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-: आत्मा एक; आयाम अनेक :सच्चे गुरु के सही निर्देशन का अभाव अनुशासनहीनता लाता है।
हे भव्यात्माओ! कृतज्ञ बनो।
कृतज्ञता ही कृपा के द्वार खोलती हैं। विश्वनाथ अरिहंत परमात्मा का अनुग्रह अनूठा है, जो उसे प्राप्त करने में सफल बनता है। वह कृत-कृत्य हो जाता है।
हे भव्यात्माओं! पर पंचायत में मत पड़ो, मन में भी उसका विचार मत करो।
पर पंचायत तुम्हारी आत्मा को मलीन करने वाली है, सावधान रहो।
हे भव्यात्माओं! सिद्ध भगवान् के ज्ञानानुसार यह संसार अनादिकाल से इसी तरह चल रहा है। उसमें किसी की इच्छा या अनिच्छा का प्रश्न ही नहीं है। इसलिये प्रभुजी के प्रभुजी के प्रति सर्मपण भाव धारण करो। समत्व भाव बनाये रखो।
"सेवा और सज्जनता ईश्वर भक्ति का ही श्रेष्ठतम् रूप है।"
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