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जिस प्रकार दावानल वन वृक्षों को जलाकर भस्म कर डालता है उसी प्रकार अनंत गुणों के धारक श्री जिनेश्वर प्रभु की भक्ति एवं बहुमान से कर्म-वन को भस्मीभूत अवश्य किया जा सकता है ।
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परमात्म भक्ति से आत्मा में ऐसी ज्योति प्रकट होती है कि हमारे अंतःकरण में व्याप्त सारी कुलक्षणताएँ जलकर राख हो जाती हैं ।
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“ आत्मबल ही मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत है
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हे भव्यात्माओं ! अनन्त पुण्य प्रताप से तुम्हें अपार कृपा निधान अरिहंत परमात्मा के दर्शन सुलभ हुए है, वे ही परम आदर से स्मरण करने योग्य हैं। सेवा, भक्ति, उपासना के लिये श्रेष्ठतम पात्र हैं । परम पूजनीय हैं । तथा इन्हीं के शासन की आज्ञा ही परम भक्ति पूर्वक आचरणीय है । हे चेतन ! जागो, अपनी चेतना को सफल करो ।
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अचिंत्य शक्तिशाली भगवान् ! अनन्त काल से संचित अनंत कर्मों समूह को दूसरा कोई संपूर्णतः क्षय करने में समर्थ नहीं है, सिवाय आपके ।
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