-४) १२ वेयण? कसायर मरणे३ बेडब्बिय४ तेयए५ य आहारे६ । के लिए चेव भवे जीवमणुस्साण सत्तेव ॥ (१२९-२३) १३ सबणे णाणे व दिण्णाणे, पच्चक्खाणे व संजमे । इत्यागमयसंग्रहाः इत्यागमीसूक्तावलि१ सुभाषित संग्रहश्लोकाः ३ ~ 58~ --- X X --- 25 आ ग मो खा र भा गः ८ आगमीय - संग्रह - श्लोकाः ॥५१॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] आगमीय लोकोक्तयः ~59~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [नन्दी+अनुयोग+आवश्यक-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आश्यकानां अधागमीयलोकोक्तयः नन्यनुयोआगमीयअथ नन्दीलोकोक्तयः | तरिकमपीदं भवद्भिः कृतं यद्यन्त एव | मणसा देवाणं वायाए पत्थियाणं ।। बगद्वाराव (६३-१४) लोकोक्ती आ कुर्वन्ति नान्यः कश्चिदिति । (२१८-१०) अहिंसाव्यवस्थितः तपस्वी । (४७-१) लोके च पूर्वोक्तावस्थासु सर्वत्र प्रस्थक ओसीसए सप्पो जोयणसए विजो कि पात्रमायान्ति सम्पदः । (८१-१४) ग लोकोक्तयः ॥५२॥ व्यवहारो दृश्यतेऽतो व्यवहारनयोऽप्येव करेहितिः। (६४-११) मोहस्ती हस्तिना प्रेर्यते । (१५०-२). मेव प्रतिपद्यत इति भावः । (२२३-२४) पिउं ते जीपणं एगपि तिलं न खामि । शानं प्रत्ययसारम् । (१६०-९) लोकेऽप्येव व्यवहतिदृश्यते, यथा कश्चिहन्यतामेष दण्डेनाश्वः । (१६३-१८) दाह-मदीयदासेन खरः क्रीतः, तत्र जो करे सो पसंसिजद सव्वो(यो) कस्यापि दूरे शब्दः । (१७२-४) लोगववहारोत्ति । (११८-७) दासोऽपि मदीयः खरोऽपि मदीयः, दूरे शब्दः श्रूयते । ( १) दासस्य मदीयत्वात् तत्क्रीतः खरोऽपि राया करेर देडे । (१२७-१७) न वयं प्रत्यासन्ना अपि त्वदीयं वचः शृणुमदीय इत्यर्थः । (२३६-२) जितो भवान् (कषायः) वर्धते भयम् । मः पवनस्य प्रतिकूलमवस्थानात् । (तेभ्यः ) । (१५७-१६) - आकण्ठपूरिता अपि हि लोकरक्या भूता (१७२-१५) अग्निकुमारा बदनः खलु अग्निं प्रक्षिप्तउच्यन्ते । (२३६-१९) अधानुयोगद्वारलोकोक्तयः चन्तः, तत एव निवन्धनालोके 'अग्निमुखा अथावश्यकलोकोक्तयः भभाषक एवार्य द्रव्योऽसारवचनत्वात् वै देवाः' इति प्रसिद्धम् । (१६९-६) (१४३-१) तथा च होके वक्तारो भवन्ति-अमुच मे श्रावका देवान अतिशयभक्त्या याचिप्रस्थकादिरय पुजीकृतस्तिष्ठति । (१५३-१६ | गते मनः इति । (१३-९) | तयन्तः. देवा धपि तेषां प्रचुरत्वात महता ॥५२॥ T0 BESIRE ~60~ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आवश्यक-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आ आगमीय लोकोक्तौदा 3. यरलेन याचनाभिनुता आहुः-अहो याचका | उज्जोय करिस्सामि अंधकारतर कयं ।। जत्तेण वजेद ॥ १ ॥ (४१३-१५) अहो याचका इति, तत एव हि याचका जले नटुं जले चेव लम्भद । (४१४-११) रूढाः । (१६९-१६) पुरिसो वा पुर्व कामभोगे विप्पजहति, निव्वहियव्या य पइण्णत्ति (४१४-३) अग्निं गृहित्वा स्वगृहेषु स्थापितवन्तः, कामभोगा या पुवं पुरिसं विष्पजहयंति । वीरभोजा पुहवी । (४३४-५) आवश्यतेन कारणेन आहितामय इति । वस्तुतस्तुल्यबलयोर्विचारः श्रेयान् । अल या परबुद्धिमान्धप्रदर्शनेन । (४५१-२०) मालोकोक्तयः भोगा अवमाणमूलति । (१७३-१०) (३७७-३) फलं अस्थि मणविसुद्धीए । (५२५-२१) जाव तरुणभो वाहि ताव तिगिच्छामित्ति। अणुकंपाए नइसरिसा रायाणो। पुण्यफलो जिनगुणसङ्कल्पः । (५२६-११) र (२२४-८) कलिणा कली घस्सउ । (५७७-२२) अनेन निमित्तेन-अनेन कारणेन मयेदं पासत्थाई अकल्लाणमित्ता । (३८५-१२) णाणायट्ठा दिक्खा । (६२८-१९) प्रारब्धम्, अनेन कार्येणेत्यर्थः ततश्च भव- साडियं रक्खेजासि । (३९४-२) जड़स्सन कप्पई दिक्खा । (६२८-२०) त्यनायाधकार्यम् । (२८०-१४) . न शक्यं त्वरमाणे प्राप्तुमर्थान् सुदुर्ल- माउडे बुज्य गुज्झया । (६३३-४) लोकेऽपि गत्यागतिलक्षणं-रूवी य घडो भान् । भायाँ च रूपसम्पन्ना, शत्रूणां च जह मए गए देइ तो देर । (६९४-६) चूतो दुमोत्ति नीलोप्पलं च लोगंमि । पराजयम् ॥ (३९९-२१) जो सूरोवीरो विकतो सो पुण रजं दिज्जा। जीवो सचेयणोत्ति य विगप्पनियमादओ डंभपहिं लोगो खजाइत्ति । (४१३-१) (७०३-८) भणिया॥१॥ (२८१-२२) सचं सुव्वा एयं-मेहनहसमा हवंति कओ मुहो ते वाओ वाइ । (७१२-२) H५३|| लोगो कामियकामियओ। (२९४-१२) । रायाणो । भरियाई भरैति दर्द रित्तं बंदामि निमित्तिगखमणंति । (७१२-५)। 10444428 ॥ ५३॥ (३७८-१८) VERSE ~61~ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आवश्यक+विशेषावश्यक-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीयलोकोक्ती आवश्यक| विशेषाव श्यकयोमो लोकोक्तयः AAREEMEN पुण्ोण र लभइ । (७१३-२) (२०६-१) कत्तिओ धम्ममासो। (८०३-२५) मुण्डितशिरसो दिनशुद्धिपर्यालोचनम् । लोकेऽपि सतामाकाशादीनां पर्यायविशे. जावजीबाए कत्तिओ । (८०४-२) पाऽऽधानापेक्षया करणस्य रूढत्वात् । सवारंभपवित्ता कहं लोगं पत्तियाविति । शान्तिकरणप्रवृत्तस्य बेतालोत्थानम् । (२३७-५) (८१८-३) (७८-८) आकाशं कुरु, गृष्ट कुरु, पादौ कुरु । जाणतो सुह परिहरति । (८४७-७) चिन्तया वत्स ! ते जातं शरीरकमिदं (२३७-६) अर्द्ध कुकुट्याः पच्यते, अद्ध प्रसवाय कृशम् । (१३३-११) जो जहा वट्टए कालोतं तहा सेव वानरा। कश्प्य ते । (८५१-१) नय रूढी सश्चिया सव्वा । (१४१-१) (४१०-२०) लोकेऽपि हि यो विशेषः सोऽप्यपेक्षया तथा च बक्कारो भवन्ति 'अमुकेन नक्षत्रेण अथ विशेषावश्यकलोकोक्तयः सामान्यम् यत्सामान्य तदष्यपेक्षया अमुकेन प्रहेण स्थमित्थं च गच्छता | बहुविग्याई सेयाई । (१७-६) विशेष इति व्यवहियते । (१६९-१८). विनाशितः कालः' ।(४३६-४) न हि शुक्ल शुक्लीक्रियते, नापि स्निग्धं संशयादयोऽज्ञानम् निर्णयस्त्ववाधितो । अरण्ये रोझानां लवणदानार्थम् । स्नेहाते (१८-३) ज्ञानम् । (१८८-१५) अण-पिण्डी-पादलेपादिके लोकव्यवहारे बक्खाणओ विसेसो न हि संदेहादलक्ख- पारण पुवसेवा परिमउई साहणम्मि उपयुज्येत ? । २९-१०) णया । (२०५-२) गुरुतरिया। (५३४-१) लोके सर्वत्र तुल्यनामधेयाः वाह्यः पृथु- वतारो भवन्ति-'कटुकस्य, तीक्ष्णादेर्वा दासत्तं देह भणं। (५७०-२) बुभोदराऽऽकारोऽथोऽपि घट उच्यते । । वस्तुनः संबन्धी अयं गन्धः' इति । । दिति कसाया भवमणते । (५७०-२) ५४॥ भा ॥५४॥ 10. ~62~ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जायं च अकारणओ तमकारण थिय पडेजा। (५७८-८) संघो जो नाणचरणसंघाओ । ( ५९१-९) तब जीवित पिवामि (६०५-१८) प्रथमकोपे च यदुच्यते तत् क्रियमाणं न खलु परिणती सुखयति । (६१२-१० ) अनुवर्तनीयं गुरूणां वचनम् । (६१२-१० ) जिणिडं घेण्यंति रयणाई (६२०-११ ) अमोहं देवाणं दंसणं । (६२१-२५) सं पुट्ठावि न दुद्धया वंझा । (६२८-१० ) पेयालिय गुण-दोसो जोग्गो जोग्गस्स हे भासेजा । (६३८-९) र ग्र 'जातं तद् दधि' (७४४ - १२) 'जीवित विषम्' सृतं कुसुम्भकम् । श्री आगमीय आ लोकोक्ती ग ॥ ५५ ॥ मो वा भा श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [विशेषावश्यक + ओघनिर्मुक्ति-लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य FA (७४४-१३) ८ सारिसासरिसं सव्वं (७५७-१) लोके मरणं गतः प्राप्तः कालगत इत्युच्यते ! (८५३-१६) जावन्तो वयणपहा तावन्तो वा नया । (९२२-१४) यथा वीरो महावीर इति । ( ९३३-८) यथा भीमो भीमसेन इति । ( ९३३ - १० ) नाकारणेति कर्ज । (९४१-६) सर्वनयात्मकं हि भगवद्वचनम् (९४२-३) ग्रामो दग्धः, पटो दग्धः । ( ९४९-१६ ) बहुजणनाभोऽवसिनो होही अंगेज्शपखोति (९९३-९) भावाओ कि बओ गुरुवं । (२०१८-४) शक्यमेवानुष्ठानं विधीयते नाशक्यम् । (१०६७-९) लोकव्यवहारे सांप्रतमल्पस्तन्डुलः, प्रचुरो गोधूमः संपन यवः' इत्यादावनेकमप्येकमुच्यते । (११७९-४) न हि दिजर आहरणं पलियन्तियकन ~63~ हाथरस (१२९३ - १) 'जीवति पारदः' 'जीवति विषम्' 'जीवत्यभ्रकम्' 'जीवति लोहम् (२३२१-१४) असंजमजीवियमविरयाणं । (१३२२-१६) अथ ओषर्नियुक्तिलोकोक्तयः महिडियं चरणं चारित्तरक्खणट्टा जेणियरे तिनि अणुभोगा । ( ८-२६) अल्पं गोब्राह्मणं नन्दति । (१८-८) मज्ाबला साहू (७१-१३) ते स पिता भवति येन रोदिपीति । (७२-१९) जोगंमि चट्टमाणे अमुगं बेलं गमिस्सामो । (७३-१२) वेश्यासमीपे बसतां लोको भणति अहो तपोवनमिति । (८१-८) कम्मं निव्वाहि होउ । (९८-३) विशेषावश्य श्री कौघ आ ग निर्युक्त्योमो लोकोक्तयः खा र भा ४५५।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [ओघनियुक्ति+दशवैकालिक-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य ओष आगमीयलोकोक्ती ॥५६॥ .44 प्रथमालिका वा यो गतस्तस्य था हस्ते कथं नु स राजा यो न रक्षति ? (८५-१०) संदिशन्ति (१०१-२५) कथं नु स बयाकरणो योऽपशब्दान् तस्य हस्ते संदिशति । (१०२-१६). प्रयुक्त। (८५-९०) रात्री दक्षिणाया दिश उत्तरायां दिशि न सा महं नोवि अहपि तीसे । (९३-१६) देवाः प्रयान्ति (इति) लोके श्रुतिः। पृथकर्मफलभुजो हि प्राणिनः । (९४-९) (१२५-९) | घुणक्खरमिव । (१११-२०) | मोहनरसो भयेन ह्रियते । (१५३-१७) घरट्टभ्रमणकल्पम् । (११५-२५) वक्तारो लोके दृशाः, यदुत जीवोऽनेन हिं- शिष्टाचरितो मार्गः शिष्टेरनुगन्तव्यः । सितो-विनाशितः, तथा घटोऽनेन हिंसितो-विनाशितः । (२२१-१०) पूर्व निरामयोऽहमासं संप्रति सामयोजातः, अथ दशवैकालिकलोकोक्तयः सामयो वा निरामय इति । (१३१-१२) दद्यते गिरिगलति भाजनमनुदरा कन्या शास्त्राणि चादिमध्यावसानमङ्गलभाजि अलोमा एडकेति । (२०९-१) भवन्ति । (२-२०) घुणाक्षरन्यायः । (२१०-२७) एए उबसंता तवस्सिणो असञ्चं ण वयंति। अचक्खुओ व नेता, बुद्धिमन्ने उसे गिरा। (१०-२२) (२१२-२८) क्षेत्रे दानादि सफलम् । (१८-१८) | देहे दुःखं महाफलं, संचिन्त्य । (२३२-१०) ठिओ अठाचई परं । (२५६-२५) गिहिजोग परिवजए जे स भिक्खू ।। (२६५-२६) आ पुढविसमे मुणी हविजा । (२६७-३) ग | नियुक्तिपुराणः पतित इति कृत्सित नामधेयम् । (२७६-२६) मो दशबैकाअनुस्रोतःसुखो लोकः । (२७९-१७) डालिकयोविष मृत्युः दधि वपुषी प्रत्यक्षो ज्वरः । र लोकोक्तयः (२७२-२०) आयुघृतं तन्दुलान्वर्षति पर्जन्यः । (२७९-२२) विहारचरिआ इसिणं पसस्था । (२८०-२) असंकिलिटेहिं समं वसिज्जा । (२८०-७) अप्पाखलु सयय रक्खिअन्यो। (२८२-१३) जहा लोगे अमेहिं अणुगतं तम्भ अभंतरो भणर एवं सोवि कामभोगपिया ॥५६॥ २ ~64~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [दशवैकालिक+पिंडनियुक्ति+उत्तराध्यन-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री FF ४ साए परिज्ञाणगतो परिज्शतो भषणइ ।। निवेद्यते । (१२२-२४) अथोत्तराध्ययनलोकोक्तयः | दशबैका(द.चू०१४) । दुःखसहायश्च स उच्यते यो दुःखप्रतीथा| कथं तु राजा यो न रक्षति कंथ तु | |लिकपिण्डलोऽपि हस्तिन्यश्वे च द्वयोरपि राहो श्री कारसमर्थः । (१२२-२४) आगमीय|आ वैयाकरणः शब्द न जुयात् । (द० चू. ३४) | नियुक्त्युरएिः । (३२-१९) लोके चटुकारिण पते जन्मान्तरेऽप्यदत्तलोकोक्तो HI अथ पिण्डनियुक्तिलोकोक्तयः दाना आहाराद्यर्थ श्वान इवात्मानं घृष्यतां कलिना कलिः । (५०-६०) म चराध्य दर्शयन्तीत्यवर्णवादः । (१३१-९) नचिट्टे गुरुणंतिए । (५४-२१) | यनानां ॥५७॥ दान खल्यकामी मण्डनप्रियो भवति । । स च तेषां सर्वेषामपि प्रायो भगिनीपतिः। कियश्चिरमयमजनमोऽस्माभिरनुपाल लोकोक्तयः (१३५-२) नीयः । (६३-१) भवति च तत्कार्यत्वात्तच्छन्देन व्यपदेशो पापाजीविनः पापेन-विद्यादिना परद्रोह- । कर्मकृतं लोकवैचित्र्यम् । (७५-४) यथा द्रम्मो भक्षितोऽनेनेत्यादौ । (३७-४) करणरूपेण जीवनशीला मायिनः-शठा . यत्कर्म कारयिष्यति तत्कारिष्यामः । | मनोनाहारभोजन मिनर्दष्ट्रतया । इति लोके जुगुप्सा । (१४२-५) ... (४४-१९) लोके पर्व श्रुतिः-यदि कुमारी ऋतुमती नेह वसति प्रोषितः (७९-६) जो उ असलं साहर किलिस्सइन ते भवेत् तहिं यावन्तस्तस्या रुधिरबिन्दवो । असमाणो चरे मिक्स् । (१०७-१४) च साहेई । (८६-११) निपतन्ति तावतो वारान् तन्माता नरकं । नय वित्तासप परं । (१०८-१७) न य मदन्या उ गुणा । (८६-२१) । याति । (१४५-७) अकोसेज परो भिक्खू । (१११-१६) दुल्लमय खु सुयमुह । (१२२-१०) जं संकियमावन्नो । (१४५-७) हओ ण संजले भिक्खू । (११४-४) ५७|| यो दुःखसहायो भवति तस्मै दुःखं । पत्थं पुण रोगहरं । (१७९-२०) नत्थि जीवस्स नासुत्ति । (११४-११) AAAAAAAAAEE २०७२ 4 4 4 4 4. ~65~ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [उत्तराध्यन-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य यनस्य (२४४-१३) नत्थि किंचि अजाय । (११६-१०) खे गुणे जाव सरीरमेए । (२२७-१९) । कर्ड लपूण भक्मए । (२६८-२३) । उत्तराध्यआगमीय गृहवासो बहुसावधः । (१९७-३). मृत कुसुम्भकमरजक, मृतमन्नमव्या- निरवेक्खो परिवए । (२६९-६) में अणिजिउं कहं मम सहाय खाहिसि। नम् । (२२९-१७) गामे अनियओ चरे । (२६९-२१) लोकोक्ती (११८-१०) स्वकृतकर्मफलभुजो हि जन्तवः । एगोश्थ लभते लाभं । (२७८-१४) आ लोकोतयः परस्स लाभो न गिपियव्यो । (११९-७) दुल्लहा तस्स उम्मज्जा अद्धाए सुचिरा।। ५८॥ अदीणो ठाबए पणं । (११९-१४) ण संतसंति मरणंते, सीलबंता बहु- दवि । (२८०-१६) |बेएज निजरापेही । (१२३-६) स्सुा । (२५३-८) कम्मसच्चा पाणिणो । (२८१-१) द्वाजलं कारण धारए । (१२३-६) जावंतऽविजा पुरिसा सवे ते दुक्खसंभवा।। अहीणा जंति देवयं । (२८२-१) न तेसिं पीहए मुणी । (१२४-२) (२६२-१३) । जिचमाणो न संविदे । (२८२-१२) जं मए गहिवं तं सुगहियं । (१७९-१) अप्पणा सञ्चमेसेजा । (२६४-६) कुसग्गमित्ता इमे कामा । (२८३-१३) काका नीयते । (१८४-२१) मित्ति भूपहिं कप्पए । (२६४-६) इह कामानियट्टरस अत्तट्टे अबरज्झति । स पुश्वमेवं ण लभेज पच्छा । (२२४-५) अत्तट्ठा सञ्चमेसेजा । (२६४-१२) (२८४-४) विसीदति सिढिले आउयंमि । (२२४-६) ण कंखे पुष्वसंथवं । (२६४-१७) सुच्चा नेयाउ मग्गजं भुजो परिभस्सति। | खिप्पं न सक्वेद विवेगमेड । (२२४-२४) । अप्पमत्तो परिवए । (२६८-३) (२८४-५) मा आयाणरक्खी चरमप्पमत्तो । (२२४-२५) पुब्धकम्मक्खयट्ठाए इम देहमुदाहरे । । अहम्मिटे नरएसूववजा । (२८५-३) ॥५८ ॥ | रक्खेज कोहं विणएज माणं । (२२६-११) (२६८-१३) । धम्मिट्टे देवेसु उववज्ञइ । (२८५-४) मायं ण सेवेज पहिज लोहे । (२२६-११) कालखी परिव्वए । (२६८-२३) । भवाले सेवए मुणी । (२८५-५) SPEEFFEENROFEvok ~66~ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय लोकोक्तौ ।। ५९ ।। श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [उत्तराध्यन लोकोक्तयः ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य आ ग इयरहाहं तुझ आणाभोजा (२८८-१) पासमाणो न लिप्यई । (२९१-४) दुष्परिचया इमे कामा। (२९२-३ ) दुप्पूरण हमे आया । (२९६-१९) खेति जहा व दासेहिं । (२९७-११) मोइत्थी विष्पजहे अणगारे (२९७-२४) ' द्धा स्वस्थकर्मफलभुजो हि जन्तवः । (३१०-१२ ) पियं न विजई किंचि । ( ३१०-१५ ) जिणित्ता सुमेहति । (३१३-२२) अप्पाणमेव जुज्झाहि । ( ३१३-२२) ग्र सव्यमध्ये जिए जितं । (३१३-२३) हे कलं अग्पद सोलसिं । ( ३१५-२५) भा इच्छा हु आगाससमा अर्थतया । (३१६-२० ) पडिपुत्रं नालमेगस्स । (३१६-२१) संकप्पेण विहम्मसि । ( ३१७-१४) समयं गोयम ! मा पमायण (३३३-११) जीवित बहुपचवायर (२३५-३) दुल्लभया कारण फासया । ( ३३७-२) से सव्वसिणेहवजिए | (३३८-२४) मावंत पुणोवि आविए । ( ३३९-५) बुद्धे परिणिए चरे (३४१-१२) संति मगं च यूए (३४१-१२) मितिजमाणो वमति ।। 1} (३४५-१७) सुर्य लहूण मज्जइ । सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भार पावर्ग । ( ३४५-१८) अप्पियस्सावि मित्तरस रहे कहाण भासा । ( ३४५-२२) सहसा बहुमुंडिय जणे (३५४-१८) महप्पसाया इलिणो हति । (३६७-२१) न हु मुणी कोपरा हवंति (३६७-२१) न दीसई जाइविसेस कोई (३६९-२२) कहं सुज कुसला वर्यति । (२७१-२) ~67~ सव्वं सुचिणं सफलं नराणं । (३८४-१६) कडाण कम्माण न मुक्खु अस्थि । कल श्री या ग (३८४-१६) सुचीर्ण प्रोषितव्रतम् । (३८४-२२) पाहु दुखं । (२८५-२४) इको सर्व पथणुहोद दुखं । (३८८-१८) मो कतारमेव अणुजार कम्मे । ( ३८८-१८) भोगा इमे संगकरा भवति । (३९०-७) न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो। (३९१-२) न याचि भोगा पुरिसाण निच्चा । (३९१-९) सं खाणी अणत्थाण उ कामभोगा । डा (३९९-१५) हे साहाहि रुफ्लो लहर समाहिं । (४०७-६) भा दुक्खं खु भिक्खारिया बिहारो । (४०६-२१) ८ इको हु धम्मो नरदेव! ताणं । (४०८-८) उत्तराध्य यनस्य लोकोक्तयः ॥५९॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [उत्तराध्यन-लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीय लोकोक्तौ ।।६०॥ FERRENEvks | जातस्य हि प्रयो मुत्यः । (४०८-२४) वियाणिया दुस्ववियहणं धणं । । रयाई खेविज पुराकडाई । (४८५-६)IC (४६६-२) डज्झमाण न बुज्झामो, रागहोसग्गिणा, 18| उत्तराध्य परीसहे पायगुत्ते सहिजा । (४८५-७) जगं । (४०९-९). ममत्तबंध च महाभयावहं । (४६६-२) | निव्वाणमग्गं बिरय उवेद । (४८५-८) श्री यनस्य संकमाणो तणु चरे । (४०९-१३) माणुस्सं खु सुदुल्लई । (४७३-१५) विवित्तलयणाई भइज ताई। (४८५-१०) लोकोक्तयः जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू । यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति । (४७३-१७) मांसेनैव मांसमुपचीयते । (४९०-२६) गुणवति धने ततः श्री श्रीमत्याशा ततो डरपंडियाक्वाणययं । (४९६-३) ठिओ उ ठावए परं । (४३०-३) राज्यम् । (४७३-१८) सव्वसत्तू जिणामहं । (५०४-११) किं नाम काहामि सुपण । (४३२-२७) अप्पणा अणाहो संतो कहं नाहो भवि- नमो ते संसयाईय ! सब्बसुत्तमहोयही!। भुथा पिश्चा सुहं सुख । (४३३-७) स्ससि । (४७३-२२) (५११-९) र अणिचे जीवलोगंमि किं हिंसाए पस- सीयंति पगे बहुकायरा नरा । (४७७-८) न वि मुंडिएण समणो, न ॐकारेण , जसि । (४४०-८) न वीरजायं अणुजाइ मग्गं । (४७७-१०) । बंभणो । न मुणी रणवासेणं, कुसचीजीवियं चेव रूवं च विज्जुर्सपायचंचलं । चरिज भिक्खू सुसमाहिइदिए। रेण न तावसो ॥ २९ ॥ (५२५-४) (४८४-२४) समयाए समणो होर, बंभचेरेण बभणो। | असासए सरीरंमि रई नोबलभामह । कालेण कालं विहरिज रतु । (४८४-२४) । नाणेण य मुणी होइ, तयेणे होद तायसो (४५३-२०)। सीहो व सहेण न संतसिजा । (४८५-३) ॥ ३० ॥ (५२५-५) इहलोगे निप्पिवासस्स नत्थि किंचि बि | न सव्व सम्बत्थऽभिरोअइजा । (४८५-२) कम्मुणा बभणो होर, कम्मुणा होई दुक्करं । (१५८-१) अणेग छंदामिह माणवेहिं । (४८५-३) | खत्तिओ । ~68~ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तय: [ उत्तराध्यन+आचारांग लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य श्री- श्री आगमीय आ लोकोक्तौ ग मो ।। ६१ ।। लक्षणं प्रपञ्चचोच्यते । ६३५-१२) ग्रामः समागतः । ( ७०१-१६) अथाचार गलोकोक्तयः रस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुष्णा ॥ ३१ ॥ ( ५२५-६) भासच्छता इवऽग्गिणो (५२६-१५) भोगी भमर संसारे । (५३०-७) अभोगी विष्पमुचई (५३०-७) उवलेवो होइ भोगेसु । ( ५३० - ७) अभोगी नोवलिप्पई । (५३०-७) इच्छं निओइड भंते!, वैयावच्चे व सज्झाए । (५३१-२ ) सं पूर्वस्मिन्नभश्चतुर्भागे आदित्ये समुत्थिते ग्र इव समुत्थिते । (५३६-१३) र भा हे वृथा श्रुतमचिन्तितम् । (६२२-१३ ) ब्राह्मणा आयाता वशिष्ठोऽप्यायातः । (६२४-१५) गः विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो । (६२५-९) ८ कामाणुगिद्धिष्यभवं खुदुक्खं । (६२५-११) त एव विधयः सुसंगृहीता भवन्ति येषां संति पाणा पुढो सिया (७१-२६) अस्माकं यावज्जीवमनाकुट्टिः । (२१-१५) वीरभोग्या वसुन्धरा । (२६-१९ ) दण्डभयाच सर्वा प्रजा बिभ्यति । (२६-१९) पणया वीरा महावीहिं । ४३-२४) वीरेहिं एवं अभिभूय दि (५३-१४) जे पमन्ते गुणट्टीप । (५३-२७) साधारणात्वनन्ताः । (५८-१६) सम्यग्ज्ञानपूर्विका हि क्रिया फलवती । (१२-६) जे गुणे से आवडे जे आपट्टे से गुणे । (६२-२२) ~69~ आरंभमाणा विजयं वयंति । ( ७८-१९ ) जे गुणे से मूलट्ठाणे । (९८-२३) जे मूलट्ठाणे से गुणे । (९८-२३) उत्तराध्ययनाचारांश्री गयो किं किलास्य हसितेन हास्यास्पदस्येति । आ लोकोक्तयः (१०६-२४) ग द्वा न लज्जते भवान् न पश्यति आत्मानं मो नावलोकयति शिरः पलितभस्मावगुण्डित मां दुहितृभूतामेवं गूहितुमिच्छसीति । (१०६-२६) खणं जाणाहि पंडिए । (१०९-१९ ) अरई आउट्टे से मेहावी । (१११-१८) मंदा मोहेण पाउडा । (११२-२७) मांसेन पुष्यते मांसम् (११५-६) इणमेव नायकसंति जे जणा धुवचारिणो । भा (१२१-१७) गः ८ ॥ ६१ ॥ QUASE= नत्थि कालस्स णागमो । ( १२१-१८) सच्चे पाणा पियाडया (१२१-१८) Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय लोकोक्तौ ॥ ६२ ॥ श्री आ ग मो श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तय: [आचारांग लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य सव्वेसिं जीवियं पिये । (१२१-१९ ) आयाणि च आयाय तंमि ठाणे न चिर (१२२-१) बित पप्पखेय तंमि ठाणंमि चिट्ठर । (१२२-१) आसंच छंदं च विगिंच धीरे ! (१२७-३) जेण सिया तेण तो सिया (१२७-३) थीभि लोए पञ्चहिए। (१२७-४) नाइवाइज कंवर्ण (१२८-१७) र सं थोवं दुं न सिंलप (१२८-१८) अदिस्समाणे कयधिकयेसु । (१३१-१५) ग्र दुहओ छेत्ता नियाइ । (१३३-१४ ) हे लाभुति न मजिजा (१३४-११) भा अलाभुत्ति न सोइजा । (१३४-१२) बहुपि लधुं न निहे (१३४-१२) कामा दुरतिकमा । (१३५-२३) ८ जीवियं दुष्पडिवूहगं । (२३५-२३) गः कामकामी खलु अयं पुरिसे (१३५-२३) धुणे कम्मसरीरगं । (१४३-११) वीरा संमतसिणो (१४३-१२) क्रियमाणं कृतम् । (२४४-७) जे अनंतदसी से अनंतारामे (२४५-७ ) केयं पुरिले कंच नए ? । (१४६-९) एस वीरे पसंसिए, जं बद्धे पडिमोय‍ । (१४६-१०) कामा न सेवियन्या (१५१-२२) सया मुणिणो जागरति । (१५१-२७) मूढे धम्मं नाभिजाण । (१५४-२७) आरंभ दुक्खमिति णचा (१५५-१६) माई पमाई पुण पर गर्भ (१५५-१७) जे पजबजाय सत्यस्स खेयण्णे से अस स्थस्त खेय (१५५-१८) अकम्मस्स वबहारो न बिजइ । (१५५-२० ) ~70~ उछल कम्मुणा उवाही जायद । ( १५५-२० ) संमती न करे पावे । (१५८-२७) संसिच्यमाणा पुणरिति गर्भ (१५९-१४) कामे गिद्धा निचय करंति । (१५९-१४) अलं बालस्स संगेण । (१५९-२३) आर्थकदेसी न करेइ पार्थ । (१६०-६) सयंमि धिरं कुव्वहा । (१६२-२२) अणणं चर माह । (१६३-१४) छिंदि सोय लहुभूयगामी । (१६४-७) आयगुते सया धीरे (१६६-२) से न डिजर न भिज्जर न उज्झर न हमर कंचणं सव्वलो (१६६-३) अवरेण पुचि म सरंति पगे। (१६७-३) हे का अरई के आणंदे ? | (१६८-६) इत्यपि अग्गहे चरे । (१६८-६) ।। ६२ ।। तुममेव तुम मितं । (१६८-७) आत्मैवात्मनोऽप्रमतो मित्रम् । (१६८-२४) ८ भा आ ग ग्र आचारांगस्य लोकोक्तयः Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तय: [आचारांग लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य ॐ जाणिजा उच्चालइये तं जानिज्ञा दूराइयं । १६९-४) श्री मेहावी मारं तरह (१६९-६) आगमीय आ सभ्य पमत्तस्स भयं । (१७२-३) लोकोक्तौ ग जे पगं नामे से बहुं नामे (१७२-३) मो जे बहुं नामे से एगं नामे (१७२४) नावकखति जीविये । (१७२-५) दिहिं निव्वेयं गच्छा । (१८०-११) नाणागमो मच्युमुहस्त अत्थि । ॥ ६३ ॥ (१८३-८) प्र दुरणुचरो मग्गो वीराणं अनियहगामीणं । (१९२-१५) भा जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्छे तस्स कुभो सिया (१९४-४) ग. मोहेण गर्भ मरणाह पर । ( १९९-१७) विइया मंदस्स वाल्या (२००-२१) दुष्करं च परगुणोत्कीर्त्तनम् । (२०२-१४) उप नो पमायण (२०४-१०) पत्ते बहिया पास । (२०८-५) अप्पमन्तो परिव्यय । ( २०८-५) जुद्धारिहं खलु दु । (२११-६) निव्विण्णचारी अरप पयासु (२११-१० एस से परमारामो जाओ लोगंमि वीओ (२१८-१) पुच्वं फासा पच्छा दंडा (२१८-४) न हंता नवि धायए । (२२५-११) तं पच पडिखार (२२६-३) नियाणओ ते न लभंति मुक्खं । (२३२-२५) बहुदुक्खा हु जन्तवो। (२३८-६) सत्ता कामेसु माणया । ( २३८-६) (ण) ओहं तरए जणगा जेण विप्पजढा । (२३९-१७) चिया सयं विद्युतियं । (२४२-२१) ~71~ नममाणा बेगे नीवियं विष्परिणामंति । स৩त्र के फ क क (२५१-१७) पुट्ठावेगे नियति जीवियस्सेव कारणा । (२५१-१७) आ निक्तंपि तेसिंदुनिफ्तं भवद । ग बारा । ( २५१-१८) मो ओए समिदंसणे । (२५४-१६) अवहिलेसे परिव्वए । (२५७-४) संक्खाय पेसलं धम्मं दिट्टिमं परिनिब्बुडे । (२५७-५) सं सुत्तत्थजाणपणं समाहिमरणं तु कायव्यं । (२६२-७) जामा तिथि उदाहिया । (२६८-१६) जे जिब्या पावेहिं कम्मेहिं अणियाणा वियाहिया । २३८-१७) जीवियं नामिकंखिखा । (२८९-१८) मरणं नोषि पत्थर (२८९-१८) भा आचारां गस्य लोकोक्तयः ८ ॥ ६३ ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [आचारांग+सूत्रकृतांग+स्थानांग-लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य (९९-१८) आचारांग श्री BARF सूत्रकृतांगआ स्थनांगाना लोकोक्तयः टि दुहमोविन सजिजा । (२८९-१९) दीयते । (१७-२५) मज्झत्थो निजरापेही, समाहिमणुपालए। सब्वे अर्वतदुक्ला य, अभी सब्वे अहिं- बहुमायाओ इथिओ। (११२-८) आगमीय (२९०-१८) सिता । पयं खु नाणिणो साम्, जन्न आईसु विजाचरणं पभोक्त्रं । लोकोक्तौ | ठावए तस्थ अप्पगं । (२९५-१८) हिंसर किंचण । (५१-८) (२१९-२०) न मे देहे परीसहा । (२९४-१८) अत्तहि खु दुहेण लम्भइ । (६९-६) खजनाश्च न बान्धवा इति व्यवहारदर्श: ॥६४॥ मेउरेसु न रजिजा । (२९४-२०) गुरुणो छंदानुवत्तगा विरया । (७०-४) नात् । (२९४-११) इच्छा लोमं न सेविजा । (२९५-२०) पगस्स गती य आगती । (७५-१४) सरागा अपि वीतरागा इव चेष्टन्ते । दिव्यमाय न सहहे । (२९४-२१) सब्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण न (३८४-१८) सोवहिए हुलुप्पई बाले । (३०४-७) दुहेण पाणिणो हिंडंति भयाउला सदा। अथ स्थानांगलोकोक्तयः महाकडंन से सेवे । (३०५-१४) कण्टकशाखामर्दनम् । (१-१६) सबजगज्जीबहियं अरिहं ! तिथं पवत्ते तिविहेण वि पाण मा हणे । (७६-१९) नहि पुरुषार्थानुपयोगि भगवन्तो भाषन्ते । हि । (४२२-२६) दैवायत्ताः कार्यसिद्धयः । (८९-७) (८-१४) अलूसप सबसहे महामुणी । (४३०-८) किं परं मरणं सिया? । (९०-४)... काकदन्तपरीक्षा । (८-१९) जेणऽन्ने णो विरुज्झेजा, तेण ते ते समायरे। न कदाचिदनीरशं जगत् । (७८-१३) ___अथ सूत्रकृतांगलोकोक्तयः गुडमिश्नं दधि न गुडतया नापि दधितया " अज्ञो गुडमेव विषमिति मन्यते किं तस्य । सात सातेण विज्जती । (९६-२) व्यपदिश्यते । (१०७-८) द मारपितुकामेनापि बुद्धिमता गुर एव | जेहिं काले परिकतं न पच्छा परितप्पए।। तन्दुलान् वर्षति पर्जन्यः । (१२९-५) RAAAA DROFE ॥६४॥ ~72~ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रसवती गुणनिका (१९९५) श्री प्रत्युपेक्षणाकरणात् कालोऽपि प्रत्युपेक्ष आ श्रीआगमीय लोकोक्की ग मो ।। ६५ ।। जेति । (१९९७) खंतिसूरा अरहंता । तवसुरा अणगारा । दाणस्रे बेसमणे । जुडसुरे वासुदेवे । यथाऽसौ भटस्तं भयं सहते तस्मान्न भज्यत इति भावः । (२४७-२१) यथा शठं प्रति शठत्वं कुर्यात् । ( २५९-२) पूयहिज्जे लोए (३४२-१४) केलासभवणा एप, गुज्झगा आगया महिं । ( ३४२-२० ) भा नवश्रोतः परिश्रवा बौन्दी । (४५१-११) अथ समवायांगलोकोक्तयः पदार्थसार्थमभिदधता सक्रम एवासायभिधातव्य इति न्यायः । ( ५-१६) क्रियासारमेव ज्ञानम् (१०९-१२) दा र श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [स्थानांग+समवायांग+भगवती लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य ग्र V43434 J (२३७-१६) अथ भगवतीलोकोक्तयः वक्तुमुत्तिष्ठते इति ततस्तद्वयबच्छेदा योक्तमुत्थयेति । (१४-१०) जे कडे पावे कस्मे नत्थि तस्स अवेदयत्ता- मोक्खो । (६५- १ ) अहाकम्मं अहानिकरणं जहा जहा तं भगवया दिडुं तहा तहा तं विपरिण मिस्सतीति । (६५-७) निन्दा हि किल द्वेषसम्भवा (२००-१३) अव गर्हिते संयमो भवति । (१००-१५) जलेसाई दग्बाई परिवादसा काले करे तसेसु उवबजार (१८८-११) मृतशब्दापेक्षया परलोकीभूतशब्दवत् । (२२१-१२) नूनमनेन भवान्तरे किञ्चिदशुभं प्राणिघातादि वा सेवितमकल्ये या मुनिभ्यो सं येनायं भोग्यप्यल्पायुः संवृत्त इति । ~73~ (२२६-१०) जीवदयादि पूर्व कृतमनेन तेनायं दीर्घायुः संवृत्तः । (२२७-१०) आगमबलिया समणा निम्गंथा । (३८३-१६) के पुव्विं गमणवार के पच्छा गमण या ? (४६५-१५) पु िवा पच्छावा अवस्सविप्पजहियवं । (४६५-२६) महासमुद्दे वा भुयाहिं दुत्तरो। (४६६-२६) तिक्खं कमियवं । (४६६-२६) गरुयं लंबेयव्वं । (४६६ - २७ ) असिधारणं वतं चरियब्वं । (४६६-२७) धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो भा खलु परथं किंचिषि दुकरं । (४६७-१०) गः स्वामिना धीतमस्तकस्य हि दासत्वमपगच्छतीति लोकव्यवहारः । (५४३-२० ) मधुघटादिन्यायः । (६२३-१८) ४ स्था० सम० श्री भगवतीनां आ लोकोक्तयः ग मो ॥ ६५ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [भगवती+ज्ञाताधर्मकथा+औपपातिक-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य आगमीयलोकोक्ती ॥६६॥ MAA .. 