Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 36
________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जाताधर्मकथासूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य श्री आगमीय ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्कानि सूक्तावली ॥३१॥ तथा-हीणगुणो बिहु होउं सुहगुरुजोग्गाजणिय संवेगो। सब्णवि कीरत सहिज सपि पडिकलं ॥ (१७२) पुण्णसरुवो जाया विवहमाणो ससहरोष्य ॥ (१७१)/५ मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्ताधि पाणिणो विगुणा। ४ जहदायद्दवतरुवणमेवं साहू जहेव दीविच्चा। फरिहोदगं व गणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ ॥ (१७७) वाया तह समणाइय सपक्खवयणा दुस हाई ॥ ६ तिरियाणं बारित्तं निवारियं अह य तो पुणो सेसिं । जह सामुद्दयवाया तहऽषणतिस्थाइकडयवयणाई। सुबह बहुयाणपि हु महव्ययारोहणं समय ॥ कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥ न महब्वयसम्भाववि चरणपरिणामसम्भवो तेसि । जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। न बहुगुणाणंपि जओ .बलसंभूइपरिणामो॥ (१८३) जहदीवबाउजोगे बह इड्डी ईसि य अणिट्ठी॥ ७ संपन्नगुणोबि जओ सुसाहुसंसग्गिय जिभो पाये। तह साहम्मियवयणाण सहमाणाऽऽराहणा भवे बहुया। पाचा गुणपरिहाणी दहरजीवो प्य मणियारो॥ इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥ तित्थयरवंदणथं चलिओ भायेण पायए सगं । जह जलहिबाउजोगे थेविट्टी बहुयरा यऽणिड्डी य ॥ जह ददुरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥ (१८४) तह परपक्वक्त्रमणे. आराहणमीसि बहु-इयरं ॥ ८ जाय न दुक्ख पत्ता माणभंसं च पाणिणो पायं। जह उभयवाउविरहे सव्वा तरुसंपया बिणट्ठति ॥ ताब न धर्म गेण्हति भावओ तेयलीसुडम ॥ (१९२) अनिमिसोभयमच्छररुवे विराहणा तह य॥ ९ चंपा इव मणुयगती धणो व्व भयवं जिणो दपकरसो। जह उभयवाउजोगे सव्वसमिट्टी वणस्स संजाया ॥ अहिछत्तानयरिसमं इह निव्याण मुणेयव्यं ।। तह उभयवयणसहणे सिवमग्गाराहणा बुत्ता ॥ घोसणया इय तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्छ । ता पुनसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो॥ चरगाइणोव्व इत्थं सिवसुहकामा जिया वहवे ॥ । ॥३१॥ ~36~

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