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अनुकरणीय जीवन चरित्र बनकर उभरता है, इसके विपरीत अगर धर्म-विहीन जीवन जीने वाला व्यक्ति है तो वह मानव से दानव ही बनेगा। और दानव से सृजन की उम्मीद की ही नहीं जा सकती।
धर्म के अतिक्रमण के सामने उसका प्रतिक्रमण जरूरी है। "
“ पहले तोल फिर बोल।"
" जो तुम्हारे प्रारब्ध में लिखा है, वह तो तुम्हें मिलेगा ही, चाहे वो सुख हो या दुःख, उसका उदय समयानुसार अवश्य होगा, चाहे उसे तुम न भी पाना चाहो।"
" दुःख सहन करना कठिन है, उसी तरह सुख सहन करना भी कठिन है। कीर्ति, वित्त एवं विद्या प्राप्ति करना एक परीक्षा है, जिसमें उत्तीर्ण होना दूभर हैं, पर उसमें उत्तीर्ण होना भी अति आवश्यक है। "
“ जिस घर में सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार इत्यादि गुणों का समावेश है, तथा आचार विचार में पवित्रता है, तो वहाँ लक्ष्मी ठहरती है।
ठीक उसके विपरीत गुणवालों से वह दूर ही रहती है। "
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