Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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४५.
___ उपामादशाङ्गसूत्रे तुभ एगे देवे अतियं पाउभवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने एव वयासी-"हंभो सदालपुत्ता | त चेव सव्व जाव पज्जुवासिस्सामि ।से नूण सदालपुत्ता । अहे सम' हता अस्थि । नो खल्ल सदालपुत्ता। तेण देवेण गोसाल मखलिपत्तं पणिहाय एव कुत्ते ॥१९२॥तए ण तस्स सदालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स समणेण भगवया महावीरेणं एव वुत्तस्स समाणस्स इमे एयारूवे अज्झिथिए०-"एस णं समणे भगव महावीरे महामाहणे उप्पन्नणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसपया सपउत्ते, त सेय खलु मम विहरसि, तत खलु तवैको देवोऽन्तिके मादुरासीत् । तत खलु स देवोऽन्तरिक्षप्रतिपन्न एवमवादीत्-"हभो सद्दालपुन ! तदेव सर्व यावत्पर्युपासिष्ये"! सनून सद्दालपुत्र ! अर्थः समर्थः? हन्ताऽस्ति । नो खलु सद्दालपुत्र ! तेन देवेन गोशाल मङ्गलिपुत्र प्रणिधायैवमुक्तः ।।१९२॥ तत खलु तस्य सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविका पासकस्य श्रमणेन भगवता महावीरेणैवमुक्तस्य सतोऽयमेतद्रूप आध्यात्मिक ४ "एष खलु श्रमणो भगवान महावीरो महामाहन उत्पन्नज्ञानदर्शनवरो यावत्तथ्यकम
टीका प्रणिधायेति-त्व गोशालकमतानुयाय्यसीति लक्ष्यीकृत्येति परमार्थः । तष एक देव तुम्हारे पास आया था। वह देव आकाशमें स्थित होकर यो बोला-" हे सद्दालपुत्र !" इत्यादि 'तू पर्युपासना करना' तक । हे सद्दाल पुत्र ! क्या यह बात ठीक है?" सद्दालपुत्र-" हा ठीक है।" भगवान्-हे सद्दालपुत्र! उस देवने मखलिपुत्र गोशालकको लक्ष्य करक नहीं कहा था ॥ ११२ ॥ श्रमण भगवान् महावीरकी बात सुनकर आजा विकोपासक सद्दालपुत्रने सोचा-"ये उत्पन्न ज्ञान दर्शनके धारी यावत् तथ्य-कर्मसम्पदासे अर्थात् पूर्वभवमें वीस स्थानकोंकी आराधना करने આકાશમાં રહીને બોલ્યા ” હે સદાલપુત્ર” ઈત્યાદિ યાવત “તુ પર્યા સને કરજે ” હે સદાલપુત્ર ! શું એ વાત બરાબર છે?” સદાલપુત્રે કહ્યું
81, से वात राम छ" भगवान ४धु . सदासपुत्र ! मे व મખલિપુત્ર શાળકને લય કરીને કહ્યું ન હતું ? (૧૨) શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની વાત સાંભળીને આજીવિકપાસક સદાલપુત્રે વિચાર્યું “ આ ઉત્પન્ન જ્ઞાન-દર્શનના ધારક યાવતુ ત-કર્મસ પદાથી અથત પૂર્વભવમા વીણ

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