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________________ सम्मति अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण प्रचीन हिन्दी साहित्य के बिहारी, घनानन्द, जायसी, तुलसी, केशव, मतिराम, सूर, कबीर आदि के काव्य हर क्षेत्र में पढ़े जाते हैं, उनके कवित्व गाये जाते हैं। उनके प्रयोगों को ब्रज भाषा आदि का नाम दे दिया गया है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में उस समय की भाषा को कैसे समझा जा सके, इसके लिए चाहिए अपभ्रंश-व्याकरण के नियम, उनके सूत्रों का विश्लेषण और उनकी विविध प्रयोग शैली। भारतीय नाट्यशास्त्र के रचनाकार भरत मुनि ने सर्वप्रथम अपभ्रंश को उकार बहुला कहकर उसके वैशिष्ट्य को बतला दिया। चण्ड कवि ने भी यही कहा। आचार्य हेमचन्द्र ने विधिवत सूत्र देते हुए अपभ्रंश कवियों के गीतों को उदाहरण रूप में रखने का जो कार्य किया वह अपने समय का महनीय कार्य कहा जाता था और अब भी वही पूर्णरूप से अपभ्रंश व्याकरणों के पन्नों पर विद्यमान है। अपभ्रंश व्याकरणकार जो भी कह पाए या लिख पाए, उसमें आचार्य हेमचन्द्र द्वारा प्रयुक्त सूत्रों की दृष्टि है। प्रो. कमलचन्द सोगाणी प्राकृत के साथ-साथ अपभ्रंश को कई वर्षों से महत्त्व दे रहे हैं। उससे सम्बन्धित कोर्स, पाठ्यक्रम, सेमिनार, पत्रिका आदि भी प्रकाशित किए जा रहे हैं। पठन-पाठन में अपभ्रंश के जो भी व्यक्ति रुचिशील बने हैं, वे प्रायः हिन्दी साहित्य को पढ़ाने वाले प्रोफेसर, रीडर एवं प्राध्यापक हैं। 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' के इस प्रयास से जन-सामान्य भी अधिक से अधिक जुड़ेगा। निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004205
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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