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आचार्य हेमचन्द्र-रचित
सूत्रों पर आधारित प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण
(भाग-2)
संपादन डॉ. कमलचन्द सोगाणी
लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन
সান্তু ভীত্রী জীবী जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
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आचार्य हेमचन्द्र-रचित
सूत्रों पर आधारित प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण
(भाग-2)
संपादन डॉ. कमलचन्द सोगाणी जैनविद्या संस्थान-अपभ्रंश साहित्य अकादमी
डा.
निदेशक
लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन
सहायक निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
पाणु जीवोजाबा जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
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प्रकाशक
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अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी श्री महावीरजी - 322 220 (राजस्थान) दूरभाष - 07469-224323 प्राप्ति-स्थान 1. साहित्य विक्रय केन्द्र, श्री महावीरजी . 2. साहित्य विक्रय केन्द्र दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी' सवाई रामसिंह रोड, जयपुर - 302 004.
दूरभाष - 0141-2385247 प्रथम संस्करणः जनवरी, 2013 सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
मूल्य -400 रुपये ISBN : 978-81-926468-0-0 . पृष्ठ संयोजन फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स जौहरी बाजार, जयपुर - 302 003 दूरभाष - 0141-2562288
मुद्रक जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. एम.आई. रोड, जयपुर - 302 001
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अनुक्रमणिका
पृष्ठ संख्या
क्र.सं. विषय
प्रकाशकीय प्रारम्भिक
45
51
क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय कृदन्तों के प्रत्यय भाववाच्य एवं कर्मवाच्य के प्रत्यय स्वार्थिक प्रत्यय प्रेरणार्थक प्रत्यय सम्पादक की कलम से
विविध प्राकृत क्रियाएँ 8. अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया-रूप
: अनियमित कृदन्त
53
प्र
63
85
89
• 92
114
123
परिशिष्ट-1 क्रिया-रूप व कालबोधक प्रत्यय परिशिष्ट-2 आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों के सन्दर्भ
परिशिष्ट-3 सम्मतिः अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण ... डॉ. आनन्द मंगल वाजपेयी
अभिमतः अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण . डॉ. प्रेमसुमन जैन · परिशिष्ट-4 प्राकृत-व्याकरण संबंधी उपयोगी सूचनाएँ
अपभ्रंश-व्याकरण संबंधी उपयोगी सूचनाएँ सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
.
125
126
127
128
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आचार्य हेमचन्द्र - रचित सूत्रों पर आधारित
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण (भाग - 2)
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प्रकाशकीय
— 'प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)' अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा 'प्राकृत' में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया। भाषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है। उसका जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है।
प्राकृत भाषा भारतीय आर्य परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है। वैदिक काल से ही यह लोकभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। इसका प्रकाशित, अप्रकाशित विपुल साहित्य इसकी गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है। भारतीय लोकजीवन के बहुआयामी पक्ष दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएं प्राकृत साहित्य में निहित है। तीर्थंकर महावीर के युग में और उसके बाद विभिन्न प्राकृतों का विकास हुआ, वे हैं- महाराष्ट्री प्राकृत(प्राकृत), शौरसेनी प्राकृत, अर्धमागधी प्राकृत, मागधी प्राकृत और पैशाची प्राकृत। इनमें से तीन प्रकार की प्राकृतों का नाम साहित्य के क्षेत्र में गौरव के साथ लिया जाता हैं, वे हैं- महाराष्ट्री प्राकृत, शौरसेनी प्राकृत . तथा अर्धमागधी प्राकृत। महावीर की दार्शनिक आध्यात्मिक परम्परा शौरसेनी व अर्धमागधी प्राकृत में रचित है और काव्यों की भाषा सामान्यतः महाराष्ट्री प्राकृत कही गई है। यह प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश भाषा के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी।
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उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्राकृत भाषा को सीखना-समझना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी बात को ध्यान में रखकर अपभ्रंश-प्राकृत साहित्य के अध्ययनअध्यापन एवं प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना सन् 1988 में की गई। अकादमी का प्रयास है- अपभ्रंश-प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन को सशक्त करके उसके सही रूप को सामने रखना जिससे प्राचीन साहित्यिक-निधि के साथ-साथ आधुनिक आर्यभाषाओं के स्वभाव और उनकी सम्भावनाएँ भी स्पष्ट हो सकें।
वर्तमान में प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए पत्राचार के माध्यम से प्राकृत सर्टिफिकेट व प्राकृत डिप्लामो पाठ्यक्रम संचालित हैं, ये दोनों पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं।
किसी भी भाषा को सीखने, जानने, समझने के लिए उसके रचनात्मक स्वरूप/संरचना को जानना आवश्यक है। प्राकृत के अध्ययन के लिये भी उसकी रचना-प्रक्रिया एवं व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृत भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर ही प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्राकृत गद्यपद्य सौरभ (भाग-1)', 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग-1)', 'प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ (भाग-2)', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ (भाग-2)', 'प्राकृत-व्याकरण' 'प्राकृत अभ्यास उत्तर पुस्तक' 'प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक', 'प्राकृतहिन्दी-व्याकरण (भाग-1)' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। 'प्राकृतहिन्दी-व्याकरण (भाग-2)' इसी क्रम का प्रकाशन है।
__ 'प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)' प्राकृत भाषा को सीखने-समझने की दिशा में प्रथम व अनूठा प्रयास है। इसका प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सहज, सरल, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इस
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पुस्तक में प्राकृत क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय, कृदन्त आदि को हिन्दी भाषा में सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक विश्वविद्यालयों के हिन्दी, संस्कृत, इतिहास, राजस्थानी आदि विभागों के प्राकृत अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा है।
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि संस्कृत-ज्ञान के अभाव में भी अध्ययनार्थी 'प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2) के माध्यम से प्राकृत भाषा का समुचित ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
श्रीमती शकुन्तला जैन एम.फिल. (संस्कृत) ने बड़े परिश्रम से 'प्राकृतहिन्दी-व्याकरण (भाग-2)' को तैयार किया है जिससे अध्ययनार्थी प्राकृत भाषा को सीखने में अनवरत उत्साह बनाये रख सकेंगे। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं।
पुस्तक-प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती शकुन्तला जैन के आभारी हैं जिन्होंने 'प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)' लिखकर प्राकृत के पठन-पाठन को सुगम बनाने का प्रयास किया है।
- पृष्ठ संयोजन के लिए फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स धन्यवादाह है।
जस्टिस नगेन्द्र कुमार जैन प्रकाशचन्द्र जैन डॉ. कमलचन्द सोगाणी .. अध्यक्ष :
मंत्री
संयोजक प्रबन्धकारिणी कमेटी
जैनविद्या संस्थान समिति दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
जयपुर वीर निर्वाण संवत्-2539
15.01.2013
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प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में निम्नलिखित सामान्य जानकारी आवश्यक है
प्राकृत की वर्णमाला
स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ
व्यंजन- क, ख, ग, घ, ङः।
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण।
त, थ, द, ध, न।
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व।
स, ह।
प्रारम्भिक
यहाँ ध्यान देने योग्य है कि असंयुक्त अवस्था में ङ और ञ का प्रयोग प्राकृत भाषा में नहीं पाया जाता है। हेमचन्द्र कृत प्राकृत व्याकरण में ङ और ञ का संयुक्त प्रयोग उपलब्ध है। न का भी संयुक्त और असंयुक्त अवस्था में प्रयोग देखा जाता है। ङ, ञ, न के स्थान पर संयुक्त अवस्था में अनुस्वार भी विकल्प से होता है। शब्द के अंत में स्वररहित व्यंजन नहीं होते हैं।
वचन
पुरुष
प्राकृत भाषा में दो ही वचन होते हैं- एकवचन और बहुवचन ।
लिंग
प्राकृत भाषा में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग |
प्राकृत भाषा में तीन पुरुष होते हैं- उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष ।
(ix)
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विभक्ति
प्राकृत भाषा में संज्ञा में आठ विभक्तियाँ होती हैं और सर्वनाम में सात विभक्तियाँ होती हैं। सर्वनाम में संबोधन विभक्ति नहीं होती है।
प्रत्यय-चिह्न
--
विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया
को
चतुर्थी
ल + vio
पंचमी षष्ठी सप्तमी सम्बोधन
से, (के द्वारा) के लिए से (पृथक् अर्थ में) . का, के, की में, पर
क्रिया
प्राकृत भाषा में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं- सकर्मक और अकर्मक।
काल
प्राकृत भाषा में चार प्रकार के काल वर्णित हैं1. वर्तमानकाल 2. भूतकाल 3. भविष्यत्काल 4. विधि एवं आज्ञा
शब्द
प्राकृत भाषा में छह प्रकार के शब्द पाए जाते हैं1. अकारान्त
2. आकारान्त 3. इकारान्त
4. ईकारान्त 5. उकारान्त
6. ऊकारान्त
(x)
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1.
क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय - वर्तमानकाल
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मि' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(हस+मि) = हसमि = (मैं) हँसता हूँ/हँसती हूँ। (व.उ.पु.एक.) (ठा+मि) = ठामि = (मैं) ठहरता हूँ/ठहरती हूँ। (व.उ.पु.एक.) (हो+मि) = होमि = (मैं) होता हूँ/होती हूँ। (व.उ.पु.एक.) कहीं-कहीं पर अकारान्त क्रियाओं के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मि' प्रत्यय में स्थित 'इ' का लोप हो जाता है और 'म' का अनुस्वार हो जाता है। जैसे- . (हस+मि) = (हस+) = हसं = (मैं) हँसता हूँ/हँसती हूँ। (व.उ.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मि' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'आ' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मि) = हसामि = (मैं) हँसता हूँ/हँसती हूँ। (व.उ.पु.एक.) (हस+मि) = हसेमि = (मैं) हँसता हूँ/हँसती हूँ। (व.उ.पु.एक.) अन्य रूप - हसमि, हसं
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2.
.... उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो, मु और म' प्रत्यय क्रियाओं
में लगते हैं। जैसे- . . (हस+मो, मु, म) = हसमो, हसमु, हसम = (हम दोनों/हम सब)
हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(1)
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(ठा+मो, मु, म) = ठामो, ठामु, ठाम = (हम दोनों/हम सब)
ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.उ.पु.बहु.) । (हो+मो, मु, म) =होमो, होमु, होम =(हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं।
(व.उ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो, मु और म' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'आ'. 'ई' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मो) = हसामो, हसिमो, हसेमो = (हम दोनों/हम सब) . .
हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.). (हस+मु) = हसामु, हसिमु, हसेमु = (हम दोनों/हम सब) . .
हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (हस+म) = हसाम, हसिम, हसेम = (हम दोनों/हम सब)
__ हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) अन्य रूप - हसमो, हसमु, हसम ----------------------------------------------
मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 3. प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं के . वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष
एकवचन में 'सि' और 'से' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+सि, से) = हससि, हससे = (तुम) हँसते हो/हँसती हो।
(व.म.पु.एक.) प्राकृत भाषा में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'सि' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है 'से' प्रत्यय नहीं लगता है। जैसे(ठा+सि)= ठासि = (तुम) ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.एक.) (हो+सि) = होसि = (तुम) होते हो/होती हो। (व.म.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'सि' प्रत्यय
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' भी हो जाता
(हस+सि) = हसेसि = (तुम) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.एक.) अन्य रूप - हससि, हससे
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मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 4. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'इत्था और ह' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+इत्था, ह) =हसित्था, हसह =(तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो।
(व.म.पु.बहु.) (ठा+इत्था, ह) = ठाइत्था, ठाह =(तुम दोनों/तुम सब)ठहरते हो/ठहरती हो।
(व.म.पु.बहु.) (हो+इत्था, ह) = होइत्था, होह = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो।
(व.म.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'इत्था' और 'ह' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' हो जाता है। जैसे- . . (हस+इत्था,ह) हसेइत्था, हसेह =(तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो।
(व.म.पु.बहु.). अन्य रूप - हसित्था, हसह
(ख) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
. वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ध' प्रत्यय क्रियाओं में लगता ... है। जैसे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(हस+ध) = हसध = (तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो।
(व.म.पु.बहु.) (ठा+ध) = ठाध =(तुम दोनों/तुम सब)ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.बहु.) (हो+ध) = होध = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो। (व.म.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ध' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+ध) = हसेध = (तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो।(व.म.पुं.बहु.) अन्य रूप - हसध
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. अन्य पुरुष एकवचन 3/1 5. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं के वर्तमानकाल के अन्य पुरुष
एकवचन में 'इ और ए' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। . . . (हस+इ, ए) = हसइ, हसए = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.) प्राकृत भाषा में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में 'ई' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(ठा+इ) = ठाइ = (वह) ठहरता है/ठहरती है। (व.अ.पु.एक.) (हो+इ) = होइ = (वह) होता है/होती है। (व.अ.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में 'ई' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+इ)= हसेइ = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.)
अन्य रूप - हसइ, हसए (ख) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं के वर्तमानकाल के अन्य पुरुष
एकवचन में 'दि और दें' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। (हस+दि, दे) = हसदि, हसदे = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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शौरसेनी प्राकृत में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में 'दि' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(ठा+दि) = ठादि = (वह) ठहरता है/ठहरती है। (व.अ.पु.एक.) (हो+दि) = होदि = (वह) होता है/होती है। (व.अ.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में 'दि' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+दि)= हसेदि = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.) अन्य रूप - हसदि, हसदे.
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अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+न्ति, न्ते, इरे) = हसन्ति, हसन्ते, हसिरे = (वे दोनों/वे सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (ठा+न्ति, न्ते, इरे)=ठान्ति-ठन्ति, ठान्ते-ठन्ते, ठाइरे =
- (वे दोनों/वे सब) ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)। (हो+न्ति, न्ते, झे) = होन्ति, होन्ते, होइरे = (वे दोनों/वे सब) होते हैं| होती हैं। (व.अ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+न्ति) = हसेन्ति = (वे दोनों/वे सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) . अन्य रूप- हसन्ति, हसन्ते, हसिरे
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प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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प्राकृत भाषा में अस अकारान्त क्रिया के वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'सि' प्रत्यय भी होता है। जैसेसि = (तुम) होते हो/होती हो। (व.म.पु.एक.)
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प्राकृत भाषा में अस अकारान्त क्रिया के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'म्हि' प्रत्यय भी होता है। जैसेम्हि = (मैं) होता हूँ/होती हूँ। (व.उ.पु.एक.) अन्य रूप - अत्थि
प्राकृत भाषा में अस अकारान्त क्रिया के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'म्हो और म्ह' प्रत्यय भी होते हैं। जैसेम्हो = (हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) म्ह = (हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) , अन्य रूप - अत्थि
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10.
प्राकृत भाषा में अस अकारान्त क्रिया के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में ‘अत्थि' होता है। जैसे
अस (होना) (वर्तमानकाल) पुरुष
एकवचन . बहुवचन उत्तम अत्थि
अत्थि मध्यम अत्थि
अत्थि अन्य अत्थि
अत्थि
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भूतकाल उत्तम पुरुष 1/1, मध्यम पुरुष 2/1, अन्य पुरुष 3/1 (एकवचन) उत्तम पुरुष 1/2, मध्यम पुरुष 2/2, अन्य पुरुष 3/2 (बहुवचन)
11.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं में भूतकाल के उत्तम पुरुष एकवचन
व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'ईअ' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (मैं) हँसा/हँसी। (भू.उ.पु.एक.)
उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 (हस+ईअ) = हसीअ = (हम दोनों/हम सब) हँसे/हँसी। (भू.उ.पु.बहु.)
मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (तुम) हँसे/हँसी। (भू.म.पु.एक.)
मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 . . (हस+ईअ) = हसीअ = (तुम दोनों/तुम सब) हँसे/हँसी। (भू.म.पु.बहु.)
अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (वह) हँसा/हँसी। (भू.अ.पु.एक.) .. अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 (हस+ईअ) = हसीअ = (वे दोनों/वे सब) हँसे/हँसी। (भू.अ.पु.बहु.)
(ख) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भूतकाल के उत्तम पुरुष
एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'इत्था' और 'इंसु' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं।
जैसे
. उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिंसु = (मैं) हँसा/हँसी। (भू.उ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिंसु = (हम दोनों/हम सब) हँसे/हँसी।
(भू.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिंसु = (तुम) हँसे/हँसी। (भू.म.पु.एक.)
___मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 . (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिंसु = (तुम दोनों/तुम सब) हँसे/हँसी।
. (भू.म.पु.बहु.) अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिसु = (वह) हँसा/हँसी। (भू.अ.पु.एक.)
अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 (हस+इत्था, इंसु) = हसित्था, हसिंसु = (वे दोनों/वे सब) हँसे/हँसी।
- (भू.अ.पु.बहु.)
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उत्तम पुरुष 1/1, मध्यम पुरुष 2/1, अन्य पुरुष 3/1 (एकवचन)
उत्तम पुरुष 1/2, मध्यम पुरुष 2/2, अन्य पुरुष 3/2 (बहुवचन) 12.(क) प्राकृत भाषा में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में भूतकाल के
उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'सी', 'ही', 'हीअ' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 (ठा+सी, ही, हीअ)=ठासी, ठाही, ठाहीअ= (मैं) ठहरा/ठहरी। (भू.उ.पु.एक.) (हो+सी, ही, हीअ)= होसी, होही, होहीअ = (मैं) हुआ/हुई। (भू.उ.पु.एक.)
उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2_ (ठा+सी, ही, हीअ) = ठासी, ठाही, ठाहीअ = (हम दोनों/हम सब)
ठहरे/ठहरीं। (भू.उ.पु.बहु.) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(हो+सी, ही, हीअ) = होसी, होही, होहीअ = (हम दोनों/हम सब)
हुए/हुईं। (भू.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (ठा+सी, ही, हीअ) =ठासी, ठाही, ठाहीअ =(तुम)ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.एक.) (हो+सी, ही, हीअ)= होसी, होही, होहीअ = (तुम) हुए/हुई। (भू.म.पु.एक.)
मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 (ठा+सी, ही, हीअ) = ठासी, ठाही, ठाहीअ = (तुम दोनों/तुम सब)
ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.बहु.) (हो+सी, ही, हीअ)= होसी, होही, होहीअ = (तुम दोनों/तुम सब) हुए/
हुईं। (भू.म.पु.बहु.) अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (ठा+सी, ही, हीअ)=ठासी,ठाही, ठाहीअ=(वह) ठहरा/ठहरी। (भू.अ.पु.एक.) (हो+सी, ही, हीअ)=होसी, होही, होहीअ=(वह) हुआ/हुई।(भू.अ.पु.एक)
__ अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 (ठा+सी, ही, हीअ) = ठासी, ठाही, ठाहीअ = (वे दोनों/वे सब) ठहरे/
ठहरीं। (भू.अ.पु.बहु.) (हो+सी, ही, हीअ)= होसी, होही, होहीअ = (वे दोनों/वे सब) हुए/
हुईं। (भू.अ.पु.बहु.)
(ख) अर्धमागधी प्राकृत में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में भूतकाल
के उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, ___अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'इत्था' और 'इंसु' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 ... (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु = (मैं) ठहरा/ठहरी। (भू.उ.पु.एक.)
.. (हो+इत्था, इंसु) = होइत्था, होइंसु = (मैं) हुआ/हुई। (भू.उ.पु.एक.) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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उत्तम पुरुष बहवचन 1/2 (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु = (हम दोनों/हम सब) ठहरे/ठहरीं।
___ (भू.उ.पु.बहु.) (हो+इत्था, इंसु) = होइत्था, होइंसु = (हम दोनों/हम सबं) हुए/हुईं।
(भू.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु =(तुम) ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.एक.) (हो+इत्था, इंसु) = होइत्था, होइंसु = (तुम) हुए/हुई। (भू.म.पु.एक.)
मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरे/ठहरी।
_ (भू.म.पु.बहु.) (हो+इत्था, इंसु) = होइत्था, होइंसु = (तुम दोनों/तुम सब) हुए/हुईं।
(भू.म.पु.बहु.) ___अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु =(वह) ठहरा/ठहरी। (भू.अ.पु.एक.) (हो+इत्था, इंसु) = होइत्था, होइंसु = (वह) हुआ/हुई। (भू.अ.पु.एक)
अन्य पुरुष बह्वचन 3/2 (ठा+इत्था, इंसु) = ठाइत्था, ठाइंसु = (वे दोनों/वे सब) ठहरे/ठहरीं।
(भू.अ.पु.बहु.) (हो+इत्था, इंसु)= होइत्था, होइंसु = (वे दोनों/वे सब) हुए/हुईं। (भू.अ.पु.बहु.) (ग) इनके अतिरिक्त अर्धमागधी प्राकृत में कुछ अन्य प्रयोग भी मिलते हैं। जैसे
होत्था = हुआ, आहंसु = कहा उत्तम पुरुष एकवचन अकरिस्सं = किया अन्य पुरुष एकवचन अकासी = किया
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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13.
प्राकृत भाषा में अस (होना) अकारान्त क्रिया के भूतकाल के उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'आसि और अहेसी' होते हैं। जैसे
अस (भूतकाल) एकवचन
बहुवचन आसि, अहेसी आसि, अहेसी आसि, अहेसी आसि, अहेसी आसि, अहेसी आसि, अहेसी
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
भविष्यत्काल
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 14. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'मि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हि+मि). = हसिहिमि, हसेहिमि = (मैं) हँसूंगा/ हँसूंगी। (भवि.उ.पु.एक.) (ठा+हि+मि) = ठाहिमि = (मैं) ठहरूँगा/ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (हो+हि+मि) = होहिमि = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.)
(ख) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से ‘स्सा और हा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं, इनको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'मि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स्सा+मि) = हसिस्सामि, हसेस्सामि= (मैं) हँसूंगा/हँसूंगी। (भवि.उ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(ठा+स्सा+मि) = ठास्सामि→ठस्सामि = (मैं) ठहरूंगा/ठहरूँगी।
___(भवि.उ.पु.एक.) (हो+स्सा+मि)= होस्सामि = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (हस+हा+मि) = हसिहामि, हसेहामि = (मैं) हँसूंगा/हँसूंगी। (भवि.उ.पु.एक.) (ठा+हा+मि) = ठाहामि = (मैं) ठहरूँगा/ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (हो+हा+मि)= होहामि = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.) . अन्य रूप - हसिहिमि, हसेहिमि
ठाहिमि
होहिमि (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
(ग) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से ‘स्सं' प्रत्यय भी क्रियाओं में जोड़ा जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई'
और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स्स) = हसिस्सं, हसेस्सं = (मैं) हँसूंगा/हँलूंगी। (भवि.उ.पु.एक.) (ठा+स्स) = ठास्सं-ठस्सं = (मैं) ठहरूँगा/ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (हो+स्स) = होस्सं = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - हसिहिमि, हसेहिमि, हसिस्सामि, हसेस्सामि, हसिहामि,
हसेहामि ठाहिमि, ठास्सामि→ ठस्सामि, ठाहामि
होहिमि, होस्सामि, होहामि (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
(घ) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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जाता है और इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'मि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' हो जाता है। जैसे(हस+स्सि+मि) = हसिस्सिमि = (मैं) हँसूंगा/हँसूंगी। (भवि.उ.पु.एक.) (ठा+स्सि+मि)= ठास्सिमि-ठस्सिमि = (मैं) ठहरूंगा/ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (हो+स्सि+मि) = होस्सिमि = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
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उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 15. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा
जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के . 'मो, मु और म' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के
अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हि+मो, मु, म) = हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु, हसेहिमु, हसिहिम, हसेहिम = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (ठा+हि+मो, मु, म) = ठाहिमो, ठाहिमु, ठाहिम =
(हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (हो+हि+मो, मु, म) = होहिमो, होहिमु, होहिम =
(हम दोनों/हम सब) होंगे/होंगी। (भवि.उ.पु.बहु.)
