Book Title: Aagamiy Suktaavali Aadi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सक्तावलि ज्ञाताधर्मकथासक्तानि। श्री आगमीय सूक्तावली ॥३२॥ ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्तानि नंदिफलाइ व्व इहं सिवपहपडिवण्णगाण विसया उ। । तह धम्मपरिम्भा अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥ तभक्खणाओं मरणं जह तह विसरहिं संसारो॥ पावेति कम्मनरबरबसया संसारवाहयालीए । तब्वजणेण जह इट्ठपुरगमो विसयबज्जणेण तहा। आसप्पमइएहि व नेरइयाइहिं दुक्खाई॥ (२३४) परमानंदनिबंधणसिषपुरगमणं मुणेयव्यं ॥ (१९५)| १३ जह सो चिलाइपुत्तो सुंसुमगिरो अकजपडियहो । १० सुबहुंपि तवकिले सो नियाणदोसेण दृसिओ संतो। घणपारदो पत्तो महाडवि बसणसयकलियं ॥ न सिवाय दोवतीए जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥ (२२७) तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियाओ। ११ अमणुन्नमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । कम्मवसेणं पायद भवाडवीप महादुक्खं ॥ जह कडुयतुंबदाणं नाग सिरिभबंमि दोवइए ॥ (२२७) धणसेट्टीदिय गुरुणो पुत्ता इब साहयो भयो अडवी । १२ जह सो कालियदीयो अणुवमसोक्खो तहेव जाधम्मो। सुयमंसमियाहारो रायगिह इह सिवं नेयं ॥ जह आसा तह साह वणियव्यऽणुकूलका रिजणा। जह अडविनयरनित्थरणपावणत्थं तपहि सुयमंस। जह सद्दाइअगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा । भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाएँ आहारं ॥ तह बिसपस अगिद्धा यज्झति न कम्मणा साह॥ भवलंघणसिवपावणहेउं भुजंति ण उण गेहीए। जह सच्छदविहारो आसाणं तहय इह घरमुणीर्ण । वण्णबलरुवहेउं च भावियप्पा महासत्ता ॥ (२४२) जरमरणाई विवजिय संपत्ताऽऽर्णदनिव्वाणं ॥ १४ वाससहरसंपि जई काऊणं संजमं सुबिउलंपि । जह सहाइसु गिद्धा बद्धा आसा तहेव विसयरया । अंते किलिटुभावो न विसुज्झइ कंडरीउ व्व ॥ पावति कम्मबंध परमासुहकारणं घोरं ॥ अप्पेणवि कालेणं कह जहागाहयसीलसामग्णा। जह से कालियदीवा णीया अन्नत्य दुहगण पत्ता । । साहिति निययकजं पुंडरीयमहारिसिव्व जहा ॥ (२४६) ॥३२॥ मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य ~37~

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83