Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation
Catalog link: https://jainqq.org/explore/008706/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਦਦੇਹੀ For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बिखरे मोती : आशीर्वाद : शासन प्रभावक आचार्य देवेश श्रीमत् पद्मसागर सूरीश्वर जी म० : संप्रेरक : गणिवर्य श्री देवेन्द्र सागर जी म० : संग्रह संकलन : अशोक मोदी : प्रकाशक : अष्टमंगल फाउन्डेशन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहमदाबाद For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: प्रकाशक :श्री अष्टमंगल फउन्डेशन एन/5 मूघालय फ्लेटस, सरदार पटेल कोलोनी के पास, नारणपुरा, अहमदाबाद - 380014 फोन नं - 446634. 811552 पुस्तक - बिखरे मोती विधा - आत्महितार्थ श्रेष्ठ चिंतन संस्करण - 1994 प्रतियाँ - 2000 मूल्य - 10 = 00 सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन संरचना एवं टंकण :मिशन करोल बाग नई दिल्ली फोन - 5750516 मुद्रक – ओसवाल प्रिन्टर्स एण्ड पब्लिशर्स प्रा० लि०, आगरा प्राप्ति स्थान - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र पोस्ट-कोबा -382009 जि - गांधीनगर (गुजरात) फोन नं0 - 02792, 76205, 76204 For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: प्रकाशकिय : आत्मजागृति की दृष्टि से महापुरुषों की वाणी का श्रवण - मनन का अपना एक विशेष महत्व है । परन्तु भौतिक जगत के युग में ऐसे भाग्यशाली सद्गृहस्थों की संख्या अधिक नहीं है, जिनको महान् पुरुषों की वाणी-सत्संग और समागम का नियमित समय या सुअवसर मिल पाता हो । अधिकतर वे जीवन की अपनी भागदौड में ही इतने उलझे रहते हैं कि चाहते हुए भी वे उनका लाभ नहीं उठा पाते । जनसामान्य की इस विवशता को ध्यान में रखकर ही " अष्टमंगल फाउन्डेशन" ने विशिष्ट संतो के प्रेरणास्पद एवं पठनीय चिंतन को पुस्तकाकार में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। जिससे कि जिज्ञासु कोई भी पाठक सुविधानुसार उनको पढ़कर लाभ उठा सके । 66 " शब्दों की अपनी सीमा है, किन्तु जब वे भावों के साथ घुल-मिल जाते हैं तो जीवन परिवर्तन का सुहावना माहौल निर्मित कर देते हैं।” ऐसे विचारों के उद्बोधक राष्ट्रसंत आचार्य देवेश श्री पद्मसागर सूरीश्वर जी म. सा. एक समर्थ आचार्य ही नहीं, प्रभावशाली प्रवचनकार भी है | प्रस्तुत "बिखरे मोती” नामक पुस्तक में पूज्य गुरुवर के भी हृदय स्पर्शी चिंतनों को भी संकलित किया है । चिंतनों का संग्रह - संकलन अशोक वी० मोदी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है। मंडार (राज) निवासी उदारमना सखा श्रेष्ठिवर्य श्री हुकमिचंदजी समर. थमलजी चौवटिया की धार्मिक अस्था का परिणाम रूप वे चौवटीय समस्त परिवार के संग धन्यवाद के पात्र है, जिन के पूर्ण आर्थिक सहयोग ने पुस्तक प्रकाशन में महत्त्व की भूमिका निभाई । साकेत प्रकाश व सिध्दार्थ प्रकाश ने इम्प्रेस ओफसेट में अलप अवधि में कलात्मक व आकर्षक पुस्तक प्रकाशन में योगदान दिया । For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “अष्टमंगल फाउन्डेशन" समाजोपयोगी लोक भोग्य पुस्ताकों के प्रकाशन में रुचि रखती आ रही है "बिखरे मोती" के प्रकाशन से उसी दिशा में संस्था ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। लां 0 अष्टमंगल फाउन्डेशन For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( आरम्भ ) ज्ञान आत्मा का गुण है। जैसे-जैसे ज्ञान प्रकट होता जाता है, आत्मा शुद्ध बनती जाती है। ज्ञान पूर्वक आत्मा का विचार करना चाहिए। ज्ञान स्व और पर-दोनों को ही प्रकाशित करता है। सम्यक्ज्ञान आते ही आत्मा को परमात्मा बनाने के लिये जीवन में परिवर्तन होने लगता है और त्याग, संयम, अपरिग्रह, मैत्री, क्षमा जैसे अनंत गुण आने लगते है। 'ज्ञान' को 'सागर' की उपमा दी है। 'सागर रत्नाकर है'। 'सुमेरु' औषधिपति है। 'सागर' तल में छुपा है अगणित सुवर्ण मणि मोती रत्नों का 'अखूट खजाना' है। 'सुमेरु' के श्रृंग-श्रृंग पर उगी है, दिव्य वनस्पतियाँ, ‘संजीवनी औषधियाँ'। उहरा गोता लगाने वाला सागर तल में 'छुपे मोती-रत्नों' को प्राप्त कर लेता है। निरन्तर धैर्यपूर्वक सुमेरु की यात्रा करने वाला प्राप्त कर लेता है, 'प्राणदायी संजीवनी वनस्पतियाँ'। 'दही' के भीतर छुपा है, 'मृदु-मृदुल नवनीत' । अध्ययनरत मन के अन्तस्तल में छुपे है - 'विचारों के दिव्य भौतिक रत्न'। For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शास्त्र व ग्रन्थों के पन्ने-पन्ने व पंक्ति-पंक्ति पर अंकित है भावों की बहुमूल्य मणियाँ। 'दधि-मंथन' करने वाला पाता है - 'नवनीत' । 'मनो-मंथन' करने वाला पाता है - "विचार रत्न'। शास्त्र मंथन - महान पुरुषों की अमृतमय वाणी का श्रवण व स्वाध्याय चिंतन करने वाला पाता है - “अनुभव ज्ञान की मूल्यवान् मणियाँ" । आध्यात्म के बड़े-बड़े ग्रन्थों का पाठ करना हर किसी को सुलभ नहीं हो पाता, इसलिए महापुरुषों के सार पूर्ण छोटे-छोटे अमृतमय सुवचन, अनमोल चिंतन पढ़कर आपको उन गुणों की रमणीयता का अनुभव होगा, उनमें ठिो आध्यात्मिक उल्लास की अनुभूति होगी। ___ मेरे उपकारी पूज्य गुरुवर गणिवर्य श्री देवेन्द्र सागर जी म. सा. ने सरल और सुन्दर भाषामें अलंकृति करने का कार्य किया है ताकि पाठक वर्ग व चिंतक वर्ग को अपने "बिखरे मोती" इकट्ठे करने में सुगमता होगी। इसी में कृति की कृतकृत्यता है। - पूज्य उपकारी गुरुवर श्री ने प्रेरणा देकर श्रत भक्ति-सेवा का मौका दिया। मैं पूज्य गणिवर्य श्री देवेन्द्र सागर जी का आभार मानता हूँ जो उन्होने आर्थिक सहयोग प्रदान कर मेरी भावना को साकार किया। _ 'अष्टमंगल फपउन्डेशन ने इसे जल्दी प्रकाशित कर लोकार्पण कार्य किया। अशोक वि-मोदी भीनमाल - (राज) ता. 3-11-94 For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बिखरे मोती दिव्य आशीर्वाद दिव्याशिषदाता चारित्र चूडामणि, अजोड संयमी आचार्य प्रवर श्रीमत् कैलाससागर सूरीश्वर जी म. सा. आशीर्वाद दाता राष्ट्रसंत, शासन प्रभावक, प्रखर वक्ता आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वर जी म. सा. संप्रेरक साहित्य प्रेमी गणिवर्य श्री देवेन्द्र सागर जी म.सा. प्रकाशक श्री अष्टमंगल फाउन्डेशन अहमदाबाद गुजरात Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संग्रहसंकलन अशोक मोदी - भीनमाल राज प्रकाशक : श्री अष्टमंगल फाउन्डेशन antar - 382009 जिला गांधीनगर गुजरात पुस्तक बिखरे मोती विधा - आत्महितार्थ श्रेष्ठ विचार - संस्करण - वि सं 2041 प्रतियॉ 2000 मूल्य - 10 = 00 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन प्राप्तिस्थान - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र पोस्ट कोबा - 382009 जिला गांधीनगर, गुजरात For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पूर्वस्वर आकाश की अनेक बदलियों में से स्वाती - नक्षत्र के जल की एक बूंद भी यदि सागर की किसी मीन के मुख में पड़ जाए तो लेने वाला एवं देने वाला, वह मुहूर्त सभी धन्य बन जाते हैं। उस जल का एक बिंदु भी मोती बन जाता है । उस मोती माल को पहनने से वदन- क्रान्ति तो निखरती ही है, साथ ही संग्रह करने से ऋिद्धि-प्राप्ति एवं खाने से आरोग्य - वृद्धि होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार के सुभग-संयोग स्वाती - जल की तरह और पुण्यशाली जीव सागर की मीन के मानिंद हैं। संसार के दावानल तो सदा प्रज्वलंत हैं; सामान्य जल इन्हें शमन करने में असमर्थ / अशक्तिमान् है । ऐसे वक्त में स्वाती - जल की विशेष अपेक्षा है, भाग्य - सागर के मीन की महती आवश्यकता है 1 स्वाती -- जल की तरह यह संग्रह है; जिसका नाम है: 1 “ बिखरे मोती ” । नित्य सुप्रभात में, शांत एकांत में, ज्ञानध्यान के सुनहरे पवित्र पलों में आत्मदेव जब हृदय - सिंहासन पट पर विराजित हों; तब ये चितंन - पुष्प-भाव मौक्तिक आत्मा पर आरूढ़ हो जाएँ तो बेड़ा पार 1 For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org । बेड़ा पार करने का सौभाग्य तो किसी बड़ेभागी को ही वरण करता है; परंतु वही मध्यम भाग्य वाले को भी ये मौक्तिक धन्य बनाने में पूर्णरूपेण सक्षम हैं । युक्तिपूर्वक आत्मदेव को अर्पित करने का यदि प्रयत्न किया जाए तो - अल्पभाग्य महद्भाग्य में परिणत होने में वक्त नहीं लगेगा। पूर्ण विश्वास के साथ प्राचीन संतों ने इन बातों का अनेकों बार पुनरुच्चारण किया है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन्दगी तो आत्म शक्ति की एक कसौटी है, जिसके जाँचकर्ता हम स्वयं ही हैं, अतः अपने जीवन की इस कसौटी पर खरा उतरने के लिए, समुद्र की कोख में छिपे मुक्ता - मणियों की तरह चमक और बहुमूल्यता प्राप्त करने के लिए अपनी जिन्दगी के हर पल हर क्षण की सार्थकता दूसरों के हितार्थ उत्सर्ग करना ही वास्तव में सफल जीवन की रहस्यमयी कुंजी है । तारों के मध्य चमकते चन्द्र की भाँति बनकर अपना नाम सत्कर्मों के द्वारा रोशन करना ही सच्ची जिन्दगी है । विचार - रत्न- मंजूषा तो मौक्तिकों से परिपूर्ण है, आशा है कि इष्ट देव को अर्पित करने हेतु नित्य प्रभात में, प्रति पल एकाध मोती साथ ही रहेगा ।. सी. के. बोहरा 2 For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra :- समर्पण :जिन्होंने मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाया है। जिन्होंने मुझे ज्ञान के