4 घृतकुम्भादिन्यायः । (६२३-२१) पणिवस्यवच्छला गं देवाणुणिया! उत्त- अथ जीवाजीवाभिगमलोकोक्तयः खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो। ' मपुरिसा । (२१९-११) पञ्चालदेशनिवासिनः पुरुषाः पञ्चाला (६७१-१०) अपूईवयणा णं पिउत्था ! उत्तमपुरिसा सूक्ष्मो वायुः सूक्ष्मं मनः । (७६६-८) | इति । (१४४-२४) वासुदेवा बलदेवा चश्वट्टी । (२२५-१०) विकसितानि यानि शतपत्राणि पुण्डरी| न खोदनमात्रायामतिमात्र व्यञ्जनं जो ण णवियाए माउयाए दर्ड पाउकामे युक्तम् । (९५४-१९) काणि च द्वारादिषु प्रतिकृतित्वेन स्थिसे निग्गच्छउत्ति । (२३७-२०) तानि । (१७५-१९) अथ ज्ञाताधर्मकथालोकोक्तयः । अथ प्रश्नव्याकरणलोकोक्तयः तैलेन हि पक्कोऽपूपः प्रायः परिपूर्णवृत्तो | तव य मम य भिक्खामायणे भविस्सति ।। यथाजातपशुभूताः शिक्षारक्षणादिवर्जि- भवति न घृतपक इति तैलविशेषणम् । (१८५-२५) । तबलीवादिसरशाः । (६४-५) (१७७-२७) भीयस्स खलु भो! पवजा सरणं अथौपपातिकलोकोक्तयः सवाटशब्दो युग्मवाची यथा साधुसबाट उर्फट्ठियस्स सहेसगमणं, छुहियस्स अनं, | कपोतस्य हि पाषाणलवानपि जठराग्नि इत्यत्र । (१८१-२२) तिलियस्त पाणं, आउरस्स मेसजे, रयतीति किल श्रुतिः । (१६-६) तोरणेषु हि शोभाथै तारका निवध्यन्ते माइयस्स रहस्सं, अभिजुत्तस्स पञ्चय- सिंहस्य हि मैथुनानिवृत्तस्यात्याकर्षणात् | इति लोकेऽपि प्रतीतमिति । (१९९-४) करणं, अद्धाणपरिस्संतस्स वाहणगमणं, कदाचिन्मेहनं जुट्यति पवं ये कचिदप यत्रागल्य मनुष्या आत्मानमन्दोलयन्ति तरिउकामस्स पवहणं, किश्वं परं अभि- राधे राजपुरुषेस्रोटितमेहनाः क्रियन्ते ते ते अन्दोलका इति लोके प्रसिद्धाः । ओजितुकामस्स सहायकिश्च । (१९१-६) सिंहपुच्छितका व्यपदिश्यन्त इति ।। (२००-६) मारामुके विव काए । (२०२-७) (८७-२१) | जालकानि यानि भवनभित्तिषु लोके भग ज्ञाता० प्रश्न औप० मजीवाजीवा भिगमानां लोकोक्तयः %ERSEEEEM 4 ॥६६ SAMANE 152 ~74~ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [औपपातिक+प्रज्ञापना-लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य नीवाजीवा श्री भिगमप्र श्रीआगमीयलोकोक्ती ज्ञापनयोलोकोक्तयः ॥६७॥ #FREEFEEG प्रतीतानि । (२०९-१७) इति । (७१-३) धृत्या चातीव बलवती, पुरुषोऽपि च तुल्येष्वपि सर्वशब्दो रष्टो यथाऽनेन सर्व जालकानि तानि च भवनभित्तिषु लोके कश्चित्तुच्छप्रकृतिरूपो लभ्यते स्तोकायापीतं घृतमिति । (२४५-१६) प्रतीतानि । (९९-१२) मपि चापदि क्लीबतां भजते, नपुंसकोऽपि यथा सुराष्ट्रेभ्यो संक्रान्तो मगधदेश यत्र सुषिरं तत्र व्यन्तराः । (१९८-१९) कश्चिन्मन्दमोहानलो दृढसत्त्वश्च । . मागध इति । (२६१-२३) लोके व्यवहारः-सकषायोऽयं कषायोदय (२५१-२६) यथा तर्जन्या संस्पृष्टा ज्येष्ठाऽङ्गलिज्येष्ठे- वानित्यर्थः । (१३५-१८) कश्चित् कञ्चन त्वरयन् दिवसे वर्तमान बेति । (२६१-२३) हे साधो ! प्रतिक्रमणं कुरु स्थण्डिलानि एव बदति उत्तिष्ठ रात्रियतिति, रात्री कपोतस्य हि जाठराग्निः पाषाणलवानपि प्रत्युपेक्षस्वेति । (२५८-१६) वा वर्तमानायामुत्तिष्ठोद्गतः सूर्य इति ।। (२५९-८) जरयतीति श्रुतिः । (२७७-२०) यथा अमुका ब्राह्मणी साध्वी शुभ नक्षत्र प्रथमपौरुष्यामेव वर्तमानायां कश्चित् यथा पञ्चालदेशनिवासिनः पञ्चालाः । मधेल्यमुकमनं श्रुतस्कन्धं च पठेत्यादि। कञ्चन त्वरयन् एवं वदति चल मध्याही. (२५१-१८) (३८६-१६) पुरुषः स्वभावाद् गम्भीराशयो भवति न खलु पश्यति सूक्ष्मान रूपविशेषान् भूतमिति । (२५९-१०) महत्यामपि चापदिन क्लीवतां भजत गिरिदेहाते गलति भाजन अनुदरा कन्या मन्दलोचनः । (४६६-३८) स्थूलदर्शनमपि हिताय मध्यस्थानाम् । इत्यादि । (२५१-२३) अलोमिका एडका । (२५८-६). नपुंसका स्वभावात् क्लीयो भवति, प्रबल- अहो मे निष्कारणः कोपो नैव (कोऽपि) विरुपं भाषते न च किश्चिद्विनाशयति । अथ प्रज्ञापनालोकोक्तयः मोहानलग्पालाकलापज्वलितश्च ।। (२५१-२४) (२९०-२१) | ६ यथा 'पश्चालदेशनिवासिनः पश्चाला । समाऽपि काचिद् गम्भीराशया भवति । तथाविधमुहर्त्तवशाद्गुणदोषविचारणा FFERREE ६७॥ ~75~ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [प्रज्ञापना+जंबूद्वीप-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य न प्रज्ञापना श्री जंबुद्धपिया आ लोकोक्तयः | शून्यः परवशीभूय कोपं कुरुते (२९१-२३) | सम्मुखीकृत' इत्यर्थः । (१०५-२४) किञ्चिद्रष्ट्र न परिभावित सम्यगिति अथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिलोकोक्तयः आगमीय- श्री व्यवहारेदर्शनात् । (३११-७) चन्द्राकर्षकमृगेन्द्रानुयायिनः शृगाललोकोक्तौ गतो देवदत्तः पत्तनं गतः, तथा वचन- स्ये व । (२-२३) मात्रेणाप्यसौ गतः कोपमिति । (३२८-९) लोहशालाविकीर्णानां लोहसारकणानां ॥६८॥ भिन्नस्य हि वर्णप्रकर्षो भवति (३६३-८) चुम्बकाश्मप्रयोगेणव । (२-२५) महीयांसो हि परमकरुणापरीतत्वात् अ- कण्टकशाखामर्दनः । (३-५) विशेषेण सर्वेषामनुग्रहाय प्रवर्तन्ते । । लौकिकी वागपि अमुकेन ग्रहेण नक्षत्रण (४२५-२४) पुनस्तमनुधावतीति न्यायः । (४२९-१३) या इत्थमित्थं गच्छता विनाशितः काल इति । (६-१०) श्रूयते च जातिस्मरणादिना विज्ञाय पूर्वदेहमतिमोहात् (केचित् ) सुरनदी प्रत्य मुण्डितशिरसो दिनशुद्धिपर्यालोचनम् । (१२-११) स्थिशकलानि नयन्तीति । (४४२-१) न धन्यकरणेऽन्यस्य निवृत्तियुक्तिमती । मनुष्येषु सर्वभावसम्भवात् । (४५१-२६) (१२-१६) क्षत्रिया एवं मन्यते परविषयापहारो गजगात्रभिन्नभिन्नदेशसंस्पर्शने बहुविधऽस्माकं न्यायो 'वीरभोग्या वसुन्धरा' विवादमुखरजात्यन्धवृन्दवत् । (१२-२१) इति न्यायात् । (४५६-१२) नाद्याप्येतस्य समयो वर्त्तते । (१३-२१) तथा च लोके वक्तारः 'आवजितोऽयं मया, लोकेऽपि वक्तारो भवन्ति 'यदिय' जन्य FEEN यात्रा महर्दिकजनैराकीर्णेति (१०२-१४) चरणमालिकासंस्थानविशेषकृतं पादाभरणं लोके पागडांइति प्रसिद्धम्। कपोतस्य हि जाठराग्निः पाषाणलवानपि जरयतीति लौकिकश्रुतिः । (११७-१४) सर्व भाजनस्थं जल पीतम् । (२२५-२६) लौकिकैरुक्तं ब्रह्मणास्टमिदमण्डकं तत इयं जगतः प्रसूतिरित्येवं सर्वत्र प्रवादोऽभूत्ततोऽपि च ब्रह्माण्डपुराणं नामशाखमभूदिति प्रसङ्गाद्वोध्यमिति । तोरणेषु हिशोभार्थ तारिका निवध्यन्त इति प्रतीतं लोकेऽपि । (२९२-१८) सिंहावलोकनन्यायः । (३८३-१), तर्जन्या संसृष्टा ज्येष्ठाझलिज्येष्ठेवेति । (४२५-१०) प्रकाशतमसोः सहावस्थायित्वविरोधः । (४५७-११) P भAAAA भाग॥६८ FEVER ॐ ~76~ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [जंबूदद्वीप+निशीथ-लोकोक्तय:] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री श्री आगमीयलोकोक्ती ॥