________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
" केवल अभेदात्मक जीवन मोक्ष में है, शरवीर आत्माएँ वहाँ पहुँचने के लिये परम पुरूषार्थ का सेवन करती हैं। मध्यम शक्ति वाली आत्माएँ इनकी शरणागति से प्रगति करती हैं। पर्याय को पकड़कर जीने से कभी शांति नहीं मिल सकती, क्योंकि पर्याय तो परिवर्तनशील हैं। भरोसा केवल आत्म-द्रव्य का ही किया जा सकता है। सर्व स्वात्म तुल्य दर्शन ही सम्यक् दर्शन हैं।"
"सारे संसारी जीव अहम् और मम के निविड पाश में बंधे हुए हैं।
लंबे काल तक विविध योग साधना द्वारा जीव कई प्रकार की लब्धियाँ व शक्तियाँ तो प्राप्त कर लेता है, पर अहम् और मम के पाश ढीले नहीं होते, इन पाशों से छूटकर परम पद प्राप्ति का एक मात्र साधन अहम् और मम रूप मोह के विजेता अरिहंत परमात्मा की शरणागति हैं।
वीतराग प्रभु की सेवा उपासना द्वारा ही यह जीव वीतराग पद को प्राप्त कर सकता है।"
" जीव अपने ही कर्मो से स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है।" ___ " हे वीतराग! आप ही मेरे देव हैं। आपका बतलाया हुआ धर्म ही मेरा धर्म है।
इस प्रकार का मेरा स्वरूप विचार कर अब आपश्री के इस सेवक की उपेक्षा करना उचित नहीं है। "
12
For Private And Personal Use Only