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साथ तो वो क्या जले, मेरी राख को भी वो छूता नहीं।"
फकीरा फकीरी इतनी दूर है, जितनी लंबी खजूर।
चढ़ गये तो रस भरपूर है, गिर गये तो चकनाचूर।।
--: मेरी अभिलाषा :चाह नहीं सुरपति बनकर,
स्वर्ग लोक में मौज करूँ। चाह नहीं चक्रवर्ती बनकर,
भूलोक पर शासन करूँ।। चाह नहीं मुझे दौलत की भी,
वो तो भव भ्रमण बढायेगी। इस जीवन में भी मुझको,
धर्म-विमुख बनायेगी।। चाह मेरी तो बस यही है, देनी न पडे, जनम मरण की फेरी। मुक्ति पथ गामी बनूँ मैं, __ यही है अभिलाषा मेरी।। कैसे पाऊँ शिव सुरत मैं
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