Book Title: Vitrag Stotram
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 9
________________ श्रीवीतरागस्तोत्रम् उत्पन्न पुष्पों तथा उनकी बनी हुई मालाओं को छोड़कर आपके निःश्वास की सुगन्ध लेने के लिए (आपके वदनकमल के पास) आते हैं । (७) । लोकोत्तरचमत्कार-करी तव भवस्थितिः । यतो नाहारनीहारौ, गौचरश्चर्मचक्षुषाम् ॥८॥ अर्थ – (हे प्रभो !) आपके भव की स्थिति लोकोत्तर चमत्कार करने वाली है, कारण कि आपके आहार और निहार को चर्मचक्षु वाले मनुष्य नहीं देख सकते हैं । (८)

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