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________________ (क) विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम जब क्रिया सकर्मक होती है तो प्राकृत भाषा में विधि कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति ( एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। के कृ रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे (क) 1 (i) कीणि अव्वो/कीणियव्वो/कीणितव्वो/ कीणिदव्वो/कीणणीयो / आदि = खरीदा जाना चाहिए। (पुल्लिंग एकवचन) (ii) कीणिअव्वा/कीणियव्वा/कीणितव्वा/कीणिदव्वा/कीणणीया/आदि खरीदे जाने चाहिए। (पुल्लिंग बहुवचन) (क) 2 (i) पेच्छिअव्वं /पेच्छियव्वं/पेच्छितव्वं/पेच्छिदव्वं/ पेच्छणीयं / आदि देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग एकवचन) (ii) पेच्छिअव्वाइं / पेच्छियव्वाइं/पेच्छितव्वाइं/पेच्छिदव्वाइं/पेच्छणीयाई / आदि = देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग बहुवचन) (क) 3 (i) पेसिअव्वा / पेसियव्वा / पेसितव्वा / पेसिदव्वा/पेसणीया/ आदि भेजा जाना चाहिए। (स्त्रीलिंग एकवचन ) = = (ii) पेसिअव्वा/पेसिअव्वाउ/पेसिअव्वाओ / पेसणीया / आदि चाहिए। (स्त्रीलिंग बहुवचन) प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 ) Jain Education International For Personal & Private Use Only = = भेजे जाने (50) www.jainelibrary.org
SR No.004205
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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