मोतियों से सजाया है। ऐसे गुरुवर के पावन चरणों में भेंट चढ़ाने, ये सेवक बिखरे मोती चुन के लाया है। अशोक मोदी For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: आत्मा एक; आयाम अनेक :सच्चे गुरु के सही निर्देशन का अभाव अनुशासनहीनता लाता है। हे भव्यात्माओ! कृतज्ञ बनो। कृतज्ञता ही कृपा के द्वार खोलती हैं। विश्वनाथ अरिहंत परमात्मा का अनुग्रह अनूठा है, जो उसे प्राप्त करने में सफल बनता है। वह कृत-कृत्य हो जाता है। हे भव्यात्माओं! पर पंचायत में मत पड़ो, मन में भी उसका विचार मत करो। पर पंचायत तुम्हारी आत्मा को मलीन करने वाली है, सावधान रहो। हे भव्यात्माओं! सिद्ध भगवान् के ज्ञानानुसार यह संसार अनादिकाल से इसी तरह चल रहा है। उसमें किसी की इच्छा या अनिच्छा का प्रश्न ही नहीं है। इसलिये प्रभुजी के प्रभुजी के प्रति सर्मपण भाव धारण करो। समत्व भाव बनाये रखो। "सेवा और सज्जनता ईश्वर भक्ति का ही श्रेष्ठतम् रूप है।" For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "हे भव्यात्माओं! तुम्हारी आत्मा सहज मल से मलीन है। उसकी शुद्धि हेतु शुद्ध स्वरूप अरिहंत प्रभु के साथ अपने अन्तःकरण को जोड़ो, प्रभु नाम स्मरण में मस्त रहो।" “हे भव्यात्माओं ! तुम्हें अंततः सिद्ध स्वरूप प्राप्त करना है। अतः उनका निरन्तर ध्यान करते रहो।" _“हे भव्यात्माओं! सभी जीव तुम्हारे उपकारी है अतः उनके कल्याणार्थ 'शिवमस्तु सर्वजगतः” की भावना नित्य रखो।" "हे भव्यात्माओं! तुम्हारे आचरण से किसी जीव को असद्भाव धर्म के प्रति उत्पन्न न होने पाये, ऐसी सावधानी सदैव बरतो।" _ “हे भव्यात्माओं! भाषा समिति के अभाव में बहुत कर्म-बन्ध हो रहा है। सदैव हित, मित, सत्य एवं पथ्य वचन ही बोलो।" "तप का मूल धैर्य है।" For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "हे भव्यात्माओं! चारों संज्ञाओं का क्षय होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए आहार संज्ञा के ह्रास हेतु अनहारी स्वरूप का विचार बार-बार करते रहो।" (आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा, परिग्रह-संज्ञा) "भय-संज्ञा के ह्रास हेतु अभयदाता अरिहंत प्रभु का ध्यान व भक्ति करो। मैथुन-संज्ञा के ह्रास हेतु पर पदार्थ की असारता देखो।" "हे भव्यात्माओं! प्रभुजी फरमाते हैं :समयं गोयमं। मा पमाये हे गौतम अल्प समय मात्र का भी आलस मत करो, प्रमाद मत करो। क्योंकि प्रतिक्षण सात कों का अपनी आत्मा पर कर्म-बंधन निरंतर हो रहा है। अतः सदैव यल बनाये रखो। अपने जीवन को कोमलता, क्षमा, संतोष से अलंकृत बनाओ। कभी विकथा मत कहो और अन्त में। आत्मा को कभी मत भूलो सफल जीवन की यही साधना है। प्रत्येक स्थिति को समतापूर्वक स्वीकार करना.सीखो।" "मूळ ही वास्तविक परिग्रह है।" For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक जीवन के सात अलंकार (1) सरलताः- “सरलता आत्म-कल्याण की बुनियाद है।" (2) कृतज्ञताः- “उपकारी के उपकारों को स्वीकार कर, उनको याद रखना, आत्म प्रगति का मार्ग है। इसलिये ही कहा गया है कि कृतज्ञता ही कृपा के द्वार खोलने की श्रेष्ठ चाबी है।" (3) समर्पण:- “अनन्त उपकारी जिनेश्वर प्रभु की शरणागति स्वीकारना ही भव-मुक्ति, आनन्द-मंगल कल्याण, एवं शांति का अवध्य मार्ग है।" (4) पश्चात्ताप :- “अनेक दोषों एवं भूलों से भरे हम अपनी आत्मा का शुद्धिकरण शुद्ध हृदय से पश्चात्ताप-तप द्वारा ही कर संकते हैं।" (5) करुणा :- “कोमलता द्वारा ही कृपालु से मिलन होता है। अतः जीवमात्र को अभयदान देने के लिये अपने अन्तःकरण को करुणाशील बनाना परम आवश्यक है।" (6) निराशंस भाव :- “इच्छा ही संसार है, इच्छा ही बंधन है। For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अतः इच्छा - शक्ति रहित होना ही परम पुरुषार्थ है । इसी परिप्रेक्ष्य में कहा गया है कि : -: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "चाह गई, चिंता मिटी, मनुवा बेपरवाह I जाको कछु न चाहिये, वह शाहों का शाह" सुरक्षित जीवन भी उसी का नाम है जो जीवन में निःस्वार्थ भाव से अपने शुभ व उचित कर्तव्यों का पालन सदा करता रहे।” आत्मजागृतिः- “परम सुख का सोपान ही निज आत्मा के घर में बास है । पर - घर - बास ही सब दुःखों व विपत्तिओं का कारण है । अपने लक्ष्य में यह होना ही चाहिये कि आत्मा का घर अर्थात् समत्व । समता ही आत्मा है, समता ही परमात्मा है, समत्व ही मोक्ष है ।” = " आध्यात्मिक जीवन का परम लक्ष्य अपनी आत्मा को समत्व से रंग डालना है । यही मानव की परम सफलता है । आज नहीं तो कल, इस भव में नही तो, आगामी भवों में भी हासिल तो इसे ही करना है । इसे ही प्राप्त करने का हमारा जीवन-लक्ष्य होना चाहिये और लक्ष्य प्राप्ति के लिये 8 For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयत्नशील भी रहना चाहिये।" ____ “भक्ति-गंगा अध्यात्म के पूर्णानंद सागर में अपनी आत्मा को ले जाती "सुख तो केवल मोक्ष में है, संसार तो दुःख रूप, दुःख फलक, एवं दुःखानुबंधक हैं। मोक्ष का सुख पूर्ण अक्षय एवं शाश्वत है। उस पूर्णानंद स्वरूप को कैसे प्राप्त किया जाय? यही सोचें। For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: एक क्षण : "जीवन में सब कुछ एक क्षण है, एक क्षण की जागृति मोक्ष का सोपान बन जाती है। एक क्षण का प्रमाद, नरक की दीर्घ वेदना प्रदान कर जाता जो हर क्षण का सही उपयोग कर जाता है, उसकी साधना सफल हो जाती है। प्रमादी कभी उन क्षणों का सही उपयोग नहीं कर पाता; ऐसा उसके लिये दुर्लभ है, वह क्षण भी दुर्लभ है, वह बार-बार नहीं आता। वह क्षण होता है, प्रथम सम्यक्त्व प्राप्त करने का क्षण। सम्यक्त्व प्राप्ति के क्षण का सही उपयोग करो, स्वयं के लिये मोक्ष मार्ग निश्चित करो। मिथ्यात्व में तो आत्मा व स्थिति अनंतकाल से है। परंतु प्रथम उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करने का क्षण, उसके पहले ग्रंथि-भेदन का क्षण, ये दुर्लभ क्षण प्राप्त होते ही संसार मर्यादित हो जाता है। अधिक से अधिक अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल तक का। इस क्षण को प्राप्त करने वालों को उच्च स्थिति प्राप्त हुई है, जहाँ से पतन की कोई संभावना नहीं है। बस यही क्षण दुर्लभ है।" “मोक्ष का सुख पूर्ण अक्षय एवं शाश्वत है। इस पूर्णानंद स्वरूप को पाने के लिये यशोविजय जी महाराज ने फरमाया है किः “श्री जिन-वाणी रूप श्रुत सागर में गहन अवगहन करने पर मुझे यह सार प्राप्त हुआ है कि जिसे पूर्णानंद स्वरूप परमात्म-पद की आकांक्षा उत्पन्न हुई हो, उसे स्व-आत्मा को परमात्म-भक्ति से ओत-प्रोत कर देना चाहिये" 10 For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "सुपात्र दान सर्वोत्कृष्ट सुख प्राप्ति का साधन है।" आओ चिन्तन करें। "हे स्वामिन मैं कब देह से ममत्व बुद्धि त्यागकर, श्रद्धा से अंतः करण को पवित्र करके, शुद्ध विवेक को धारण कर, अन्य स्व संग का त्यागकर शत्रु मित्र पर समान दृष्टि रखते हुए, संयम मार्ग को स्वीकार कर पाऊँगा?" For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " केवल अभेदात्मक जीवन मोक्ष में है, शरवीर आत्माएँ वहाँ पहुँचने के लिये परम पुरूषार्थ का सेवन करती हैं। मध्यम शक्ति वाली आत्माएँ इनकी शरणागति से प्रगति करती हैं। पर्याय को पकड़कर जीने से कभी शांति नहीं मिल सकती, क्योंकि पर्याय तो परिवर्तनशील हैं। भरोसा केवल आत्म-द्रव्य का ही किया जा सकता है। सर्व स्वात्म तुल्य दर्शन ही सम्यक् दर्शन हैं।" "सारे संसारी जीव अहम् और मम के निविड पाश में बंधे हुए हैं। लंबे काल तक विविध योग साधना द्वारा जीव कई प्रकार की लब्धियाँ व शक्तियाँ तो प्राप्त कर लेता है, पर अहम् और मम के पाश ढीले नहीं होते, इन पाशों से छूटकर परम पद प्राप्ति का एक मात्र साधन अहम् और मम रूप मोह के विजेता अरिहंत परमात्मा की शरणागति हैं। वीतराग प्रभु की सेवा उपासना द्वारा ही यह जीव वीतराग पद को प्राप्त कर सकता है।" " जीव अपने ही कर्मो से स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है।" ___ " हे वीतराग! आप ही मेरे देव हैं। आपका बतलाया हुआ धर्म ही मेरा धर्म है। इस प्रकार का मेरा स्वरूप विचार कर अब आपश्री के इस सेवक की उपेक्षा करना उचित नहीं है। " 12 For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " जैसे कुएँ में पड़ा हआ व्यक्ति, कुएँ से बाहर रहे व्यक्ति के सहारे से ही बाहर निकल पाता है। वैसे ही हम संसारी मोह-गर्व में पड़े हुए हैं। हम मोह विजेता जिनेश्वर देव का आलंबन लिये विना मोह पाश का नाश कर संसार-पाश से मुक्त नहीं हो सकते। परमात्मा के आलंबन विना कर्मबद्ध आत्मा मोह का क्षय करने में समर्थ नहीं बनती।" " हे परमेश्वर! जिन कामादिक शत्रुओं ने सभी देव-दानवों को जीत लिया है, आपने उन्हें सर्वथा परास्त कर दिया है। किन्तु आपको जीतने में असमर्थ वे शत्रु मानो क्रोधित होकर, आपके सेवक, मुझे बहुत हैरान कर रहे हैं, यह खेद जनक है।" “ आत्म-सुख स्वाधीन है, और नहीं एह समान। एम जाणी निजरूप में, वरते धरी बहुमान" " आओ हम उन त्रिलोकीनाथ अरिहंत प्रभु की उपासना करें, जो सब क्षेत्र काल में अपने नाम आकृति, द्वव्य व भाव निक्षेपों के द्वारा तीन जगत् के जीवों को पवित्र कर रहे हैं। परमात्मा अरिहंत प्रभु जगत के सच्चे परमेश्वर हैं। इसलिये किसी भी काल या किसी भी क्षेत्र के अरिहंत का किसी निक्षेप से आलंबन लेने पर भव्यात्मा का निश्चय ही कल्याण होता है। " For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ " हे परमेश्वर! सभी प्राणियों को मुक्ति में ले जाने का आप में सामर्थ्य है, तो फिर क्रिया रहित दीन एवं आपके चरण कमलों में लीन, मेरी रक्षा आप क्यों नहीं करते? " “ वीतराग सर्वज्ञ भगवान् स्वभावतः अचिंत्य शक्ति से युक्त होते हैं। परम कल्याण स्वरूप होते हैं। वे जीव मात्र के परम बंधु, परम रक्षक, परमतारक एवं आधारभूत होते “ हे जिनेन्द्र जिस पुरूष के अन्तः करण में आपके चरण कमलों का युगल स्फुरायमान हो, वहॉ निश्चय ही तीन जगत् की लक्ष्मी सहचारिणी रूप आश्रय लेती हैं।" “ केवलज्ञान के प्रकाशक देवाधिदेव परमात्मा शरीर रहित होने पर भी, अपने अनन्तवीर्य प्रभाव से भव्यात्माओं को भव चक्र से मुक्त कराने में परम आलंबन है।" ___“ हे प्रभु! मैं निर्गुणियों का चक्रवर्ती हूँ। दुरात्मा हूँ। हिंसक हूँ। पापी हूँ। इस कारण से आपसे जुदा पड़ा हुआ हूँ। दुःख की खान ऐसे भव समुद्र में डूब गया हूँ। यही दुःख है।" 