Book Title: Vitrag Stotram
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 38
________________ ३७ श्रीवीतरागस्तोत्रम् नारका अपि मोदन्ते, यस्य कल्याणपर्वसु । पवित्रं तस्य चारित्रं, को वा वर्णयितुं क्षमः ? ॥७॥ अर्थ – जिनके पाँचों कल्याणक तिथियों में नारकी जीव भी एक मुहूर्त मात्र के लिए आनन्द प्राप्त करते हैं। ऐसा आपके पवित्र चरित्र का वर्णन करने में कौन समर्थ है ? । (७) शमोऽभुतोऽद्भुतं रूपं, सर्वात्मसु कृपाद्भुता । सर्वाद्भुतनिधीशाय, तुभ्यं भगवते नमः ॥८॥ अर्थ - [हे वीतराग देव !] आपके अन्दर अद्भुत समता, अद्भुत रूप और समस्त प्राणियों के ऊपर अद्भुत दया है। उससे सर्व अद्भुत के महानिधानरूप आप भगवान को [हमारा] नमस्कार हो । (८)

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