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“विद्वान् और मूर्ख में इतना ही अंतर है, कि विद्वान् बोलने से पहले सोचता है, और मूर्ख बोलने के बाद पछताता है। विद्वान् की वाणी में विवेक का अंकुश होता है। वह सद्भावना के धरातल पर बोलता है। जब कि मूर्ख की भाषा बे-काबू होती है। वह बोलने के बाद गणित करता हैं, इसलिये मूर्ख ठोकर खाता है जबकि विद्वान् पथ बना लेता है। "
“ प्रेम के माध्यम से जीवन की शुद्धता को प्राप्त करो, जीवन को मंदिर जैसा पवित्र बनाओ। अपनी वाणी में इतनी मिठास भर दो कि उसे सुनने वाले प्रेम के बंधन में बंध जाय।"
“अपनी सुरक्षा स्वयं करनी हैं, गैर कोई आपको बचाये, इस बात में दम नहीं है। सब संयोग के साथी हैं। स्वयं के कदमों से चलकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। केवल इतना ख्याल रखे कि जीवन के इस यात्रा पथ पर सद्-विचार और सदाचार का पाथेय ही हमारे साथ हो।”
एक को साधे, सब सधे सब साधे सब जाय। जो तू सेवे, मूल को, फल अवश्य ही पाये।।
“ गाय चाहे पीली हो, काली हो, या चितकबरी हो, उसका दूध तो श्वेत धवल ही होगा, उसे अमृत समझो, धर्म चाहे हिन्दु हो या मुसलमान,
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