14 For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 64 हे स्वामिन्! आज मुझे आपका दर्शन प्राप्त हो गया, इस कारण में अमृत समुद्र में डूब गया हूँ । जिसके हाथ में चिंतामणि स्फुरायमान है, ऐसे व्यक्ति के लिये कोई भी वस्तु असाध्य नहीं है । 17 44 हे जिनेश्वर देव! संसार- महासागर में डूबते हुए मुझ जैसे के लिये आप जहाज समान हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप ही उत्तमोत्तम सुख के धाम हैं, तथा मुक्ति वधू प्राप्ति में आप अद्वितीय हैं। मुझे भवसागर से पार उतार कर परम पद मोक्ष को आप ही सुलभ कराने वाले हैं। " " वीतराग देव सूर्य के समान हैं। उनका स्वभाव ही जगत् को प्रकाशित करना है, अतः जो मुमुक्षु उनका ध्यान करते हैं, उनका संसार सृजन का मूल बीज अहम् और मम रूप मल सहज क्षीण होते हैं " 1 44 ====== परमात्म ध्यान द्वारा पुण्यानुबंधी पुण्य का उपार्जन कर देव व नर भवों में भोगावली कर्मों को भोग कर क्रमशः वह जीव मोक्ष सुख का अधिकारी बनता है । जिसका लक्ष्य ही वीतरागता है, वह उसे इस प्रकार अवश्य प्राप्त होता है । " 15 For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 46 जिस प्रकार दावानल वन वृक्षों को जलाकर भस्म कर डालता है उसी प्रकार अनंत गुणों के धारक श्री जिनेश्वर प्रभु की भक्ति एवं बहुमान से कर्म-वन को भस्मीभूत अवश्य किया जा सकता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्म भक्ति से आत्मा में ऐसी ज्योति प्रकट होती है कि हमारे अंतःकरण में व्याप्त सारी कुलक्षणताएँ जलकर राख हो जाती हैं । " “ आत्मबल ही मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत है 1 66 हे भव्यात्माओं ! अनन्त पुण्य प्रताप से तुम्हें अपार कृपा निधान अरिहंत परमात्मा के दर्शन सुलभ हुए है, वे ही परम आदर से स्मरण करने योग्य हैं। सेवा, भक्ति, उपासना के लिये श्रेष्ठतम पात्र हैं । परम पूजनीय हैं । तथा इन्हीं के शासन की आज्ञा ही परम भक्ति पूर्वक आचरणीय है । हे चेतन ! जागो, अपनी चेतना को सफल करो । 16 के अचिंत्य शक्तिशाली भगवान् ! अनन्त काल से संचित अनंत कर्मों समूह को दूसरा कोई संपूर्णतः क्षय करने में समर्थ नहीं है, सिवाय आपके । For Private And Personal Use Only "" Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे परमेश्वर ! आपका शासन अनादिकाल से हम जीवों को अनन्त फल देने वाला है, आपकी शरणागति से प्राणी अनन्त, अक्षय शाश्वत पूर्णानंद स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं। __ अतः हम आपको कोटिशः वंदना करते है। यह सोचनीय है कि जब तक अन्तःकरण संसार भाव से खाली नहीं हो पाता, तब तक वह परमात्म भाव से परिपूर्ण नहीं हो सकता। "प्रकृति के कानून के विरुद्ध मत चलो, नुकसान होगा।" अनात्म-भाव और आत्म-भाव एक साथ नहीं रह सकते, मोक्ष की साधना, अन्तःकरण से संसार की साधना छूटने पर ही संभव है। जगत में जो कुछ. श्रेष्ठ है, वह सब आप ही हो, आपके सिवा शेष सब असार है, मिथ्या है। 17 For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे कृपानिधान जिनेश्वर! संसार रूपी भयंकर अटवी में अनन्त काल से भटकते-भटकते आपश्री को नाथ स्वरूप प्राप्त कर मैं कृतकृत्य हो गया हूँ। मेरा जन्म सफल हो गया है। मैं दुःख के बोझ तले डूबा हूँ, कपटी-शिरोमणि एवं निर्भागी हूँ। पर अब मैंने आपके चरण-कमलों की शरण ले ली है। हे प्रभु! मेरी रक्षा करो। जिन शासन की सेवा का एक ही फल मांगता हूँ कि इस लोकोत्तर शासन की सेवा मुझे हर जन्म में प्राप्त हो। “ हम जिनेश्वर-प्रभु के सेवक हैं और सेवक वर्ग स्वामी के उचित स्वरूप का निरूपण करने में समर्थ नहीं हो सकता।' “ सब शास्त्रों का सार नवकार है। क्योंकि वह शाश्वत आत्मा का परम विशुद्ध स्वरूप ही है। नवकार-वासित को शाश्वत सिद्ध स्वरूप ही प्रिय होता है। संसार उसे असार लगता है। " 18 For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra "L " www.kobatirth.org पुद्गल अर्थात् पुष्ट होकर गल जाने वाला जड़ । रेत खाने से भूख नहीं मिट सकती । पुद्गल सेवा से आत्मा सुखी नहीं हो सकती । " जीव मात्र को अभयदान " यही सर्वोपरि दान है। " परभाव रमणीयता से स्वात्मा का प्रति पल भाव भरण हो रहा है, परमात्मा की अनन्य कृपा - प्रभाव से जब आत्मा अपने शुद्ध सिद्ध स्वरूप में लीन होने का प्रयत्न करती है, तो वह भाव जीवन कों प्राप्त करती है । " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (" "" मन की वासना ही, मन को कलुषित करती है । 66 सुख का सच्चा सदन आत्मा है । आत्म हित को लक्ष्य में रखकर की गई साधना आध्यात्मिक कहलाती हैं। 1 जिसने आत्म-सुख का अनुभव कर लिया, अर्थात् आत्मा को जान लिया, उसने करने योग्य सब कुछ कर लिया और जानने योग्य सब कुछ जान लिया । ܙܕ 'आत्म भाव में जीवन, वही अमरता की ओर प्रयाण का प्रथम सोपान 19 For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। आत्मा को संसार की जेल से निकालने के लिये, मन को आत्मा के सच्चे सुख-रूप महलों की मोहिनी लगानी पड़ेगी। आत्म-गुणों के पान का व्यसन लगाना पड़ेगा। तथा आत्मा की तान में मस्त बनाना पड़ेगा मन को ।" सब साधनाओं का लक्ष्य मात्र एक आत्मा है। अरिहंत प्रभु की भक्ति, सिद्ध परमात्मा का ध्यान, नवकार का जाप, सभी आत्मा के खाते में जमा होता है। आत्मा वही “मैं” अक्षय सुख-भंडार आनन्द का सागर, अचिन्त्य शक्तिशाली। आत्म अनुभव ज्ञान जे, तेही मोक्ष स्वरूप। ते छंडी पुद्गल दशा, कोण ग्रहे भव कूप " परम देव पण एज छे, परम गुरू पण एज! परम धर्म प्रकाश को, परमतत्व गुण गेह " “ परमात्मा अरिहंत देव की द्रव्य भाव भक्ति करते हुए अपने लक्ष्य में आत्मा ही रहनी चाहिये क्योंकि भक्ति के द्वारा हमें जो प्राप्त करना है, वह है, परमात्म पद, जो हमारी आत्मा में मौजूद हैं। 20 For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उस परमात्म पद को प्रकट करने के लिये प्रबल निमित्त परमात्म-भक्ति है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपने आप में मस्त रहने में ही मजा है । आत्मा स्वयं में पूर्ण है । उसकी उपासना ही परमात्म स्वरूप की जननी है । आत्मा का रंग जीवन में फैल जाय, अपने अध्यवसायों में उसी का अनुभव हो। इसी में मानव भव की सफलता हैं I अपनी परिणती आदरी, निर्मल ज्ञान तरंग | रमण करू निज रूप में, अब नहीं पुद्गल रंग ।। प्रगट सिद्धता जेहनी, आलंबन लही तास । शरण कर महा पुरुष को, जेम होय विकल्प विनास ।। सती को यह कहना नहीं पड़ता, कि पर पुरूष का ध्यान मत करो । क्योंकि वह सत् तो उसे परिणत है । वैसे आत्मा ही आत्मा का पति है । देव है । प्रभु है, सर्वेसर्वा हैं । जीवन का अस्तित्व आत्मा ही तो है । उस आत्मा के अतिरिक्त अन्य में रमणीयता भाव- मृत्यु है भव भ्रमण की सर्जक है 1 21 For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 66 जिसके मन में मोक्ष का सच्चा स्वरूप हैं, जिसकी वाणी में स्याद्वाद हैं। और जिसके जीवन में सच्चरित्र की सुगंधि हैं। ऐसे महापुरुष की शरण असहाय जीव के लिये माता की गोद के समान हैं । वात्सल्यरूपी अमृत का पान कराने वाली हैं । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ प्रत्येक आत्म- द्रव्य में चेतना एक समान है। भले ही वह आत्मा निगोद की हो, नरक की हो, स्वर्ग की हो, या सिद्ध की हो, अनंतानन्त जीवों के साथ एकात्मता सिद्ध करने के लिये द्रव्यार्थिक नय की यह विचारणा आवश्यक है। मगर इसके अतिरिक्त पर्यायार्थिक- नय की दृष्टि साधक की सिद्धि संभव नहीं है 17 1 “ सामान्य जल बिंदु से सिंधु बनता है । "" आत्मा - आत्मा के मध्य भेद कर्म के कारण है । धर्म से वह भेद दूर होता है । यह धर्म ही आत्मा का स्वभाव है । आत्म स्वभाव रूप धर्म की प्राप्ति होने पर मोक्ष में आत्मा ज्योति में ज्योति की तरह मिल जाती है, वहाँ देह की दीवार नहीं होती, वहाँ आत्मानंद का अनुभव होता है। 22 For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर किसी को खुश करने की ख्वाहिश किसी की पूरी हो न सकी, कभी वो रूठा, कभी उसे मनाया, पर हर किसी की नाराजगी दूर हो न सकी, सिल-सिला ये यू ही चलता रहा, दोस्ती सभी से हो न सकी। तरसते रहे हम, सभी को अपना बनाने को। पर ख्वाहिश यह हमारी पूरी हो न सकी। ये दुनिया हमारी हो न सकी। 2 जो तुम हँसोगे तो, हँसेगी ये दुनिया। पर रोओगे तुम तो न रोएगी ये दुनिया।। चलोगे तुम तो चलेगी ये दुनिया। रुक गये तुम तो, न रुकेगी ये दुनिया।। 