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"हे भव्यात्माओं! चारों संज्ञाओं का क्षय होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए आहार संज्ञा के ह्रास हेतु अनहारी स्वरूप का विचार बार-बार करते रहो।"
(आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा, परिग्रह-संज्ञा)
"भय-संज्ञा के ह्रास हेतु अभयदाता अरिहंत प्रभु का ध्यान व भक्ति करो। मैथुन-संज्ञा के ह्रास हेतु पर पदार्थ की असारता देखो।"
"हे भव्यात्माओं! प्रभुजी फरमाते हैं :समयं गोयमं। मा पमाये
हे गौतम अल्प समय मात्र का भी आलस मत करो, प्रमाद मत करो। क्योंकि प्रतिक्षण सात कों का अपनी आत्मा पर कर्म-बंधन निरंतर हो रहा है। अतः सदैव यल बनाये रखो। अपने जीवन को कोमलता, क्षमा, संतोष से अलंकृत बनाओ। कभी विकथा मत कहो और अन्त में।
आत्मा को कभी मत भूलो सफल जीवन की यही साधना है। प्रत्येक स्थिति को समतापूर्वक स्वीकार करना.सीखो।"
"मूळ ही वास्तविक परिग्रह है।"
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