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"शिष्य-श्रोताओं का वित्त हरने वाले गुरु यत्र-तत्र मिल जायेंगे किंतु सत्य चित्त का हरने वाला गुरु मिलना कठिन है। वह सद् भाग्य से मिलता है।" सत्य, तथ्य, और पथ्य का उपदेश देने वाले गुरु ही सच्चे गुरु हैं।
पुद्गल दे दे धक्का, तूने मुझको खूब रुलाया है।
यद्यपि मैं शुद्ध स्वरूपी, तू है अचेतन भाव। तू जड़ संग में ऐसा फंसा, मैं खोया चेतन भाव।
तेरे संग में चतुर गति में कीना भव विशेष । इस जगत् रंग मंच पर, धरे मैंने बहुत वेष।।
गृहस्थ नीति की कुछ बातें :(1) तीन बातों में शर्म नही करना :- आहार में, व्यवहार में, और अध्ययन में।
(2) कैसा नहीं बनना :- मतलबी, अभिमानी, मायावी।
(3) तीन कभी न भूले :- प्रतिज्ञा लेकर, कर्ज लेकर, और विश्वास देकर।
(4) तीन ऑसू पवित्र :- प्रेम, करुणा, और सहानुभूति के। (5) घृणा नहीं करनी :- रोगी, दुःखी व निम्न जाति से। (6) तीन सुखी :- प्रियभाषी, परोपकारी एवं सत्संगी।
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