- (ख) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'स्सा और हा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं, इनको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम
पुरुष बहुवचन के 'मो, मु और म' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और
'अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसेप्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(हस+स्सा+मो, मु, म) = हसिस्सामो, हसेस्सामो, हसिस्सामु, हसेस्सामु, हसिस्साम, हसेस्साम = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (ठा+स्सा+मो, मु, म) = ठास्सामो'- ठस्सामो, ठास्सामु-ठस्सामु, ठास्साम-ठस्साम = (हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (हो+स्सा+मो, मु, म) = होस्सामो, होस्सामु, होस्साम =
(हम दोनों/हम सब) होंगे/होंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (हस+हा+मो, मु, म) = हसिहामो, हसेहामो, हसिहामु, हसेहामु, हसिहाम, हसेहाम = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) . (ठा+हा+मो, मु, म) = ठाहामो, ठाहामु, ठाहाम =
(हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) (हो+हा+मो, मु, म) = होहामो, होहामु, होहाम =
(हम दोनों/हम सब) होंगे/होंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) अन्य रूप - हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु, हसेहिमु, हसिहिम,
हसेहिम ठाहिमो, ठाहिमु, ठाहिम
होहिमो, होहिमु, होहिम (ग) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हिस्सा और हित्था' प्रत्यय भी क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हिस्सा, हित्था) = हसिहिस्सा, हसिहित्था, हसेहिस्सा, हसेहित्था
___ = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भवि.उ.पु.बहु.) साहित्य में ठास्सामो आदि का प्रयोग मिलता है लेकिन प्राकृत व्याकरण के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है। इसलिए ठास्सामो-ठस्सामो किया गया है।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(ठा + हिस्सा, हित्था) = ठाहिस्सा, ठाहित्था
( हो + हिस्सा, हित्था) = होहिस्सा, होहित्था =
( हम दोनों / हम सब ) होंगे / होंगी । (भवि. उ. पु. बहु.) अन्य रूप - हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु, हसेहिमु, हसिहिम, हसेहिम, हसिस्सामो, हसेस्सामो, हसिस्सामु, हसेस्सामु, हसिस्साम, हसेस्साम, हसिहामो, हसेहामो, हसिहामु, हसेहामु, हसिहाम, हसेहाम
ठाहिमो, ठाहिमु, ठाहिम,
ठास्सामो→ ठस्सामो, ठास्सामु ठस्सामु, ठास्साम→ठस्साम, ठाहामो, ठाहामु, ठाहाम
होहिमो, होहिमु, होहिम, होस्सामो, होस्सामु, होस्साम, होहामो, होहामु, होहाम
-
(हम दोनों / हम सब ) ठहरेंगे / ठहरेंगी। (भवि. उ. पु. बहु.)
(घ) शौरसेनी प्राकृत में अंकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'स्सि' प्रत्यय जोड़ा जाता है और इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के 'मो, मु 'और म' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे
*
(ठा+स्सि+मी, मु, म) = ठास्सिम ठस्सिम = ( हम
( हस+स्सि+मो, मु, म) = हसिस्सिमो, हसिस्सिमु, हसिस्सिम = (हम दोनों / हम सब ) हँसेंगे / हँसेंगी। (भवि. उ. पु. बहु.) ठास्सिमो ठस्सिमो, ठास्सिमु ठस्सिमु, दोनों / हम सब ) ठहरेंगे / ठहरेंगी। (भवि. उ. पु. बहु.) होस्सिमो, होस्सिमु, होस्सिम
( हो + स्सि+मो, मु, म) =
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
=
-
-
-
( हम दोनों / हम सब ) होंगे / होंगी । ( भवि. उ. पु. बहु.)
(प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर तो वह ह्रस्व हो जाता है) ।
-
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=
(15)
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मध्यम पुरुष एकवचन 2/1. 16.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष
एकवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के 'सि और से' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हि+सि, से) =हसिहिसि, हसिहिसे, हसेहिसि, हसेहिसे =
(तुम) हँसोगे /हँसोगी। (भविं.म.पु.एक.)
(ख) प्राकृत भाषा में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल
के मध्यम पुरुष एकवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन का 'सि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे(ठा+हि+सि) = ठाहिसि = (तुम) ठहरोगे /ठहरोगी। (भवि.म.पु.एक.) (हो+हि+सि) = होहिसि = (तुम) होओगे /होओगी। (भवि.म.पु.एक.)
(ग) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष
एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के 'सि और से' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे(हस+स्सि+सि, से) = हसिस्सिसि, हसिस्सिसे =
(तुम) हँसोगे/हँसोगी। (भवि.म.पु.एक.)
(घ) शौरसेनी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल
के मध्यम पुरुष एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन का 'सि' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। जैसे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(ठा+स्सि+सि) =ठास्सिसि→ ठस्सिसि = (तुम) ठहरोगे / ठहरोगी। (भवि.म.पु.एक.)
(हो+स्सि+सि)
होस्सिसि
(तुम) होओगे / होओगी। (भवि. म. पु. एक . )
=
(ङ) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के 'सि और से' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता जैसे
है।
( हस + स्स+सि, से) =हसिस्ससि, हसिस्ससे, हसेस्ससि, हसेस्ससे
(तुम) हँसोगे / हँसोगी। (भवि.म. पु. एक.) (च) अर्धमागधी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन का 'सि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे
(ठा+स्स+सि) = ठास्ससिठस्ससि = (तुम) ठहरोगे / ठहरोगी । (भवि.म.पु.एक.) (हो+स्स+सि) होस्ससि = (तुम) होओगे / होओगी। (भवि.म. पु. एक.)
( प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है) ।
=
=
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग - 2)
मध्यम पुरुष बहुवचन 2 / 2
17. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के 'ह और इत्था' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे
( हस + हि+ह, इत्था) = हसिहिह, हसेहिह, हसिहित्था, हसेहित्था = (तुम दोनों / तुम सब ) हँसोगे / हँसोगी । (भवि.मं. पु. बहु)
=
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(ख) प्राकृत भाषा में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल
के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के 'ह और इत्था ' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं। (ठा+हि+ह, इत्था) ठाहिह,
(हो+हि+ह, इत्था)
=
=
—
प्राकृत-हिन्दी
=
(ग) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन का 'ध' प्रत्यय विकल्प से. जोड़ दिया जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे(हस + स्सि+ध) हसिस्सिध (तुम दोनों / तुम सब ) हँसोगे / हँसोगी ।
(भवि.म. पु. बहु)
ठाहित्था
(तुम दोनों / तुम सब ) ठहरोगे / ठहरोगी । (भवि. म. पु. बहु . ) होहिह, होहित्था
(तुम दोनों / तुम सब ) होवोगे / होवोगी। (भवि.म. पु. बहु.)
अन्य रूप हसिस्सिह, हसिस्सिइत्था
- व्याकरण (भाग-2 -2)
=
(घ) शौरसेनी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन का 'ध' प्रत्यय विकल्प से जोड़ दिया जाता है।
(ठा + स्सि+ध) = ठास्सिध ठस्सिध = (तुम दोनों / तुम सब ) ठहरोगे / ठहरोगी । (भवि.म.पु.बहु.) (हो+स्सि+ध) = होस्सिध = (तुम दोनों / तुम सब ) होवोगे / होवोगी। (भवि.म.पु.बहु.) अन्य रूप ठास्सिह ठस्सिह, ठास्सिइत्था ठस्सिइत्था होस्सिह, होस्सिइत्था
=
-
=
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-
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(ङ) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष
बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के ‘ह और इत्था' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स्स+ह,इत्था)=हसिस्सह, हसिस्सइत्था, हसेस्सह, हसेस्सइत्था=
. (तुम दोनों/तुम सब) हँसोगे /हँसोगी। (भवि.म.पु.बहु.)
(च) अर्धमागधी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में ‘स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के 'ह और इत्था' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं। जैसे(ठा+स्स+ह,इत्था) = ठास्सह+ठस्सह, ठास्सइत्था-ठस्सइत्था =
. (तुम दोनों/तुम सब) ठहरोगे/ठहरोगी। (भवि.म.पु.बहु.) (हो+स्स+ह,इत्था) = होस्सह, होस्सइत्था =
(तुम दोनों/तुम सब) होओगे /होओगी। (भवि.म.पु.बहु.) (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
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अन्य पुरुष एकवचन 3/1 18.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष
एकवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'इ और ए' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता
है। जैसे___ (हस+हि+इ, ए) = हसिहिइ, हसेहिइ, हसिहिए, हसेहिए =
(वह) हँसेगा/हँसेगी। (भवि.अ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(ख) प्राकृत भाषा में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल
के अन्य पुरुष एकवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन का 'ई' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। (ठा+हि+इ) = ठाहिइ = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भवि.अ.पु.एक.) (हो+हि+इ) = होहिइ = (वह) होवेगा/होवेगी। (भवि.अ.पु.एक.)
(ग) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष
एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'दि और दें' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे(हस+स्सि+दि, दे) = हसिस्सिदि, हसिस्सिदे =(वह) हँसेगा/हँसेगी।
__ (भवि.अ.पु.एक.)
(घ) शौरसेनी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल
के अन्य पुरुष एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन का 'दि' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे(ठा+स्सि+दि) = ठास्सिदि--ठस्सिदि= (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भवि.अ.पु.एक.) (हो+स्सि+दि) = होस्सिदि = (वह) होवेगा/होवेगी। (भवि.अ.पु.एक.)
(ङ) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष
एकवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'इ और ए' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(20)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
( हस+स्स + इ, ए, दि, दे) = हसिस्सइ, हसिस्सए, हसेस्सइ, हसेस्सए, = ( वह) हँसेगा / हँसेगी । (भवि. अ. पु. एक . )
(च) अर्धमागधी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष एकवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन का 'इ' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे
(ठा+स्स+इ) = ठास्सइ → ठस्सइ = ( वह) ठहरेगा / ठहरेगी। (भवि.अ.पु. एक.) ( हो+स्स+इ) होस्सइ = ( वह ) होवेगा / होवेगी । (भवि.अ.पु. एक.)
(प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
=
अन्य पुरुष बहुवचन 3 / 2
19. (क) प्राकृत भाषा में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे
( हस + हि+न्ति, न्ते, इरे) = हसिहिन्ति, हसेहिन्ति, हसिहिन्ते, हसेहिन्ते, हसिहिइरे, हसेहिरे = (वे दोनों / वे सब ) हँसेंगे / हँसेंगी । (भवि. अ. पु. बहु . )
(ख) प्रांकृत भाषा में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय भी जोड़ दिये जाते हैं। जैसे
· (ठा+हि+न्ति, न्ते, इरे)
ठाहिन्ति, ठाहिन्ते, ठाहिरे या ठाहिरे
(वे दोनों / वे सब ) ठहरेंगे / ठहरेंगी। (भवि.अ. पु. बहु . )
(21)
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
=
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=
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________________
( हो + हि+न्ति, न्ते, इरे) = होहिन्ति, होहिन्ते, होहिइरे या होहिरे = (वे दोनों / वे सब ) होंगे / होंगी। (भवि.अ. पु. बहु.)
(ग) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे
( हस+स्सि+न्ति, न्ते, इरे)
(घ) शौरसेनी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'स्सि' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे
(ठा+स्सि+न्ति, न्ते, इरे ) = ठास्सिन्ति→ठस्सिन्ति, ठास्सिन्ते ठस्सिन्ते, ठास्सिइरेठस्सिइरे = (वे दोनों / वे सब ) ठहरेंगे / ठहरेंगी । (भवि. अ. पु. बहु . ) ( हो + स्सि+न्ति, न्ते, इरे) = होस्सिन्ति, होस्सिन्ते, होस्सिइरे = (वे दोनों / वे सब ) होंगे / होंगी। (भवि. अ. पु. बहु.)
प्राकृत-हिन्दी व्याकरण (भाग-2)
हसिस्सिन्ति; हसिस्सिन्ते, हसिस्सिइरे
=
= (वे दोनों / वे सब ) हँसेंगे / हँसेंगी। (भवि. अ. पु. बहु . )
-
=
(ङ) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए हो जाता है। जैसे
-
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(22)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
(हस+स्स+न्ति, न्ते, इरे) = हसिस्सन्ति, हसेस्सन्ति, हसिस्सन्ते, हसेस्सन्ते, हसिस्सइरे, हसेस्सइरे =
___ (वे दोनों/वे सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भवि.अ.पु.बहु.)
(च) अर्धमागधी प्राकृत में आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में
भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे(ठा+स्स+न्ति, न्ते, इरे) = ठास्सन्ति-ठस्सन्ति, ठास्सन्ते-ठस्सन्ते, ठास्सइरे--ठस्सइरे = (वे दोनों/वे सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भवि.अ.पु.बहु.) (हो+स्स+न्ति, न्ते, इरे) = होस्सन्ति, होस्सन्ते, होस्सइरे =
(वे दोनों/वे सब) होंगे/होंगी। (भवि.अ.पु.बहु.) (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
-----
कुछ क्रियाओं की भविष्यत्काल में विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्ति
20.
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 प्राकृत भाषा में आकारान्त 'का और दा' क्रिया में भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हे' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे- . (का+ह) = काहं = (मैं) करूंगा/करूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) (दा+ह) = दाहं = (मैं) दूंगा/दूंगी। (भवि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - काहिमि, दाहिमि
--
--
--
--
-
---
-
---
-
-
-
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
- (23) .
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________________
21.
22.
भविष्यत्काल
उत्तम पुरुष एकवचन 1 / 1
प्राकृत भाषा में भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में निम्न क्रियाओं में 'अनुस्वार' जोड़ा जाता है। जैसे
( सोच्छ + ) = सोच्छं (मैं) सुनूँगा । (भवि.उ. पु. एक.) (गच्छ++) = गच्छं (मैं) जाऊँगा । (भवि.उ. पु. एक.) (रोच्छ++) = रोच्छं (मैं) रोऊँगा । (भवि. उ. पु. एक.) (वेच्छ++) = वेच्छं (मैं) जानूँगा। (भवि. उ. पु. एक.) (दच्छ+') = दच्छं (मैं) देखूँगा । (भवि. उ.पु. एक.) (मोच्छ++) = मोच्छं (मैं) छोडूंगा। (भवि. उ.पु. एक.) (वोच्छ+ ) = वोच्छं (मैं) कहूँगा । (भवि. उ. पु. एक.) (छेच्छ+) = छेच्छं (मैं) छेदूँगा। (भवि. उ.पु. एक.) (भेच्छ+) = भेच्छं (मैं) भेदूँगा। (भवि.उ.पु.एक.) (भोच्छ++) = भोच्छं (मैं) खाऊँगा । (भवि. उ. पु. एक.)
उत्तम पुरुष एकवचन 1 / 1
प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'मि' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे( सोच्छ+मि) सोच्छिमि, सोच्छेमि = (मैं) सुनूँगा । । (भवि.उ. पु. एक.) अन्य रूप सोच्छिहिमि, सोच्छिस्सामि, सोच्छिहामि, सोच्छिस्सं,
-
सोच्छं
-
=
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण ( भाग - 2 )
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(24)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
23.
24.
25.
उत्तम पुरुष बहुवचन 1 / 2
प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ, गच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के 'मो, मु और म' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' या 'ए' कर दिया जाता है। जैसे
( सोच्छ+मो, मु, म) = सोच्छिमो, सोच्छेमो, सोच्छिम, सोच्छेमु, सोच्छिम, सोच्छेम = ( हम दोनों / हम सब ) सुनेंगे। (भवि. उ. पु. बहु . ) अन्य रूप - सोच्छिहिमो, सोच्छिहिमु, सोच्छिहिम सोच्छिस्सामो, सोच्छिस्सामु, सोच्छिस्साम सोच्छिहामो, सोच्छिहामु, सोच्छिहाम सोच्छि हिस्सा, सोच्छिहित्था
मध्यम पुरुष एकवचन 2/1
प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ, गच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के 'सि' और 'से' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे
-
( सोच्छ+सि, से) = सोच्छिसि, सोच्छेसि, सोच्छिसे, सोच्छेसे (तुम) सुनोगे । (भवि.म. पु. एक.) अन्य रूप - सोच्छिहिसि, सोच्छिस्ससि, सोच्छिहिसे, सोच्छिस्ससे
मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2
प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ, गच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
=
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(25)
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________________
के मध्यम पुरुष बहुवचन के 'ह, और इत्था' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' या 'ए' कर दिया जाता है। जैसे
(सोच्छ+ह, इत्था) = सोच्छिह, सोच्छेह, सोच्छित्था, सोच्छेइत्था
= (तुम दोनों/तुम सब) सुनोगे (भवि.म.पु.बहु.) अन्य रूप - सोच्छिहिह, सोच्छिहित्था, सोच्छिस्सह, .
सोच्छिस्सइत्था, .. . -----------------------------------------
अन्य पुरुष एकवचन 3/1 26. प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ, गच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के
अन्य पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'ई' और 'ए' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' या 'ए' कर दिया जाता है। जैसे
(सोच्छ+इ, ए) = सोच्छिइ, सोच्छेइ, सोच्छिए, सोच्छेए =
(वह) सुनेगा।। (भवि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - सोच्छिहिइ, सोच्छिस्सइ, सोच्छिहिए, सोच्छिस्सए
.
27.
अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 प्राकृत भाषा में उपर्युक्त सोच्छ, गच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय का लोप करके वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति , न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं, अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' या 'ए' कर दिया जाता है। जैसे(सोच्छ+न्ति, न्ते, इरे) = सोच्छिन्ति, सोच्छेन्ति, सोच्छन्ते, सोच्छिरे
___ = (वे दोनों/वे सब) सुनेंगे। (भवि.अ.पु.बहु.) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(26)
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अन्य रूप - सोच्छिहिन्ति, सोच्छिहिन्ते, सोच्छिहिइरे
सोच्छिस्सन्ति, सोच्छिस्सन्ते, सोच्छिस्सइरे
विधि एवं आज्ञा
उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 28.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मु' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'मु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मु) = हसमु, हसेमु = (मैं) हँसूं। (विधि.उ.पु. एक)
(ठा+मु) = ठाम = (मैं) ठहरूँ। (विधि.उ.पु.एक) .. (हो+मु) = होमु = (मैं) होऊँ। (विधि.उ.पु.एक)
(ख) अर्धमागधी प्राकृत में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं
के विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में 'एज्जा' और 'एज्जामि' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+एज्जा, एज्जामि) = हसेज्जा, हसेज्जामि = (मैं) हँसूं। (विधि.उ.पु.एक.) (ठा+एज्जा, एज्जामि)= ठाएज्जा, ठाएज्जामि = (मैं) ठहरू। (विधि.उ.पु.एक) (हों+एज्जा, एज्जामि) = होज्जा, होज्जामि = (मैं) होऊँ। (विधि.उ.पु.एक) कभी-कभी अकारान्त क्रियाओं के उत्तम पुरुष एकवचन में 'ए' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे- हस+ए = हसे (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(27) .
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________________
उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 29.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'मो' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मो)-हसमो, हसामो, हसेमो= (हम दोनों/हम सब) हँसें। (विधि.उ.पु.बहु) (ठा+मो) = ठामो = (हम दोनों/हम सब) ठहरें।. (विधि.उ.पु.बहु) (हो+मो) = होमो = (हम दोनों/हम सब) होवें। (विधि.उ.पु.बहु)
(ख) अर्धमागधी में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि ___ एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष बहुवचन में ‘एज्जाम' प्रत्यय क्रिया में लगता है।
जैसे
(हस+एज्जाम) = हसेज्जाम = (हम दोनों/हम सब) हँसें। (विधि.उ.पु.बहु.) (ठा+एज्जाम) = ठाएज्जाम = (हम दोनों/हम सब) ठहरें। (विधि.उ.पु.बहु) (हो+एज्जाम) = होज्जाम = (हम दोनों/हम सब) होवें। (विधि.उ.पु.बहु) (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)।
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
___ मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 30.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में 'सु' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'सु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+सु) = हससु, हसेसु = (तुम) हँसो। (विधि.म.पु.एक) (ठा+सु) = ठासु = (तुम) ठहरो। (विधि.म.पु.एक) (हो+सु) = होसु = (तुम) होवो। (विधि.म.पु.एक)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(28)
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(ख) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'हि' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हि) = हसहि, हसेहि = (तुम) हँसो। (विधि.म.पु.एक) (ठा+हि) = ठाहि = (तुम) ठहरो। (विधि.म.पु.एक) (हो+हि) = होहि = (तुम) होवो। (विधि.म.पु.एक) अन्य रूप - हससु, हसेसु
ठासु
होसु
। (ग) प्राकृत भाषा में अकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के मध्यम
पुरुष एकवचन में विकल्प से 'इज्जसु, इज्जहि, इज्जे और लोप (0)' प्रत्यय भी क्रियाओं में लगते हैं। 'इज्जसु, इज्जहि, इज्जे और लोप (0)' प्रत्यय लगने पर अ+इ = ए हो जाता है। जैसे(हस+इज्जसु, इज्जहि, इज्जे, 0) = हसेज्जसु, हसेज्जहि, हसेज्जे, हस .
= (तुम) हँसो। (विधि.म.पु.एक) अन्य रूप - हससु, हसेसु, हसहि, हसेहि
(घ) अर्धमागधी में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि
एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में 'एज्जा', 'एज्जासि' और 'एज्जाहि' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि, ए)= हसेज्जा, हसेज्जासि, हसेज्जाहि
= (तुम) हँसो। (विधि.म.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(ठा+एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि) = ठाएज्जा, ठाएज्जासि, ठाएज्जाहि
= (तुम) ठहरो। (विधि.म.पु.एक) (हो+एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि) = होज्जा, होज्जासि, होज्जाहि =
(तुम) होवो। (विधि.म.पु.एक) कभी-कभी अकारान्त क्रियाओं के मध्यम पुरुष एकवचन में 'ए' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है। जैसे- हस+ए = हसे (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)।
---------
मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 31.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ह' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'ह' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+ह) = हसह, हसेह = (तुम दोनों/तुम सब) हँसो। (विधि.म.पु.बहु) (ठा+ह) = ठाह = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरो। (विधि.म.पु.बहु) (हो+ह) = होह = (तुम दोनों/तुम सब) होवो। (विधि.म.पु.बहु)
(ख) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ध' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'ध' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+ध) = हसध, हसेध = (तुम दोनों/तुम सब) हँसो। (विधि.म.पु.बहु) (ठा+ध) = ठाध = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरो। (विधि.म.पु.बहु)
(हो+ध) = होध = (तुम दोनों/तुम सब) होवो। (विधि.म.पु.बहु) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(30)
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(ग) अर्धमागधी में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि
एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'एज्जाह' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(हस+एज्जाह) = हसेज्जाह = (तुम दोनों/तुम सब) हँसो। (विधि.म.पु.बहु.) (ठा+एज्जाह) = ठाएज्जाह = (तुम दोनों/तुम सब) हँसो। (विधि.म.पु.बहु.) (हो+एज्जाह) = होज्जाह = (तुम दोनों/तुम सब) हँसो। (विधि.म.पु.बहु.) (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)।
अन्य पुरुष एकवचन 3/1 32.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष एकवचन में 'उ' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'उ' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+उ) = हसउ, हसेउ = (वह) हँसे। (विधि.अ.पु.एक) (ठा+उ) = ठाउ = (वह) ठहरे। (विधि.अ.पु.एक) (हो+उ) = होउ = (वह) होवे। (विधि.अ.पु.एक)
- (ख) शौरसेनी प्राकृत में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष एकवचन में 'दु' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'दु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+दु) = हसदु, हसेदु = (वह) हँसे। (विधि.अ.पु.एक) (ठा+दु) = ठादु = (वह) ठहरे। (विधि.अ.पु.एक)
(हो+दु) = होदु = (वह) होवे। (विधि.अ.पु.एक) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(31) ..
