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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। आत्मा को संसार की जेल से निकालने के लिये, मन को आत्मा के सच्चे सुख-रूप महलों की मोहिनी लगानी पड़ेगी। आत्म-गुणों के पान का व्यसन लगाना पड़ेगा। तथा आत्मा की तान में मस्त बनाना पड़ेगा मन को ।" सब साधनाओं का लक्ष्य मात्र एक आत्मा है। अरिहंत प्रभु की भक्ति, सिद्ध परमात्मा का ध्यान, नवकार का जाप, सभी आत्मा के खाते में जमा होता है। आत्मा वही “मैं” अक्षय सुख-भंडार आनन्द का सागर, अचिन्त्य शक्तिशाली। आत्म अनुभव ज्ञान जे, तेही मोक्ष स्वरूप। ते छंडी पुद्गल दशा, कोण ग्रहे भव कूप " परम देव पण एज छे, परम गुरू पण एज! परम धर्म प्रकाश को, परमतत्व गुण गेह " “ परमात्मा अरिहंत देव की द्रव्य भाव भक्ति करते हुए अपने लक्ष्य में आत्मा ही रहनी चाहिये क्योंकि भक्ति के द्वारा हमें जो प्राप्त करना है, वह है, परमात्म पद, जो हमारी आत्मा में मौजूद हैं। 20 For Private And Personal Use Only
SR No.008706
Book TitleBikhre Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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