23 For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org -: हकीकत : देह छोडे जब साथ आतम का, होता है यह सिलसिला शुरू । धन धरा में दबा रह जाए, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोचो दोस्तों, कहे गुरू । । यही नहीं बीबी तुम्हारी, सिर्फ दरवाजे तक देती साथ । भाई, बंधु, सखा संगी भी, श्मशान तक ही आते साथ ।। जीव यहाॅ पर आया अकेला, अकेला ही वो वापस जाता । जीवन में तूने जो पुण्य किया है, वो ही आयेगा तेरे साथ । । यह हकीकत है, समझ ले तू, यही होता है सबके साथ । करना हो तो भला ही करना, बुरा मत करना किसी के साथ ।। 24 For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: मुक्तक संग्रह :“जो अधिक से अधिक अपने अंतर्शत्रुओं का प्राबल्य जीत सके, उसे ही महापुरुष कहते हैं।" “निर्गुणता के प्रति आप जितना द्वेष पैदा करते जायेंगे, वैस-वैसे आपके अन्तः चक्षु खुलते जायेंगे।" चारित्र पथ अति दोहिलो रे, व्रत छे खांडा नी धार। एनो पालन केम थशे रे, केम पले पंचाचार। "बहुत गई, थोड़ी रही, थोड़ी भी अब जाय। उस थोड़ी के कारण, कहिं ताल बिगड़ न जाय।।" “ धर्म-प्राप्ति के लिये बौद्धिक योग्यता चाहिये, बौद्धिक जडता नहीं।" 25 For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 66 जिन शासन- प्रदत्त संस्कार युक्त अगर हम हमारा जीवन बनाये तो, मनुष्यलोक भी, देवलोक बन सकता है 1 66 माया पाप है, पर वही माया अगर धर्म की आराधना के लिये की जाय, तो वह पाप नही पर धर्मरूप है । "" 44 जाता घमंडी जिदंगी का आदर करना है तो स्वयं के लिये क्षमाशील बनना होगा । जो लोग इस संसार से मुक्त होना चाहें, उन्हें हत्या से बचना होगा । " www.kobatirth.org "4 जो हृदय दूसरों को कष्टों से दुःखी होता देखकर भी द्रवित नहीं होता, वह पाषाणहृदयी कहलाता है । "1 " " यह लक्ष्मी जल में उठने वाली लहरों की तरह चंचल है। दो-तीन दिन ठहरने वाली है । अतः इसका उपयोग दान में करो। " == 66 है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " --- तपश्चर्या द्वारा समग्र कर्मों का क्षय करने वाला शाश्वत सिद्ध हो 26 For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " अखिल विश्व के नाथ बनने की भावना होने पर भी भगवान सबके नाथ नही बन सकते क्योंकि नाथ बनने वालों को योग-क्षेम का उत्तरदायित्व वहन करना पड़ता है। सबको संसार से बचाने की भावना होते हुए भी भगवान् योग्य को ही संघ में स्थान देकर उन जीवों के ही योग-क्षेम के वाहक बन सकते है । " ___“ जो मानव अपनी बढ़ती हुई लक्ष्मी को सर्वदा धर्म के कामों में देता है; उसकी लक्ष्मी सदा सफल है। पंडितजन भी उसका यश गाते हैं। प्रशंसा करते हैं।" इस जगत् में निःस्वार्थ जीवन जीने वाला पात्र दुर्लभ है। वो ही सुगति में जाता है। जीव अपने ही कर्मों से स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है। “ सब दुःख हिंसा से उत्पन्न होते हैं " 27 For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra “ यदि तुम रोगी हो तो, आहार का त्याग करो "दान में श्रेष्ठ अभयदान है “ माता, पिता, और www.kobatirth.org " "कर्म हमेशा कर्ता का अनुगमन करता है । 44 गुरु " " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ये तीनो पृथ्वी पर जीवित देवता हैं 1 ܕ मानव जन्म संसार-समुद्र पार उतरने के लिये विशिष्ट नाव है । " लोगों को त्रास देने व आतंकित करने में ही व्यस्त रहने वाले लोग अंधेरे से अंधेरे में ही गमन करते हैं । 7 28 " For Private And Personal Use Only भयंकर से भयंकर विस्फोटक भी (मानवीय आत्माओं में स्फुरित) विचारों का दास है । क्रूर विचार हीरोशिमा एवं नागासाकी जैसी विध्वंसता के जन्मदाता हैं। जबकि सु-विचार उन्हीं साधनों को सृजन के लिये उपयोगी बना सकता Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्व-विचार ही मानव को महामानव या महादानव के रूप में इस जगत् में स्थापित करता है। कृपया विचार स्वच्छ एवं निर्मल रखिये। " साहस का मार्ग जोखिम भरा तो है, पर गरिमा उसी पर टिकी हुई है; जिन्हें जोखिम से भय लगता है। वे कीचड़ के कीडों की तरह गई गुजरी परिस्थितियों में ही जीवन जीते हैं। " यह हँसना कैसा और यह आनन्द कैसा? जबकि समूचा विश्व अग्नि-ज्वाला में जला जा रहा है। भयंकर अंधेरे में घिरे तुम रोशनी क्यों नहीं ढूंढते? “आत्मा का खजाना अपूर्व है, उसकी तुलना किसी भी पार्थिव पदार्थ से नहीं हो सकती।" “ मिट्टी ने कुम्हार से कहा, “मुझे ऐसे पात्र का रूप दे दीजिये, जो अपने में शीतल जल भर कर लोगों की प्यास बुझा सके, तब कुम्हार ने कहा, यह 29 For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तभी संभव है, जब तुम फावड़े से खुदने, गधे पर चढ़ने, डंडे से पीटने, पैरों से रोंदे जाने व आग में तपे जाने का साहस जुटा सको, इससे कम में किसी की भी महान् आकांक्षाए पूरी नही हुई हैं। यही है महत्ता को प्राप्त करने का एक मात्र रास्ता।" इस संसार में जो अज्ञानी हैं, यानी अपने स्वाभाविक ज्ञान गुणों का विकास नहीं करते, वे पशु समान हैं। जिसने ज्ञान की आराधना व उपासना की है, उन्होनें ही श्रीकार मोक्ष को प्राप्त किया है। ज्ञान धार्मिक प्रगति का मूल है। आध्यात्मिक प्रगति की नींव और सिद्धि सोपान चढ़ने की सीढ़ी है। " मैं अकेला हूँ। मेरा कोई नहीं, अकेला आया था, अकेला ही जाऊँगा फिर यह राग कैसा? " राग छोड़ो, बैरागी बनो। " प्रवचन जिनेश्वर भगवान द्वारा, जगत् के समस्त प्राणी मात्र के हितार्थ एवं आत्म-कल्याणार्थ दिये गये हितोपदेशों का गंगा-प्रवाह है; जो गुरुजनों के श्रीमुख से प्रवाहित होकर आप तक पहुँचता है। 30 For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप इसे निष्ठा पूर्वक सुने, हृदय पूर्वक स्वीकार करें, आत्मसात् करें, तदनुसार अनुसरण करें। इससे मोक्ष का राज-मार्ग आपके लिये सुलभ बनेगा।" ___ “सज्जनता का चिन्ह है, नम्रता, इसी को सभ्यता व शिष्टता भी कहते हैं। विद्या का वास्तविक प्रतिफल भी यही है।" “ संयम का मार्ग अति कठिन तो है, पर आत्मा का उद्धार उसी से संभव है। जो सर्यमित जीवन नहीं जी सकते, वे कीचड़ के कीड़ों की तरह गई गुजरी जिंदगी जीते हैं।" " पी नहीं प्रभु-भक्ति की, हाला जिसने, उसे क्या पता दोस्तों, हृदयगत होने के बाद __ यह क्या करतब दिखाती है किस तरह वह तुमको, शिव सुंदरी के दर्शन कराती है। " “ इच्छा और तृष्णा से कर्म-बंध के अलावा कुछ नहीं मिलता। " " आध्यात्मिक मार्केट में ज्ञान रहित व्यक्ति चलेगा पर आचार शून्य 31 For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्यक्ति नहीं चलेगा । 66 " अंधा होकर किसी विचार से चिपके रहने की अपेक्षा जिज्ञासु बनकर धार्मिक सत्यों की शोध करना उत्तम है 17 1 (4 www.kobatirth.org तुम अपने आपको भगवान् को अर्पित कर दो, वह ही उत्तम सहारा है । " इसी से वह भय, चिन्ता व शोक से मुक्ति पा सकता है । "L == Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसक्ति में अनन्त दुःख है । अनासक्ति में अनन्त सुख । " आत्मा तप और त्याग द्वारा सूक्ष्म एवं उपयोगी बनता है, जिससे हम उर्ध्वगामी बनते हैं । " 66 जैसे हाथी को वश में रखने के लिये अंकुश आवश्यक होता है और नगर की रक्षा के लिये पुलिस आवश्यक होती है । वैसे ही इंद्रियों के विषयनिवारण के लिये, परिग्रह का त्याग आवश्यक होता है। क्योंकि परिग्रह के त्याग से इंद्रियाँ वश में रहती हैं । " 4 जैसा खावे अत्र, वैसा होवे मन " 32 For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ जिस प्रकार, भ्रमर द्रुम-पुष्पों से रस ग्रहण करके अपना जीवन निर्वाह करता है, पर किसी भी पुष्प का विनाश नहीं करता, और स्वयं को भी तृप्त कर लेता है। उसी प्रकार इस लोक में, जो अपरिग्रही श्रेयार्थी मानव है। उन्हें दाता द्वारा दिये जाने वाले विविध आलंबनों से उतना ही लाभ उठाना चाहिये, जितने से अपना निर्वाह भी ठीक से हो जाय और उनका शोषण और विनाश भी न हो।" " वह सुख-सुख नहीं, जो अन्त में दुःख में परिणत हो जाय। सच्चा सुख तो शाश्वत सुख हैं।" __“ वैयावच्च धर्म महान् धर्म है। यह महान् तपस्वियों के लिये भी दुर्लभ ____“ अहिंसा, संयम और तप रूप शुद्ध धर्म ही उत्कृष्ट एवं मंगलमय है। जिसका मन सर्वदा धर्म में लीन रहता है। उसे देवता भी नमन करते हैं।" " कहते हैं मैं मर जाऊँगा, पर साथ कोई मरता नहीं, जलते हैं, हम अकेले, साथ कोई जलता नहीं, 33 For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साथ तो वो क्या जले, मेरी राख को भी वो छूता नहीं।" फकीरा फकीरी इतनी दूर है, जितनी लंबी खजूर। चढ़ गये तो रस भरपूर है, गिर गये तो चकनाचूर।। --: मेरी अभिलाषा :चाह नहीं सुरपति बनकर, स्वर्ग लोक में मौज करूँ। चाह नहीं चक्रवर्ती बनकर, भूलोक पर शासन करूँ।। चाह नहीं मुझे दौलत की भी, वो तो भव भ्रमण बढायेगी। इस जीवन में भी मुझको, धर्म-विमुख बनायेगी।। चाह मेरी तो बस यही है, देनी न पडे, जनम मरण की फेरी। मुक्ति पथ गामी बनूँ मैं, __ यही है अभिलाषा मेरी।। कैसे पाऊँ शिव सुरत मैं 34 For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वो गुरु बता दे, मत कर देरी। नित पूजा तेरी करूँ मैं, नित पाऊँ मैं कृपा तेरी।। वाक् वीर नही कर्मवीर बनो। महावीर की संतान हो, धर्म वीर बनो।। “ मरने से वो डरता है, जो पापी है, अधर्मी है।" “ गोली से भयंकर तो आपकी बोली है। " __“ पहले सोचो, फिर बोलो।" “ धर्म आराधना परलोक की यात्रा में काम आने वाला भत्ता है।" " जहाँ शर्म है, वहाँ धर्म प्रवेश के अवसर मौजूद हैं। " " आचार और विचार के समन्वय से जीवन सफल बनाइए।" 