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मन्तव्य प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्ययन कर हमें उन्नसवीं सदी के प्रारम्भिक काल का स्मरण आ रहा है, जब आधुनिक भारतीय भाषाओं (M.I.L.) के स्रोतों की खोज की जा रही थी। अखण्ड भारत के लाहौर के गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलेज के प्रो. डॉ. ए.सी. बुलनर, ढाका विश्वविद्यालय के डॉ. शहीदुल्ला तथा डॉ. सु.कु. चटर्जी, डॉ. सेन, Linguistic Survey of India के 18 भागों के लेखक डॉ. जार्ज ग्रियर्सन आदि की खोजों के बाद निर्णय किया गया था कि आधुनिक भारत की भाषाओं के विकास का मूल स्रोत प्राकृत-भाषा है।
___ तत्पश्चात हिन्दी-व्याकरण विषयक सभी स्तरों के अनेक ग्रन्थ लिखे गये किन्तु प्राकृत एवं हिन्दी व्याकरण का सर्वगम्य तुलनात्मक अध्ययन दृष्टिगोचर नहीं हुआ था। अतः मेरी दृष्टि से श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा लिखिप्त तथा प्रो. डॉ. कमलचन्द सोगाणी द्वारा सम्पादित उक्त प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) सम्भवतः सर्वप्रथम प्रकाशित ग्रन्थ है, जिसके प्रस्तुत प्रथम-भाग में प्राकृत की वर्णमाला से लेकर विभिन्न प्रमुख प्राकृतों की विभक्तियों में चलने वाले शब्द-रूपों को तुलनात्मक मानचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
. चूँकि प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण का यह प्रथम-भाग मात्र है, अतः इसमें केवल प्राकृत-व्याकरण के नियमों की ही चर्चा की गई है। उसके अगले
निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन
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