________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
अतः इच्छा - शक्ति रहित होना ही परम पुरुषार्थ है । इसी परिप्रेक्ष्य में कहा गया है
कि :
-:
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"चाह गई, चिंता मिटी, मनुवा बेपरवाह I जाको कछु न चाहिये, वह शाहों का शाह"
सुरक्षित जीवन भी उसी का नाम है जो जीवन में निःस्वार्थ भाव से अपने शुभ व उचित कर्तव्यों का पालन सदा करता रहे।”
आत्मजागृतिः- “परम सुख का सोपान ही निज आत्मा के घर में
बास है । पर - घर - बास ही सब दुःखों व विपत्तिओं का कारण है । अपने लक्ष्य में यह होना ही चाहिये कि आत्मा का घर अर्थात् समत्व । समता ही आत्मा है, समता ही परमात्मा है, समत्व ही मोक्ष है ।”
=
" आध्यात्मिक जीवन का परम लक्ष्य अपनी आत्मा को समत्व से रंग डालना है । यही मानव की परम सफलता है । आज नहीं तो कल, इस भव में नही तो, आगामी भवों में भी हासिल तो इसे ही करना है । इसे ही प्राप्त करने का हमारा जीवन-लक्ष्य होना चाहिये और लक्ष्य प्राप्ति के लिये
8
For Private And Personal Use Only