Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___ अन्तरंग व्यक्ति के भी निषेध किये जाने के कारण पुष्पदन्त को कुतूहल हुआ और वह योगशक्ति से शीघ्र ही भीतर चला गया और वहाँ उसने शिव द्वारा वर्णन किये जाते हुए सात विद्याधरों के अद्भुत चरित सुने । उसने उन सातों विद्याधरों की कथा अपनी पत्नी जया से कही
और जया ने उसे पुनः पार्वती को जा सुनाया। तब, पार्वती ने रुष्ट होकर शिव से कहा : “आपने कोई अपूर्व कथा मुझे नहीं सुनाई, इस कथा को तो जया भी जानती है।"
शिव ने समाधि द्वारा वस्तुस्थिति समझ ली। उन्होंने पुष्पदन्त को अभिशाप दिया और उसकी ओर से क्षमा माँगनेवाले माल्यवान् को भी शाप दिया। शापवश दोनों मनुष्य-योनि में उत्पन्न हुए। किन्तु, दोनों गणों और जया के प्रार्थना करने पर पार्वती ने शापान्त की घोषणा इस प्रकार की : “कुबेर के शाप से विन्ध्यारण्य में पिशाच बनकर रहनेवाला सुप्रतीक नाम का यक्ष काणभूति के नाम से प्रसिद्ध है। हे पुष्पदन्त ! जब तुम उस काणभूति को देखकर अपने पूर्वजन्म का स्मरण करोगे और यह कथा उसे सुनाओगे, तब शाप से मुक्त हो जाओगे। और, माल्यवान् जब काणभूति से इस कथा को सुनकर उसे प्रसारित करेगा, तब काणभूति के साथ वह भी मुक्त हो जायगा।" ___कुछ समय बीतने पर करुणाईहृदया पार्वती ने शिव से अभिशप्तों की स्थिति के सम्बन्ध में पूछा, तो उन्होंने बताया कि पुष्पदन्त कौशाम्बी में वररुचि के नाम से उत्पन्न हुआ है और माल्यवान् ने सुप्रतिष्ठित नगर में गुणाढ्य नाम से जन्म लिया है।
विन्ध्याटवी में काणभूति को देखकर वररुचि को जातिस्मरण हो आया और वह काणभूति को सातों विद्याधरों की दिव्य कथा सुनाकर शापमुक्त हो गया। किन्तु, खिन्नहृदय माल्यवान् मर्त्यशरीर में गुणान्य नाम से विख्यात होकर, वन में भटक रहा था और प्रतिज्ञानुसार संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश इन तीनों भाषाओं को छोड़ पैशाची भाषा का प्रयोग करता था तथा राजा सातवाहन की सेवा से स्वयं अलग होकर विन्ध्यवासिनी भगवती के दर्शन के निमित्त विन्ध्यवन में आ बसा था। विन्ध्यवासिनी की कृपा से उसने विन्ध्यारण्य में काणभूति को देखा। काणभूति को देखते ही गुणाढ्य को भी पूर्वजाति का स्मरण हो आया। पैशाची भाषा में अपना नाम सुनाकर गुणाढ्य काणभूति से बोला : “पुष्पदन्त से सुनी हुई उस दिव्य कथा को शीघ्र सुनाओ, ताकि हम एक साथ शापमुक्त हो जायें।”
काणभूति के आग्रह करने पर मुणाय ने पहले अपना जीवन-वृत्तान्त सुनाया कि वह प्रतिष्ठान देश के सुप्रतिष्ठित नगर के सोमशर्मा ब्राह्मण की अविवाहिता पुत्री श्रुतार्था के, नामराज वासुकि के भाई के पुत्र कुमार कीर्तिसेन द्वारा प्रतिष्ठापित गर्भ से उत्पन्न हुआ। उसके उत्पन्न होते ही आकाशवाणी हुई कि यह गुणाढ्य नाम का ब्राह्मण शिव के गण का अवतार है। - गुणान्य दक्षिणदेश में समस्त विद्याओं को प्राप्त करके प्रसिद्ध विद्वान् हुआ और अपने विद्यागुणों के प्रदर्शन की आकांक्षा से स्वदेश लौटा और सुप्रतिष्ठित नगर के राजा सातवाहन का मन्त्री बन गया। मन्त्री-पद पर नियुक्त होने के बाद वहाँ विवाह करके वह शिष्यों को पढ़ाते हुए आनन्द के साथ रहने लगा।