35 For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " परमात्मा कभी अवतार नहीं लेते क्योंकि सभी कर्म बंधन के समस्त कारणों और कर्मो पर विजय पाने के बाद ही परमात्म पद प्राप्त होता है। फिर वे भला अवतार क्यों ले? " " जो पाप की कमाई से सुखी होने की कामना करते हैं, वे अपने गले में पत्थर बांधकर तैरने का प्रयत्न करते हैं। जो कभी सफल नहीं होता।" उत्तमा सुखिनो बोध्या, दुःखिनो मध्यमा पुनः। सुखिनो दुखिनो वाऽपि बोधमर्हन्ति नाधमा ।। “उत्तम पुरुष सुखी होने से बोध पाते है, मध्यम पुरुष दुःखी होने से बोध पाते हैं। जबकि अधम पुरुष सुख और दुःख किसी से बोध प्राप्त नहीं करते।" जो अन्तर्शत्रुओं के साथ लड़कर उन पर विजय प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता, वह सही अर्थो में जैन नहीं है। 36 For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु-दर्शन व देव दर्शन धर्म-मार्ग में प्रवेश का प्रथम चरण हैं। इसे नित्य करें। " अंधा सेनापति कभी दुश्मन को नहीं हरा सकता, उसी तरह मिथ्यात्व दृष्टिवाला व्यक्ति कभी भव सागर पार नहीं उतर सकता। इसलिये मिथ्यात्व से बचे।" ५ मिथ्यात्व कर्म बंधन का मुख्य कारण है, अगर इससे बच गये तो क्रमशः सभी कारणों से बचते हुए मुक्ति को प्राप्त करोगे।" " अहंकार नरक का द्वार है। " “ ऐसी कोई प्रवृति नहीं करना, जिससे किसी के मन में उद्विग्नता आती हो या आत्मा में दुर्ध्यान पैदा होता हो।” "संस्कार शन्य जीवन जीने वालों की संतान भी कभी संस्कार नहीं पा सकती।" 37 For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे आत्मन्! तू शुद्ध है, तू बुद्ध है, तू यहाँ आ ही गया है, तो तू श्रमण बन, आराधना कर, और परमात्म स्वरूप बन। ___“ भोग रोग का जन्मदाता है। " । " क्रोध और कषाय के धुएँ से मन काला हो जाता है। " " पाप से दुःख और पुण्य से सुख।" " प्रलोभन पाप का बाप है। " " सत्संग जीवन सुधार का माध्यम है।" " जो लोग पाप की कमाई से पुण्य का काम करते हैं; वे भी पापी तो हैं, पर वे उनसे अच्छे हैं, जो पाप से कमाई रकम को पाप में ही लगाते हैं। " अंहकार स्वयं के अस्तित्व का ही खात्मा कर डालता है। " 38 For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ उपासना में वासना को खत्म करने की शक्ति है। " " अगर आपका आचार सुंदर है, तो जगत का कोई उपसर्ग आपको डिगा नहीं सकता।” विद्युत् के बिना, तार में करंट का संचार नहीं होता। रेखाओं के बिना, चित्र कभी कोई पूर्ण नहीं बनता।। ओ जीवन जीने वालों! सोचो........! सदाचार बिना जीवन अपनासफल नहीं बनता। " चारित्र मोक्ष मार्ग पर प्रयाण करने की दिशा में प्रथम चरण है। " " एक पुरुष भीषण संग्राम में दस लाख सबल वीरों पर विजय प्राप्त करे, और एक व्यक्ति अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त करे, इन दोनों में स्वआत्मा को जीतने वाला परम विजयी कहलाता है।" ____“ज्ञानी अगर भोजन भी करे तो भजन बनता है, और अज्ञानी अगर भजन भी करे तो भोजन बनता है। " 39 For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " इंसान ही एक ऐसा जानवर है, जिसके जीवन में कोई मर्यादा नहीं है।" " स्वयं में खोए बिना, खोज पूरी नहीं होती, बिंदु से सिंधु बनने की यही व्यवस्था है। " " पहले स्वयं को पूर्ण शुद्ध करो, सिद्ध स्वतः बन जाओगे।" ___“ पाप से घृणा करो, पापी से नही " “ आलोचना एक भयानक चिंगारी है, जो मनुष्य के अंहकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट कर देती है ।" “ अति उग्र पाप की सजा तुरंत मिलती है, उसी तरह अति शुभ कृत्य भी तुरंत परिणाम देता है।" कहने को तो कहते रहते हो, गाय हमारी माता है। For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिर क्यों नहीं दिल, तुम्हारा भर आता, जब हर दिन उनको, कत्ल किया जाता। स्वान से सीखो दोस्तों, __वफा किसको कहते हैं। छोड़ते नहीं वो घर तुम्हारा, घर में ही बैठे रहते हैं।। एक कतरा रोटी के खातिर, हर उपसर्ग तुम्हारे सहते हैं। अजनबी अनजान से तुमको, फिर भी आगाह करते रहते हैं। " स्वयं के मूल्यांकन की क्षमता सम्यक् ज्ञान से ही आती है।". ___“ इच्छा और तृष्णा से केवल कर्म-बंध ही होगा।" “ गुलामी का जीवन अगर पूर्ण सुखमय भी हो, तो भी वह आजादी की दःखभरी जिंदगी से भी बदतर हैं।" 41 For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आवेश में यह शरीर जहर उगलता हैं। सामायिक भाव में वही शरीर अमृत उत्पन्न करता हैं। आवेश को रोकिये समभावी बनिए।" “ खेत उत्तम हो व बीज उन्नत हो तो निःसंदेह फसल अच्छी ही होगी, उसी तरह अगर पात्र सुपात्र हो तो उसे दिया गया दान आपके लिये सर्वोत्कृष्ट सुख अवश्य सुलभ करवायेगा।" “ एक दगाबाज मित्र से तो कट्टर दुश्मन भला। " “ धर्म से उपार्जित पुण्य ही आपका सच्चा मित्र है, जो सब कुछ शेष है, वह तो हमारे शरीर की तरह हमारा साथ छोड़कर नष्ट होने वाला है। " “सम्यक्त्व आत्मा का मूल गुण है। जिसका सम्यक्त्व निर्मल एवं दृढ़ होगा, वह आज नहीं तो कल अवश्य मुक्ति पायेगा।" “ आत्मा की शक्ति अपूर्व है। उसकी तुलना संसार की किसी पार्थिव वस्तु से नहीं हो सकती। 42 For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जरूरत है, उस शक्ति को जागृत करने की, जो धर्म की साधना बिना संभव नहीं । " 66 www.kobatirth.org मनुष्य भव विना चारित्र संभव नहीं, चारित्र विना केवलज्ञान संभव नहीं, और केवलज्ञान विना मुक्ति संभव नहीं । " यह हमारा सौभाग्य हैं कि सभी योनियों में श्रेष्ठ ऐसा मानव भव हमें सुलभ हुआ है फिर हम स्व आत्म-कल्याण का अवसर क्यों चूके ? " ========== 26 इंद्रियाँ चपल घोड़े की तरह हैं, अगर उन्हें भडकाया गया तो वे कभी तुम्हें भव भ्रमण से मुक्त नही होने देंगी 46 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाशय जी ! जब स्वयं अपने घर की सीढियाँ मैली हों तो, औरों की छत पर पड़ी गंदगी की शिकायत मत करो === " 43 " LL राग और द्वेष दोनों ही हमें संसार में भटकाने वाले महान् शत्रु हैं फिर भी हम उनसे नाता तोड़ते नहीं, क्या यह खेद जनक बात नही ? I "" For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सम्यक् ज्ञान रूपी रत्न को पाये बिना, हमारे सारे व्रत नियम बिननेतृत्व वाली सेना की तरह तुरंत नष्ट हो जाते हैं। " " मानव को अगर आत्म-दर्शन पाना हो तो, अपनी इच्छाओं का दमन करना होगा। " जो मनुष्य कछुएँ की तरह अपनी इंद्रियों को संकुचित करने की क्षमता रखता है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है। " " मूर्ख दोस्त से समझदार दुश्मन अच्छा " “ जिसको वैभव एवं ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है, उसे यह सोचना चाहिये कि मुझे भगवान् ने वैभव क्यो दिया है? और दिया है तो उसका परमार्थ में उपयोग क्यों न करूँ? " “ नदी जब तक दो किनारों के बीच बहती है। तब तक तो वह सभी की प्यास बुझाती है और अनाज ऊगाई के लिये सिंचाई का पानी उपलब्ध करवाती हैं, पर जब वह सीमाओं को तोड़ बाढ़ के रूप में बहने लगती हैं, तब भयंकर विनाश का सृजन करती है। उसी तरह इंसान अगर धर्मानुसार जीवन जिए, तो मानव से महा-मानव बनता है। अन्य लोगों के लिये For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकरणीय जीवन चरित्र बनकर उभरता है, इसके विपरीत अगर धर्म-विहीन जीवन जीने वाला व्यक्ति है तो वह मानव से दानव ही बनेगा। और दानव से सृजन की उम्मीद की ही नहीं जा सकती। धर्म के अतिक्रमण के सामने उसका प्रतिक्रमण जरूरी है। " “ पहले तोल फिर बोल।" " जो तुम्हारे प्रारब्ध में लिखा है, वह तो तुम्हें मिलेगा ही, चाहे वो सुख हो या दुःख, उसका उदय समयानुसार अवश्य होगा, चाहे उसे तुम न भी पाना चाहो।" " दुःख सहन करना कठिन है, उसी तरह सुख सहन करना भी कठिन है। कीर्ति, वित्त एवं विद्या प्राप्ति करना एक परीक्षा है, जिसमें उत्तीर्ण होना दूभर हैं, पर उसमें उत्तीर्ण होना भी अति आवश्यक है। " “ जिस घर में सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार इत्यादि गुणों का समावेश है, तथा आचार विचार में पवित्रता है, तो वहाँ लक्ष्मी ठहरती है। ठीक उसके विपरीत गुणवालों से वह दूर ही रहती है। " 45 For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __“ दुःान का सेवन जिज्ञासावश भी न करें क्योंकि दुःान सेवन से तो स्वयं का पतन ही होगा।" “ निष्फल श्रोता मूढ़ यदि, वक्ता वचन विलास। हाव भाव ज्यू नारी करे, अंध पति के पास" ।। "बडा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर । पंथी को छाया नही, फल लागे अति दूर।।" देवालय टूट कर खंडहर बन सकते है। गिर कर समय के साथ नष्ट हो सकते हैं, लेकिन उत्तम ज्ञान और सविचार कभी नष्ट नहीं होते। “समझदारी इसमें है कि हाथ में आए काम को समग्र मनोयोग से तत्परता पूर्वक निपटाया जाय। काम को सही तरह से निपटाना भविष्य में बडा काम कर सकने की सफलता उपलब्ध करना है।" 