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(ग) अर्धमागधी में अकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष
एकवचन में 'ए' और 'एज्जा' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(हस+ए, एज्जा) = हसे, हसेज्जा = (वह) हँसे। (विधि.अ.पु.एक.)
(घ) अर्धमागधी में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा
के अन्य पुरुष एकवचन में 'एज्जा' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(ठा+एज्जा) = ठाएज्जा = (वह) ठहरे। (विधि.अ.पु.एक) ... (हो+एज्जा) = होज्जा = (वह) होवे। (विधि.अ.पु.एक) : (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)।
-----
अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 33.(क) प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के
विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्तु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'न्तु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+न्तु) = हसन्तु, हसेन्तु = (वे दोनों/वे सब) हँसें। (विधि.अ.पु.बहु) (ठा+न्तु) = ठान्तु-ठन्तु = (वे दोनों/वे सब) ठहरें। (विधि.अ.पु.बहु) (हो+न्तु) = होन्तु = (वे दोनों/वे सब) होवें। (विधि.अ.पु.बहु)
(प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह हस्व हो जाता है)। (ख) अर्धमागधी में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि
एवं आज्ञा के अन्य पुरुष बहुवचन में 'एज्जा' प्रत्यय क्रिया में लगता है। जैसे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(32)
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(हस+एज्जा) = हसेज्जा = (वे दोनों/वे सब) हँसें। (विधि.अ.पु.बहु.) (ठा+एज्जा) = ठाएज्जा = (वे दोनों/वे सब) ठहरें। (विधि.अ.पु.बहु) (हो+एज्जा) = होज्जा = (वे दोनों/वे सब) होवें। (विधि.अ.पु.बहु) (प्राकृत के नियमानुसार ओकारान्त तथा एकारान्त आदि क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है)। .
34.
प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष व अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में विकल्प से 'ज्ज' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है। ‘ज्ज' प्रत्यय जोड़ने के बाद विकल्प से 'ई' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+ज्ज+इ) = हसेज्जइ = (मैं) हतूं। (विधि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - हसमु, हसेमु, हसेज्ज, हसेज्जा (ठा+ज्ज+इ) = ठाज्जइ-ठज्जइ = (मैं) ठहरूँ। (विधि.उ.पु.एक.) . : अन्य रूप - ठामु, ठज्ज, ठज्जा (हो+ज्ज+इ) = होज्जइ = (मैं) होऊँ। (विधि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होमु, होज्ज, होज्जा (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
पुरुष उत्तम 'मध्यम ... अन्य
अकारान्त क्रिया विधि एवं आज्ञा (हस) एकवचन
बहुवचन हसेज्जइ
हसेज्जइ हसेज्जइ
हसेज्जइ हसेज्जइ
हसेज्जइ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(33)
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________________
पुरुष
विधि एवं आज्ञा (ठा) . एकवचन
बहुवचन ठज्जइ
ठज्जइ ठज्ज
ठज्जइ
उत्तम
मध्यम
अन्य
ठज्जइ
ठज्जइ
पुरुष
__ विधि एवं आज्ञा (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम होज्जइ
होज्जइ मध्यम होज्जइ
होज्जइ अन्य होज्जइ
होज्जइ ----------------------------------
------ प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के, भविष्यत्काल के एवं विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष व अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में विकल्प से 'ज्ज और ज्जा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं। ‘ज्ज और ज्जा' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+ज्ज, ज्जा) = हसेज्ज, हसेज्जा = (मैं) हँसता हूँ। (व.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - हसमि, हसामि, हसेमि (हस+ज्ज, ज्जा) = हसेज्ज, हसेज्जा = (मैं) हतूंगा। (भवि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप – हसिहिमि, हसिस्सामि, हसिस्सिमि, हसिहामि, हसिस्सं (हस+ज्ज, ज्जा) = हसेज्ज, हसेज्जा = (मैं) हतूं। (विधि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - हसमु, हसेमु (ठा+ज्ज, ज्जा) = ठाज्ज-ठज्ज, ठाज्जा-ठज्जा = (मैं) ठहरता हूँ/
ठहरती हूँ (व.उ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(34)
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________________
अन्य रूप - ठामि (ठा+ज्ज, ज्जा) = ठज्ज, ठज्जा = (मैं) ठहरूंगा/ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - ठाहिमि, ठास्सामि, ठास्सिमि, ठाहामि, ठास्सं (ठा+ज्ज, ज्जा) = ठज्ज, ठज्जा = (मैं) ठहरूँ। (विधि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - ठामु (हो+ज्ज, ज्जा) = होज्ज, होज्जा = (मैं) होता हूँ/होती हूँ (व.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होमि (हो+ज्ज, ज्जा) = होज्ज, होज्जा = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होहिमि, होस्सामि, होस्सिमि, होहामि, होस्सं (हो+ज्ज, ज्जा) = होज्ज, होज्जा = (मैं) होऊँ। (विधि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होमु (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
पुरुष
अकारान्त क्रिया (हस)
वर्तमानकाल एकवचन
बहुवचन हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
उत्तम मध्यम अन्य
पुरुष .. उत्तम
मध्यम __ अन्य
भविष्यत्काल एकवचन
बहुवचन हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(35)
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________________
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
विधि एवं आज्ञा
एकवचन
हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा
एकवचन
ठज्ज,
ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
आकारान्त क्रिया (ठा)
वर्तमानकाल
एकवचन
ठज्ज,
ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज,
ठज्जा
बहुवचन
हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा
भविष्यत्काल
एकवचन
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज,
ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
बहुवच
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
विधि एवं आज्ञा
बहुवचन
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज,
ठज्जा
बहुवचन
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा
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(36)
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________________
36.
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
पुरुष
उत्तम.
मध्यम
अन्य
ओकारान्त क्रिया (हो)
वर्तमानकाल
एकवचन
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
भविष्यत्काल
एकवचन
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा.
बहुवचन
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
होज्ज,
होज्जा
एकवचन
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा
विधि एवं आज्ञा
बहुवचन
होज्ज, होज्जा होज्ज,
होज्जा
होज्ज, होज्जा
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण (भाग - 2)
प्राकृत भाषा में केवल आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल कें, भविष्यत्काल के एवं विधि एवं आज्ञा के प्रत्ययों के मध्य में विकल्प से उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष व अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'ज्ज और ज्जा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं।
बहुवचन
होज्ज, होज्जा होज्ज,
होज्जा
होज्ज, होज्जा
यहाँ आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के, भविष्यत्काल के एवं विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन के उदाहरण दिए जा रहे
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(37).
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________________
हैं इसी तरह उत्तम पुरुष बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन तथा अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन के रूप बना लेने चाहिए। जैसे
आकारान्त क्रिया (ठा) (क) (ठा+ज्ज, ज्जा+मि) =ठाज्जमि-ठज्जमि, ठाज्जामि-ठज्जामि =
____(मैं) ठहरता हूँ/ठहरती हूँ (व.उ.पु.एक.) अन्य रूप - ठामि (ख) (ठा+ज्ज, ज्जा+हि, स्सा, स्सि, हा+मि) = ठाजहिमि→ठज्जहिमि,
ठाज्जाहिमिठज्जाहिमि, ठाज्जस्सामि-ठज्जस्सामि, ठाज्जास्सामिठज्जास्सामि,ठाज्जस्सिमि→ठज्जस्सिमि, ठाज्जास्सिमि-ठज्जास्सिमि, ठाज्जहामि-ठज्जहामि, ठाज्जाहामि-ठज्जाहामि = (मैं) ठहरूँगा/
___ ठहरूँगी। (भवि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - ठाहिमि, ठस्सामि, ठस्सिमि, ठाहामि, ठस्सं (ग) (ठा+ज्ज, ज्जा+मु) = ठाज्जमुठज्जमु, ठाज्जामु-ठज्जामु
(मैं) ठहरूँ। (विधि.उ.पु.एक.) अन्य रूप - ठामु (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
ओकारान्त क्रिया (हो) (क) (हो+ज्ज, ज्जा+मि) होज्जमि, होज्जामि=(मैं) होता हूँ/होती हूँ। (व.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होमि (ख) (हो+ज्ज, ज्जा+हि, स्सा, स्सि, हा+मि) = होज्जहिमि, होज्जाहिमि,
होज्जस्सामि, होज्जास्सामि, होज्जस्सिमि, होज्जास्सिमि, होज्जहामि, होज्जाहामि = (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भवि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होहिमि, होस्सामि, होस्सिमि, होहामि, होस्सं (ग) (हो+ज्ज, ज्जा+मु) = होज्जमु, होज्जामु = (मैं) होऊँ। (विधि.उ.पु.एक.)
अन्य रूप - होमु प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(38)
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________________
पुरुष
ओकारान्त क्रिया (हो)
वर्तमानकाल एकवचन
बहुवचन उत्तम ___होज्जमि, होज्जामि होज्जमो, होज्जामो
होज्जमु, होज्जामु
होज्जम, होज्जाम मध्यम होज्जसि, होज्जासि होज्जइत्था/होज्जित्था
होज्जाइत्था
होज्जह, होज्जाह अन्य होज्जइ, होज्जाइ . होज्जन्ति, होज्जान्ति
होज्जन्ते, होज्जान्ते
होज्जइरे, होज्जाइरे
भविष्यत्काल पुरुष एकवचन
बहवचन उत्तम (i) होज्जहिमि, होज्जहिमो, होज्जाहिमो होज्जाहिमि होज्जहिमु, होज्जाहिम
होज्जहिम, होज्जाहिम (ii) होज्जस्सामि, होज्जस्सामो, होज्जास्सामो होज्जास्सामि
होज्जस्सामु, होज्जास्सामु
होज्जस्साम, होज्जास्साम (iii) होज्जस्सिमि, होज्जस्सिमो, होज्जास्सिमो होज्जास्सिमि होज्जस्सिमु, होज्जास्सिमु
होज्जस्सिम, होज्जास्सिम (iv) होज्जहामि, होज्जहामो, होज्जाहामो होज्जाहामि होज्जहामु, होज्जाहामु
होज्जहाम, होज्जाहाम
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(39)
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मध्यम होज्जहिसि, होज्जाहिसि होजहिह, होज्जाहिह
होज्जहिध, होज्जाहिध
होज्जहित्था, होज्जाहित्था अन्य (i) होज्जहिइ, होज्जाहिइ होज्जहिन्ति, होज्जाहिन्ति
होज्जहिन्ते, होज्जाहिन्ते
होज्जहिरे, होज्जाहिरे (ii) होज्जस्सिदि, होज्जस्सिन्ति, होज्जास्सिन्ति होज्जास्सिदि होज्जस्सिन्ते, होज्जास्सिन्ते
होज्जस्सिइरे, होज्जास्सिइरे
विधि एवं आज्ञा पुरुष एकवचन
बहुवचन होज्जमु, होज्जामु होज्जमो, होज्जामो .. होज्जहि, होज्जाहि होज्जह, होज्जाह .
होज्जसु, होज्जासु अन्य होज्जउ, होज्जाउ होज्जन्तु, होज्जान्तु
उत्तम
मध्यम
-------------------------------
37.
प्राकृत भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के क्रियातिपत्ति (यदि ऐसा होता तो ऐसा हो जाता) के उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष व अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'ज्ज और ज्जा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं। ‘ज्ज और ज्जा' प्रत्यय जोड़ने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे
क्रियातिपत्ति
अकारान्त क्रिया (हस) पुरुष एकवचन
बहुवचन उत्तम हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यम हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्य हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
मध्यम
------------------------------
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(40)
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कृदन्तों के प्रत्यय विधि कृदन्त
1. (क) प्राकृत भाषा में 'चाहिए' अर्थ में विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। विधि कृदन्त में 'अव्व और यव्व' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। विधि कृदन्त में 'णीय ' / 'णिज्ज' प्रत्यय केवल अकारान्त क्रियाओं में ही जोड़ा जाता है। जैसे
हसिअव्व, हसेअव्व (हँसा जाना चाहिए )
(हस + अव्व) (हस + यव्व) = हसियव्व, हसेयव्व (हँसा जाना चाहिए ) ( हस+णीय / णिज्ज) = हसणीय / हसणिज्ज (हँसा जाना चाहिए )
=
(ख) शौरसेनी
प्राकृत में विधि कृदन्त में 'दव्व' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे
(हस + +दव्व)
=
हसिदव्व, हसेदव्व (हँसा जाना चाहिए )
(ग) अर्धमागधी प्राकृत में विधि कृदन्त में 'तव्व' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे
(हस+तव्व) = हसितव्व, हसेतव्व (हँसा जाना चाहिए)
सम्बन्धक भूतकृदन्त
2. (क) प्राकृत भाषा में 'करके अर्थ में सम्बन्धक भूतकृदन्त का प्रयोग किया जाता है। प्राकृत भाषा के अनुसार सम्बन्धक भूतकृदन्त में उं', 'अ', 'ऊण', 'ऊणं', 'उआण' और 'उआणं' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते · हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है।
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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(41)
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1. (हस+उं) = हसिउं, हसेउं (हँसकर) , 2. (हस+अ) = हसिअ, हसेअ (हँसकर) 3. (हस+ऊण) = हसिऊण, हसेऊण (हँसकर) 4. (हस+ऊणं) = हसिऊणं, हसेऊणं (हँसकर) 5. (हस+उआण) = हसिउआण, हसेउआण (हँसकर) . . 6. (हस+उआणं) = हसिउआणं, हसेउआणं (हँसकर)
(ख) शौरसेनी प्राकृत के अनुसार सम्बन्धक भूतकृदन्त में 'इय', 'दूण',
'दूणं', और 'त्ता' प्रत्यय भी क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के
अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे- ... . 1. (हस+इय) = हसिय, हसेय (हँसकर) ...
2. (हस+दूण) = हसिदूण, हसेदूण (हँसकर) 3. (हस+त्ता) = हसित्ता, हसेत्ता (हँसकर)
.
.
' (सकर)
(ग) पैशाची प्राकृत के अनुसार सम्बन्धक भूतकृदन्त में 'तूण' प्रत्यय भी
क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। 1. (हस+तूण) = हसितूण, हसेतूण (हँसकर)
(घ) अर्धमागधी भाषा के अनुसार सम्बन्धक भूतकृदन्त में 'ताण, त्ताणं',
'तुआण, तुआणं', 'याण, याणं', 'आए' और 'आय' प्रत्यय भी क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे1. (हस+त्ताण) = हसित्ताण, हसेत्ताण (हँसकर) 2. (हस+त्ताणं) = हसित्ताणं, हसेत्ताणं (हँसकर) 3. (हस+तुआण) = हसितुआण, हसेतुआण (हँसकर)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(42)
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4. (हस+तुआणं) = हसितुआणं, हसेतुआणं (हँसकर) 5. (हस+याण) = हसियाण, हसेयाण (हँसकर) 6. (हस+याणं) = हसियाणं, हसेयाणं (हँसकर) 7. (हस+आए) = हसाए (हँसकर) 8. (हस+आय) = हसाय (हँसकर)
___ हेत्वर्थक कृदन्त 3.(क) प्राकृत भाषा में 'के लिए' अर्थ में हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग किया जाता
है। हेत्वर्थक कृदन्त में 'उ' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे
(हस+उ) = हसिउं, हसेउं (हँसने के लिए) (ख) शौरसेनी भाषा के अनुसार हेत्वर्थक कृदन्त में 'दं' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा
जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है।
(हस+दु) = हसिद्, हसेतुं (हँसने के लिए) (ग) अर्धमागधी भाषा के अनुसार हेत्वर्थक कृदन्त में ‘त्तए' प्रत्यय भी क्रियाओं
में जोड़ा जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+त्तए) = हसित्तए, हसेत्तए (हँसने के लिए)
----------------------------------------------
भूतकालिक कृदन्त 4.(क) प्राकृत भाषा में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त ।
का प्रयोग किया जाता है। भूतकालिक कृदन्त में 'अ' / 'य' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' हो जाता है। जैसे(हस+अ) = हसिअ (हँसा)
(हस+य) = हसिय (हँसा) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(43) .
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(ख) शौरसेनी भाषा में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक
कृदन्त में 'द' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' . का 'ई' हो जाता है।
(हस+द) = हसिद (हँसा) (ग) अर्धमागधी भाषा में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक
कृदन्त में 'त' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़ा जाता है और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे(हस+त) = हसित (हँसा)
----------------------------
5.
वर्तमान कृदन्त. प्राकृत भाषा में हँसता हुआ आदि भावों को प्रकट करने के लिए वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान कृदन्त में 'न्त' और 'माण' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+न्त) = हसन्त, हसेन्त (हँसता हुआ) (हस+माण) = हसमाण, हसेमाण (हँसता हुआ)
-----------------------------
प्राकृत भाषा के स्त्रीलिंग में हँसती हई आदि भावों को प्रकट करने के लिए वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान कृदन्त में 'ई' 'न्ता', 'न्ती', 'माणा' और 'माणी' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं।
जैसे
(हस+ई) = हसई (हँसती हुई) (हस+न्ता) = हसन्ता
हसन्ती (हँसती हुई) (हस+माणा) = हसमाणा (हँसती हुई) (हस+माणी) = हसमाणी (हँसती हुई)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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________________
1.
भाववाच्य एवं कर्मवाच्य के प्रत्यय प्राकृत भाषा में भाववाच्य तथा कर्मवाच्य का प्रयोग किया जाता है। अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य तथा सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाया जाता है।
क्रिया का भाववाच्य में प्रयोग-नियम प्राकृत भाषा में अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य बनाने के लिए 'इज्ज'
और 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय जोड़ने के पश्चात ‘अन्य पुरुष एकवचन' के प्रत्यय भी काल के अनुसार लगा दिये जाते हैं। 'इज्ज' और 'ई'/'ईय' प्रत्यय वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि
एवं आज्ञा में लगाये जाते हैं। जैसे(क) (i) (हस+इज्ज+इ) = हसिज्जइ = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(हस+इज्ज+ए) = हसिज्जए = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) (हस+इज्ज+दि) = हसिज्जदि = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(हस+इज्ज+दे) = हसिज्जदे = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) (ii) (हस+ईअ+इ) = हसीअइ = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(हस+ईअ+ए) = हसीअए = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) (हस+ईअ+दि) = हसीअदि = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(हस+ईअ+दे) = हसीअदे = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) (ख) (हस+इज्ज+ईअ) = हसिज्जईअ (हसिज्जीअ) = हँसा गया।
(भू.अ.पु.एक.) (हस+ईअ+ईअ) = हसीअईअ (हसीईअ) = हँसा गया।
(भू.अ.पु.एक.) (ग) (i) (हस+इज्ज+उ) = हसिज्जउ = हँसा जाए। (विधि.अ.पु.एक.)
" (हस+इज्ज+दु) = हसिज्जदु = हँसा जाए। (विधि.अ.पु.एक.)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(45)
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Page #57
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(ii) (हस+ईअ+उ) = हसीअउ = हँसा जाए। (विधि.अ.पु.एक.)
(हस+ईअ+दु) = हसीअदु = हँसा जाए। (विधि.अ.पु.एक.).
--------------------------
2.
(क)
भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य रूप ही बना रहता है उसमें 'इज्ज' और 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय नहीं लगते। जैसे(हस+हि+इ) = हसिहिइ/हसेहिइ = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+हि+ए) = हसिहिए/हसेहिए = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+हि+दि) = हसिहिदि/हसेहिदि = हँसा जायेगा। (भवि:अ.पु.एक.) (हस+हि+दे) = हसिहिदे/हसेहिदे = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्स+इ) = हसिस्सइ/हसेस्सइ = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्स+ए) = हसिस्सए/हसेस्सए = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्स+दि) = हसिस्सदि/हसेस्सदि = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्स+दे) = हसिस्सदे/हसेस्सदे = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्सि+दि) = हसिस्सिदि = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (हस+स्सि+दे) = हसिस्सिदे = हँसा जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(ख)
(ग)
-------------
कृदन्तों का भाववाच्य में प्रयोग-नियम भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम जब क्रिया अकर्मक होती है तो प्राकृत में भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग होता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव ‘नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसेहसिअं/हसिदं/हसियं/हसितं = हँसा गया।
नोट- जब अकर्मक क्रियाओं में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता
है तो भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग कर्तृवाच्य में
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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भी किया जा सकता है। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा भूतकालिक कृदन्त के रूप भी उसी के अनुसार होंगे। जैसे
(क) नरिंदो हसिओ/हसिदो/हसियो/हसितो = राजा हँसा। (पुल्लिंग एकवचन) (ख) कमलं विअसिअं/विअसिदं/विअसियं/विअसितं = कमल खिला।
(नपुंसकलिंग एकवचन) (ग) ससा हसिआ/हसिदा/हसिया/हसिता = बहिन हँसी। (स्त्रीलिंग एकवचन)
------------------------------
-------------
विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम (क) जब क्रिया अकर्मक होती है तो प्राकृत भाषा में विधि कृदन्त का प्रयोग
भाववाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव ‘नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसे
हसिअव्वं/हसिदव्वं/हसियव्वं/हसितव्वं/हसणीयं = हँसा जाना चाहिए। नोट- विधि कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त नहीं होता है।
----------------------------------------------
... क्रिया का कर्मवाच्य में प्रयोग-नियम . सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाने के लिए प्राकृत भाषा में 'इज्ज'
और 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में द्वितीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म
के अनुसार 'क्रिया' में पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ .. दिए जाते हैं।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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________________
'इज्ज' और 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं
आज्ञा में लगाये जाते हैं। जैसे(क) (i) (कोक+इज्ज+इ) = कोकिज्जइ = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(कोक+इज्ज+ए) = कोकिज्जए = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.) (कोक+इज्ज+दि)= कोकिज्जदि = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(कोक+इज्ज+दे) = कोकिज्जदे = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.) ... (ii) (कोक+ईअ+इ) = कोकीअइ = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(कोक+ईअ+ए) = कोकीअए = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.) .. (कोक+ईअ+दि)= कोकीअदि = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.)
