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" जैसे कुएँ में पड़ा हआ व्यक्ति, कुएँ से बाहर रहे व्यक्ति के सहारे से ही बाहर निकल पाता है। वैसे ही हम संसारी मोह-गर्व में पड़े हुए हैं। हम मोह विजेता जिनेश्वर देव का आलंबन लिये विना मोह पाश का नाश कर संसार-पाश से मुक्त नहीं हो सकते। परमात्मा के आलंबन विना कर्मबद्ध आत्मा मोह का क्षय करने में समर्थ नहीं बनती।"
" हे परमेश्वर! जिन कामादिक शत्रुओं ने सभी देव-दानवों को जीत लिया है, आपने उन्हें सर्वथा परास्त कर दिया है। किन्तु आपको जीतने में असमर्थ वे शत्रु मानो क्रोधित होकर, आपके सेवक, मुझे बहुत हैरान कर रहे हैं, यह खेद जनक है।"
“ आत्म-सुख स्वाधीन है, और नहीं एह समान। एम जाणी निजरूप में, वरते धरी बहुमान"
" आओ हम उन त्रिलोकीनाथ अरिहंत प्रभु की उपासना करें, जो सब क्षेत्र काल में अपने नाम आकृति, द्वव्य व भाव निक्षेपों के द्वारा तीन जगत् के जीवों को पवित्र कर रहे हैं।
परमात्मा अरिहंत प्रभु जगत के सच्चे परमेश्वर हैं। इसलिये किसी भी काल या किसी भी क्षेत्र के अरिहंत का किसी निक्षेप से आलंबन लेने पर भव्यात्मा का निश्चय ही कल्याण होता है। "
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