६९॥ F-AAAAAAAAAA नहि सती जनप्रतीति वयमपलपामः। । जो जिग्गहसमत्थो न भवति तस्स किं । भणिता । (३२५-२-१३) जंबू (४५९-१७) कहिपण( २६६-१-२) समलस्स य कओ धम्मो । (३४३-२-१) | श्री निशीथयो। अथ निशीथचूर्णिलोकोक्तयः जो वहति सो तणं चरति (२६७-१-२) | जिणसासणं पवण्णेहिं मरणस्स न | आ लोकोक्तयः प्रथमखंडेः साधुं दृष्ट्वा ध्रुवा सिद्धिः (२७३-१-९) मेयव्वं । (३४७-१-४) तवस्स मूलं धिती । (२७-५-२) जइ तुम्मे सव्वं लोग पव्वावेह किं करेमो एस भट्ठपडिपणो हतो मया । (२७५-२-३) (३४९-२-४) तुमं किं जाणासि कृवमंडुक्को। (३४-२-१) नडपढिपण वा किं तस्स णाणेण । सरणागया णो पहरिजंति । (३५०-२-५) शस्त्रमहणाश्च संक्लिष्टतरं चित्तं । (२८२-२-२) (१०४-२-१२) द्वितीयखंडे साधुता षा वणवासो । (१०८-२-७) कूवमंडुके दक्खिणावहो पहाणो । जिससणिधिसंचया समणत्ति (५१-१-१३) (२९५-१-२) रायरक्खियाय तवोहणा वणवासिणो । अणुवसंताणकउसंजमो को वा सज्झाओ अगीयत्थो चउरंग णासेइ । (५४-१-८) (१७४-२-१०) (२९६-१-१०) अहो दुदिट्ठधम्मा परतत्तिवाहिणो। क्रोधप्रहरणा ऋषयः (१७६-१-१२) रोषणो य गुरुसीसपाडिच्छयाणं दुरहिदीहो राइहत्थो (१७७-१-२) गमो (२९९-१-५) परं पभायकाले दधिकूर सुणगावि खाइउं अहिरण्णलोयणिया समणा(१७८-१-१३) किं मज्झ घरं सुसाणकुडी (३२४-१-१२) णेच्छिहिति । (८४-१-१२) लुखदिटुंतभाविता । (२०२-१-८) एगो दंडो दो जमदूआ चउरोणीहारी। कामी पस अजिइंदिओत्ति (८८-२-१२)| आतुररष्टांतसामर्थ्यात् । (२०२-२-१) ६९॥ उविक्खितो वाही दुच्छेजो । (९०-१-२) (३२४-२-६) जहा राया तहा पया (२४४-१-४) वेजसत्थो य जहवि भावा ते इच्छा । दलभो पुत्तजम्मो । (१३-२-११) FFEMBERFEVE ~77~ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय लोकोक्तौ ॥ ७० ॥ $ आ ग मो श्री रुट्ठो कालं ण पडिक्खति ति (९७-१-१०) आत्मन: क्रियाचरितेन गुरोः क्रियाचरितं शापयति । (९७-२-७) जो मनोगत भावं जाणाति तस्स लोगो आउट्टति । ( ९९-१-११) विणपण व बहुफलं दाणं (१०३-१-५) बारवदवणिया थावच्चासुताहरणं कहियं । (१०४-२-९) सगेसु य घतं दातव्यं । (१०५-१-९) समत्थस्स किं दिजति । (११६-२-१०) जाणे भावे मूढो भवति । (१३५-२-६) मूढस्स व दंसणचरणा ण भवेति । (१३५-२-६) गः आदीप पडिसेहियाए सव्वं पडिसेहियं । (१३५-२-१३) रजं विलुचसारं । (१३६-२-१२) भा श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तय: [ निशीथ+बृहत्कल्प-लोकोक्तयः] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य प्र अपणो जहिच्छा पुण्णेहिं वलति । (९४-१-१३) लोटतरे जे धम्मा ते अणुधम्मा । (१४४-२-९) संसग्गीतो बहूदोसा अदुट्ठसंसग्गीतो य गुणा । (१६०-२-१२ ) वह महिलियाणं कृतकभाषा भवति पुत पतिपित्ति । (१७०-२-२ ) सभावेण च इत्थी अल्पसत्वा भवति । (१७२-२-१) तृतीयखंडे:रिसओ कोवपहरणा । ( ६-१-६) पते धम्मकंयुगपविट्ठा उगलेस्सा लोग मुसंति | (१४-१-३) रायकर भरेहिं भग्गाणं समणकारो बोटव्यो ति । (१४-१-४) अहो णिरणुकंपा मगंतस्स वि ण देति । (१९-२-६) साधुपदोसे पियमा संसारो। (२४-१-६) इत्थीओ सत्येण जेवण्याओ। (३२-१-४) ~78~ पातो सवाफरिसिति । (४७-२-६) सीहावलोयणेण भणति । (५४-२-२ ) सल्लो न सिज्झति । (९१-१-९) उद्धरियो य सिझर (९१-१-२) णिग्भओ घाहं बंधति । (१३३-१-१०) निरासो अंगे मुयति मरति य । 1 _(१३३-१-१०) निशीथड़श्री हत्कल्पयोआ लोकोक्तयः 55xho ग अथ बृहत्कल्पलोकोक्तयः प्रथमखंडे: दाभरो य विलुतो नगरद्दारे अधारितो (११५-१-२) ठोउत्तरया धम्मा (१६६-१-२) अणुगुरुणो धम्मा (१६६-१-८) नत्थि अनिदाणओ होइ उन्भवो तेण भा परिहर निदाण । (१७४-१-२) यतश्च दोषाः समुत्पद्यन्ते तत् प्रेक्षावतां नोपादातुमुचितम् (१७५-२-१४) गः ॥ ७० ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री- श्री आगमीय आ लोकोक्तौ ग 11 02 11 उपभोगफलाः शालयः । (२०१-२-१९) सूत्रं पुनरर्थकरणफलम् । (२०१-१-९) न खलु सद्विवेकसुधाधाराधौतचेतसः सन्तः कदाचनापि खगुण विकत्थने प्रवृत्तिमातन्वते मिथ्याभिमानाख्यप्रबलतमस्ति मोरस्कृतसंज्ञानळोचनप्रसराणामितरजन्तूनामेव तत्र प्रवृत्तिसम्भवात् । (२०४-२-११) र मुखे महाभागा विजापुरिस्सा न सं भाति ॥ १२५५ ॥ ( २०५-१-९) दा प्र तब्बिहजणे य निउणे विजापुरिसा वि भावति । (२०५-१-१३) इय दिव्यंति गुणड्डा मुक्खेसु हसिजमाभाणावि ॥ १२५८ ॥ (२०५-२-२ ) गः प्रणिपातपर्यवसितप्रकोपा हि भवन्ति ८ महात्मानः । (२०९-२-३) परिणामसुन्दरं तदा पातकटुकमप्युपादे यम् (२०९-२-१२) श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [बृहत्कल्प- लोकोक्तयः | मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य 136436 न च बहुगुणपरित्यागेन स्वल्पगुणोपादानं विदुषां कर्तुमुचितम् । (२११-१-६) कुसला सुपट्टियारंभा । (२११-१-१२) तं तु न विजाइ सज्जं धिरमंतो न साहेद (२१९-२-११) वालाय लोकाः पराभवनीयतया दर्शनात् ( २३२-२-१२) नातिबलवन्तो न चातिदुर्बलाः साधवः । (२४०-१-५) पकरात्रमपि हि यस्य गेहे स्थीयते तमनापृच्छ गच्छतां भवत्यौचित्यपरिहाणिः । (२४०-२-१४) जोगंमि चट्टमाणे अमुगं बेलं गमिस्सामो (२४२-१-५) लोके हि यो यस्याश्रयदानादिना उपकारी स ततः freeयवलोकनमधुसम्भाषणादिकां महतीं प्रतिपत्तिमर्हति । (२४५-१-१३) ~79~ सवि हु ते जिणाणार । (२५०-२-६) 2 बृहत्क सावेक्खो जेण गच्छोउ । (२५०-२-६), श्री ल्पस्य यतीनां न कल्पते गृहिणः सपनादि क आ लोकोक्तयः भवतश्च मुघा कुर्वतो बहुफलं । अहिरण्यकाः भ्रमणाः (३००-२-६) न वर्त्तते शिष्टानां यतिभ्यो हिरण्यादि दातु (३००-२-७) (२९७-२५) जो चरई सो तणं वह । ( ३०९-२-८ ) निष्फायगनिफन्ना दोनिवि होंति महिडीया । (३१६-२-४) सीसोच्चिय सिक्तो आयरिओ होइनतो (३१६-२-९) गच्छो उ भवे महडीओ (३१६-२-५) रयणाय उ गच्छो (३१७-१-१०) द्वितीयखंडे: रीढा संपत्तीबि न खमा संदेहियंमि अर्थमि (५-१-७) ॥ ७१ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय छोकोक्ती ॥ ७२ ॥ नायकम पुण अस्थे जा व विवती स निदोसा । ( ५-१-७) चूयफलदोसद्दिसी चूयच्छायपि बजेर । ' ( ५-२-१०) आ पासगवि विवकखे चरर सपसं ग अवेतो (६-१-७) मो भोजिकामिचादिषु शरीरमात्रभिन्नेषु न दा किमपि गोपनीयम् । (७-१-७) निरगंधं नवि वाय (११-२-१४) छापड व पभायं न विसक्का (११-२-१४) वालाच वृद्धाश्च अजंगमाचेति लोकेऽपि तावदेतेऽनुकम्पनीयाः । (२२-२-५ ) दुग्धासे वीरवती गावी पुरुसह कुटुंबभरभाणट्टा मोतुं फलदं च रुक् को मंदगः फलफले पोसे। (२३-१-३) बहुसंगहिया भजा होइ घिरा इंदलट्ठीव । (३७-२-५) 1. $ प्र श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [बृहत्कल्प- लोकोक्तयः | मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य EVEX सेणा वह य सोभर बलवर गुत्ता सहजावि। (३७-२-९) ऋषयो मन्युप्रहरणाः (४६-१-२) खट्टामहो (वृद्धायें पूवतिभाखाओ (वृद्धार्थे)। ५९-१-८ साधुमप्रावृतं वा गृहस्था आदर्श दृष्ट इत्यमंगलं मन्यते (६०-१-१३) वंदामि उप्पल अकालपरिसडिय पेहुणकला | धम्मं किहणुन काहिर कण्णा जस्सेतिया विद्धा । (६१-१-३) गोसे थिय अदाए पेच्छंताणं सुहं करतो (६१-१-१०) अश्रदधतः कलह उपजायते (६६-२-१२) अवच्छलते य दंसणे हाणी (७३-२-६) अकसा खु चरितं कसायसहिओ न संजओ होइ } (७३-२-८) सीधरसमो उ आयरिओ (७६-२-६) ~80~ अकसायं निव्वाणं (७६-२-१०) दत्त्वा दानमनीश्वरः । (८६-२-१५) कडगा य बहु महिलियाणं । ( ८८-१-९) ण हु अखरीरो भवद्द धम्मो (१०३-१-१३) पाणियसद्देण उपाहणाउ णाविन्भलो मुह । ( १३९-१-८) ग पंच य सखीड धमस्स । ( १४४-९-१२) मो अलं विरोहेण अपंडिएहिं (१४९-१-१५) या किं सतसस्स करे बुद्धी-वसुंधरेय जह वीरभोजा । (१५०-१-१७) कजे सचेण होयव्यं । (२१६२-१-३) एते धर्मकंचुकाः प्रविष्टा लोकं मुष्णन्ति एवमप्रीति चतुर्गुरवः । (१६५-१-७) सउणीव एक्सप णे । (२६५-१-५) अम्हे ठितेलकश्चिय अहपचतं वहह गः तुम्मे । (१६६-१-३) जो जग्गति सो सया धणो । श्री आ बृहत्क ल्पस्य लोकोक्तयः भा ॥ ७२ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय लोकोक्तयः [बृहत्कल्प- लोकोक्तयः | मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि आदि आगम-संबंधी - साहित्य (१६७-२-४) नालस्सेण समं सुखं न विजा सह श्रीनिदया न बेरगं ममतेणं नारंमेण दयाआगमीय आलुया । (१६७-२-१२) लोकोक्तौ ग नाणुखोया साह । (१७६-१-४) मो को दाणि हंसेण किज्ज कागे । 11 112 11 (१७९-२-८) न सुत्तमत्थं अतिरिच जाति (१९७-१-१) अत्थो जहा गच्छति पजवेसु सुतंऽपि अस्थाणुचरं पमाणं । (१९७-१-५) तरिव किं विसमदोसं । ( १९८-१-१५) णय बंधइ दिट्टि दिट्ठीं । (२१४-२-१५) कायच्यो पुरिसकारो समादिसंघाणडाय (२१६-१-६) वलसfरसो चैव दोष परिणामो । (२३४-१-१५) लक्खणमिच्छति गिट्टी (२३५-२-९) समणस्सवि पंचगं । (२६७-१-२) अकारणा नरिथह कज्जे सिद्धी । तृतीयखंडे: पूति पूइयं इत्थियाओ पापण ताओ लडुसत्ता (६-१-७) अप्पेण बहुं इच्छइ । (१९-१) विसुद्धआलंबणो समणो । (२९-१) दम्मति दारुणाविद्दु दंडेण जहावराहेण । (२२-१९) 1 दीहो हु रायहस्थो (३३-२-१) दत्त्वा दानमनीश्वरः । (३५-१-२) सुणमाणावि न सुणीमो सझायाणनिथमाउता (५९-२-७) सायचं सोऊण वि नहु लम्भा इक्विट जाणो । (५९-२-७) अतवो न होइ जोगो । ( १०५-२-२ ) ~81~ वृहत्क श्री ल्पस्य आ लोकोक्तयः ग विविकविखंभरसो हि कामः । णिस्संचया उ समणा (११५-२-३ ) भरिओ लोगो अवायाणं (११६-२-१३) कज्जं सज्जं तु साहए मतिमं । (११७-१-४) विसकुंभा ते महािणा (१२३-१-१३) मो नेव य संका विसे किरिया । ( १२३-२-३ ) दुक्ख खु विमुचितं गुरुणो (१३३-१-१३) चरितटपणा प्रतिसेवमानेन चारित्रं तदे स्थापितम् । (१३९-२-२) लज्ञामयश्च पुरुषस्त्रियोरलश्कारः । 1 दा भा (१६७-२-१५) हे भुंजामु ताथ भोप दीहो कालो तवगुणाणं । (१७२-१-१) स्त्रीणां च लज्जा विभूषणा । (१९६-२-११) घृतेन वर्धते मेधा (२०९-२ ) जिला ववता सभा । (२०९-२) ।। ७३ ।। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 ॥ ७४ ॥ श्री grant कलिना कलिः । (२१८-२-२ ) मरणपयसानो जीवलोकः । (२३१-१-८) आगमीय श्री तपोधना अहिरण्यवर्णाः (२४४-२-१५) लोकोक्की अनियाणयं निष्याणं 회의 외화 आ गं मो 4. श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तयः [बृहत्कल्प+व्यवहार मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता आगमीय सूक्तावलि - आदि आगम- संबंधी- साहित्य Ev | आकितिमतो हि नियमा सेसा हि हति लीओ। (२८१-१-५) जायं पितिवसा नारी दत्ता नारी पतिव्यसा । विहवा पुत्तवसा नारी नत्थि वसा ॥ (३०४-१-४) जायंपिय रक्ती मातपिया सासुदेवरा दिष्णं । पितिभावपुत्तविहवं गुरु गणिणी य एव अपि ॥ (३०४-१-७) एगाणिया अपुरिसा सकवार्ड घर परं तु ( आगामी सूक्तावलि १ सुभाषित २ संग्रहश्लोक ३ लोकोक्तयः ४ ) } (२४८-२-१०) अनियाणया सेया अथ sreerrorataयः तृतीयोदेश के:मोक्षायैव तत्ववेदिनां प्रवृत्तेः (२७९-२-८) 卐 卐 नो पविसे (३०४-१-१०) लोके वहुभिरकृत्ये सेवितेऽयं न्याय: शतमध्यं सहस्रमदण्डयं । (३११-१-१०) भवसय सहस्वलद्धं जिणवणं भावभो अतस्स । जस्स न जाये दुक्खं तस्स दुक्ख परे दुहिते ॥ (३१४-१-११) वृपसागारिकं नीरसमपरो वृषभश्चर्षजयति । (३१६-२-१२) इत्यागमीय लोकोपः ~ 82~ 解 मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुनः संपादितः “आगम-सूक्तावलि-आदि" परिसमाप्ताः बृह० श्री व्यवहारयो लोकोक्तयः आ ग भा ॥ ७४ ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च श्री आगमसूक्तावल्यादि (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) / मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “आगम-सूक्तावलि-आदि” नाम्ना परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' ~83~