(कोक+ईअ+दे) = कोकीअदे = बुलाया जाता है। (व.अ.पु.एक.) (ख) (i) (कोक+इज्ज+ईअ)= कोकिज्जईअ (कोकिज्जीअ) = बुलाया गया।
(भू.अ.पु.एक.) (ii) (कोक+ईअ ईअ)= कोकीअईअ (कोकीईअ) = बुलाया गया।
' (भू.अ.पु.एक.) (ग) (i) (कोक+इज्ज+उ) = कोकिज्जउ = बुलाया जाए। (विधि.अ.पु.एक.)
(कोक+इज्ज+दु) = कोकिज्जदु = बुलाया जाए। (विधि.अ.पु.एक.) (ii) (कोक+ईअ+उ) = कोकीअउ = बुलाया जाए।(विधि.अ.पु.एक.)
(कोक+ईअ+दु) = कोकीअदु = बुलाया जाए। (विधि.अ.पु.एक.) नोटः इस प्रकार उत्तम पुरुष व मध्यम पुरुष का प्रयोग एकवचन व बहुवचन में तथा अन्य पुरुष का प्रयोग बहुवचन में किया जा सकता है।
--------------
-------
---
2.
भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य रूप ही बना रहता है उसमें
'इज्ज' और 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय नहीं लगाये जाते हैं। जैसे(क) (कोक+हि+इ) = कोकिहिइ/कोकेहिइ = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(कोक+हि+ए) = कोकिहिए/कोकेहिए = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(कोक+हि+दि) = कोकिहिदि/कोकेहिदि = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(कोक+हि+दे) कोकिहिदे/कोकेहिदे बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (ख) (कोक+स्स+इ)=कोकिस्सइ/कोकेस्सइ-बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(कोक+स्स+ए) = कोकिस्सए/कोकेस्सए = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (कोक+स्स+दि) = कोकिस्सदि/कोकेस्सदे = बुलायाजायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(कोक+स्स+दे) कोकिस्सदे/कोकेस्सदे=बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) (ग) (कोक+स्सि+दि) = कोकिस्सिदि = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.)
(कोक+स्सि+दे) = कोकिस्सिदे = बुलाया जायेगा। (भवि.अ.पु.एक.) नोटः इस प्रकार उत्तम पुरुष व मध्यम पुरुष का प्रयोग एकवचन व बहुवचन में तथा अन्य पुरुष का प्रयोग बहुवचन में किया जा सकता है।
कृदन्तों का कर्मवाच्य में प्रयोग-नियम भूतकालिक कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग-नियम जब क्रिया सकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार
चलेंगे। जैसे. (क) कोकिओ = बुलाया गया। (पुल्लिंग एकवचन)
कोकिआ = बुलाये गये। (पुल्लिंग बहुवचन) (ख) पेच्छिअं = देखा गया। (नपुंसकलिंग एकवचन)
- पेच्छिआइं/पेच्छिआईं/पेच्छिआणि = देखे गये। (नपुंसकलिंग बहुवचन) (ग) सुणिआ = सुनी गयी। (स्त्रीलिंग एकवचन) सुणिआ/सुणिआउ/सुणिआओ = सुनी गयी। (स्त्रीलिंग बहुवचन)
.-------------
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प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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(क)
विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम
जब क्रिया सकर्मक होती है तो प्राकृत भाषा में विधि कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है।
कर्ता में तृतीया विभक्ति ( एकवचन अथवा बहुवचन) होगी ।
कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी।
के कृ रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे
(क) 1 (i) कीणि अव्वो/कीणियव्वो/कीणितव्वो/ कीणिदव्वो/कीणणीयो / आदि = खरीदा जाना चाहिए। (पुल्लिंग एकवचन) (ii) कीणिअव्वा/कीणियव्वा/कीणितव्वा/कीणिदव्वा/कीणणीया/आदि खरीदे जाने चाहिए। (पुल्लिंग बहुवचन) (क) 2 (i) पेच्छिअव्वं /पेच्छियव्वं/पेच्छितव्वं/पेच्छिदव्वं/ पेच्छणीयं / आदि देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग एकवचन)
(ii) पेच्छिअव्वाइं / पेच्छियव्वाइं/पेच्छितव्वाइं/पेच्छिदव्वाइं/पेच्छणीयाई / आदि = देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग बहुवचन)
(क) 3 (i) पेसिअव्वा / पेसियव्वा / पेसितव्वा / पेसिदव्वा/पेसणीया/ आदि भेजा जाना चाहिए। (स्त्रीलिंग एकवचन )
=
=
(ii) पेसिअव्वा/पेसिअव्वाउ/पेसिअव्वाओ / पेसणीया / आदि चाहिए। (स्त्रीलिंग बहुवचन)
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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=
=
भेजे जाने
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________________
1.
स्वार्थिक प्रत्यय प्राकृत भाषा में 'अ', 'इल्ल' और 'उल्ल' स्वार्थिक प्रत्यय होते हैं। उपर्युक्त स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने पर मूल अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है। संज्ञा शब्दों में अथवा विशेषण में इन स्वार्थिक प्रत्ययों को जोड़ने के पश्चात विभक्ति बोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे(चन्द+अ) = चन्दअ (पु.) (चन्द्रमा) चन्दओ (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (चन्द+इल्ल) = चन्दिल्ल (पु.) (चन्द्रमा) चन्दिल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (चन्द+उल्ल) = चन्दुल्ल (पु.) (चन्द्रमा) चन्दुल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+अ) = हिअयअ (नपुं.) (हृदय) हिअयअं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+इल्ल) = हिअयिल्ल (नपुं.) (हृदय) हिअयिल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (हिअय+उल्ल) = हिअयुल्ल (नपुं.) (हृदय) हिअयुल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+अ) = गयणअ (नपुं.) (गगन) गयणअं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+इल्ल) = गयणिल्ल (नपुं.) (गगन) गयणिल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गयण+उल्ल) = गयणुल्ल (नपुं.) (गगन) गयणुल्लं (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (बहुअ+अ) = बहुअअ (वि.) (बहुत) बहुअओ (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (बहुअ+इल्ल) = बहुइल्ल (वि.) (बहुत) बहुइल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन)
(iv)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(51).
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________________
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(बहुअ+उल्ल) = बहुउल्ल (वि.) (बहुत) .. बहूल्लो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन)
------------ प्राकृत भाषा में अ, इल्ल, उल्ल स्वार्थिक प्रत्ययों को स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में जोड़ा जाता है। इन स्वार्थिक प्रत्ययों के लगने से स्त्रीलिंग शब्द अकारान्त हो जाता है तो उन्हें स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'आ' अथवा 'ई' प्रत्यय जोड़ लेने चाहिए। जैसे(माया+अ) = मायाअ--मायाआ अथवा मायाई (माता) .. (माया+इल्ल) = मायाइल्ल-मायाइल्ला अथवा मायाइल्ली (माता) (माया+उल्ल) = मायाउल्ल-मायाउल्ला. अथवा मायाउल्ली (माता)
-------------
प्राकृत भाषा में अ, इल्ल, उल्ल स्वार्थिक प्रत्ययों के अतिरिक्त कुछ स्वार्थिक प्रत्यय और भी हैं जो शब्द विशेष में विकल्प से जोड़े जाते हैं। जैसे'आलिअ' प्रत्यय (मीस+आलिअ) = मीसालिअ (वि.) (संयुक्त अथवा मिला हुआ) 'र' प्रत्यय (दीह+र) = दीहर (वि.) (लम्बा) 'ल' प्रत्यय (विज्जु+ल) = विज्जुल (स्त्री.) (बिजली) (पत्त+ल) = पत्तल (नपुं.) (पत्ता) (पीअ+ल) = पीअल (पु.) (पीला रंग) (अन्ध+ल) = अन्धल (वि.) (अन्धा) 'ल्ल' प्रत्यय (नव+ल्ल) = नवल्ल (वि.) (नया) (एक+ल्ल) = एकल्ल (वि.) (अकेला)
(iv)
ल्ल श्रा
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(52)
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________________
1.
प्रेरणार्थक प्रत्यय प्राकृत भाषा में प्रेरणा अर्थ में 'अ', 'ए', 'आव' और 'आवे' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं। प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं। इसलिए इन क्रियाओं में कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य का ही प्रयोग होता है। जैसेअकर्मक क्रियाएँ
प्रेरणार्थक प्रत्यय हस = हँसना
अ, ए, आव, आवे (हस+अ) = हास (हँसाना) ('अ' प्रत्यय जुड़ने पर उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है) (हस+ए) = हासे (हँसाना) ('ए' प्रत्यय जुड़ने पर उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) (हस+आव) = हसाव (हँसाना) (हस+आवे) = हसावे (हँसाना)
1.
जीव = जीना
अ, ए, आव, आवे (जीव+अ) = जीव (जीवाना या जिलाना) ('अ' प्रत्यय जुड़ने पर अगर उपान्त्य' स्वर दीर्घ हो तो उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है) (जीव+ए) = जीवे (जीवाना या जिलाना) ('ए' प्रत्यय जुड़ने पर अगर उपान्त्य' स्वर दीर्घ हो तो उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है) (जीव+आव) = जीवाव (जीवाना या जिलाना) (जीव+आवे) = जीवावे (जीवाना या जिलाना)
1.
उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(53).
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Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
3.
ठा = ठहरना
अ, ए, आव, आवे (ठा+अ) = ठाअ (ठहराना) ('अ' प्रत्यय जुड़ने पर अगर उपान्त्य' स्वर दीर्घ हो तो उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है) (ठा+ए) = ठाए (ठहराना) ('ए' प्रत्यय जुड़ने पर अगर उपान्त्य' स्वर दीर्घ हो तो उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है) (ठा+आव) = ठाव (ठहराना) (ठा+आवे) = ठावे (ठहराना)
4.
णच्च = नाचना अ, ए, आव, आवे . (णच्च+अ) = णाच्च→णच्च (नचाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' होता है पर आगे संयुक्ताक्षर होने के कारण 'अ' ही रहता है) (णच्च+ए) = णाच्चे-णच्चे (नचाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' होता है पर आगे संयुक्ताक्षर होने के कारण 'अ' ही रहता है) (णच्च+आव) = णच्चाव (नचाना) (णच्च+आवे) = णच्चावे (नचाना)
सकर्मक क्रिया
प्रेरणार्थक प्रत्यय कर = करना
अ, ए, आव, आवे (कर+अ) = कार (कराना) (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) (कर+ए) = कारे (कराना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है)
1.
उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(54)
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________________
(कर+आव) = कराव (कराना) (कर+आव) = करावे (कराना) क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कालों के सकर्मक प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे
__ हस = हँसना (अकर्मक क्रिया)
वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासइ आदि (ii) हासेइ आदि (iii) हसावइ आदि (iv) हसावेइ आदि
= हँसाता है/हँसाती है। भूतकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासीअ आदि (ii) हासेईअ आदि (iii) हसावीअ आदि (iv) हसावेईअ
आदि = हँसाया। भविष्यत्काल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 . (i) हासिहिइ आदि (ii) हासेहिइ आदि (iii) हसाविहिइ आदि (iv) हसावेहिइ आदि = हँसायेगा/हँसायेगी।
विधि एवं आज्ञा अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासउ आदि (ii) हासेउ आदि (iii) हसावउ आदि (iv) हसावेउ आदि
____ = हँसावे।
कर = करना (सकर्मक क्रिया)
वर्तमानकाल, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारइ आदि. (ii) कारेइ आदि (iii) करावइ आदि (iv) करावेइ
___ आदि = करवाता है/करवाती है। भूतकाल, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारीअ आदि (ii) कारेईअ आदि (iii) करावीअ आदि (iv) करावेईअ
आदि = करवाया। उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर।।
1.
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(55) .
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________________
भविष्यत्काल, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारिहिइ आदि (ii) कारेहिइ आदि (iii) कराविहिइ आदि (iv) करावेहिइ आदि = करवायेगा/करवायेगी।
_ विधि एवं आज्ञा, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारउ आदि (ii) कारेउ आदि (iii) करावउ आदि (iv) करावेउ आदि
. . = करवावे। . इसी प्रकार उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष के रूप बनेंगे।
----------------------------------------------
__ कर्मवाच्य के प्रेरणार्थक प्रत्ययः आवि, 0 प्राकृत भाषा में प्रेरणा अर्थ में भाववाच्य और कर्मवाच्य के 'आवि'
और 'शून्य' (0) प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। इससे अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है। जैसे(हस+आवि) = हसावि (हँसाना) (हस+0) = हास (हँसाना) (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) (कर+आवि) = करावि (कराना) । (कर+0) = कार (कराना) (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) .. क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कर्मवाच्य के 'इज्ज' और 'ईअ/ईय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेहसावि+इज्ज = हसाविज्ज (हँसाया जाना) हसावि+ईअ = हसावीअ (हँसाया जाना) हास+इज्ज = हासिज्ज (हँसाया जाना) हास+ईअ = हासीअ (हँसाया जाना) करावि+इज्ज = कराविज्ज (करवाया जाना) करावि+ईअ = करावीअ (करवाया जाना) कार+इज्ज = कारिज्ज (करवाया जाना) कार+ईअ = कारीअ (करवाया जाना) उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर।
1.
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(56)
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________________
क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कालों के प्रेरणार्थक कर्मवाच्य के रूप बन जाते हैं। जैसे
वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+इ आदि = हसाविज्जइ आदि (हँसाया जाता है)
हसावि+ईअ+इ आदि = हसावीअइ आदि (हँसाया जाता है) हास+इज्ज+इ आदि = हासिज्जइ आदि (हँसाया जाता है)
हास+ईअ+इ आदि = हासीअइ आदि (हँसाया जाता है) (ख) करावि+इज्ज+इ आदि = कराविज्जइ आदि (करवाया जाता है)
करावि+ईअ+इ आदि = करावीअइ आदि (करवाया जाता है) कार+इज्ज+इ आदि = कारिज्जइ आदि (करवाया जाता है) कार+ईअ+इ आदि = कारीअइ आदि (करवाया जाता है)
. भूतकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+ईअ = हसाविज्जईअ (हँसाया गया)
हसावि+ईअ+ईअ = हसावीअईअ (हँसाया गया) हास+इज्ज+ईअ = हासिज्जईअ (हँसाया गया) हास+ईअ+ईअ = हासीअईअ (हँसाया गया) करावि+इज्ज+ईअ = कराविज्जईअ (करवाया गया) करावि+ईअ+ईअ = करावीअईअ (करवाया गया) कार+इज्ज+ईअ = कारिज्जईअ (करवाया गया) कार+ईअ+ईअ = कारीअईअ (करवाया गया)
विधि एवं आज्ञा अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+उ आदि = हसाविज्जउ आदि (हँसाया जावे)
हसावि+ईअ+उ आदि = हसावीअउ आदि (हँसाया जावे) 1. उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर। प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(57)
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(ख)
नोटः
3.
(क)
हास+इज्ज+उ आदि = हासिज्जउ आदि (हँसाया जावे) हास + अ +उ आदि = हासीअउ आदि (हँसाया जावे) करावि + इज्ज + उ आदि कराविज्जउ आदि ( करवाया जावे) करावि+ईअ+उ = करावीअउ आदि ( करवाया जावे) कार+इज्ज+उ = कारिज्जउ आदि (करवाया जावे) कार + ईअ +उ = कारीअउ आदि ( करवाया जावे)
इसी प्रकार उत्तम पुरुष एवं मध्यम पुरुष के रूप बना लेने चाहिए। भविष्यत्काल में प्रेरणार्थक कर्मवाच्य में 'इज्ज, ईअ / ईय' प्रत्यय नहीं लगते हैं। भविष्यत्काल में प्रेरणार्थक कर्मवाच्य में भविष्यत्काल की क्रिया का रूप कर्तृवाच्य के अनुसार ही रहेगा किन्तु अर्थ कर्मवाच्य के अनुसार होगा।
कृदन्तों के प्रेरणार्थक प्रत्ययः आवि, 0
प्राकृत भाषा में प्रेरणा अर्थ में 'आवि' और 'शून्य' ( 0 ) प्रत्यय जोड़े जाते हैं। क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कृदन्तों के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे
(हस + आवि)
हसावि (हँसाना)
(हँसाना) ( उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) ।
( हस +0) (कर + आवि)
करावि (कराना)
( कर+0 ) = कार (कराना) ( उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है)
=
= हास
=
=
क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कृदन्तों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कृदन्तों के सकर्मक प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसेप्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्त
हसावि + अ/य/त/द = हसाविअ / हसाविय / हसावित / हसाविद
(हँसाया गया )
(58)
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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________________
(ख)
हास+अ/य/त/द = हासिअ/हासिय/हासित/हासिद (हँसाया गया) करावि+अ/य/त/द = कराविअ/कराविय/करावित/कराविद
(कराया गया) कार+अ/य/त/द = कारिअ/कारिय/कारित/कारिद (कराया गया)
-------------
प्रेरणार्थक वर्तमान कृदन्त (क) हसावि+अ+न्त. = हसावन्त (हँसाता हुआ)
हसावि+अ+माण = हसावमाण (हँसाता हुआ) नोटः यहाँ हसावि के बाद 'अ' विकरण लगाया गया है क्योंकि प्राकृत में
क्रियाओं को अकारान्त करने की प्रवृत्ति होती है। हास+न्त = हासन्त (हँसाता हुआ)
हास+ माण = हासमाण (हँसाता हुआ) (ख) करावि+अ+न्त = करावन्त (करवाता हुआ)
करावि+अ+माण = करावमाण (करवाता हुआ) नोटः यहाँ करावि के बाद 'अ' विकरण लगाया गया है क्योंकि प्राकृत में
क्रियाओं को अकारान्त करने की प्रवृत्ति होती है। कार+न्त = कारन्त (करवाता हुआ) कार+माण = कारमाण (करवाता हुआ)
-
1.
प्रेरणार्थक विधि कृदन्त हसावि+अव्व = हसाविअव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) हसावि+यव्व = हसावियव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) हसावि+तव्व = हसावितव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए)
हसावि+दव्व = हसाविदव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) 2. हास+अव्व = हासिअव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए)
हास+यव्व = हासियव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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________________
हास+तव्व = हासितव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) हास+दव्व = हासिदव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए)
----------------------
1.
प्रेरणार्थक सम्बन्धक कृदन्त हसावि+ऊण = हसाविऊण (हँसाकर) हसावि+ऊणं = हसाविऊणं (हँसाकर) हसावि+दूण = हसाविदूण (हँसाकर) हसावि+दूणं = हसाविदूणं (हँसाकर) हसावि+अ = हसाविअ (हँसाकर) हसावि+य = हसाविय (हँसाकर) - · हसावि+उ = हसावित्रं (हँसाकर) हसावि+त्ता = हसावित्ता (हँसाकर) हास+ऊण = हासिऊण/हासेऊण (हँसाकर) हास+ऊणं = हासिऊणं/हासेऊणं (हँसाकर) हास+दूण = हासिदूण/हासेदूण (हँसाकर) हास+दूणं = हासिदूणं/हासेदूणं (हँसाकर) हास+अ = हासिअ/हासेअ (हँसाकर) हास+य = हासिय/हासेय (हँसाकर) हास+उ = हासिउं/हासेउं (हँसाकर) हासि+त्ता = हासित्ता/हासेत्ता (हँसाकर)
1.
प्रेरणार्थक हेत्वर्थक कृदन्त हसावि+उ = हसाविउं (हँसाने के लिए) हसाविन्दुं = हसावितुं (हँसाने के लिए) हास+उ = हासिउं/हासेउं (हँसाने के लिए) हास+दुं = हासिद्/हासेतुं (हँसाने के लिए)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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________________
प्रथम स्तरीय प्राकृत से विकसित प्राकृत शब्दावली
संपादक की कलम से
यहाँ यह समझा जाना चाहिए कि “प्रथम स्तर की प्राकृत भाषाएँ स्वर और व्यंजन के उच्चारण में तथा विभक्तियों के प्रयोग में वैदिक भाषा के अनुरूप थी। इससे ये भाषाएँ विभक्ति बहुल कही जाती है।" वैदिक भाषा पाणिनि के द्वारा नियन्त्रित होकर स्थिर हो गई और संस्कृत कहलाई।
वैदिक युग में जो प्राकृत भाषाएँ बोलचाल में प्रचलित थी, उनमें अनेक परिवर्तन हुए, “जिनमें ऋ आदि स्वरों का, शब्दों के अन्तिम व्यंजनों का, संयुक्त व्यंजनों का तथा विभक्ति और वचन समूह का लोप या रूपान्तर मुख्य है। इन परिवर्तनों से यह भाषाएँ प्रचुर परिमाण में रूपान्तरित हुई। इस तरह से द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति हुई।"
___ भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के समय में ये प्राकृत भाषाएँ अपने द्वितीय स्तर के आकार में प्रचलित थी और जनता के प्रयोग में आ रही थी। अतः उन्होंने अपने सिद्धान्तों का उपदेश इन्हीं प्राकृत भाषाओं में किया। यहाँ यह जानना उपयोगी है कि द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति प्रथम स्तरीय प्राकृत से हुई। काल दृष्टि से हम जितना पीछे जाते हैं उतना ही वैदिक संस्कृत-प्राकृत का अन्तर कम होता जाता है क्योंकि इनकी उत्पत्ति का स्रोत प्रथम स्तरीय प्राकृत है। इसलिए वैदिक संस्कृत-प्राकृत में समानता दृष्टिगोचर होती है।
इस तरह द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत के द्वितीय आकार की शब्दावली का एक अच्छा संकलन हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण के प्रथम व द्वितीय पाद में दिया है। तृतीय एवं चतुर्थ पाद में क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय एवं एकार्थक बहुविध तथा एकार्थक एकविध क्रियाओं का संकलन दिया है। आचार्य हेमचन्द्र ने लौकिक संस्कृत के आधार से इसे समझाने का प्रयास किया है। यह प्राकृत
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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दृष्टिकोण से हमारे लिये उपयोगी नहीं है । हमारा उद्देश्य तो प्राकृत के द्वितीय आकार को समझना है, जिससे महावीर के उपदेशों को समझा जा सके। इसलिए हम हेमचन्द्र के प्राकृत शब्दों का अर्थ प्राकृत की परिवर्तनशील प्रकृति के अनुरूप राष्ट्र भाषा हिन्दी में ढूँढेंगे। अतः हम आचार्य हेमचन्द्र की प्राकृत क्रियाओं को हिन्दी के आधार से समझने का प्रयास करेंगे।
1.
2.
विशेष अध्ययन के लिए
भारत की प्राचीन आर्यभाषाएँ - डॉ. राजमल बोरा प्रकाशक- हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय,
दिल्ली विश्वविद्यालय, 1999
पाइय-सद्द-महण्णवो - पं. हरगोविन्ददास त्रिविक्रमचन्द्र सेठ प्रकाशक - प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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________________
1.