46 For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु-प्रवचन क्या है? “ धर्म गुरु कोई मनोरंजक कथा कहने वाले कथाकार नही, जो तुम्हें हर तरह की मनोरंजक कथाएं कह-कह कर खुश रखे, वो तो आपके कल्याणार्थ आपको तात्त्विक बात समझाने के लिये उदाहरण के तौर पर कथाएं सुनाते गुरु तो तुम्हारे हृदय को धर्म से वांछित करने के लिये ही हर प्रयत्न करते हैं। प्रवचन भी उसमें से एक सशक्त तरीका हैं, पर तुम अपना हृदय ही घर रख कर उनके पास जाओ तो, वह कैसे संभव है अगर गुरु-उपदेश को हृदय पूर्वक श्रवण किया जाये तो, हृदय धर्म युक्त अवश्य बनेगा। आपके लिये धर्म करना सरल हो जायेगा। हृदय परिवर्तन नहीं हो पाता, यही दुविधा है। तभी हमें धर्म करने में ही अपार कष्ट नजर आता हैं। धर्म करने में तुम्हें, जितने कष्ट की प्रतीति होती है, उसका हजारवा भाग कष्ट भी अगर तुम धर्म के लिये वास्तव में सह लो, तो भी तुम्हारा कल्याण हो सकता हैं। " " श्रद्धावान् व्यक्ति पहले ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञानी बनकर जितेंन्द्रिय बनता हैं, तथा आत्म-ज्ञान प्राप्त कर परम शांति प्राप्त करता हैं। परंतु अज्ञानी एवं श्रद्धाविहीन व्यक्ति का संशय में रहने से नाश हो जाता हैं, संशय-युक्त व्यक्ति के लिये यह लोक व परलोक दोनों में सुख दुर्लभ 47 For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ मिथ्यात्व को दूर करो, तभी सम्यक्त्व का सूर्य आपके हृदय में उदित होगा।" " ज्ञानाभ्यास आपको निरन्तर चिन्तन एवं मनन में व्यस्त रखेगा। “आप यह जान पायेंगे मैं कौन हूँ"? " वक्ता की अभिव्यक्ति, कितनी भी सुन्दर क्यों न हो, अगर श्रोता मूर्ख हो, और प्रवचन को न समझ सके, तो, उस वक्ता का वही हाल होता है, जैसा कि एक अंधे पति के लिये उसकी पत्नी का श्रृंगार।" जिसका मन जिसमें रमा, वही उसे सुहाये। दाख स्वाद कौआ तजे, निबोरी चाव से खाये।। जल में बसे कमोदिनी, चन्दा बसे आकाश जो जाहि को भावता, सो ताहि के पास। 48 For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: आचार्य पद्मसागर सूरीजी के श्री मुख से : " संसार में आसक्त व्यक्तियों के लिये संयम का मार्ग कांटों की डगर है। पर साधक तो कांटों को फल समझते हैं, विना कष्ट के कभी इष्ट नहीं मिलता। सहन किये बिना कोई सिद्ध नहीं बनता।" “जब दूसरे का दुःख-दर्द अपना लगे तो मानना कि अब साधना-पथ पर प्रयाण हुआ है। ऐसी भावदशा आदमी को महापुरूष बनाती है। वे सौभाग्य के क्षण होंगे, जब भाव दशा उत्पन्न होगी।" " आपके पास अपार बुद्धि हो। अद्वितीय शारीरिक शक्ति हो, अटूट धन-संपत्ति हो, खूबसूरती और यौवन हो फिर भी याद रखना : उछल लो कूद लो, जब तक जोर हैं इन नलियों में। याद रखना इस तन की उड़ेगी खाक गलियों में।।" करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात के, सिल पर पड़त निशान।। 44 For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “विद्वान् और मूर्ख में इतना ही अंतर है, कि विद्वान् बोलने से पहले सोचता है, और मूर्ख बोलने के बाद पछताता है। विद्वान् की वाणी में विवेक का अंकुश होता है। वह सद्भावना के धरातल पर बोलता है। जब कि मूर्ख की भाषा बे-काबू होती है। वह बोलने के बाद गणित करता हैं, इसलिये मूर्ख ठोकर खाता है जबकि विद्वान् पथ बना लेता है। " “ प्रेम के माध्यम से जीवन की शुद्धता को प्राप्त करो, जीवन को मंदिर जैसा पवित्र बनाओ। अपनी वाणी में इतनी मिठास भर दो कि उसे सुनने वाले प्रेम के बंधन में बंध जाय।" “अपनी सुरक्षा स्वयं करनी हैं, गैर कोई आपको बचाये, इस बात में दम नहीं है। सब संयोग के साथी हैं। स्वयं के कदमों से चलकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। केवल इतना ख्याल रखे कि जीवन के इस यात्रा पथ पर सद्-विचार और सदाचार का पाथेय ही हमारे साथ हो।” एक को साधे, सब सधे सब साधे सब जाय। जो तू सेवे, मूल को, फल अवश्य ही पाये।। “ गाय चाहे पीली हो, काली हो, या चितकबरी हो, उसका दूध तो श्वेत धवल ही होगा, उसे अमृत समझो, धर्म चाहे हिन्दु हो या मुसलमान, 50 For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन हो या ईसाई हो, यदि वह आत्मोत्थान का पथ प्रशस्त करता है तो मानव जाति के लिये वरदान है। पेकिंग या लेबल से हमें क्या वास्ता,? हमे तो माल शुद्ध चाहिये।" “ इस जगत में संपूर्णतया स्वतंत्र तो कोई भी नहीं जन्म से पहले नौ माह तक माँ के गर्भ की कैद होती है। जन्म के बाद भी माँ की नजरबंदी में दिन गुजरते हैं। उसके बाद पिता के अंकुश में जीवन रहता है। विवाह के बाद यह हवाला हस्तांतरित होता है और प्रारंभ होता है-पत्नी का बंधन, बुढ़ापा पुत्रों के बंधन में कटता है। बताओ कहाँ है, स्वंतत्रता? सचमुच जगत् का हर एक मनुष्य कैदी हैं। " ___“ भूलों के संस्कार लेकर ही हम जगत् में आये हैं। हर आदमी भूलों से भरा है। पर वह सचमुच महान् व होनहार हैं, जो भूलों से कुछ न कुछ सीखता हैं और उनको सुधारने का प्रयत्न करता है। " “ पाण्डित्य प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करने में नहीं है, अपितु अपने जीवन के रहस्यों के विश्लेषण में है, उनको जॉचने परखने में हैं। प्रकृति उतनी रहस्यमय नहीं हैं, जितनी अपनी अंतरंग चेतना " 51 For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " “ प्रकृति के इस अटल नियम को सदा याद रखो कि किसी को रूलाकर आप हंस नहीं सकते, औरों को दुःखी बनाकर सुखी बनने की कल्पना मात्र भ्रम है। दूसरों को मारकर इस जगत् में कोई शांति से जी नहीं सकता । " if यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि तीव्र आवेश में आकर आदमी गलत कार्य कर बैठता हैं, परन्तु गलत कार्य कर देने के पश्चात् स्वहदय में अपने पाप के प्रति पश्चाताप का भाव न हो तो समझो, वह हृदय नही पत्थर हैं । उसके लिये परमात्मा के द्वार बंद रहेंगे । " हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधी और रूखी भली सारी तो संताप । जो चाहेगा चूपड़ी, बहुत करेगा पाप । । 66 हम मौत से न तो अपने परिजनों को बचा सकते है, न ही अपना मकान । मजबूत दीवार भी मौत को नहीं रोक सकती, नं चौकीदार हाथ पकड़ सकता है, मौत का, न कोई डॉक्टर हमें मौत के भय से मुक्त कर सकता है, न ही कोई वकील मौत के सामने स्थगन आदेश ला सकता है । हर जीवन मृत्यु से घिरा है । केवल धर्म ही उसे सुरक्षा प्रदान कर सकता 19 52 For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " धर्म तो एक व्यवस्था हैं । फिर भले ही वह अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित हो, वास्तविक धर्म का तो एक ही लक्ष्य होता है-प्राणी मात्र का कल्याण । साम्प्रदायिक भेदभाव मलीन मानसिकता के प्रतिफल हैं। आत्मा और धर्म का तो कोई भेद हो ही नहीं सकता । "1 1 “ यह शरीर और संसार सभी कुछ छोड़कर एक दिन चले जाना है मृत्यु जीवन की वास्तविकता है। संसार की जिन भौतिक उपलब्धियों के लिये आप पुरुषार्थ कर रहे हैं, उन्हें कल खो देना पड़ेगा। सभी सांसारिक उपलिब्धयों को मृत्यु व्यर्थ बना देगी । ” 66 प्रेम में कभी दीवार नहीं होती 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ܙܕ 66 जैसे स्वर्ण में रहे मैल को अग्नि दूर करती है। तथा दूध में मिले जल को हंस अलग कर देता है, उसी तरह प्राणियों की आत्मा में रहे मैल का निवारण तप द्वारा संभव होता है। " ====== “ काम और भोग क्षण मात्र का सुख देने वाले हैं। इसके बदले चिर कालीन दुःख मिलता है, इस में सुख कम और दुख ज्यादा हैं। मोक्ष-सुख का पक्का बैरी है - यह । 53 "" For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सच्चा सुख तो वही, जो तृप्ति प्रदान करे। वह तो दुःख है, गहन दुःख, जिससे तृष्णा जगती है।" ___“ धर्मिष्ठ व्यक्ति का संसर्ग आत्मा को अनेक दुर्गुणों से बचाता हैं। " आराधना से प्राप्त किया हुआ बल फलदायक होता है, जबकि किसी निमित्त (न्याणा बाँधकर) प्राप्त किया बल व्यक्ति को पायमाल कर देता हैं। आराधना से बलशाली बना व्यक्ति सद्गति में जाता हैं। जबकि न्याणा बांधकर बलशाली बना व्यक्ति नरक का अधिकारी बनता हैं।" सम्मान की पूंजी देने पर मिलती है, बाँटने पर बढ़ती है, और बटोरने पर समाप्त हो जाती है। अतः सम्मान दो फिर सम्मान लो। 54 For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (6 -: कुछ जानकारियॉ : धर्म वह है, जो जीवन में, शांति व सद्गुण भरता हैं । धर्म वह है, जो मन में समता व समाधि करता हैं ।। जानता है, हर मानव इस बात को, बंधुओ धर्म वह है जो कर्मों के दल दल को हरता है । == धर्म साधन है, मोक्ष साध्य = Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे साँचे में डालिये, वैसा बने आकार । मानव वैसा ही बने, जैसा उसका विचार ।। सूर्य गर्म है चांद दगीला तारों का संसार नही है । जिस दिन चिता न जले, ऐसा कोई त्यौहार नहीं है ।। ( 2 ) गति चपल :- ऊँट के माफिक चले। ( 3 ) भाषा चपल : - बिना सोचे समझे बोले। 55 " चार चपल को ज्ञान नहीं आता :( 1 ) स्थान चपल : - इधर-उधर फिरता और बैठता रहें । For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (4)भाव चपल :- एक कार्य पूरा किये बिना दूसरा करें। चार के चार परिणाम : गुरु दर्शन से दरिद्रता जाती है। भगवान् की वाणी-श्रवण से पाप का क्षय होता है। जागते रहने से, चोर नहीं आता। मौन रहने से, क्रोध नहीं आता। प्रगति का मुख्य साधन :- अटल धैर्य। विपत्ति का साथी :- साहस। सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त :- जब मन में हो उत्साह । विवेक को डुबाने वाला चुल्लू भर पानी :- शराब। एक व्यक्ति नित्य अशुद्ध रहता है :- असत्यवादी। एक बात कभी मुंह से मत कहो :- पराया भेद। कभी नहीं टूटने वाला एक कवच है :- नम्रता प्रत्येक मानव के साथ एक वरिष्ठ सलाहकार :- जाग्रत विवेक। संसार में जीवित स्वर्ग है :- प्रसन्न परिवार। शांति का एक ही मार्ग हैं :- संतोष । 