Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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प्राकृत-कथासाहित्य में 'वसुदेवहिण्डी' का स्थान हरिभद्र के पूर्ववर्ती और विमलसूरि के परवत्ती प्राकृत-कथालेखक संघदासगणिवाचक ने अपनी पार्यन्तिक कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' में न केवल आगमिक कथा-परम्परा और न विमलसरि की कथापद्धति को ही आत्मसात् किया है, अपितु गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' को स्वायत्त करके, श्रमण-परम्परा के परिप्रेक्ष्य में, उसका नव्योद्भावन किया है।
'वसुदेवहिण्डी' प्राकृत-कथासाहित्य की मणिमाला का अलंघ्य सुमेरु है, जो अपनी विशिष्ट शैली और शिल्प से प्रांजल प्राकृतगद्य की कथा-रचनाओं में उत्कृष्ट सीमा का निर्धारण करती है और जिसकी रोचक तथा ज्ञानोन्मेषक, विस्मितिजनक तथा चित्ताह्लादक कथाएँ परवर्ती कथा-साहित्य में विविध भंगिमाओं के साथ रूपान्तरित और प्रतिविवर्तित हुई हैं। 'वसुदेवहिण्डी' में अन्तःकथाओं या अवान्तर कथाओं के रूप में प्राप्य निजन्धरी कथाएँ तो परवर्ती प्राकृत-कथाग्रन्थों में यत्र-तत्र मूल तथा पर्याय-रूपों में बिखरी पड़ी हैं। गुणाव की आपातरमणीय 'बृहत्कथा' का अनुकरण परवर्ती समग्र भारतीय साहित्य में, विपुल परिमाण में और व्यापक रूप से हुआ है। ज्ञातव्य है कि विभिन्न सम्प्रदायों के कथालेखकों की सहज प्रवृत्ति अपने सिद्धान्तों को मनोरंजक शैली में कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत करने की रही है। कथा-शैली के अतिरिक्त मनोरंजन की और कोई दूसरी शैली उपयुक्त भी नहीं हो सकती। वेदोत्तर या आगमोत्तर काल में गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' से बढ़कर अद्भुत और अपूर्व दूसरी कोई कथावस्तु नहीं मिलती । अतएव, श्रमण-परम्परा के प्राकृत और संस्कृत कथाकार या ब्राह्मण-परम्परा के संस्कृत-कथाकार, सबने समान रूप से 'बृहत्कथा' के कथानक को, अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा और श्रम-साधना तथा रचना-प्रक्रिया के द्वारा साम्प्रदायिक चेतना या युगानुकूलता को ध्यान में रखते हुए, पल्लवित किया, और इस प्रकार 'बृहत्कथा' की परम्परा अविच्छिन्न रूप से विकास पाती रही। डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने कथाकारों की इस प्रवृत्ति को 'लोकवृत्ति' की संज्ञा दी है और कहा है कि यह लोकवृत्ति केवल संघदासगणिवाचक की महत्कृति 'वसुदेवहिण्डी' में ही नहीं मिलती, अपितु जिनसेन ने 'हरिवंशपुराण', हेमचन्द्र ने 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' तथा गुणभद्र ने 'उत्तरपुराण' और पुष्पदन्त ने 'महापुराण' में 'बृहत्कथा' की परम्परा का स्वतन्त्र रूप से अनुसरण कर इसी मनोवृत्ति का परिचय दिया है। जो हो, उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है, 'बृहत्कथा' की कथा सार्वभौम महत्त्व को स्वायत्त करता है। ___ 'बृहत्कथा' की कथा-विभूति की प्रभा से नव्योद्भावित 'वसुदेवहिण्डी' प्राकृत और संस्कृत की अनेक कथाओं का आधारदर्श है । प्राकृत-कथासाहित्य का मौलिमुकुट 'वसुदेवहिण्डी' न केवल उत्तरकालीन आख्यायिकाओं के लिए प्रेरणास्रोत है, अपितु समस्त भारतीय यात्रावृत्तान्त-साहित्य की ही आधारशिला है। 'वसुदेवहिण्डी' न केवल प्राकृत-कथासाहित्य के लिए, वरंच सम्पूर्ण कथा-वाङ्मय के लिए गौरवग्रन्थ है। क्योंकि, इसमें वैसी भारतीय सभ्यता चित्रित हुई है, जिसके अन्तरंग में वर्तमान आभ्यन्तर चेतना और संस्कृति भी परिलक्षित होती है। सच पूछिए, तो 'वसुदेवहिण्डी' भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा है, जिसमें न केवल भारत की, अपितु बृहत्तर भारत की उदात्ततम जीवन-चेतना मूर्त हो उठी है।
१. परिषद्-पत्रिका',जनवरी, १९७८ ई, पृ.४६