आवाज करनाः
संखा
अलग होना:
णिव्वड
3. निश्चेष्ट होना अथवा
चेष्टा रहित होनाः
णिह
श्रम करनाः
वावम्फ
फैलना:
2.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
विविध प्राकृत क्रियाएँ एकार्थक एकविध क्रियाएँ
अकर्मक
पसर
अनाचरण करना अथवा नीचे
जाना:
थक्क
बैठनाः
णुमज्ज
जँभाई लेना
जम्भा
उछलना अथवा कूदनाः
उत्थल्ल
शोभना अथवा विराजनाः
ओवास
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
भूँकनाः
भुक्क
बैठनाः
अच्छ
लड़नाः
जुज्झ
आसक्त होना:
गिज्झ
सिद्ध होना अथवा निष्पन्न होना:
सिज्झ
खिन्न होना:
सड
गिरनाः
पड
बढ़नाः
वड्ढ
सम्पन्न होना अथवा मिलना:
संपज्ज
खेद करना अथवा अफसोस
करनाः
खिज्ज
नाचनाः
णच्च
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________________
22.
गर्व करनाः
33.
मच्च
खुश होनाः तूस सूखनाः
23.
सूस
उद्वेग करना अथवा खिन्न करनाः 34. उव्विव समर्थ होनाः सक्क नष्ट होनाः
दूषित होनाः
दूस ..
हँसनाः
नस्स
हस
टूटनाः
37.
शांत होनाः
तुट्ट
उवसम
नाचनाः
नट्ट
मरनाः
चव
शब्द करनाः
कव
30.
मरनाः मर खुश होना अथवा प्रसन्न होनाः हरिस
32.
गुस्सा करनाः
रूस
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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________________
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
ܘ
10.
11.
दुःख प्रकट करनाः
णिव्वर
ध्यान करनाः
झा
गानाः
गा
देखनाः
णिज्झा
श्रद्धा करनाः
सद्दह
एकार्थक एकविध क्रियाएँ
सकर्मक
चाहना-इच्छा करनाः
सिह
गमन करवानाः
जव
खरीदनाः
किण
आना अथवा प्रवेश करनाः
अल्ली
कानी नजर से देखना:
णिआर
अवलम्बन करना अथवा
सहारा लेना :
संदाण
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12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
क्रोध से होठ मलिन करनाः
णिव्वोल
हजामत करनाः
कम्म
खुशामद करनाः
गुलल
प्रशंसा करनाः
सलह
दुःख को छोड़नाः
णिव्वल
पूछना अथवा प्रश्न करनाः
पुच्छ
लीपना अथवा लेप करनाः
लिम्प
दया करनाः
अवहाव
चोरी करनाः
पम्हुस
स्पर्श करना अथवा छूनाः
पम्हुस
गाली देनाः
भस
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________________
म्यान से तलवार को खींचनाः 36. अक्खोड
जानाः
37.
गच्छ इच्छा करना अथवा चाहनाः 38. इच्छ विराम करना, अथवा देनाः 39. जच्छ
दौड़नाः धा जीमनाः जिम्म संबंध करना अथवा लगनाः लग्ग गमन करनाः
मग्ग ।
छेदनाः छिन्द
भेदना अथवा तोड़नाः
भिन्द
समझनाः बुज्झ क्रोध करनाः कुज्झ लपेटनाः वेढ लपेटनाः संवेल्ल जाना अथवा गमन करनाः
गुस्सा करनाः .. कुप्प परिभ्रमण करनाः परिअट्ट सीनाः सिव्व लौटनाः पलोट्ट बोलनाः रव जन्म देना अथवा उत्पन्न करनाः पसव करनाः
___46.
कर
वच्च
47.
नमस्कार करनाः
धारण करनाः धर
नव
सरकनाः
35.
भोजन करना अथवा खानाः
सर
खा
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49.
50.
51.
52.
53.
54.
55.
56.
57.
58.
59.
60.
61.
62.
संबंध करना अथवा सेवा करनाः
वर
हरण करनाः
हर
तैरनाः
तर
बूढ़ा होना:
जर
बरसनाः
वरिस
खींचनाः
करिस
सहन करना अथवा क्षमा करनाः
मरिस
वध करनाः
सीस
: लेनाः
ले
देनाः
. दे
करनाः
कुण
• प्राप्त करना:
पाव
सींचनाः
सिंच
घूमनाः
भम
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63.
64.
65.
66.
67.
68.
69.
70.
71.
72.
73.
रोकनाः
रून्ध
चोरी करनाः
मुस
हरण करनाः
हर
बेचनाः
विक्क
जीतनाः
जिण
सुननाः
सुण
होम करनाः
हुण
स्तुति करनाः
थुण
काटना:
लुण
पवित्र करनाः
पुण
कँपानाः
धुण
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________________
एकार्थक बहुविध क्रियाएँ
अकर्मक
सूखनाः (1) ओरुम्मा (2) वसुआ (3) उव्वा नींद लेनाः (1) ओहीर (2) उंघ (3) निद्दा
2.
नाद
नहानाः
(1) अब्भुत्त (2) ण्हा ठहरनाः (1) ठा (2) थक्क (3) चिट्ठ (4) निरप्प उठनाः (1) उ8 (2) उक्कुक्कुर मुरझाना अथवा कुम्हलानाः (1) वा (2) पव्वाय (3) मिला क्षीण होनाः (1) णिज्झर (2) झिज्ज झूलना अथवा हिलनाः (1) रंखोल (2) दोल डरनाः (1) भा (2) बीह नष्ट होनाः (1) विरा (2) विलिज्ज आवाज करनाः (1) रुञ्ज (2) रुण्ट (3) रव
10.
11..
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
होना:
(1) हो (2) हुव (3) हव ( 4 ) हु ( 5 ) भव
समर्थ होना:
24.
(1) पहुप्प (2) पभव
शिथिलता करना अथवा ढीला होना - लटकनाः
(1) पयल्ल (2) सिढिल ( 3 ) लम्ब पसरना अथवा फैलनाः
(1) पयल्ल (2) उवेल्ल ( 3 ) पसर बाहर निकलना :
(1 ) णीहर ( 2 ) नील (3) धाड ( 4 ) वरहाड ( 5 ) णीसर
जागना अथवा सचेत - सावधान होना:
( 1 ) ढिक्क ( 2 ) गज्ज
शोभना अथवा चमकनाः
(1) छज्ज (2) अग्घ ( 3 ) सह ( 4 ) रीर (5) रेह ( 6 ) राय
मज्जन करना, डूबना अथवा स्नान करनाः
(1) आउड्ड (2) णिउड्ड ( 3 ) बुड्ड ( 4 ) खुप्प ( 5 ) मज्ज
शरमानाः
(1) जीह (2) लज्ज
खिलना :
(1) मुर (2) फुट
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
( 1 ) जग्ग ( 2 ) जागर
काम में लगनाः
(1) आअड्ड (2) वावर
गर्जन करना अथवा गरजनाः
(1) ग़ज्ज (2) बुक्क
. बैल का गरजनाः
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26.
27.
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30.
31.
32.
33.
34.
35.
36.
37.
घूमना, काँपना, डोलना और हिलनाः
(1) घुल (2) घुम्म ( 3 ) घोल (4) पहल्ल
धंसना अर्थात् गिर पड़नाः
(1 ) ढंस (2) विवट्ट
फड़कना अथवा थोड़ा हिलना :
(1) चुलुचुल (2) फन्द
निष्पन्न होना अथवा सिद्ध होना:
(1) निव्वल ( 2 ) निप्पज्ज
झड़ना अथवा टपकनाः
(1 ) झड़ ( 2 ) पक्खोड
चिल्लानाः
(1) अक्कन्द ( 2 ) णीहर
खेद करना अथवा अफसोस करनाः
(1) जूर ( 2 ) विसूर ( 3 ) खिज्ज
क्रोध करना अथवा गुस्सा करनाः
(1) जूर (2) कुज्झ
उत्पन्न होना:
(1) जा (2) जम्म
तृप्त होना अथवा संतुष्ट होना:
(1) थिप्प ( 2 ) थिंप
संतप्त होना अथवा संताप करनाः
(1 ) झंख ( 2 ) संतप्प
सोनाः
(1) कमवस ( 2 ) लिस (3) लोट्ट (4) सुअ
काँपना अथवा थरथरानाः
(1) आयम्ब ( 2 ) आयज्झ ( 3 ) वेव
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38. विलाप करना अथवा जोर-जोर से रोनाः
(1) झंख (2) वडवड (3) विलव 39. व्याकुल होना अथवा घबड़ानाः
(1) विर (2) णड (3) गुप्प 40. जलना, सुलगना अथवा प्रकाशित होनाः
(1) तेअव (2) संदुम (3) संधुक्क (4) अब्भुत्त (5) पलीव 41. लोभ करना, अथवा आसक्ति करनाः
(1) संभाव (2) लुब्भ क्षुब्ध होना अथवा विह्वल होनाः
(1) खउर (2) पड्डुह (3) खुब्भ 43. बोझ के कारण झुकनाः
(1) णिसुढ (2) णव . 44. विश्राम करनाः
(1) णिव्वा (2) वीसम 45. शान्त होना अथवा क्षुब्ध नहीं होनाः
(1) पडिसा (2) परिसाम (3) सम 46. क्रीड़ा करना अथवा खेलनाः . (1) संखुड्ड (2) खेड्ड (3) उब्भाव (4) किलिकिञ्च (5)
कोट्टम (6) मोट्टाय (7) णीसर (8) वेल्ल (9) रम 47. शीघ्रता करनाः . .
(1) तुवर (2).जअड (3) तूर (4) तुर 48. गिर पड़ना, टपकना अथवा झरनाः
(1) खिर (2) झर (3) पज्झर (4) पच्चड (5) णिच्चल (6)
णिटुअ 49. गलं जाना, जीर्ण-शीर्ण हो जानाः
(1) थिप्प (2) णिटुंह (3) विगल प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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51.
50. फटना, टूटना, अथवा टुकड़े-टुकड़े होनाः
(1) विसट्ट (2) दल लौटना, वापस आना, अथवा मुड़ना, टेड़ा होनाः
(1) वंफ (2) वल 52. फूटना, फटना, टूटना, अथवा नष्ट होनाः
(1) फिड (2) फिट्ट (3) फुड (4) फुट्ट (5) चुक्क (6) भुल्ल . (7) भंस 53. पलायन करना अथवा भागनाः
(1) णिरणास (2) णिवह (3) अवसेह (4) पडिसा (5) सेह
(6) अवहर (7) णस्स . 54. विकसित होना अथवा खिलनाः __ (1) कोआस (2) वोसट्ट (3) विअस
हँसना अथवा हास्य करनाः (1) हस (2) गुंज खिसकना अथवा सरकनाः (1) ल्हस (2) डिम्भ (3) संस डरना अथवा भय खानाः ।
(1) डर (2) वोज्ज (3) वज्ज (4) तस 58. पलटना अथवा विपरीत होनाः ...
(1) पलोट्ट (2) पल्लट्ट (3) पल्हत्थ निःश्वास लेनाः
(1) झंख (2) नीसस 60. उल्लसित होना अथवा खुश होनाः
(1) ऊसल (2) असुम्भ (3) णिल्लस (4) पुलआअ (5) गुंजोल्ल (6) गुंजुल्ल (7) आरोअ (8) उल्लस
55.
56.
57.
59.
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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प्रकाशमान होना अथवा चमकनाः (1) भिस (2) भास मुग्ध होना अथवा मोहित होनाः (1) गुम्म (2) गुम्मड (3) मुज्झ रोनाः (1) रुव (2) रोव विकसित होना अथवा खिलनाः (1) फुट्ट (2) फुड संकोच करना अथवा सकुचानाः (1) पमिल्ल (2) पमील (3) संमिल्ल
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एकार्थक बहुविध क्रियाएँ
सकर्मक 1. कहनाः
(1) वज्जर (2) पज्जर (3) उप्पाल (4) पिसुण (5) संघ (6) बोल्ल (7) चव (8) जम्प (9) सीस (10) साह (11) कह घृणा करना अथवा निन्दा करनाः (1) झुण (2) दुगुच्छ (3) दुगुंछ (4) जुगुच्छ (5) दुउच्छ (6) दुउंछ (7) जुउच्छ खाने की इच्छा करनाः (1) बुहुक्ख (2) णीरव पंखा करना अथवा हवा करनाः (1) वोज्ज (2) वीज (वीअ) जाननाः (1) जाण (2) मुण (3) णा पीनाः (1) पिज्ज (2) डल्ल (3) पट्ट (4) घोट्ट (5) पिअ . . सूंघनाः (1) आइग्घ (2) अग्या निर्माण करना अथवा रचनाः (1) निम्माण (2) निम्मव ढंकना अथवा आच्छादन करनाः (1) णुम (2) नूम (3) णूम (4) सन्नुम (5) ढक्क (6) ओम्बाल
(7) पव्वाल (8) छाय 10. गिराना अथवा रोकनाः
(1) णिहोड (2) पाड (3) निवार
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12.
13.
14.
15.
16.
17..
18.
19.
20.
21.
सफेद करनाः
(1) दुम ( 2 ) धवल
तौलनाः
22.
(1 ) ओहाम ( 2 ) तुल
बाहर निकालनाः
(1) ओलुंड ( 2 ) उल्लुंड ( 3 ) पल्हत्थ ( 4 ) विरेअ
ताड़न करनाः
(1 ) आहोड ( 2 ) विहोड ( 3 ) ताड
मिलानाः
(1) वीसाल ( 2 ) मेलव ( 3 ) मिस्स
धूल लगाना:
( 1 ) गुण्ठ ( 2 ) उद्धूल
घुमानाः
(1 ) तालिअण्ट ( 2 ) तमाङ ( 3 ) भाम ( 4 ) भमाड ( 5 ) भमाव
नाश करनाः
( 1 ) नासव ( 2 ) हारव ( 3 ) विउड ( 4 ) विप्पगाल ( 5 ) पलाव
( 6 ) नास
बतलाना अथवा दिखलानाः
(1) दाव ( 2 ) दंस (3) दक्खव ( 4 ) दरिस
प्रकट करना अथवा खोलना :
(1) उग्घाड ( 2 ) उग्ग
संभावना करनाः
(1) आसंघ ( 2 ) संभाव
ऊँचा करनाः
(1) उत्थंघ (2) उल्लाल ( 3 ) गुलुगुञ्छ (4) उप्पेल (5)
उण्णाम
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23. विज्ञप्ति करना अथवा विनति करानाः
(1) वोक्क (2) अवुक्क (3) विण्णव 24. अर्पण करनाः
(1) अल्लिव (2) चच्चुप्प (3) पणाम (4) अप्प 25. चबाई हुई वस्तु को पुनः चबानाः
. (1) ओग्गाल (2) वग्गोल (3) रोमन्थ 26. प्रकाशित करनाः
(1) णुव्व (2) पयास 27. ऊपर चढ़ानाः
(1) वल (2) आरोव 28. रंग लगानाः
(1) राव (2) रंज निर्माण करनाः
(1) परिवाड (2) घड 30. लपेटनाः
(1) परिआल (2) वेढ 31. सुननाः
(1) हण (2) सुण 32. कंपाना-हिलानाः
(1) धुव (2) धुण करनाः (1) कुण (2) कर स्मरण करना-याद करनाः (1) झर (2) झूर (3) भर (4) भल (5) लढ (6) विम्हर (7) सुमर (8) पयर (9) पम्हुह (10) सर
29.
33.
34.
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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35.
39.
भूलना-भूल जाना अथवा विस्मरण करनाः (1) पम्हस (2) विम्हर (3) वीसर बुलाना अथवा आह्वान करनाः (1) कोक्क (2) कुक्क (3) पोक्क (4) वाहर संवरण करना, समेटना, संक्षेप करनाः (1) साहर (2) साहट्ट आदर करना-सम्मान करनाः (1) सन्नाम (2) आदर प्रहार करनाः (1) सार (2) पहर नीचे उतरनाः
(1) ओह (2) ओरस (3) ओअर 41. पकानाः
(1) सोल्ल (2) पउल (3) पय छोड़ना-त्याग करनाः (1) छड्ड (2) अवहेड (3) मेल्ल (मिल्ल) (4) उस्सिक्क (5)
रेअव (6) णिल्लुंछ (7) धंसाड (8) मुअ 43. ठगनाः
(1) वेहव (2) वेलव (3) जूरव (4) उमच्छ (5) वंच 44. निर्माण करना अथवा बनाना :
(1) उग्गह (2) अवह (3) विडविड्ड (4) रय 45. . सींचनाः
(1) सिंच (2) सिम्प (3) सेअ 46. एकत्र करना अथवा इकट्ठा करनाः
(1) आरोल (2) वमाल (3) पुंज
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47. तेज करना (तीक्ष्ण करना):
(1) ओसुक्क (2) तेअ 48. मार्जन करना अथवा शुद्ध करना, पोंछनाः
(1) उग्घुस (2) लुंछ (3) पुंछ (4) पुंस (5) फुस (6) पुस (7) लुह (8) हुल (9) रोसाण (10) मज्ज भाँगना अथवा तोड़नाः (1) वेमय (2) मुसुमूर (3) मूर (4) सूर (5) सूड (6) विर (7) पविरंज (8) करंज (9) नीरंज (10) भंज .. अणुसरण करना अथवा पीछे जानाः (1) पडिअग्ग (2) अणुवच्च उपार्जन करनाः
(1) विढव (2) अज्ज 52. जोड़ना अथवा युक्त करनाः
(1) जुंज (2) जुज्ज (3) जुप्प जीमना अथवा खानाः (1) भुंज (2) जिम (3) जेम (4) कम्म (5) अण्ह (6) चमढ
(7) समाण (8) चड्ड (9) भुज्ज 54. उपभोग करनाः
(1) कम्मव (2) उवहुंज बनानाः (1) गढ (2) घड मंडित करना, विभूषित करना अथवा शोभा युक्त बनानाः (1) चिंच (2) चिंचअ (3) चिंचिल्ल (4) रीड (5) टिविडिक्क
(6) मंड 57. तोड़ना, खंडित करना अथवा टुकड़ा करनाः
(1) तोड (2) खुट्ट (3) खुड (4) उक्खुड (5) उल्लुक्क (6)
णिलुक्क (7) उल्लूर प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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गूँथनाः
(1) गंठ ( 2 ) गंथ
मथना अथवा विलोडन करना:
(1) घुसल ( 2 ) विरोल ( 3 ) मन्थ
छेदना अथवा काटनाः
(1) दुहाव ( 2 ) णिच्छल्ल (3) णिज्झोड ( 4 ) णिव्वर (5) गिल्लूर ( 6 ) लूर ( 7 ) छिन्द
छीननाः
( 1 ) ओअन्द ( 2 ) उद्दाल ( 3 ) अच्छिन्द
कुचलना, मर्दन करना अथवा मसलनाः
(1) मल ( मद्द) (2) मढ ( 3 ) परिहट्ट (4) खड्ड (5) चड्ड ( 6 ) मड्ड
(7) पन्नाड
रोकनाः
(1) उत्थंघ ( 2 ) रुन्ध
निषेध करना अथवा निवारण करनाः
: (1) हक्क (2) निसेह
विस्तार करना अथवा फैलानाः
(1 ) तड ( 2 ) तड्ड ( 3 ) तड्डव ( 4 ) विरल्ल ( 5 ) तण
पास में जाना अथवा समीप में जानाः
(1) अल्लिअ (2) उवसप्प
व्याप्त करनाः
(1) ओअग्ग ( 2 ) वाव (सकर्मक)
समाप्त करना अथवा पूरा करनाः
(1) समाण (2) समाव
फेंकना अथवा डालनाः
(1) गलत्थ ( 2 ) अड्डक्ख ( 3 ) सोल्ल (4) पेल्ल (5) णुल्ल (6) छुह (7) हुल ( 8 ) परी ( 9 ) घत्त ( 10 ) खिव
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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72.
70. ऊँचा फेंकनाः
(1) गुलगुंछ (2) उत्थंघ (3) अल्लत्थ (4) उब्भुत्त (5)
उस्सिक्क (6) हक्खुव (7) उक्खिव 71. आक्षेप करना, टीका करना, अथवा दोषारोपण करनाः
(1) णीरव (2) अक्खिव आरम्भ करना अथवा शुरू करनाः (1) आरम्भ (2) आढव (3) आरभ उपालम्भ देना अथवा उलाहना देनाः
(1) झंख (2) पच्चार (3) वेलव (4) उवालम्भ 74. आक्रमण करना अथवा हमला करनाः
(1) ओहाव (2) उत्थार (3) छन्द (4) अक्कम 75. घुमना अथवा फिरनाः
(1) टिरिटिल्ल (2) ढुंढुल्ल (3) ढंढल्ल (4) चक्कम्म (5) भम्मड (6) भमड (7) भमाड (8) तलअंट (9) झंट (10) झंप (11) भुम (12) गुम (13) फुम (14) फुस (15) दुम (16) ..
दुस (17) परी (18) पर (19) भम 76. गमन करना अथवा जानाः
(1) अइ (2) अइच्छ (3) अणुवज्ज (4) अवज्जस (5) उक्कुस (6) अक्कुस (7) पच्चड्ड (8) पच्छन्द (9) णिम्मह (10) णी (11) णीण (12) णीलुक्क (13) पदअ (14) रम्भ (15) परिअल्ल (16) वोल (17) परिअल (18) णिरिणास (19)
णिवह (20) अवसेह (21) अवहर (22) गच्छ 77. आनाः
(1) अहिपच्चुअ (2) आगच्छ 78. संगति करना अथवा मिलनाः
(1) अभिड (2) संगच्छ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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83.
79. सामने आना अथवा अभिमुख आनाः
(1) उम्मत्थ (2) अब्भागच्छ लौटना अथवा वापस आनाः
(1) पलोट्ट (2) पच्चागच्छ 81. पूरा करनाः
(1) अग्घाड (2) अग्घव (3) उद्धमा (4) अंगुम (5) अहिरेम
(6) पूर 82. संदेश देना अथवा खबर पहुँचानाः
(1) अप्पाह (2) संदिस देखनाः (1) निअच्छ (2) पेच्छ (3) अवयच्छ (4) अवयज्झ (5) वज्ज (6) सव्वव (7) देक्ख (8) ओअक्ख (9) अवक्ख (10) अवअक्ख (11) पुलोअ (12) पुलअ (13) निअ (14) अवआस (15) पास . . स्पर्श करना अथवा छूनाः (1) फास (2) फंस (3) फरिस (4) छिव (5) छिह (6)
आलुंख (7) आलिह 85. प्रवेश करना अथवा घुसनाः
(1) पविस (2) रिअ 86. पीसना अथवा चूर्ण करनाः
(1) णिवह (2) णिरिणास (3) रोंच (4) चड्ड (5) पीस (6) . णिरिणिज्ज 87. खींचनाः
(1) कड्ड (2) साअड्ड (3) अंच (4) अणच्छ (5) अयंछ (6) _ आइंछ (7) करिस
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प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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88. ढूँढना अथवा खोजनाः
(1) दुंदुल्ल (2) ढंढोल (3) गमेस (4) घत्त (5) गवेस आलिंगन करना अथवा गले लगनाः
(1) सामग्ग (2) अवयास (3) परिअन्त (4) सिलेस 90. . स्निग्ध करना अथवा घी तेल आदि लगानाः
(1) चोप्पड (2) मक्ख 91. चाहना अथवा अभिलाषा करनाः
(1) आह (2) अहिलंघ (3) अहिलंख (4) वच्च (5) वम्फ (6).
