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पर करने लायक भी यही है।"
हम जब तक औरों को ऊपर उठाने की कोशिश नहीं करते, तब तक हम खुद ऊँचाइयों को छू नहीं सकेंगे।
उठो ! कर्तव्य पथ पर बढ़ो, प्रमाद मत करो।"
विदेश में गेरुआ कपड़ा पहन कर चलते हुए विवेकानन्द पर जब वहाँ के लोग हंस पडे, तो उन्होंने कहा. “तुम्हारे यहाँ दर्जी लोगों को सभ्य बनाते हैं पर मैं उस देश से आया हूँ जहाँ लोग ज्ञान एवं विद्या उपार्जन कर सभ्य कहलाते हैं।"
“आजकल कपड़े और गहनों के बारे में ज्यादा मेचिंग खोजते हैं। रंगो का चुनाव भी मेचिंग के आधार पर रहता हैं। पर यह हम नही सोचते कि
जिन्दगी के साथ हमारा मेचिंग टूटता जा रहा हैं। हमारे परिवार, रिश्तेदार और जिंदगी के हिस्सेदार के साथ हमारा तालमेल बिखरता जा रहा
हैं।
तकाजा है, उस तालमेल को वापस जोड़ने का, बाहर का मेचिंग रहे न रहे भीतर का, एवं संबंधों का तालमेल रहना आवश्यक है। जब आपसी
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