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" आवेश में यह शरीर जहर उगलता हैं। सामायिक भाव में वही शरीर अमृत उत्पन्न करता हैं।
आवेश को रोकिये समभावी बनिए।"
“ खेत उत्तम हो व बीज उन्नत हो तो निःसंदेह फसल अच्छी ही होगी, उसी तरह अगर पात्र सुपात्र हो तो उसे दिया गया दान आपके लिये सर्वोत्कृष्ट सुख अवश्य सुलभ करवायेगा।"
“ एक दगाबाज मित्र से तो कट्टर दुश्मन भला। "
“ धर्म से उपार्जित पुण्य ही आपका सच्चा मित्र है, जो सब कुछ शेष है, वह तो हमारे शरीर की तरह हमारा साथ छोड़कर नष्ट होने वाला है। "
“सम्यक्त्व आत्मा का मूल गुण है। जिसका सम्यक्त्व निर्मल एवं दृढ़ होगा, वह आज नहीं तो कल अवश्य मुक्ति पायेगा।"
“ आत्मा की शक्ति अपूर्व है। उसकी तुलना संसार की किसी पार्थिव वस्तु से नहीं हो सकती।
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