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व्यक्ति नहीं चलेगा ।
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अंधा होकर किसी विचार से चिपके रहने की अपेक्षा जिज्ञासु बनकर धार्मिक सत्यों की शोध करना उत्तम है
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तुम अपने आपको भगवान् को अर्पित कर दो, वह ही उत्तम सहारा है । " इसी से वह भय, चिन्ता व शोक से मुक्ति पा सकता है ।
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आसक्ति में अनन्त दुःख है । अनासक्ति में अनन्त सुख ।
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आत्मा तप और त्याग द्वारा सूक्ष्म एवं उपयोगी बनता है, जिससे हम उर्ध्वगामी बनते हैं ।
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जैसे हाथी को वश में रखने के लिये अंकुश आवश्यक होता है और नगर की रक्षा के लिये पुलिस आवश्यक होती है । वैसे ही इंद्रियों के विषयनिवारण के लिये, परिग्रह का त्याग आवश्यक होता है। क्योंकि परिग्रह के त्याग से इंद्रियाँ वश में रहती हैं । "
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जैसा खावे अत्र, वैसा होवे मन
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