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दृष्टिकोण से हमारे लिये उपयोगी नहीं है । हमारा उद्देश्य तो प्राकृत के द्वितीय आकार को समझना है, जिससे महावीर के उपदेशों को समझा जा सके। इसलिए हम हेमचन्द्र के प्राकृत शब्दों का अर्थ प्राकृत की परिवर्तनशील प्रकृति के अनुरूप राष्ट्र भाषा हिन्दी में ढूँढेंगे। अतः हम आचार्य हेमचन्द्र की प्राकृत क्रियाओं को हिन्दी के आधार से समझने का प्रयास करेंगे।
1.
2.
विशेष अध्ययन के लिए
भारत की प्राचीन आर्यभाषाएँ - डॉ. राजमल बोरा प्रकाशक- हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय,
दिल्ली विश्वविद्यालय, 1999
पाइय-सद्द-महण्णवो - पं. हरगोविन्ददास त्रिविक्रमचन्द्र सेठ प्रकाशक - प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी
प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण ( भाग - 2 )
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