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जिन शासन- प्रदत्त संस्कार युक्त अगर हम हमारा जीवन बनाये तो, मनुष्यलोक भी, देवलोक बन सकता है
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माया पाप है, पर वही माया अगर धर्म की आराधना के लिये की जाय, तो वह पाप नही पर धर्मरूप है ।
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घमंडी जिदंगी का आदर करना है तो स्वयं के लिये क्षमाशील बनना होगा । जो लोग इस संसार से मुक्त होना चाहें, उन्हें हत्या से बचना होगा ।
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जो हृदय दूसरों को कष्टों से दुःखी होता देखकर भी द्रवित नहीं होता, वह पाषाणहृदयी कहलाता है ।
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यह लक्ष्मी जल में उठने वाली लहरों की तरह चंचल है। दो-तीन दिन ठहरने वाली है । अतः इसका उपयोग दान में करो। "
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है ।
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तपश्चर्या द्वारा समग्र कर्मों का क्षय करने वाला शाश्वत सिद्ध हो
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