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हे परमेश्वर !
आपका शासन अनादिकाल से हम जीवों को अनन्त फल देने वाला है, आपकी शरणागति से प्राणी अनन्त, अक्षय शाश्वत पूर्णानंद स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं।
__ अतः हम आपको कोटिशः वंदना करते है। यह सोचनीय है कि
जब तक अन्तःकरण संसार भाव से खाली नहीं हो पाता, तब तक वह परमात्म भाव से परिपूर्ण नहीं हो सकता।
"प्रकृति के कानून के विरुद्ध मत चलो, नुकसान होगा।"
अनात्म-भाव और आत्म-भाव एक साथ नहीं रह सकते, मोक्ष की साधना, अन्तःकरण से संसार की साधना छूटने पर ही संभव है।
जगत में जो कुछ. श्रेष्ठ है, वह सब आप ही हो, आपके सिवा शेष सब असार है, मिथ्या है।
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