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"दृढ़ संकल्प और समझदारी हर एक को दो विशेष चप्पू के रूप में मिले है। उसी से जीवन नैया खेनी होती है। चप्पू की ओर देख कर, अपने कमजोर या मामूली चप्पू पर अफसोस करना बेवकूफी है। वे संसार सागर तो क्या, छोटी नदी भी पार नहीं कर सकते। वे ऐसी बेवकूफी क्यों करते हैं? यह तो वे ही जाने।
जिंदगी की नाव यदि संसार-सागर में मुश्किलों की लहरो से टकरा कर, संकटों के भंवर में फंस जाय, तो थोड़ी जो होशियारी का हथियार तुम्हें मिला है, उससे जिंदगी की नाव खेते रहें।
दृढ़-संकल्प के मजबूत हाथों में पतवार होने पर नौका नदी ही नहीं, सागर भी पार कर सकती है।" ।
हम अपने कार्यों से जीवित रहें, वर्षों से नहीं, हम अपने विचारों से जीवित रहे, श्वासों से नहीं, हम अपनी अनुभूतियों में जीयें, समय के गणित में नहीं।
साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय।।
ये दुनिया काली कूतरी जो छेड़ो तो खाय। सांच कहु तो मारिये, झूठे जगत पतिहाय।।
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