Book Title: Uttaradhyayanani Part 01 And 02
Author(s): Bhavvijay Gani, Harshvijay
Publisher: Vinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
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उपराज्य-
॥१३॥
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मूलम्व णस्सइकायमगो , उकोसं जीवो उ संबसे। कालमणतं दुरंतं, समयं गोयममा पमायए ॥९॥ ध्य...
व्याख्या-दमपि प्रागवत् , नवर 'अनन्त' अनन्तीसपिण्यवसर्पिणीरूपं, साधारणापेक्षचैतत् । दुष्टः अन्तोऽस्येति दुरन्तस्तं, एवपि साधारणापेक्षमेव । ते अत्यन्ताल्पबोधवेम तत उद्त्ता अपि न पायो विशिष्टं मानुषादिमधमाप्नुवन्ति ॥९॥ मू-बेइंदिभकायमगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसण्णिअं,समयं गोयम मा पमायए १० तेइंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसपिण, समयं गोयम मा पमायए ११ चउरिदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिजसण्णिअं, समयं गोयम मा पमायए १२ व्याख्या-इनमपि सूत्रत्रयं स्पष्ट, नवरंकालं 'संखिजसण्णिअति ति सङ्ख्येय सम्झित' सन्ख्यातवर्षसहस्रात्मकम् ॥१०॥११॥१२॥
मूलम्-पंचिंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तभवग्गहणे, समयं गोयम मा पमायए १३॥ | व्याख्या-पश्चेन्द्रिया उत्तरत्र देवनारकयोरभिधास्वमानत्वात् मनुष्यत्वस्य च दुर्लभतया प्रक्रान्तत्वाचिर्यश्च एवेह गृह्यन्ते, "स-* तवत्ति" ति सप्त वा अष्ट वा सप्ताष्टानि भवग्रहणानि जन्मोपादानानि, तत्र सप्त भवाः सङ्ख्यातायुषि, अष्टमस्त्वसङ्ख्यातायुषीति १॥ मूलम्-देवे नेरइए अइगओ, उक्कोसंजीवो उ संवसे। इविकभवग्गहणे, समयं गोयम मा पमायए १४॥
व्याख्या-देवान्नैरयिकांचातिगत उत्कर्षतो जीवः संवसेत् एकैकमवग्रहणं, अतः समयमपि गौतम ! मा प्रमादीरिति सत्र-the दशकार्थः ॥ १४॥ उक्तमेवार्थमुपसंहलमा
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