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“ मिथ्यात्व को दूर करो, तभी सम्यक्त्व का सूर्य आपके हृदय में उदित
होगा।"
" ज्ञानाभ्यास आपको निरन्तर चिन्तन एवं मनन में व्यस्त रखेगा। “आप यह जान पायेंगे मैं कौन हूँ"?
" वक्ता की अभिव्यक्ति, कितनी भी सुन्दर क्यों न हो, अगर श्रोता मूर्ख हो, और प्रवचन को न समझ सके, तो, उस वक्ता का वही हाल होता है, जैसा कि एक अंधे पति के लिये उसकी पत्नी का श्रृंगार।"
जिसका मन जिसमें रमा, वही उसे सुहाये। दाख स्वाद कौआ तजे, निबोरी चाव से खाये।।
जल में बसे कमोदिनी, चन्दा बसे आकाश जो जाहि को भावता, सो ताहि के पास।
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