सिह (7) मह (8) विलुप (9) कंख 92. राह देखना, बाट जोहना अथवा प्रतीक्षा करनाः
(1) सामय (2) विहीर (3) विरमाल (4) पडिक्ख 93. छीलना अथवा काटनाः
(1) तच्छ (2) चच्छ (3) रंप (4) रंफ (5) तक्ख । धरना अथवा रखनाः
(1) णिम (2) णुम 95. ग्रसना, निगलना अथवा भक्षण करनाः
(1) घिस (2) गस 96. सम्यक प्रकार से ग्रहण करना अथवा अच्छी तरह से हृदयंगम करनाः
(1) ओवाह (2) ओगाह 97. आरोहण करना अथवा चढ़नाः
(1) चड (2) वलग्ग (3) आरुह 98.
जलाना अथवा दहन करनाः
(1) अहिऊल (2) आलुंख (3) डह 99. ग्रहण करना अथवा लेनाः
(1) वल (2) गेण्ह (3) हर (4) पंग (5) निरुवार (6)
अहिपच्चुअ प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(82)
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100. रोकनाः
(1) रुन्ध (2) रुम्भ (3) रुज्झ 101. बाँधना, बंधन मुक्त करना अथवा पृथक करनाः
(1) उव्वेल्ल (2) उव्वेढ 102. बाहर निकालना, छोड़ना अथवा त्याग करनाः
(1) निसिर (2) वोसिर 103. चलना अथवा गमन करनाः
(1) चल्ल (2) चल 104. निंदा करनाः
(1) निण्हव (2) निहव 105. इकट्ठा करनाः
(1) चिण (2) चुण .
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(83).
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द्वयार्थक क्रिया-रूप 1. बल = प्राण धारण करना अथवा खाना। 2. कल = आवाज करना अथवा जानना। 3. रिग = प्रवेश करना अथवा जाना। 4. वम्फ = इच्छा करना अथवा खाना। 5. थक्क = नीचे जाना अथवा विलम्ब करना। 6. झंख = विलाप करना, उलाहना देना अथवा कहना। 7. पडिवाल = प्रतीक्षा करना अथवा रक्षा करना।. 8. चय = सकना-समर्थ होना तथा छोड़ना 9. तर = सकना-समर्थ होना तथा तैरना 10. तीर = सकना-समर्थ होना तथा समाप्त करना अथवा परिपूर्ण करना 11. पार = सकना-समर्थ होना तथा पार पहुँचना, पूर्ण करना-कार्य
समाप्त करना
उपसर्ग-युक्त भिन्नार्थक क्रिया-रूप 1. पहर = युद्ध करना 2. संहर = संवरण करना 3. अणुहर = समान होना 4. विहर = खेलना 5. आहर = भोजन करना 6. पडिहर = परिपूर्ण करना 7. परिहर = छोड़ना 8. उवहर = आदर-सम्मान करना अथवा पूजना 9. वाहर = बुलाना अथवा पुकारना 10. पवस = परदेस जाना 11. उच्चुप्प = आरूढ़ होना अथवा चढ़ना 12. उल्लुह = निकलना
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(84)
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अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया-रूप प्राकृत में सकर्मक क्रिया में 'इज्ज', 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय लगाकर जो रूप बनाया जाता है वह कर्मवाच्य का नियमित क्रिया-रूप कहा जाता है। जैसे- 'कर' क्रिया में 'इज्ज', 'ई'/'ईय' प्रत्यय लगाकर बनाया गया - ‘कर+इज्ज' = करिज्ज, 'ईअ'/'ईय' 'कर+'ईअ'/'ईय' = करीअ/करीय रूप कर्मवाच्य का नियमित रूप है। काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय जोड़ने पर उस काल, पुरुष और वचन में कर्मवाच्य का नियमित क्रिया-रूप बन जायेगा। जैसे- करिज्जइ या करीअइ/करीयइ = वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन।
इसके विपरीत सकर्मक क्रिया में बिना इज्ज', 'ईअ'/'ईय' प्रत्यय लगाए जो रूप तैयार मिलता है, उसमें काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय लगा रहता है, वह कर्मवाच्य का अनियमित क्रिया-रूप कहा जाता है। जैसे
कीरइ, तीरइ, जीरइ, हीरइ आदि- अनियमित कर्मवाच्य का क्रिया-रूप (वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन)।
इसमें क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है। इनका ज्ञान साहित्य में उपलब्ध प्रयोगों के आधार से किया जाना चाहिए। अनियमित कर्मवाच्य के कुछ क्रियारूप संग्रहीत हैं
वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 1. चिव्वइ = इकट्ठा किया जाता है। 2. जिव्वइ = जीता जाता है। 3. सुव्वइ = सुना जाता है। 4. हुव्वइ = हवन किया जाता है। 5. थुव्वइ = स्तुति की जाती है। 6. लुव्वइ = काटा जाता है। 7. पुव्वइ = पवित्र किया जाता है।
1. . देखें 'प्राकृत अभ्यास सौरभ' अभ्यास-38
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(85).
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8. धुव्वइ = कंपा जाता है। 9. चिम्मइ = इकट्ठा किया जाता है। 10. हम्मइ = मारा जाता है। 11. खम्मइ = खोदा जाता है। 12. दुब्भइ = दूहा जाता है। . 13. लिब्भइ = चाटा जाता है। 14. वुब्भइ = ले जाया जाता है। 15. रुब्भइ = रोका जाता है। 16. डज्झइ = जलाया जाता है। 17. बज्झइ = बाँधा जाता है। 18. संरुज्झइ = रोका जाता है अथवा अटकाया जाता है। ... 19. अणुरुज्झइ = अनुरोध किया जाता है, प्रार्थना की जाती है अथवा
अधीन हुआ जाता है, सुप्रसन्नता की जाती है। 20. उवरुज्झइ = रोका जाता है, अड़चन डाली जाती है अथवा प्रतिबन्ध
किया जाता है। 21. गम्मइ = जाया जाता है। 22. हस्सइ = हँसा जाता है। 23. भण्णइ = कहा जाता है। 24. छुप्पइ = स्पर्श किया जाता है। 25. रुव्वइ = रोया जाता है। 26. लब्भइ = प्राप्त किया जाता है। 27. कत्थइ = कहा जाता है। 28. भुज्जइ = खाया जाता है। 29. हीरइ = हरण किया जाता है। 30. कीरइ = किया जाता है।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(86)
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31. तीरइ = तैरा जाता है, पार पाया जाता है। 32. जीरइ = जीर्ण हुआ जाता है। 33. विढप्पड़ = उपार्जन किया जाता है। 34. णव्वइ = जाना जाता है। 35. णज्जइ = जाना जाता है। 36. वाहिप्पइ = कहा जाता है, बोला जाता है, आह्वान किया जाता है। 37. आढप्पइ = आरंभ किया जाता है। 38. सिप्पइ = स्नेह किया जाता है। 39. सिप्पड़ = सींचा जाता है। 40. घेप्पइ = ग्रहण किया जाता है। 41. छिप्पड़ = स्पर्श किया जाता है।
भविष्यत्काल अन्य पुरुष एकवचन 1. चिव्विहिइ = इक्ट्ठा किया जायेगा। 2. जिविहिइ = जीता जावेगा। 3. सुविहिइ = सुना जायेगा। 4. हुविहिइ = हवन किया जायेगा। 5. थुविहिइ = स्तुति किया जायेगा। 6. लुव्विहिइ = काटा जायेगा। 7. पुविहिइ = पवित्र किया जायेगा। 8. धुव्विहिइ = कंपा जायेगा। 9. चिम्मिहिइ = इकट्ठा किया जायेगा। 10. हम्मिहिइ = मारा जायेगा। 11. खम्मिहिइ = खोदा जायेगा। 12. दुब्भिहिइ = दूहा जायेगा।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(87)
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सरिट - चाटा जायेगा।
13. लिब्भिहिइ = चाटा जायेगा। 14. डज्झिहिइ = जलाया जायेगा। 15. बज्झिहिइ = बाँधा जायेगा। 16. संरुज्झिहिइ = रोका जायेगा अथवा अटकाया जायेगा। 17. अणुरुज्झिहिइ = अनुरोध किया जायेगा, प्रार्थना की जायेगी
अथवा अधीन हुआ जायेगा, सुप्रसन्नता की जायेगी। 20. उवरुज्झिहिइ = रोका जायेगा, अड़चन डाली जायेगी अथवा
प्रतिबन्ध किया जायेगा। 21. गम्मिहिइ = जाया जायेगा। 22. हस्सिहिइ = हँसा जायेगा। 23. भण्णिहिइ = कहा जायेगा। 24. छुप्पिहिइ = स्पर्श किया जायेगा। 25. रुव्विहिइ = रोया जायेगा। 26. लब्भिहिइ = प्राप्त किया जायेगा।, 27. कत्थिहिइ = कहा जायेगा। 28. भुज्जिहिइ = खाया जायेगा।
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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अनियमित भूतकालिक कृदन्त'
प्राकृत में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकाल के प्रत्यय और भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। भूतकालिक कृदन्त के लिए क्रिया में अ/य, त, द प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे
हस+अ/य, त, द = हसिअ/हसिय, हसित, हसिद ठा+अ/य, त, द = ठाअ/ठाय, ठात, ठाद झा+अ/य, त, द = झाअ/झाय, झात, झाद
इस प्रकार अ,त,द प्रत्यय के योग से बने भूतकालिक कृदन्त 'नियमित भूतकालिक कृदन्त' कहलाते हैं। इनमें मूल क्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः समझा जा सकता है। इन कृदन्तों के रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे।
किन्तु जब अ,त,द प्रत्यय जोड़े बिना भूतकालिक कदन्त प्राप्त हो जाए या तैयार मिले तो वे अनियमित भूतकालिक कृदन्त कहलाते हैं। इनमें मूल क्रिया को प्रत्यय से अलग करके स्पष्टतः नहीं समझा जा सकता है। जैसे
वुत्त = कहा गया; दिट्ठ = देखा गया,
दिण्ण = दिया गया आदि। - ये सभी अनियमित भूतकालिक कृदन्त है इनमें से क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है। इनके रूप भी पुल्लिंग में 'देव' के समान नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे।
__ सकर्मक क्रियाओं से बने हुए भूतकालिक कृदन्त (नियमित या अनियमित) कर्मवाच्य में ही प्रयुक्त होते हैं। केवल गत्यार्थक क्रियाओं से बने हुए भूतकालिक कृदन्त (नियमित या अंनियमित) कर्मवाच्य और कर्तृवाच्य दोनों में प्रयुक्त होते हैं।
. अकर्मक क्रियाओं से बने हुए भूतकालिक कृदन्त (नियमित या अनियमित) कर्तृवाच्य और भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं। अनियमित भूतकालिक कृदन्तों का ज्ञान साहित्य में उपलब्ध उदाहरणों के आधार से किया जाना चाहिए।
अन्य अनियमित कृदन्तों को इसी प्रकार समझ लेना चाहिए। 1. देखें 'प्राकृत अभ्यास सौरभ' अभ्यास-39 प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(89)
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अनियमित भूतकालिक कृदन्त
1. गअ = गया हुआ 2. मअ = माना हुआ 3. अप्फुण्ण = दबाया हुआ 4. उक्कोस = उत्कृष्ट, अधिक से अधिक 5. फुड = स्पष्ट 6. वोलोण = बीता हुआ 7. वोसट्ट = खिला हुआ 8. निसुट्ठ = गिराया हुआ 9. लुग्ग = रोगी हुआ 10. ल्हिक्क = नाश पाया हुआ 11. पम्हट्ठ = चोरी किया हुआ 12. विढत्त = पैदा किया हुआ 13. छित्त = छुआ हुआ 14. निमिअ = स्थापित किया हुआ 15. लुअ = काटा हुआ 16. जढ = छोड़ा हुआ 17. निच्छूढ = पीछे मुड़ा हुआ 18. पल्हत्थ = दूर रखा हुआ, फेंका हुआ 19. पलोट्ट = दूर रखा हुआ, फेंका हुआ 20. होसमण = खंखारा हुआ, घोड़े के शब्द जैसा शब्द किया हुआ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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अनियमित संबंधक कृदन्त 1. घेत्तूण = ग्रहण करके 2. वोत्तूण = बोल करके अथवा कह करके 3. रोत्तूण = रो करके 4. भोत्तूण = खा करके अथवा भोजन करके 5. मोत्तूण = छोड़ करके अथवा त्याग करके 6. दळूण = देख करके 7. काऊण = करके 8. सोऊण = सुन करके 9. जेऊण = जीत करके 10. हन्तूण = मार करके
.
अनियमित हेत्वर्थक कृदन्त 1. वोत्तुं = बोलने के लिए अथवा कहने के लिए 2. घेत्तुं = ग्रहण करने के लिए 3. रोत्तुं = रोने के लिए 4. भोत्तुं = खाने के लिए अथवा भोजन करने के लिए 5. मोत्तुं = छोड़ने के लिए अथवा त्याग करने के लिए 6. दटुं = देखने के लिए 7. काउं = करने के लिए
अनियमित विधि कृदन्त 1. घेत्तव्व = ग्रहण किया जाना चाहिए 2. वोत्तव्व = बोला जाना चाहिए अथवा कहा जाना चाहिए 3. रोत्तव्व = रोया जाना चाहिए 4. भोत्तव्व = खाया जाना चाहिए
5. मोत्तव्व = छोड़ा जाना चाहिए ... 6. दट्ठव्व = देखा जाना चाहिए __7. कायव्व = किया जाना चाहिए
8. हन्तव्व = मारा जाना चाहिए
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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परिशिष्ट-1
क्रियाओं कालबोधक प्रत्यय वर्तमानकाल अकारान्त क्रिया (हस) ..
एकवचन उत्तम पुरुष हसमि
• हसामि
हसेमि
बहुवचन हसमो, हसमु, हसम हसामो, हसामु, हसाम हसिमो, हसिमु, हसिम. हसेमो, हसेमु, हसेम हसेज्ज, हसेज्जा
हस
हसेज्ज, हसेज्जा
मध्यम पुरुष हससि, हससे
हसेसि, हसेसे हसेज्ज, हसेज्जा
हसह, हसित्था, हसध हसेह, हसेइत्था, हसेध हसेज्ज, हसेज्जा ।
अन्य पुरुष
हसइ, हसेइ, हसए हसदि, हसदे, हसेदि हसेज्ज, हसेज्जा
हसन्ति, हसन्ते, हसिरे हसेन्ति हसेज्ज, हसेज्जा
वर्तमानकाल अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन मो, मु, म ज्ज, ज्जा
एकवचन मि, . ज्ज, ज्जा
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष सि, से
ज्ज, ज्जा
ह, इत्था , ध ज्ज, ज्जा
अन्य पुरुष
इ, ए, दि, दे ज्ज, ज्जा
न्ति, न्ते, इरे ज्ज, ज्जा
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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वर्तमानकाल आकारान्त क्रिया (ठा)
एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष ठामि
ठामो, ठामु, ठाम ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा ठज्जमि, ठज्जामि
ठज्जमो, ठज्जामो ठज्जमु, ठज्जामु
ठज्जम, ठज्जाम मध्यम पुरुष ठासि
ठाह, ठाइत्था, ठाध ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा ठज्जसि, ठज्जासि
ठज्जह, ठज्जाह, ठज्जइत्था, ठज्जाइत्था,
ठज्जध, ठज्जाध अन्य पुरुष ठाइ
ठान्ति-ठन्ति ठादि
ठान्ते- ठन्ते, ठाइरे ठज्जइ, ठज्जाइ
ठज्जन्ति,ठज्जान्ति, ठज्जए, ठज्जाए
ठज्जन्ते, ठज्जान्ते,
ठज्जइरे, ठज्जाइरे (प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है)।
वर्तमानकाल
ओकारान्त क्रिया (हो) • एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष होमि
होमो, होमु, होम होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा होज्जमि, होज्जामि होज्जमो, होज्जमु, होज्जम .
होज्जामो, होज्जामु, होज्जाम
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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मध्यम पुरुष होसि
होज्ज, होज्जा होज्जसि होज्जासि
होह, होइत्था, होध होज्ज, होज्जा होज्जह, होज्जइत्था, होज्जध होज्जाह, होज्जाइत्था, होज्जाध
अन्य पुरुष
होइ, होदि होज्जइ होज्जाइ
होन्ति, होन्ते, होइरे होज्जन्ति, होज्जन्ते, होज्जइरे होज्जान्ति, होज्जान्ते, होज्जाइरे
उत्तम पुरुष
वर्तमानकाल . आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) ... एकवचन
बहुवचन मि, .
मो, मु, म ज्ज, ज्जा
ज्ज, ज्जा ज्जमि, ज्जामि
ज्जमो, ज्जामो ज्जमु, ज्जामु ज्जम, ज्जाम
मध्यम पुरुष सि, से
ज्ज, ज्जा ज्जसि ज्जासि
ह, इत्था , ध ज्ज, ज्जा ज्जह, ज्जाह ज्जइत्था, ज्जाइत्था, ज्जध, ज्जाध
अन्य पुरुष इ, दि
ज्ज, ज्जा
ज्जइ . ज्जाइ
न्ति, न्ते, इरे ज्ज, ज्जा ज्जन्ति, ज्जान्ति ज्जन्ते, ज्जान्ते ज्जइरे, ज्जाइरे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(94)
For Personal & Private Use Only
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन उत्तम पुरुष अत्थि, म्हि मध्यम पुरुष अत्थि, सि. अन्य पुरुष अत्थि
वर्तमानकाल अस (होना)
बहुवचन अत्थि, म्हो, म्ह अत्थि अत्थि
एकवचन उत्तम पुरुष हसीअ मध्यम पुरुष हसीअ अन्य पुरुष हसीअ
भूतकाल (प्राकृत भाषा) अकारान्त क्रिया (हस)
बहुवचन हसीअ हसीअ हसीअ
• भूतकाल अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन
एकवचन उत्तम पुरुष ईअ . मध्यम पुरुष ईअ अन्य पुरुष ईअ
ईअ
. भूतकाल (अर्धमागधी भाषा)
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हसित्था, हसिंसु
हसित्था, हसिंसु मध्यम पुरुष हसित्था, हसिंसु
हसित्था, हसिंसु अन्य पुरुष हसित्था, हसिंसु
हसित्था, हसिंसु
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(95)
For Personal & Private Use Only
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन उत्तम पुरुष इत्था, इंसु मध्यम पुरुष इत्था, इंसु अन्य पुरुष इत्था, इंसु
भूतकाल अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन इत्था, इंसु इत्था, इंसु इत्था, इंसु
भूतकाल (प्राकृत भाषा)
आकारान्त क्रिया (ठा) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ ठासी, ठाही, ठाहीअ मध्यम पुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ ठासी, ठाही, ठाही. अन्य पुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ ठासी, ठाही, ठाहीअ
भूतकाल (प्राकृत भाषा)
ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ मध्यम पुरुष होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ अन्य पुरुष होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(96)
For Personal & Private Use Only
Page #108
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________________
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
अन्य पुरुष
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
अन्य पुरुष
एकवचन
सी, ही, हीअ
सी, ही, हीअ
सी, ही, हीअ
भूतकाल
आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
ठाइत्था,
ठा
ठाइत्था, ठा
ठाइत्था, ठा
भूतकाल (अर्धमागधी भाषा )
आकारान्त (ठा)
एकवचन
उत्तम पुरुष होइत्था, होइंसु
मध्यम पुरुष होइत्था, होइंसु
अन्य पुरुष
होइत्था, होइंसु
-
एकवचन
इत्था, इंसु
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष इत्था, इंसु अन्य पुरुष इत्था, इंसु
बहुवचन
सी, ही, हीअ
सी, ही, हीअ
सी, ही, हीअ
भूतकाल ( अर्धमागधी भाषा ) ओकारान्त (हो)
प्राकृत-हिन्दी व्याकरण (भाग - 2)
बहुवचन
ठाइत्था, ठाइंसु
ठाइत्था, ठाइंसु
ठाइत्था, ठा
भूतकाल
आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन
होइत्था, होइ
होइत्था, हो
हत्था, हो
बहुवचन
इत्था, इं
इत्था, इंसु
इत्था, इंसु
For Personal & Private Use Only
(97)
Page #109
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________________
भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा) . .
____अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष (i) हसिहिमि, हसेहिमि हसिहिमो, हसेहिमो
हसिहिमु, हसेहिमु
हसिहिम, हसेहिम (ii) हसिस्सामि, हसेस्सामि हसिस्सामो, हसेस्सामो
हसिस्सामु, हसेस्सामु
हसिस्साम, हसेस्साम (iii) हसिहामि, हसेहामि हसिहामो, हसेहामो
हसिहामु, हसेहामु
हसिहाम, हसेहामः ।। (iv) हसिस्सं, हसेस्सं
हसिहिस्सा, हसेहिस्सा
हसिहित्था, हसेहित्था मध्यम पुरुष हसिहिसि, हसेहिसि हसिहिह, हसेहिह,
हसिहिसे, हसेहिसे हसिहित्था, हसेहित्था अन्य पुरुष हसिहिइ, हसेहिइ हसिहिन्ति, हसेहिन्ति हसिहिए, हसेहिए हसिहिन्ते, हसेहिन्ते
हसिहिइरे, हसेहिइरे
भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा)
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हिमि
हिमो, हिमु, हिम स्सामि
स्सामो, स्सामु, स्साम हामि
हामो, हामु, हाम स्सं (पूर्ण प्रत्यय) हिस्सा, हित्था (पूर्ण प्रत्यय)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(98)
For Personal & Private Use Only
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
मध्यम पुरुष हिसि, हिसे हि, हि
अन्य पुरुष
उत्तम पुरुष
एकवचन हसिस्सिमि
भविष्यत्काल (शौरसेनी भाषा )
अकारान्त क्रिया (हस )
मध्यम पुरुष हसिस्सिसि, हसिस्सिसे हसिस्सिदि, हसिस्सिदे
अन्य पुरुष
स्सिमि
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष स्सिसि, स्सिसे
अन्य पुरुष
स्सिदि, स्सिदे
हिह, हत्था
हिन्ति, हिन्ते, हिइरे
एकवचन
उत्तम पुरुष प्राकृतवत... मध्यम पुरुष हसिस्ससि, हसिस्ससे
हसेस्ससि, हसेस्ससे
अन्य पुरुष हसिस्सइ, हसेस्सइ हसेस्सइ, हसेस्सए
भविष्यत्काल (शौरसेनी भाषा )
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
बहुवचन हसिस्सिमो, हसिस्सिमु,
हसिस्सिम
हसिस्सिह, हसिस्सिइत्था, हसिस्सिध हसिस्सिन्ति, हसिस्सिन्ते, हसिस्सिइरे
भविष्यत्काल (अर्धमागधी भाषा )
अकारान्त क्रिया (हस )
स्सिमो, स्सिमु, स्सिम
स्सिह, स्सिइत्था, स्सिध
स्सिन्ति, स्सिन्ते, स्सिइरे
बहुवचन
प्राकृतवत
हसिस्सह, हसेस्सह
हसिस्सइत्था, हसेस्सइत्था
हसिस्सन्ति, हसेस्सन्ति
हसिस्सन्ते, हसेस्सन्ते
हसिस्सइरे,
हसेस्सरे
For Personal & Private Use Only
(99).
