Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ * 111 क्या काम है ? नकली आडंबर युक्त तू कौन है ? क्या तेरे पुरुषार्थ का : तुझे गर्व है ? अपना विशाल पेट और अपनी भयंकर आंखें किसे दिखा रहा है ? तुझे अपने क्रूर कर्मों से अभी भी तृप्ति नहीं हुई है ? पलंग पर मैं अपनी शक्ति तथा सत्व से बैठा हूँ। जैसे-तसे बोलते हुये तेरे में सज्जनता नहीं दिखाई देती। सदाचारी सुशीला रानियों को तूने कैद कर रखा है, अगर तुझे ठीक तरह रहना हो तो रह नहीं तो इसी क्षण रवाना होजा। तू शस्त्र से युक्त है और मैं शस्त्र बिना का हूँ। तू मनुष्य नहीं है इसलिये तुझे मारता नहीं हूँ।' . श्रीचन्द्र के अचित्य प्रभाव से अपना तेज खतम हो गया है ऐस . जानकर राक्षस ने शांत होकर कहा कि, “मैं तेरे साहस पर तुझ से सन्तुष्ट हुआ हूँ, इसलिये तू कुछ भी मांग / ' श्रीचन्द्र ने मजाक से कहा कि, 'मेरे नेत्रों की शान्ति के लिये मेरे पैर के तलुवों की दोनों हाथों से मालिश कर / ' सर्व लक्षण संपन्न जानकर राक्षस ने चरण स्पर्श किये ही थे कि जल्दी से राक्षस के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले बड़े विनय से श्रीचन्द्र ने नमस्कार किया। राक्षस श्रीचन्द्र के चरणों में झुक पड़ा। उन्होंने आपस में जो कुछ कहा था उसके लिये क्षमायाचना की और बहुत प्रसन्नता अनुभव करने लगे / . श्रीचन्द्र ने राक्षस से कहा कि, अगर तुम सचमुच मुझ पर प्रसन्न हो तो आज से प्राणी वध के पाप को छोड़ दो और धर्म बुद्धि को प्रहण करो। राक्षस ने अति हर्ष से यह बात स्वीकार की। धर्म का दान करने वाले परम उपकारी जानकर सविशेष संतुष्ट होकर राक्षस ने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust