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" अखिल विश्व के नाथ बनने की भावना होने पर भी भगवान सबके नाथ नही बन सकते क्योंकि नाथ बनने वालों को योग-क्षेम का उत्तरदायित्व वहन करना पड़ता है। सबको संसार से बचाने की भावना होते हुए भी भगवान् योग्य को ही संघ में स्थान देकर उन जीवों के ही योग-क्षेम के वाहक बन सकते है । "
___“ जो मानव अपनी बढ़ती हुई लक्ष्मी को सर्वदा धर्म के कामों में देता है; उसकी लक्ष्मी सदा सफल है। पंडितजन भी उसका यश गाते हैं। प्रशंसा करते हैं।"
इस जगत् में निःस्वार्थ जीवन जीने वाला पात्र दुर्लभ है। वो ही सुगति में जाता है।
जीव अपने ही कर्मों से स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है।
“ सब दुःख हिंसा से उत्पन्न होते हैं "
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