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
भविष्यत्काल (अर्धमागधी भाषा)
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) उत्तम पुरुष प्राकृतवत
प्राकृतवत मध्यम पुरुष स्ससि, स्ससे
स्सह, स्सइत्था अन्य पुरुष स्सइ, स्सए
स्सन्ति, स्सन्ते, स्सइरे
भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा)
आकारान्त क्रिया (ठा) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष (i) ठाहिमि
ठाहिमो, ठाहिमु, ठाहिम (ii) ठस्सामि
ठस्सामो, ठस्सामु, ठस्साम. (iii) ठाहामि
ठाहामो, ठाहामु, ठाहाम (iv) ठस्सं
ठाहिस्सा, ठाहित्था (v) ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा (vi) उज्जहिमि, ठज्जाहिमि ठज्जहिमो, ठज्जाहिमो
ठज्जहिमु, ठज्जाहिमु
ठज्जहिम, ठज्जाहिम (vii) ठज्जस्सामि, ठज्जास्सामि ठज्जस्सामो, ठज्जास्सामो
ठज्जस्सामु, ठज्जास्सामु
ठज्जस्साम, ठज्जास्साम (viii)ठज्जहामि, ठज्जाहामि ठज्जहामो, ठज्जाहामो
ठज्जहामु, ठज्जाहामु ठज्जहाम, ठज्जाहाम
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(100)
For Personal & Private Use Only
Page #112
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________________
मध्यम पुरुष(i)ठाहिसि
ठाहिह, ठाहित्था (ii) ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा (iii) उज्जहिसि, ठज्जाहिसि ठज्जहिह, ठज्जाहिह
ठज्जहित्था, ठज्जाहित्था अन्य पुरुष (i) ठाहिइ
ठाहिन्ति, ठाहिन्ते, ठाहिहरे या ठाहिरे (ii) ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा (iii)ठज्जहिइ, ठज्जाहिद ठज्जहिन्ति, ठज्जाहिन्ति
ठज्जहिन्ते, ठज्जाहिन्ते
ठज्जहिइरे, ठज्जाहिइरे भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा)
ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष (i) होहिमि
होहिमो, होहिमु, होहिम (ii) होस्सामि
होस्सामो, होस्सामु, होस्साम (iii) होहामि
होहामो, होहामु, होहाम (iv) होस्सं
होहिस्सा, होहित्था (v) होज्ज, होज्जा . . होज्ज, होज्जा (vi) होज्जहिमि, होज्जाहिमि होज्जहिमो, होज्जाहिमो,
होज्जहिमु, होज्जाहिमु
होज्जहिम, होज्जाहिम (vii) होज्जस्सामि, होज्जास्सामि होज्जस्सामो, होज्जास्सामो
होज्जस्सामु, होज्जास्सामु होज्जस्साम, होज्जास्साम
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(101) .
For Personal & Private Use Only
Page #113
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________________
(viii) होज्जहामि, होज्जाहामि
मध्यम पुरुष(i) होहिसि
(ii) होज्ज, होज्जा (iii) होज्जहिसि, होज्जाहिसि
होज्जहामो, होज्जाहामो होज्जहामु, होज्जाहामु होज्जहाम, होज्जाहाम होहिह, होहित्था होज्ज, होज्जा होज्जहिह, होज्जाहिह होज्जहित्था, होज्जाहित्था होज्जस्सिह, होज्जास्सिह होज्जस्सिध, होज्जास्सिध होहिन्ति, होहिन्ते, होहिरे या होहिइरे होज्ज, होज्जा
. होज्जहिन्ति, होज्जाहिन्तिः होज्जहिन्ते, होज्जाहिन्ते होज्जहिइरे, होज्जाहिइरे
(iv) होज्जस्सिसि, होज्जास्सिसि
अन्य पुरुष. (i) होहिइ
(ii)होज्ज, होज्जा (iii) होज्जहिइ, होज्जाहिइ
एकवचन
उत्तम पुरुष
भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा) आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन हिमि
हिमो, हिमु, हिम स्सामि,
स्सामो, स्सामु, स्साम हामि
हामो, हामु, हाम
हिस्सा, हित्था ज्ज, ज्जा
ज्ज, ज्जा ज्जहिमि, ज्जाहिमि ज्जहिमो, ज्जाहिमो
सं
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(102)
For Personal & Private Use Only
Page #114
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________________
ज्जस्सामि, ज्जहामि, ज्जाहामि
मध्यम पुरुष हिसि
ज्ज, ज्जा
ज्जहिसि
जाहिसि
अन्य पुरुष हिइ
ज्ञ, ज्जा
ज्जहिइ, ज्जाहिर
एकवचन
उत्तम पुरुष (i) ठस्सिमि
ज्जास्सामि
(ii) ठज्जस्सिमि, ठज्जास्सिमि
प्राकृत-हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2
-2)
ज्जहिमु, ज्जाहिमु,
ज्जहिम, ज्जाहिम
ज्जस्सामो,
ज्जास्सामो
ज्जस्सामु, ज्जास्सामु
ज्जस्साम, ज्जास्साम
ज्जहामो, ज्जाहामो,
ज्हामु, ज्जाहामु,
ज्जहाम, ज्जाहाम
हिह, हत्था
ज्ज, ज्जा
ज्जहिह, ज्जहित्था
ज्जाहिह, ज्जाहित्था
हिन्ति, हिन्ते, हिइरे या हिरे
भविष्यत्काल (शौरसेनी भाषा )
आकारान्त क्रिया (ठा)
ज्ज, ज्जा
ज्जहिन्ति, ज्जाहिन्ति
ज्जहिते, ज्जाहिन्ते
ज्जहिरे, ज्जाहिइरे
बहुवचन ठस्सिमो, ठस्सिमु, ठस्सिम
ठज्जस्सिमो, ठज्जास्सिमो ठज्जस्सिमु, ठज्जास्सिमु
ठज्जस्सिम, ठज्जास्सिम
For Personal & Private Use Only
(103)
Page #115
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________________
मध्यम पुरुष(i)ठस्सिसि
(ii) ठज्जस्सिसि, ठज्जास्सिसि
ठस्सिह, ठस्सिइत्था, ठस्सिध ठज्जस्सिह, ठज्जास्सिह ठज्जस्सिइत्था, ठज्जास्सिइत्था ठज्जस्सिध, ठज्जास्सिध ठस्सिन्ति, ठस्सिन्ते, ठस्सिइरे ठज्जस्सिन्ति, ठज्जास्सिन्ति । ठज्जस्सिन्ते, ठज्जास्सिन्ते । ठज्जस्सिइरे, ठज्जास्सिइरे
अन्य पुरुष (i) ठस्सिदि
__ (i) ठज्जस्सिदि, ठज्जास्सिदि
भविष्यत्काल (शौरसेनी भाषा)
___ ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष (i) होस्सिमि
होस्सिमो, होस्सिमु, होस्सिम (ii) होज्जस्सिमि, होज्जास्सिमि होज्जस्सिमो, होज्जास्सिमो
होज्जस्सिमु, होज्जास्सिमु
होज्जस्सिम, होज्जास्सिम मध्यम पुरुष(i)होस्सिसि
होस्सिह, होस्सिइत्था, होस्सिध (ii) होज्जस्सिसि, होज्जास्सिसि । होज्जस्सिह, होज्जास्सिह
होज्जस्सिइत्था, होज्जास्सिइत्था
होज्जस्सिध, होज्जास्सिध अन्य पुरुष (i) होस्सिदि
होस्सिन्ति, होस्सिन्ते, होस्सिरे (ii) होज्जस्सिदि, होज्जास्सिदि होज्जस्सिन्ति, होज्जास्सिन्ति
होज्जस्सिन्ते, होज्जास्सिन्ते होज्जस्सिइरे, होज्जास्सिरे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(104)
For Personal & Private Use Only
Page #116
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________________
भविष्यत्काल (शौरसेनी भाषा) आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष स्सिमि
स्सिमो, स्सिमु, स्सिम ज्जस्सिमि, ज्जास्सिमि ज्जस्सिमो, ज्जास्सिमो
ज्जस्सिमु, ज्जास्सिमु
ज्जस्सिम, ज्जास्सिम मध्यम पुरुष स्सिसि
स्सिह, स्सिइत्था, स्सिध ज्जस्सिसि
ज्जस्सिह, ज्जस्सिइत्था, ज्जस्सिध ज्जास्सिसि
ज्जास्सिह, ज्जास्सिइत्था, ज्जास्सिध अन्य पुरुष स्सिदि
स्सिन्ति, स्सिन्ते, स्सिइरे ज्जस्सिदि, ज्जास्सिदि ज्जस्सिन्ति, ज्जस्सिन्ते, ज्जस्सिइरे
ज्जास्सिन्ति, ज्जास्सिन्ते, ज्जास्सिइरे भविष्यत्काल (अर्धमागधी भाषा)
आकारान्त क्रिया (ठा) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष प्राकृतवत
प्राकृतवत मध्यम पुरुष(i)ठस्ससि
ठस्सह, ठस्सइत्था .. (ii) ठज्जस्ससि, ठज्जास्ससि ठज्जस्सह, ठज्जास्सह
ठज्जस्सइत्था, ठज्जास्सइत्था अन्य पुरुष (i) ठस्सइ
ठस्सन्ति, ठस्सन्ते, ठस्सइरे (iii) ठज्जस्सइ, ठज्जास्सइ ठज्जस्सन्ति, ठज्जास्सन्ति
ठज्जस्सन्ते, ठज्जास्सन्ते ठज्जस्सइरे, ठज्जास्सइरे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(105)
For Personal & Private Use Only
Page #117
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________________
भविष्यत्काल (अर्धमागधी भाषा)
आकारान्त क्रिया (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष प्राकृतवत
प्राकृतवत मध्यम पुरुष(i)होस्ससि
होस्सह, होस्सइत्था . (ii) होज्जस्ससि, होज्जास्ससि होज्जस्सह, होज्जास्सह
होज्जस्सइत्था, होज्जास्सइत्था अन्य पुरुष (i) होस्सइ
होस्सन्ति, होस्सन्ते, होस्सइरे. (ii) होज्जस्सइ, होज्जास्सइ . होज्जस्सन्ति, होज्जास्सन्ति
होज्जस्सन्ते, होज्जास्सन्ते होज्जस्सइरे, होज्जास्सइरे
एकवचन
भविष्यत्काल (अर्धमागधी भाषा) आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन उत्तम पुरुष प्राकृतवत
प्राकृतवत मध्यम पुरुष स्ससि
स्सह, स्सइत्था, स्सध ज्जस्ससि, ज्जास्ससि ज्जस्सह, ज्जास्सह
ज्जस्सइत्था, ज्जास्सइत्था अन्य पुरुष स्सइ
स्सन्ति, स्सन्ते, स्सइरे ज्जस्सइ, ज्जास्सइ
ज्जस्सन्ति, ज्जास्सन्ति ज्जस्सन्ते, ज्जास्सन्ते ज्जस्सिरे, ज्जास्सिइरे
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(106)
For Personal & Private Use Only
Page #118
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________________
भविष्यत्काल (प्राकृत भाषा)
अकारान्त क्रिया (सोच्छ) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष (i) सोच्छिमि, सोच्छेमि सोच्छिमो, सोच्छेमो
सोच्छिमु, सोच्छेमु
सोच्छिम, सोच्छेम (ii) सोच्छिहिमि
सोच्छिहिमो, सोच्छिहिमु, सोच्छिहिम, (iii) सोच्छिस्सामि . सोच्छिस्सामो, सोच्छिस्सामु,
सोच्छिस्साम (iv) सोच्छिहामि
सोच्छिहामो, सोच्छिहामु, सोच्छिहाम (v) सोच्छिस्सं
सोच्छिहिस्सा, सोच्छिहित्था (vi) सोच्छं मध्यम पुरुष (i) सोच्छिसि, सोच्छेसि सोच्छिह, सोच्छेह . सोच्छिसे, सोच्छेसे सोच्छित्था, सोच्छेइत्था
(ii) सोच्छिहिसि, सोच्छिहिसे सोच्छिहिह, सोच्छिहित्था
(iii) सोच्छिस्ससि, सोच्छिस्ससे सोच्छिस्सह, सोच्छिस्सइत्था अन्य पुरुष (i) सोच्छिइ, सोच्छेइ सोच्छिन्ति, सोच्छेन्ति
- सोच्छिए, सोच्छेए सोच्छिन्ते, सोच्छिरे ..(ii) सोच्छिहिइ, सोच्छिहिए सोच्छिहिन्ति, सोच्छिहिन्ते,सोच्छिहिइरे (iii) सोच्छिस्सइ, सोच्छिस्सए । सोच्छिस्सन्ति, सोच्छिस्सन्ते,
सोच्छिस्सइरे
()
__ विधि एवं आज्ञा (प्राकृत भाषा)
. अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हसमु, हसेमु
हसमो, हसेमो हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा ... हसेज्जइ.
हसेज्जइ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(107)
.
For Personal & Private Use Only
Page #119
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________________
हसह, हसेह हसध, हसेध हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्जइ
मध्यम पुरुष हससु, हसहि, हसधि
हसेसु, हसेहि, हसेधि हसेज्जसु, हसेज्जहि, हसेज्जे हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्जइ अन्य पुरुष हसउ, हसेउ
हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्जइ
हसन्तु, हसेन्तु हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्जइ
विधि एवं आज्ञा
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष · मु ज्ज, ज्जा, ज्जइ
ज्ज, ज्जा, ज्जइ मध्यम पुरुष सु, हि, धि
ह, ध 0 (शून्य),
ज्ज, ज्जा, ज्जइ इज्जसु, इज्जहि, इज्जे
ज्ज, ज्जा, ज्जइ अन्य पुरुष उ, दु ज्ज, ज्जा, ज्जइ
ज्ज, ज्जा, ज्जइ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(108)
For Personal & Private Use Only
Page #120
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________________
विधि एवं आज्ञा (अर्धमागधी भाषा)
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हसेज्जा, हसेज्जामि हसेज्जाम मध्यम पुरुष हसेज्जा, हसेज्जासि, हसेज्जाह
हसेज्जाहि अन्य पुरुष हसे, हसेज्जा
हसेज्जा
विधि एवं आज्ञा
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष एज्जा, एज्जामि ,
एज्जाम मध्यम पुरुष एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि एज्जाह अन्य पुरुष ए, एज्जा
एज्जा
उत्तम पुरुष
विधि एवं आज्ञा (प्राकृत भाषा)
आकारान्त क्रिया (ठा) · एकवचन
बहुवचन ठामु
ठामो ठज्ज, ठज्जा
ठज्ज, ठज्जा ठज्जमु, ठज्जामु
ठज्जमो, ठज्जामो ठज्जइ
ठज्जइ
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(109)
For Personal & Private Use Only
Page #121
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________________
मंध्यम पुरुष ठासु, ठाहि, ठाधि
ठज्ज, ठज्जा ठज्जसु, ठज्जहि ठज्जासु, ठज्जाहि
ठज्जइ अन्य पुरुष ठाउ, ठादु
ठज्ज, ठज्जा ठज्जउ, ठज्जाउ ठज्जइ
ठाह, ठाध . ठज्ज, ठज्जा ठज्जह, ठाज्जध ठज्जाह, ठज्जाध ठज्जइ ठान्तु--ठन्तु ठज्ज, ठज्जा ठज्जन्तु, ठज्जान्तु ठज्जइ
ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष होमु
होमो होज्ज, होज्जा होज, होज्जा होज्जमु, होज्जामु होज्जमो, होज्जामो होज्जइ
होज्जइ मध्यम पुरुष होसु, होहि, होधि होह, होध होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा होज्जसु, होज्जाहि होज्जह, होज्जध होज्जासु, होज्जाहि होज्जाह, होज्जाध होज्जइ
होज्जइ अन्य पुरुष होउ, होदु । होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा होज्जउ, होज्जाउ होज्जन्तु, होज्जान्तु होज्जइ
होज्जइ प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
होन्तु
(110)
For Personal & Private Use Only
Page #122
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________________
मो
विधि एवं आज्ञा आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष मु ज्ज, ज्जा
ज्ज, ज्जा ज्जमु, ज्जामु
ज्जमो, ज्जामो ज्जइ मध्यम पुरुष सु, हि, धि ज्ज, ज्जा
ज्ज, ज्जा ज्जसु, ज्जासु, ज्जहि, ज्जह, ज्जाह ज्जाहि, ज्जधि, ज्जाधि
ज्जइ
ज्ज
इ.
ज्जइ
पुरुष उ, दु ज्ज, ज्जा
ज्ज, ज्जा ज्जउ, ज्जाउ, ज्जदु, ज्जादु जन्तु, ज्जान्तु - ज्जइ
. ज्जइ विधि एवं आज्ञा (अर्धमागधी भाषा) . . . आकारान्त क्रिया (ठा) .. एकवचन.
बहुवचन उत्तम पुरुष ठाएज्जा, ठाएज्जामि
ठाएज्जाम मध्यम पुरुष ठाएज्जा, ठाएज्जासि, ठाएज्जाहि ठाएज्जाह अन्य पुरुष ठाएज्जा
ठाएज्जा
", ठाएज्जामि
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(111)
For Personal & Private Use Only
Page #123
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________________
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
अन्य पुरुष
विधि एवं आज्ञा (अर्धमागधी भाषा )
आकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
एज्जा, एज्जामि
एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि
एज्जा
एकवचन
उत्तम पुरुष होज्जा, होज्जामि
मध्यम पुरुष होज्जा, होज्जासि, होज्जाहि
अन्य पुरुष
होज्जा
विधि एवं आज्ञा (अर्धमागधी भाषा )
ओकारान्त क्रिया (हो)
एकवचन
उत्तम पुरुष ज्जा, ज्जामि
मध्यम पुरुष ज्जा, ज्जासि,
अन्य पुरुष
ज्जा
बहुवचन
एज्जाम
एज्जाह
एज्जा
विधि एवं आज्ञा (अर्धमागधी भाषा )
ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
ज्जाहि
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
बहुवचन
हज्जाम
होज्जाह
होज्जा
बहुवचन
ज्जाम
ज्जाह
ज्जा
For Personal & Private Use Only
(112)
Page #124
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________________
क्रियातिपत्ति
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा मध्यम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्य पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा
क्रियातिपत्ति अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
उत्तम पुरुष ज्ज, ज्जा मध्यम पुरुष ज्ज, ज्जा अन्य पुरुष ज्ज, ज्जा
बहुवचन ज्ज, ज्जा ज्ज, ज्जा
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(113)
For Personal & Private Use Only
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-2 आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों के सन्दर्भ
2.
क्रिया-रूप एवं कालबोधक प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 3/141 व वृत्ति, 3/154, 3/158
3/144, 3/155, 3/158 3/140, 3/158
3/143, 4/268, 3/158 . 5. 3/139, 4/273, 4/274, 3/158
3/142, 3/158 3/146 3/147 3/147
3/148 11. 3/163, पिशल पृ. 752-753
3/162, पिशल पृ. 751-755
3/164 _3/166, 3/167, 3/141 3/157, 3/169, 4/275
3/166, 3/157, 3/144, 3/167, 3/168, 4/275 16. 3/166, 3/157, 3/140, 4/275 17. 3/166, 3/157, 3/144, 4/275, 4/268
3/166, 3/157, 3/139, 4/275, 4/273
3/166, 3/157, 3/142, 4/275 20. 3/170 21. 3/171
12.
13.
14.
15.
18.
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(114)
For Personal & Private Use Only
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
22.
24.
26.
_3/172 23. 3/172
3/172 25. 3/172
3/172 27. 3/172 28. 3/173, 3/158, पिशल, पृ.680, घाटगे, पृ.129 29... 3/176, 3/158, पिशल, पृ.681, 682
3/173, 3/174, 3/158, 3/175, पिशल, पृ.683, 684
3/176, 3/158 पिशल, पृ.679, घाटगे, पृ.129 32. ___3/173, 3/158, पिशल, पृ.679, घाटगे, पृ.129 33. 3/176, 3/158, पिशल, पृ.679,घाटगे, पृ.129 34. 3/165, 3/159 35. 3/177, 3/159 36. 3/178 37. 3/179, 3/159 .
30.
31.
कृदन्तों के नियम नियम सूत्र . . . संख्या संख्या
3/157 2. 2/146, 4/271, 4/312
2/146 4.... 3/156 5. . 3/181 6. 3/182
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(115) .
For Personal & Private Use Only
Page #127
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________________
भाववाच्य एंव कर्मवाच्य के नियम
नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 3/160 2. 3/160
स्वार्थिक प्रत्ययों के नियम
नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 2/164
प्रेरणार्थक प्रत्ययों के नियम
नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 3/149
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(116)
For Personal & Private Use Only
Page #128
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________________
विविध प्राकृत क्रियाओं के नियम
एकार्थक बहुविध क्रियाएँ अकर्मक
एकार्थक बहुविध क्रियाएँ सकर्मक सूत्र संख्या 4/2 4/4
4/5
inim tvo só o
एकार्थक एकार्थक एकविध एकविध क्रियाएँ क्रियाएँ
अकर्मक सकर्मक क्रम सूत्र सूत्र संख्या संख्या संख्या 1. 4/15 4/3 2. 4/62 4/6 3. 4/67 4/6 4. 4/68 4/6 5. 4/78 4/9 6. 4/874/34 7. 4/1234/40
4/157 ___4/52 • 4/174 4/54 4/179 ___4/66
4/186 - 4/67 12. 4/215 4/69 13. 4/2174/72 14. 4/217. 4/73 15... 4/217 4/88 16. - 4/219 4/92 17. . 4/219 4/97 18. 4/2204/149 19. 4/224 4/151 20. 4/2244/184 21. . 4/225 4/184
संख्या 4/11 4/12 4/14 4/16 .4/17 4/18 4/20 4/48 4/53 4/56 4/57 4/60 4/63 4/70 4/77 4/79 4/80 4/81 4/98 4/99 4/100
4/7 4/10 4/13 4/19 4/21 4/22 4/24 4/25 4/26 4/27 4/28 4/29 4/30 4/31 4/32 4/33
4/35
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(117) -
For Personal & Private Use Only
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________________
4/51
31.
22. 4/225 4/186 4/101 4/36 23. 4/227 4/188 4/103 4/38 24. 4/230 4/215 4/114 4/39 25. 4/230 4/215 4/117 4/43 26. 4/230 4/215 4/118 4/45 27. 4/230 4/216 4/127 . 4/47 28. 4/233 4/216 4/128 4/49
4/233 4/217 4/130 4/50 4/234 ___4/217 4/131 4/235 ____4/221 4/132 4/58.
4/236 4/222 4/135 4/59 33. 4/236 4/225 4/136 4/65 34. 4/236 4/226 4/138 4/74 35. ___4/236 4/228 4/140 4/75
4/239 ___4/228 ___4/146 4/76 4/239 4/230 4/147 4/82
4/230 4/148 4/83 4/230 4/150 4/84 4/230 4/152 4/230 4/153 4/90 4/230 4/154 4/91 4/2304/158 4/93 4/233 4/159 4/94 4/233 4/167 4/96 4/234 4/168 4/102 4/234 4/170-172 ___4/104 4/234 4/173 4/105 4/234 4/175 4/106 4/234 4/176 4/107
36.
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प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(118)
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61.
62.
63.
64.
65.
