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पूर्वस्वर
आकाश की अनेक बदलियों में से स्वाती - नक्षत्र के जल की एक बूंद भी यदि सागर की किसी मीन के मुख में पड़ जाए तो लेने वाला एवं देने वाला, वह मुहूर्त सभी धन्य बन जाते हैं। उस जल का एक बिंदु भी मोती बन जाता है । उस मोती माल को पहनने से वदन- क्रान्ति तो निखरती ही है, साथ ही संग्रह करने से ऋिद्धि-प्राप्ति एवं खाने से आरोग्य - वृद्धि होती है ।
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संसार के सुभग-संयोग स्वाती - जल की तरह और पुण्यशाली जीव सागर की मीन के मानिंद हैं।
संसार के दावानल तो सदा प्रज्वलंत हैं; सामान्य जल इन्हें शमन करने में असमर्थ / अशक्तिमान् है । ऐसे वक्त में स्वाती - जल की विशेष अपेक्षा है, भाग्य - सागर के मीन की महती आवश्यकता है
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स्वाती -- जल की तरह यह संग्रह है; जिसका नाम है:
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“ बिखरे मोती ” । नित्य सुप्रभात में, शांत एकांत में, ज्ञानध्यान के सुनहरे पवित्र पलों में आत्मदेव जब हृदय - सिंहासन पट पर विराजित हों; तब ये चितंन - पुष्प-भाव मौक्तिक आत्मा पर आरूढ़ हो जाएँ तो बेड़ा पार
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