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देखने के लिए ही संकेत किया गया है। इस स्थिति में इस वर्णन प्रधान आगम को द्वादश उपांगों में प्रथम स्थान देना अनिवार्य ही था। हालांकि यह आगम बहुत बाद में संकलित हुआ है, क्योंकि इसमें सात निन्हवों तक का समुल्लेख है, जिनका कि समय आगमों की विषय-वस्तु व क्रम आदि को लेकर काफी कुछ सम्पादन किया गया है। विषय प्रधानता :
प्रस्तुत ग्रन्थ में नाना परिणामों, विचारों, भावनाओं तथा साधनाओं से भवान्तर प्राप्त करने वाले जीवों का पुनर्जन्म किस प्रकार होता है, अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हृदयग्राही विवेचन किया गया है। इस आगम की यह विशेषता है कि इसमें नगर, वृक्ष, उद्यान, पृथ्वीशिला, राजा, रानी, मनष्य-परिषद्, देव-परिषद, भगवान् महावीर के गुण, उनका नंख-शिख शरीर, चौंतीस अतिशय, साधुओं के गुण, साधुओं की उपमाएं, तप के ३५४ भेद, केवली-समुद्घात, सिद्ध, सिद्ध-सुख, आदि के विशद वर्णन प्राप्त होते हैं। ___ संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि किसी को काव्य-ग्रन्थ लिखना है तो उपमाएँ, शब्द-सौन्दर्य, समास आदि के रूप में इस आगम में अगाध सामग्री मिल सकती है। 'भगवान् महावीर कालीन भारत' ग्रन्थ लिखा जाए तो प्रस्तुत आगम में बहुत कुछ आधारभूत हो सकता है; क्योंकि इसमें जन-जीवन के प्रायः सभी विषयों का पर्याप्त वर्णन मिल जाता है। इस ग्रन्थ में कितने विषयों पर प्रकाश डाला गया है, यह तो ग्रन्थ की प्रलम्व विषय सूची से ही पता लग सकता है।
प्रस्तुत आगम का हिन्दी अनुवाद श्री रमेश मुनिजी 'शास्त्री' ने किया है तथा अंग्रेजी अनुवाद स्व० प्रो० के० सी० ललवानी का है जो कि अंग्रेजी अनुवाद करने में पूर्ण सक्षम एवं दक्ष थे। हिन्दी अंग्रेजी दोनों ही अपने आप में सुस्पष्ट, सुन्दर एवं प्रांजल है। ये मूलानुवाद ही हैं, जो कि पाठकों को आजकल रुचिकर प्रतीत होते हैं। भाव या विस्तार को तो आज के पाठक अपने उर्वर चिन्तन से ही हृदयंगम करना ' अधिक श्रेयस्कर समझते हैं। वि० स० २०४५
-मनि नगराज श्रावणी पूर्णिमा नई दिल्ली