56 For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छेद नही होना चाहिये नाव में खेद नही होना चाहिये दॉव में विवेक में सर्वत्र सार है।। भेद नहीं होना चाहिये गॉव में। आरोग्य टिकता नहीं पथ्य बिना। विश्वास टिकता नहीं सत्य बिना।। कान अपने कभी कच्चे न रक्खो। भाषण फलता नहीं तथ्य विना ।। एकता की बातें चला करती है। समता की बातें चला करती है।। बातें तो बातें ही हैं यारो। बातों से दुनिया थोडा ही चला करती है।। हम ईश्वर के बनें, उसके लिये जिएं, स्वयं को इच्छाओं और कामनाओं विहीन कर दें, तो परमेश्वर को अपने कण-कण में लिपटा हुआ अनंत आनंद की वर्षा करते हुए पा सकेंगे। अंतःकरण में विवेक और संतोष से ही स्थायी सुख-शांति और प्रसन्नता मिलती है। चिंतन के स्तर पर किये गए प्रयास व पुरुषार्थ से ही स्थायी सुख-शांति मिल सकती है। स्थूल पदार्थों के द्वारा नहीं। 57 For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: श्रावक के इक्कीस गुण : (३)अक्षुद्रः- तुच्छ स्वभाव वाला न होकर गंभीर हो। (2)रुपवान्ः- सुंदर अंगोपांग वाला हो, इंद्रियापूर्ण, आकृति सुंदर एवं तेजस्वी हो। (3)प्रकृति सौम्यः-शीतल स्वभावी हो जिसके चेहरे पर उग्रता नहीं हो। (4)लोकप्रियः- जिसका जीवन शुद्ध हो, लोक चाहना जीतने में सक्षम हो। (5)अक्रूरः- क्रूरता रहित कोमल स्वभाव वाला हो। (6)भीरू:- पाप दुराचार से डरने वाला हो। (7)अशठः- छल-कपट से रहित हो। (8)दक्षः चतुरता से परोपकार में दक्ष हो। (9)लज्जालुः- दुराचार से शरमाता हो। (10)दयालुः- दुःखी को देख दया पैदा हो। 58 For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (11) मध्यस्थः(12) सुदृष्टिः(13) गुणानुरागीः(14) सपक्षयुक्तः(15) सुदीर्घ दृष्टिः(16) विशेषज्ञः पक्षपात रहित मध्यस्थ भाव वाला हो। दृष्टि जिसको पवित्र हो। गुणवानों से प्रेम करने वाला हो। सत्य कहने वाला हो। दूरगामी दृष्टिवाला हो। हिताहित को समझने वाला हो. तत्वज्ञ हो। ज्ञानवृद्ध और गुणवृद्ध का अनुसरण करने वाला हो। (17) वृद्धानुगः (18) विनीतः बड़ों तथा गुणीजनों का विनय करने वाला हो। (19) कृतज्ञः (20) परहित कर्ताः(21) लब्ध लक्ष्यः - अपने पर दूसरों के किये हुए, उपकारों को नही भूलने वाला हो। दूसरों का हित करने वाला हो। अपने लक्ष्य को सम्यक् समझने वाला हैं। 59 For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " धर्म साधन है, साध्य नहीं 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 60 -: चार चपल को ज्ञान नहीं आता : स्थान चपल :- इधर उधर बैठता फिरे । गती चपल :- ऊँट के माफिक चले । भाषा चपल :- बिना सोचे समझे बोले । भाव चपल :- एक काम पूरा किया बिना दूसरे करे । For Private And Personal Use Only "" Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -: चार के चार परिणाम : 1. गुरु दर्शन से :- दरिद्रता जाती हैं। 2. भगवान् की वाणी श्रवण से :- पाप का नाश होता है। 3. जागते रहने से :- चोर भाग जाते हैं। 4. मौन रहने से :- क्रोध भाग जाता हैं। -: चार सहन करने योग्य :1. दूध देने वाली गाय की लात। 2. रोग मिटानेवाली दवा की कड़वाहट। 3. धन कमाने वाले पुत्र का रौब। 4. सेवा करने वाले शिष्य का क्रोध । 61 For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाश करते हैं। मैत्री का, (1) कुवचन :(2) कु कर्म :- (3) कु मन्त्री :- (4) कु गुरु :- कीर्ति का, राष्ट्र का धर्म का, रात में जगने वाले :(1) पहले प्रहर में :- सभी। (2) दूसरे प्रहर में :- भोगी। (3) तीसरे प्रहर में :- चोर। (4) चौथे प्रहर में :- योगी। शर्म नहीं रखनाः(1) फटे पुराने कपड़ो में। (2) गरीब साथियो से । (3) बूढ़े माँ -बाप से । (4) सादे रहने मे । For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चार नशा खतरनाक : यौवन, धन, सत्ता, और अविवेक : -- संध्या के समय अकरणीय : (1) आहार, (2) निद्वा, (3) मैथुन (4) स्वाध्याय आठ मित्र ये भी : ( 1 ). जन्म के मित्र :- माता पिता ( 2 ) घर का मित्र : सुलक्षणा नारी ( 3 ) देह का मित्र :- अन्न ( 4 ) आत्मा का मित्र :- सत्कर्म (5) रोग का मित्र :- रोगी ( 6 ) संग्राम का मित्र :- भुजाबल (7) परदेश का मित्र :- • विद्या ( 8 ) अन्तिम काल का मित्र : धर्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 63 For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुख जीवन के लिये उपयोगी (1) सद्गुणों का मूल :- विनय (2) सब रस का मूल :- पानी (3) पाप का मूल :- लोभ (4) कलह का मूल :- हँसी (5) रोग का मूल :- अजीर्ण (6) मौत को मूल :- शरीर (7) बन्ध का मूल :- स्नेह (8) धर्म का मूल :- दया ---------- (1) नीति को दो बातें :- देना तो सम्मान पूर्वक, लेना तो सम्मानपूर्वक। (2) दो बाते कभी मत करो :- प्रेम में वहम, और प्रतिज्ञा में अहम् । (3) मनुष्य के दो विभाग :- तन सुख चाहने वाले भोगी, मन का सुख चाहने वाले योगी। (4) दो भूलने योग्य बाते :- स्व प्रशंसा व परोपकार । (5) दो बातें याद रखने योग्य :- मौत और प्रभुभजन। (6) दो सदा बन्द रखो :- पर निंदा श्रवण के लिये कान, और पर 64 For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देषकथन के लिये मुख । ( 7 ) दो वशीकरण मन्त्र :- मधुर वचन, नम्र व्यवहार । (8) दो त्याज्य :- महिला को फेंशन, पुरूष को व्यसन । (9) दो जीवन व्यर्थ :- जिसने क्रोध और काम को नहीं जीता। अति आदर बहु प्रिय वचन रोमांचित बहुमान | देय करे, अनुमोदन, दान भूषण ये पांच ।। == हर सांझ वेदना एक नई, हर भोर नया सवाल देखा । दो घड़ी नहीं आराम कहीं, मैंने हर घर जाकर यही देखा ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir === जन्मे कितने जीव हैं, 65 जग में करो विचार । लाये कितने साथ में, पहले का परिवार ।। For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज-पाट सुख सम्पदा, बाजि वृषभ गजराज। मणि, माणक मोती महल, प्रेमी स्वजन समाज।। आया क्या तेरे साथ में, जायेगा क्या तेरे साथ। जीव अकेला जायेगा, बंधु पसारे हाथ ।। दुर्लभ मानव भव मिला, कर एकत्व विचार। कैसे होगा अन्यथा, तुझ आतम उद्धार।। सुत दारा और लक्ष्मी, पापी को भी होय। संत समागम हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय ॥ पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप। दाझे वन की लाकड़ी, प्रज्वले आपो आप।। 66 For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हर समस्या सुलझेगी, आप ऊलझना छोड़ दें। हर मंजिल मिलेगी, आप भटकना छोड़ दें।। आठ कलंक :(1) धनी में कंजूसता। (2) साधु में अहंकार। (3) विद्वानों में लालच। (4) स्त्रियों में निर्लज्जता। (5) जवानों में आलस। (6) बूढ़ों में संसार की चाह। (7) राजा के मन में अन्याय। (8) अभ्यासियों में पाखण्ड। 67 For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org -: नवनीत : “दुःख हो या सुख, आंसू हो या मुस्कान, पर एक न भूलें, यह भी चला जायेगा ।" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "कोई भी इतना धनवान् नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके ।” “जो बाते घाव बनकर रिसती रहें, टपकती रहे, उन बातों को भूलना अच्छा।" “औरों को उनकी खामियाँ बताना, उनकी कमियों का उन्हें अहसास दिलाना, उनकी गल्तियाँ बताना, यह तो सामान्य व्यक्ति भी करता हैं, परंतु उनकी दूसरी विशेषताओं से परिचित करना, उनकी अच्छाइयों की ओर इशारा करना, उनकी खूबियों की तारीफ करना, यह सब मुश्किल तो है । 68 For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर करने लायक भी यही है।" हम जब तक औरों को ऊपर उठाने की कोशिश नहीं करते, तब तक हम खुद ऊँचाइयों को छू नहीं सकेंगे। उठो ! कर्तव्य पथ पर बढ़ो, प्रमाद मत करो।" विदेश में गेरुआ कपड़ा पहन कर चलते हुए विवेकानन्द पर जब वहाँ के लोग हंस पडे, तो उन्होंने कहा. “तुम्हारे यहाँ दर्जी लोगों को सभ्य बनाते हैं पर मैं उस देश से आया हूँ जहाँ लोग ज्ञान एवं विद्या उपार्जन कर सभ्य कहलाते हैं।" “आजकल कपड़े और गहनों के बारे में ज्यादा मेचिंग खोजते हैं। रंगो का चुनाव भी मेचिंग के आधार पर रहता हैं। पर यह हम नही सोचते कि जिन्दगी के साथ हमारा मेचिंग टूटता जा रहा हैं। हमारे परिवार, रिश्तेदार और जिंदगी के हिस्सेदार के साथ हमारा तालमेल बिखरता जा रहा हैं। तकाजा है, उस तालमेल को वापस जोड़ने का, बाहर का मेचिंग रहे न रहे भीतर का, एवं संबंधों का तालमेल रहना आवश्यक है। जब आपसी 69 For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताल-मेल टूटता है, तब रिश्तों पर लगाया हुअ प्रेम का पानी उतरने लगता हैं और रिश्तों में माधुर्य की जगह भद्दापन ले लेती हैं।" -: जीवन में उपयोगी बाते :(1) बोलो पर, बको मत :- ऊटपटांग क्लेशी एवं कठोर भाषा मत बोलो। (2) खाओ पीओ, परं चखो मत :(3) देखो पर, तको मत :(4) घूमो फिरो, पर थको मत : पापों का फल अकेले, भोगा कितनी बार । कौन सहायक था हुआ, कर ले जरा विचार ।। घिरे रहो परिवार से, पर भूलो न विवेक। रहे कभी हम एक थे, अन्त एक का एक।। आतम और परमातम में, सिर्फ कर्म का भेद । काट दो इस कर्म को, फिर भेद है न खेद ।। 70 For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "जितने भी संयोग है, उनका अन्त वियोग है। संयोग शब्द ही वियोग की सूचना देता है।" हे भव्यात्माओं! तुम भवांतर से लाई गई, पुण्य सामग्री का जतन करो, नया पुण्य उपार्जन करो। उत्तरोत्तर पुण्य वृद्धि तुम्हें मुक्ति-पथ पर ले जायेगी। ___ माना कि आप अपने दोस्त की या अन्य किसी की मदद आर्थिक सहायता देकर नहीं कर सकते, या करना नहीं चाहते। परंतु उसकी परेशानी को हल्का करने के लिये कुछ प्यार भरे मखमली शब्दों का सहारा तो दे सकते हैं न? उनकी पीड़ा में संवेदना मिलाकर थोड़ा हल्कापन तो उसे दे सकते हैं न! यदि प्यार भरा, दिलासा भरा, या हिम्मत भरा आश्वासन हम दे नहीं सकते, तो शायद हम दुनिया के सबसे बदनसीब इंसान हैं। कहीं ऐसा न हो कि आप जिसे, आज जो देना नहीं चाहते, कल उसी से वह मांगने की नौबत आ जाये।" "दयालुता, करुणा व दोस्ती का भाव , ये सब सहज आर्कषण के चिन्ह हैं 71 For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “कुरुक्षेत्र के मैदान पर, कदम्ब के वृक्ष नहीं उगते, कदम्ब के लिये तो वृंदावन चाहिये। मन को कुरुक्षेत्र मत बनाईए। विश्वास का वृंदावन रचाइये, और दोस्ती के फूल खिलाइये।" "हर वक्त हर समस्या का खुले आम सामना नहीं किया जा सकता, कभी समाधान का सहारा भी लेना पड़ता है। और कभी कुछ समय के लिये समर्पण भी करना पड़ता है।" ___ "समस्या को हम सुलझा नहीं सकते, तो उसे सम्हाले रखे। ज्यादा उलझाएँ नहीं, यह भी एक तरीका है, समस्याओं से निपटने का।” । "चिंता की चिनगारी, चिता बनाकर, चित्त को जला न दे, इसकी सावधानी रखिये।" __ अपने व्यक्तित्व को भारी भरकम मत बनाइयें। सौम्य और प्रसन्न व्यक्तित्व हर एक को दिल जीत लेता है। सूर्य प्रभावशाली और दीप्ति मान् है, पर कविताएँ चाँद पर लिखी गई हैं क्योंकि वह सौम्य है, शीतल हैं, - मधुर व्यक्तित्व का निर्माण कीजिये। 72 For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थोड़ा भूलना भी सीखो :(1) औरों की गल्तियाँ ? (2) औरों ने किया अपमान ? (3) औरों ने की हुई उपेक्षा ? (4) औरों की लापरवाही ? "भूलना एक कला है, ये सीखने के काबिल है।" __ “किसी आदमी को यदि तुम, अपना दुश्मन बनाना चाहो, तो सिर्फ उसे इतना ही कहना "तुम्हारी बात गलत है।" यह तरकीब अक्सर काम आती है और इससे विपरीत यदि तुम कहते हो, “शायद तुम सही हो", तो सामने वाला तुम्हारे और नजदीक आयेगा।" “जो व्यक्ति विद्या से परिपूर्ण हो, पर दुर्जन हो, तो उसका साथ मत करो, सॉप भले मणियुक्त हो, फिर भी जहरीला होता है।" __ "बातें करना सरल है, पर बर्ताव करना कठिन है। औरों को क्या करना चाहिये, यह कहना आसान है, पर हमें जो करना चाहिये, वह करना बड़ा मुश्किल है।" For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ "किसी के उत्साह को तोड़ने के बजाय उसे दुगुना कीजिये। किसी को दी गई, आर्थिक सहायता शायद खत्म हो जाय, पर जिंदगी के सफर में, हिम्मत भरा सहारा देकर, हौसला बढ़ाने का अहसास हमेशा के लिये थकहारे कदमों में गति का संचार करता रहेगा। ऐसा सहयोग चिर स्मरणीय एवं अनुकरणीय बनेगा।" "दुनिया में दोनों हैं। अच्छा और बुरा, गुण और दोष, बाहर की निगाहों से देखने वाले अक्सर दोष देखते हैं। वे हमेशा अच्छा देखते हैं। ज्यादा अच्छा देखते है, जो मन की आँखों से देखते हैं।" "मन की आँखे खोल, मनवा मन की ऑखे खोल।" जमाने भर का अंधेरा, दनिया भर का तिमिरि, एक छोटी सी ज्योतिर्मय मोमबत्ती की रोशनी को झुठला नहीं सकता, या वुझा नहीं सकता, कभी आफतें एक दो नहीं, पर सिलसिलेबंद हकीकत बन घेर लेती हैं। उस वक्त भी परमात्मा के प्रति श्रद्धा का जो नन्हा-सा दीप भीतर में जल रहा हैं, उसे जलाये रखना, श्रद्धा के दिये में जलती नन्ही प्रेम की बाती बड़ी से बड़ी जटिल समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती है। विश्वास का दीप बुझने मत देना। 74 For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "दृढ़ संकल्प और समझदारी हर एक को दो विशेष चप्पू के रूप में मिले है। उसी से जीवन नैया खेनी होती है। चप्पू की ओर देख कर, अपने कमजोर या मामूली चप्पू पर अफसोस करना बेवकूफी है। वे संसार सागर तो क्या, छोटी नदी भी पार नहीं कर सकते। वे ऐसी बेवकूफी क्यों करते हैं? यह तो वे ही जाने। जिंदगी की नाव यदि संसार-सागर में मुश्किलों की लहरो से टकरा कर, संकटों के भंवर में फंस जाय, तो थोड़ी जो होशियारी का हथियार तुम्हें मिला है, उससे जिंदगी की नाव खेते रहें। दृढ़-संकल्प के मजबूत हाथों में पतवार होने पर नौका नदी ही नहीं, सागर भी पार कर सकती है।" । हम अपने कार्यों से जीवित रहें, वर्षों से नहीं, हम अपने विचारों से जीवित रहे, श्वासों से नहीं, हम अपनी अनुभूतियों में जीयें, समय के गणित में नहीं। साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय।। ये दुनिया काली कूतरी जो छेड़ो तो खाय। सांच कहु तो मारिये, झूठे जगत पतिहाय।। 75 For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गो धन, गज धन, वाजिधन, __ और रतन धन खान, । जब आवे संतोष धन, सब धन धूलि समान ।। सबे सहाय संबल के, कोऊ न निबल सहाय। पवन जगावत आग को, दीप ही देत बुझाय।। "चोर बनो तो प्रभव चोर जैसे बनो, आये थे, द्रव्य रत्न चुराने, और चुराये तीन भाव रत्न, जो कभी लुटाने से लुटते नही। वे अखूट हैं। कदाचित् कोई लूट ले, तो उसका भी कल्याण हो जाता है।" नदी-किनारे नर प्यासा कब रहता है? या तो वह आलसी है या नदी में नीर नहीं। कल्पवृक्ष के नीचे नर भूखा कब रहता है? या तो वहाँ कल्पवृक्ष ही न हो, बबूल हो, या नर भाग्यहीन। “सम्यक् दर्शन और धर्म श्रवण मनुष्य के तीनों काल के सद्भाग्य का सूचक हैं।" 76 For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "शिष्य-श्रोताओं का वित्त हरने वाले गुरु यत्र-तत्र मिल जायेंगे किंतु सत्य चित्त का हरने वाला गुरु मिलना कठिन है। वह सद् भाग्य से मिलता है।" सत्य, तथ्य, और पथ्य का उपदेश देने वाले गुरु ही सच्चे गुरु हैं। पुद्गल दे दे धक्का, तूने मुझको खूब रुलाया है। यद्यपि मैं शुद्ध स्वरूपी, तू है अचेतन भाव। तू जड़ संग में ऐसा फंसा, मैं खोया चेतन भाव। तेरे संग में चतुर गति में कीना भव विशेष । इस जगत् रंग मंच पर, धरे मैंने बहुत वेष।। गृहस्थ नीति की कुछ बातें :(1) तीन बातों में शर्म नही करना :- आहार में, व्यवहार में, और अध्ययन में। (2) कैसा नहीं बनना :- मतलबी, अभिमानी, मायावी। (3) तीन कभी न भूले :- प्रतिज्ञा लेकर, कर्ज लेकर, और विश्वास देकर। (4) तीन ऑसू पवित्र :- प्रेम, करुणा, और सहानुभूति के। (5) घृणा नहीं करनी :- रोगी, दुःखी व निम्न जाति से। (6) तीन सुखी :- प्रियभाषी, परोपकारी एवं सत्संगी। 77 For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (7) तीन में संतोष न करें :- धर्म-आराधना में, दान देने में,एवं तप करने में। (8) ज्ञान वृद्धि के तीन उपाय :- समय साधन और शौक। (9) तीन बड़े डॉक्टर :- हवा, पानी और धूप। (10) कैसे हँसते हैं :- उत्तम पुरुष आँखों से, मध्यम पुरुष होठों से, और सामान्य पुरुष दाँत दिखाते हैं। (11) तीन प्रकार के जीवन :- नारियलवत् (आंतरिक मधुरता युक्त), बेरवत् (बाहय मधुर), अंगूरवत्:-(भीतर बाहर, दोनों मधुर) __(12) मनुष्य की तीन श्रेणियाँ :- पाप करने से पहले सोचने वाले ज्ञानी, पाप करके सोचने वाले अज्ञानी, कभी नहीं सोचें वे दुष्ट। (13) तीन बाते याद रखो :- धोखा देना नीचता, धोखा खाना मूर्खता, धोखे से बचना चतुरता। (14) तीन बोल अमोल :- धन गया कुछ नही गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया। चरित्र गया, सदाचार गया तो सब गया। (15) अध्ययन के तरीके :- पहले वह सीखो जो आवश्यक है, फिर वह सीखो जो उपयोगी है, फिर वह सीखो जिससे प्रतिष्ठा बढ़े। (16) श्रमिक के तीन रूप :- जो शरीर से श्रम करे वह श्रमिक, जो शरीर एवं मस्तिष्क दोनों से काम करें वो शिल्पी, जो मस्तिष्क व हृदय से काम करे वह कलाकार। (17) तीन के साथ तीन चाहिये :- भोजन के साथ पाचन, धन के साथ वितरण एवं पठन के साथ चिंतन। 78 For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (18) तीन व्यक्ति पश्चाताप करते हैं :- बचपन में ज्ञानार्जन नहीं करने वाले जवानी में धर्माजन नहीं करने वाले। (19) तीन के लिये तीन महादुःख :- बालक के लिये मॉ की मृत्यु । तरूणी के लिये, पति की मृत्यु, वृद्ध के लिये पत्नी की मृत्यु। (20) तीन चीजें बढ़कर भयंकर बनती है :- ऋण, रोग, और लड़ाई। आछे दिन पाछे गये, कियो न प्रभु से हेत।। अब पछताये होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।। 79 For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अष्टमंगल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित जीवन का सुन्दर निर्माण करने वाला प्रेरणादायी, पठनीय, चिन्तनीय, मननीय सर्वोत्तम साहित्य कर्मयोग (ग्रंथ) हिन्दी नया संदेश (ग्रंथ) (गुजराती - हिन्दी - अंग्रेजी) पंच प्रतिक्रमण (हिन्दी - अंग्रेजी) दो प्रतिक्रमण (हिन्दी - अंग्रेजी) मैं भी एक कैदी हूँ - हिन्दी सद्भावना - हिन्दी बिखरे मोती - हिन्दी योग-दीपक योग-समाधि - प्रेस में समाधिशतक - प्रेस में योगदर्शन गीता - प्रेस में -: प्राप्तिस्थान : अष्टमंगल फाउन्डेशन, एन /5, मेघालय फ्लेट्स, ऐ / 401, डिफेन्स कॉलोनी सरदार पटेल कोलोनी के पास, नई दिल्ली नारणपुरा, अहमदाबाद - 380014 फोन :- 4629590,4629591 फोन:- 446634, 811552 80 For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only