66.
67.
68.
69.
70.
71.
72.
73.
74.
75.
76.
77.
78.
79.
1
4/234
4/234
4/235
4/235
4/235
4/236
4/238
4/238
4/239
4/239
4/239
4/239
4/239
4/239
4/239
4/240
4/241
4/241
4/241
4/241
4/241
4/241
4/241
प्राकृत-1 - हिन्दी-व्याकरण (भाग - 2)
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4/195
4/196
4/197
4/198
4/200
4/201
4/202
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80.
81.
82.
83.
84.
85.
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88.
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90.
91.
92.
93.
94.
95.
96.
97.
98.
99.
100.
101.
102.
103.
104.
105.
T
प्राकृत
a-fe-at
I
1
1
1
I
1
I
T
J
1
-व्याकरण ( भाग - 2)
For Personal & Private Use Only
4/166
4/169.
4/180
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4/190
4/191
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4/193
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4/199 4/204 4/205 4/206 4/208
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4/218
4/223
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4/231
4/233 4/238
(120)
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________________
द्वयार्थक क्रिया-रूपों के नियम
क्रम
सूत्र
संख्या
संख्या
1-12
4/259, 4/86
उपसर्ग-युक्त भिन्नार्थक क्रिया-रूपों के नियम
क्रम
संख्या
1-13
क्रम
संख्या
1-8
9
वर्तमानकाल
अन्य पुरुष एकवचन
10-11
10-11
12-15
16-20
21-28
29-32
33
34-35
36
37
38-39
40
41
सूत्र
संख्या
4/259
अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया-रूपों के नियम
भविष्यत्काल
सूत्र
संख्या
4/242.
4/243
4/244
4/244
4/245
4/248
4/249
4/250
4/251
4/252
4/253
4/254
4/255
4/256
4/257
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
अन्य पुरुष एकवचन
क्रम
संख्या
1-8
9
10-11
12-20
21-28
For Personal & Private Use Only
सूत्र
संख्या
4/242
4/243
4/244
4/248
4/249
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________________
सूत्र
अनियमित भूतकालिक कृदन्तों के नियम क्रम संख्या
संख्या 4/258
1-22 .
अनियमित संबंधक कृदन्तों के नियम क्रम संख्या
संख्या 1-10
4/210, 211, 212, 213, 214; 241,244 ..
अनियमित संबंधक कृदन्तों के नियम क्रम संख्या . संख्या 1-8
4/210, 211, 212, 213, 214
सूत्र
अनियमित संबंधक कृदन्तों के नियम क्रम संख्या
संख्या . 1-8
4/210, 211, 212, 213, 214, 244
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(122)
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परिशिष्ट-3
सम्मति अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण
श्रीमती शकुन्तला जैन ने आपके निर्देशन में अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण की रचना करके हिन्दी भाषियों के लिए अपभ्रंश भाषा सीखने का सुगम मार्ग प्रशस्त किया है। एतदर्थ वे साधुवाद की पात्र हैं। पूर्ववर्ती व्याकरण संस्कृत के माध्यम से सूत्रशैली में होने के कारण सामान्य लोगों के लिए दुरुह रहे हैं। इस कारण अपभ्रंश का पठन-पाठन भी बहुशः बाधित रहा है और उसके अभाव में हिन्दी जगत अपभ्रंश भाषाओं के वाङ्मय में संचित रिक्थ से वंचित ही रहा है। आपने हिन्दी माध्यम से सरल भाषा में अपभ्रंश व्याकरण की रचना प्रस्तुत करके नवीन पद्धति का सूत्रपात किया है।
आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों को ध्यान में रखकर जो यह व्याकरण तैयार किया गया है, उसके द्वारा हिन्दी के विद्यार्थी संस्कृत जाने बिना ही अपभ्रंश सीख सकेंगे, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। पहले संस्कृत सूत्र और उनमें दिए गए पारिभाषिक शब्द समझने तथा उनकी संगति लगाने का श्रम करना पड़ता था। हिन्दी का विद्यार्थी सीधे-सीधे तृतीया विभक्ति तो समझता है किंतु 'टाभ्याम्-भ्यस्'. की शब्दावली से उद्वेजित होकर पहले संस्कृत विभक्तियों की पारिभाषिकता में उलझता है, फिर उसके समानांतर अपभ्रंश की विभक्तियाँ मस्तिष्क में उतारता है। इसमें उसे व्यर्थ का श्रम करना पड़ता है। इसलिए वह अपभ्रंश को क्लिष्ट मानकर उसके अध्ययन से विरत हो जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक में अपभ्रंश भाषा की संरचना का एक ढाँचा वर्णित है। संज्ञा, सर्वनाम के रूपों, क्रियारूपों, कृदन्तों आदि की रचना सरल ढंग से
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
(123)
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समझाई गई है। प्रतीत होता है कि पुस्तक अपभ्रंश के प्रारंभिक छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
हिन्दी जगत को आपने ऐसी कृति से समृद्ध किया है, इसके लिए हिन्दी भाषी जनसमुदाय, हिन्दी - अध्यापक और विद्यार्थी आपके चिरकृतज्ञ रहेंगे।
प्राकृत - हिन्दी-व्याकरण ( भाग - 2 )
डॉ. आनन्द मंगल वाजपेयी वरिष्ट फेलो (इंडोलोजी) संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार
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(124)
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________________
सम्मति प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
आचार्य हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण लोक-प्रसिद्ध, व्याकरण के क्षेत्र में अग्रणी एवं प्राकृत के प्रत्येक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाला है। प्रो. कमलचन्द सोगाणी एक कुशल दार्शनिक हैं। वे खुले-विचारक एवं चिन्तनशील व्यक्ति हैं। उन्होंने प्राकृत व्याकरण के क्षेत्र को व्यापक बनाने के लिए उदयपुर के पश्चात जयपुर में सन् 1988 से प्राकृत साहित्य जगत की प्रगति के लिए जो विद्वान तैयार किए हैं, वे नई ऊँचाइयों को प्राप्त हैं। विदुषी लेखिकाएँ भी आगे आकर प्राकृत को जनोपयोगी बना रही हैं। उन्हीं विदुषी लेखिकाओं में श्रीमती शकुन्तला जैन शौरसेनी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री आदि प्राकृत के नियमों को अति सरल बनाने में समर्थ हुई हैं। उन्होंने प्रारम्भिक वर्णमाला से लेकर प्राकृत के जो रूप दिए हैं वे सामान्य पाठक के लिए उपयोगी
उन्होंने संज्ञा शब्दों के रूपों में महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची एवं अर्धमागधी के प्रयोग दिए हैं। इसमें सभी लिंगों, सभी कारकों आदि को एक ही स्थल पर रखकर पाठकों के लिए रूपों को बोधगम्य बना दिया है।
निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन नोटः उपर्युक्त दो सम्मतियाँ पुस्तक प्रकाशित होने के बाद प्राप्त हुई हैं। अतः इन्हें पुस्तक के अंत में दिया जा रहा हैं। दूसरे संस्करण में इन्हें उचित स्थान पर दे दिया जायेगा।
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सर्वनाम शब्दों के रूपों को रेखांकित करके जो ज्ञान कराने का प्रयास किया है वह सभी वर्गों के समझने योग्य है। हम आगम के सूत्रों तथा संस्कृत नाटकों की प्राकृत समझने में तभी सफल हो सकते हैं जब इस तरह की 'प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण' अपने हाथ में हो। पृ. 74 से 163 तक के रूप प्राकृत के प्रयोगों को समझने में सहायक होंगे। शब्द कोश का परिशिष्ट प्राकृत शब्द और अर्थ को प्रतिपादित करने वाला है।
प्राकृत के प्रति रूचि इस तरह के व्याकरण से अवश्य जागृत होगी। लेखिका बधाई की पात्र हैं और मेरे लिए प्राकृत की नई दृष्टि देने वाले प्रो. कमलचन्द सोगाणी आदर्श गुरु हैं। उनका निर्देशन आगम साहित्य, उसका व्याख्या साहित्य एवं काव्य के साथ नाट्यशास्त्र के नियम में बद्ध नाटकों के प्राकृत अंशों के पढ़ने-पढ़ाने में रुचि उत्पन्न अवश्य ही करेगा। अध्यापक, विद्यार्थी आदि के अतिरिक्त साधुओं के सामायिक, प्रतिक्रमण, सूत्र ग्रन्थों और पाहुड़ पाठों के पाठ भी समझे जा सकेंगे। हमारे जैन श्रावक जैन श्रमणों के लिए इस तरह के व्याकरण शास्त्ररूप में भेंटकर उनका अनन्य उपकार कर सकेंगे। यह पुण्यार्जन का शुभ क्षण कर्मों की निर्जरा भी कर सकेगा।
V
Dr. Udai Chand Jain
Ex. Associate Professor
Deptt. of Jainology & Prakrit [CSSH] M.L. Sukhadia Univergity, UDAIPUR
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सम्मति अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण
प्रचीन हिन्दी साहित्य के बिहारी, घनानन्द, जायसी, तुलसी, केशव, मतिराम, सूर, कबीर आदि के काव्य हर क्षेत्र में पढ़े जाते हैं, उनके कवित्व गाये जाते हैं। उनके प्रयोगों को ब्रज भाषा आदि का नाम दे दिया गया है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में उस समय की भाषा को कैसे समझा जा सके, इसके लिए चाहिए अपभ्रंश-व्याकरण के नियम, उनके सूत्रों का विश्लेषण और उनकी विविध प्रयोग शैली। भारतीय नाट्यशास्त्र के रचनाकार भरत मुनि ने सर्वप्रथम अपभ्रंश को उकार बहुला कहकर उसके वैशिष्ट्य को बतला दिया। चण्ड कवि ने भी यही कहा। आचार्य हेमचन्द्र ने विधिवत सूत्र देते हुए अपभ्रंश कवियों के गीतों को उदाहरण रूप में रखने का जो कार्य किया वह अपने समय का महनीय कार्य कहा जाता था और अब भी वही पूर्णरूप से अपभ्रंश व्याकरणों के पन्नों पर विद्यमान है। अपभ्रंश व्याकरणकार जो भी कह पाए या लिख पाए, उसमें आचार्य हेमचन्द्र द्वारा प्रयुक्त सूत्रों की दृष्टि है।
प्रो. कमलचन्द सोगाणी प्राकृत के साथ-साथ अपभ्रंश को कई वर्षों से महत्त्व दे रहे हैं। उससे सम्बन्धित कोर्स, पाठ्यक्रम, सेमिनार, पत्रिका आदि भी प्रकाशित किए जा रहे हैं। पठन-पाठन में अपभ्रंश के जो भी व्यक्ति रुचिशील बने हैं, वे प्रायः हिन्दी साहित्य को पढ़ाने वाले प्रोफेसर, रीडर एवं प्राध्यापक हैं। 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' के इस प्रयास से जन-सामान्य भी अधिक से अधिक जुड़ेगा।
निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन
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श्रीमती शकुन्तला जैन ने इस अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया-कृदन्त आदि देकर पाठकों के लिए इसे सरल व्याकरण बना दिया है। अपभ्रंश भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिन्दी के विद्यार्थी इससे सीधा लाभ प्राप्त कर सकेंगे। शकुन्तला जी आप जिस निर्देशन से गतिशील बन रहीं हैं, वह आपके लिए अनुपम सीख का कार्य करेगा।
Dr. Udai Chand Jain
• Ex. Associate Professor Deptt. of Jainology & Prakrit [CSSH] M.L. Sukhadia Univergity,
UDAIPUR
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सम्मति
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण (भाग - 1)
आपके द्वारा संपादित, श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा लिखित एवं अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण (भाग - 1 ) नामक पुस्तक जो कि आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों पर आधारित है, प्राप्त कर अतीव प्रसन्नता हुई। यह ग्रंथ प्राकृत व्याकरण के सूत्रों में उलझे बिना सरलतम हिन्दी भाषा में प्राकृत के व्याकरण और उसके विभिन्न स्वरूपों को समझने हेतु अत्यन्त उपयोगी है। इससे उन प्राकृत जिज्ञासु पाठकों को भी लाभ होगा, जो संस्कृत माध्यम के बिना ही सीधे प्राकृत व्याकरण समझना चाहते हैं। अतः इस ग्रंथ की विदुषी लेखिका और आपको इस अति उपयोगी ग्रंथ प्रस्तुत करने के लिये हमारी और हमारे संस्थान की ओर से हार्दिक मंगल कामनायें स्वीकृत कीजिए ।
वास्तव में आपने अपभ्रंश साहित्य अकादमी के माध्यम से प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के व्यापक विकास-प्रचार-प्रसार का कार्य जबसे संभाला है तबसे इन दोनों भाषाओं के अध्ययन के प्रति सभी वर्गों में जो आकर्षण और . जागरूकता बढ़ी है, वह इस क्षेत्र में अनुपम क्रान्ति है। आपकी प्रेरणा से और आपके द्वारा और आपके मार्गर्दशन से इन विषयों के अनेक विद्वान और विदुषी तैयार होकर सामने आये हैं और निरन्तर आ रहे हैं, जिन्होंने इस विषय का उत्कृष्ट साहित्य सृजन और प्रचार-प्रसार कर इन भाषाओं के अध्ययनअध्यापन का सरलतम मार्ग प्रशस्त किया है। आप निरन्तर मौन भाव से अपनी निर्देशन एवं संपादन - डॉ. कमलचन्द सोगाणी
लेखिका - श्रीमती
शकुन्तला
जैन
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श्रेष्ठ टीम के साथ इस उम्र में भी इन प्राकृत अपभ्रंश भाषाओं की सेवा में संलग्न हैं, यह देखकर हम लोगों को प्रसन्नता तो होती ही है, साथ ही प्रोत्साहन और प्रेरणा भी प्राप्त होती हैं। हम भी सदा आपके मार्गदर्शन के इच्छुक रहते हैं। आपके स्वास्थमय दीर्घ जीवन की शुभकामनाओं के साथ
प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष
जैनदर्शन विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
.. वाराणसी
एवं
निदेशक बी. एल. प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
दिल्ली
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सम्मति प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
आपके द्वारा प्रेषित श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा प्रस्तुत पुस्तक 'प्राकृत हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)' पुस्तक मिली। प्राकृत भाषाओं के प्रायः सभी नियम हिन्दी में उपलब्ध कराकर लेखिका और सम्पादक महोदय ने प्रेरणास्पद कार्य किया है। प्रारम्भ में जो 1 से 48 एवं 1 से 15 नियम पुस्तक में दिये हैं वे सामान्य प्राकृत के हैं, जिसे प्रायः सभी वैयाकरण महाराष्ट्री प्राकृत कहते हैं। इन नियमों के अभ्यास से प्राकृत काव्य, कथा एवं चरित ग्रन्थों को समझा जा सकता है। पुस्तक में इन नियमों के आगे जो अन्य प्राकृतों के विशिष्ट नियम दिये गये हैं, वहाँ यह समझना चाहिये कि उनमें प्रारम्भ के 1 से 48 एवं 1 से 15 नियम भी प्रायः प्रयोग में आते हैं। अतः यह पुस्तक किसी भी प्राकृत के स्वाध्याय के लिए उपयोगी प्रतीत होती है। पुस्तक में दिये गये परिशिष्टों से पुस्तक की प्रामाणिकता भी स्पष्ट होती है। इससे लेखिका का सारस्वत श्रम सार्थक हुआ है। आशा है, अकादमी के ऐसे प्रकाशनों से प्राकृत के पठन-पाठन के प्रति समाज में रुचि बढ़ेगी। पुस्तक के आगामी भाग शीघ्र प्रकाश में आयेंगे, यह उम्मीद की जा सकती है। पुस्तक का प्रकाशन नयनाभिराम है। बधाई।
डॉ. प्रेमसुमन जैन - पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष :
जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय
उदयपुर निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन
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अभिमत अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण
प्रस्तुत पुस्तक 'अपभ्रंश हिन्दी व्याकरण' आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों को समझने में जितनी उपयोगी है, उतनी ही अपभ्रंश भाषा के साहित्य के उन पाठकों एवं सम्पादकों के लिए भी जो सीधे हिन्दी के माध्यम से अपभ्रंश सीखना चाहते हैं। इस पुस्तक में अपभ्रंश भाषा के प्रायः सभी प्रयोगों की व्याख्या सरल भाषा में आ गयी है । हिन्दी पाठकों पर श्रीमती शकुन्तला जैन का यह उपकार है कि उन्होंने हिन्दी भाषा की आधारशिला और आधुनिक भाषाओं की जननी अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने का एक सुगम मार्ग खोल दिया है। इस पुस्तक से उन सम्पादकों / अनुवादकों को भी मदद मिलेगी जो अपभ्रंश की पाण्डुलिपियों को प्रकाश में लाना चाहते हैं । श्रीमती शकुन्तला जैन
इसके लिए बधाई । मुझे प्रसन्नता है कि प्रोफेसर कमलचन्द सोगाणी ने हिन्दी के माध्यम से प्राकृत - अपभ्रंश पढ़ने-पढ़ाने का जो अभियान चलाया है, उसको इस प्रकार की पुस्तक से गति मिलेगी। प्राच्यविद्या एवं भाषाओं के क्षेत्र में श्रीमती जैन की इस पुस्तक का स्वागत होना चाहिए । प्रकाशन भी बहुत सुन्दर हुआ है।
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
डॉ. प्रेमसुमन जैन पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग
मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय
उदयपुर
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परिशिष्ट-4 प्राकृत-व्याकरण संबंधी उपयोगी सूचनाएँ
(हिन्दी में लिखित पुस्तकें)
प्राकृत-व्याकरण के अन्य पहलुओं के लिए देखें: 1. प्राकृत-व्याकरण - डॉ. कमलचन्द सोगाणी
(अपभ्रंश साहित्य अकादमी, 2005) . प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग-1) - डॉ. कमलचन्द सोगाणी (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, 1999)
_1.
प्राकृत-व्याकरण में वर्णित विषय 1. सन्धि 2. सन्धि प्रयोग के उदाहरण 3. समास 4. समास प्रयोग के उदाहरण 5. कारक 6. तद्धित 7. स्त्री-प्रत्यय 8. अव्यय एवं वाक्य प्रयोग
2.
प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग-1) में वर्णित विषय 1. संख्यावाचक शब्द पृष्ठ 145 2. संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग पृष्ठ 160 3. क्रमवाचक संख्या शब्द पृष्ठ 163
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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अपभ्रंश-व्याकरण के अन्य पहलुओं के लिए देखें: अपभ्रंश-व्याकरण डॉ. कमलचन्द सोगाणी
( अपभ्रंश साहित्य अकादमी, 2007)
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ( भाग - 1 )
( अपभ्रंश साहित्य अकादमी, 1997)
1.
2.
1.
अपभ्रंश-व्याकरण संबंधी उपयोगी सूचनाएँ (हिन्दी में लिखित पुस्तकें)
2.
अपभ्रंश-व्याकरण में वर्णित विषय 1. सन्धि
2. सन्धि प्रयोग के उदाहरण
3. समास
4. समास प्रयोग के उदाहरण.
5. कारक
4. विशेषण गुणवाचक
5. वर्तमान कृदन्त
6. भूतकालिक कृदन्त
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ( भाग - 1 ) में वर्णित विषय
1. अव्यय
पृष्ठ 1
2. संख्यावाचक शब्द एवं प्रयोग
पृष्ठ 37
3. विशेषण ( सार्बनामिक)
पृष्ठ 63
पृष्ठ 82
पृष्ठ 91
पृष्ठ 96
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग - 2)
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डॉ. कमलचन्द सोगाणी
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1.
2.
3.
संदर्भ ग्रन्थ हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2 व्याख्याता श्री प्यारचन्द जी महाराज
(श्री जैन दिवाकर-दिव्य ज्योति
कार्यालय, मेवाड़ी बाजार, ब्यावर) . प्राकृत भाषाओं का व्याकरण : लेखक -डॉ. आर. पिशल
हिन्दी अनुवादक - डॉ. हेमचन्द्र जोशी
(बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना) पाइय-सद्द-महण्णवो
: पं. हरगोविन्ददास त्रिविक्रमचन्द्र सेठ
(प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ, भाग-1 : डॉ. कमलचन्द सोगाणी
(अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) प्राकृत-व्याकरण
: डॉ. कमलचन्द सोगाणी संधि-समास-कारक-तद्धित
(अपभ्रंश साहित्य स्त्री प्रत्यय-अव्यय वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग-1) : डॉ. कमलचन्द सोगाणी
श्रीमती सीमा ढींगरा
(अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग-2) : डॉ. कमलचन्द सोगाणी
4.
5.
साहित्य
पुर)
6.
7.
श्रीमती सीमा ढींगरा
8.
प्राकृत अभ्यास सौरभ
(अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) : डॉ. कमलचन्द सोगाणी (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर)
प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-2)
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मन्तव्य प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्ययन कर हमें उन्नसवीं सदी के प्रारम्भिक काल का स्मरण आ रहा है, जब आधुनिक भारतीय भाषाओं (M.I.L.) के स्रोतों की खोज की जा रही थी। अखण्ड भारत के लाहौर के गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलेज के प्रो. डॉ. ए.सी. बुलनर, ढाका विश्वविद्यालय के डॉ. शहीदुल्ला तथा डॉ. सु.कु. चटर्जी, डॉ. सेन, Linguistic Survey of India के 18 भागों के लेखक डॉ. जार्ज ग्रियर्सन आदि की खोजों के बाद निर्णय किया गया था कि आधुनिक भारत की भाषाओं के विकास का मूल स्रोत प्राकृत-भाषा है।
___ तत्पश्चात हिन्दी-व्याकरण विषयक सभी स्तरों के अनेक ग्रन्थ लिखे गये किन्तु प्राकृत एवं हिन्दी व्याकरण का सर्वगम्य तुलनात्मक अध्ययन दृष्टिगोचर नहीं हुआ था। अतः मेरी दृष्टि से श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा लिखिप्त तथा प्रो. डॉ. कमलचन्द सोगाणी द्वारा सम्पादित उक्त प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) सम्भवतः सर्वप्रथम प्रकाशित ग्रन्थ है, जिसके प्रस्तुत प्रथम-भाग में प्राकृत की वर्णमाला से लेकर विभिन्न प्रमुख प्राकृतों की विभक्तियों में चलने वाले शब्द-रूपों को तुलनात्मक मानचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
. चूँकि प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण का यह प्रथम-भाग मात्र है, अतः इसमें केवल प्राकृत-व्याकरण के नियमों की ही चर्चा की गई है। उसके अगले
निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन
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भागों में हिन्दी-व्याकरण के नियमों की सोदाहरण चर्चा कर तथा प्राकृत हिन्दी के विकसित शब्द-रूपों तथा धातु-रूपों की तुलनात्मक भाषा-वैज्ञानिक विवेचना भी की जायेगी ऐसा विश्वास है।
इस क्षेत्र में यह अवधारणा तथा उसे साकार करने का सम्भवतः यह सर्वप्रथम प्रयास है, जो सराहनीय है।
Prof. Dr. Raja Ram Jain Ex. University Prof & Head of Sanskrit and Prakrit (Under Magadh University Services)
Hon. Director - D. K. J. Oriental Research Institute. Arrah (Bihar)
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