Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 629
________________ सङ्ग्रहगाथाः ओहिणाण पिसाए, माया-वाहि-वण-उत्तरिने य । मज्जा य सुन्वया दुवया निरुवमरगया दोन्नि ॥४॥ अरुणे अरुणाभे ग्वल, अरुणप्पह अमणकत-सिटे य । अरुणज्झए य छट्टे, भूय-वडिंसे गवे कीले ॥ ५ ॥ शिवानन्दा-भद्रा-उयामा, पन्या पहला पूपा ऽग्निमित्राच । रेवती अश्विनी तथा फाल्गुनी च भार्याणा नामानि ॥३॥ अवधिज्ञान, पिशाचो माता-व्यापि-धनोत्तरीयक च । मार्या च मुव्रता दुर्वता निरुपसर्गको द्वौ ॥४॥ अरुणेऽरुणाभे ग्वलु, अम्णप्रभा ऽरुणकान्त शिष्टे च । अरुगध्वजे च पप्ठि भूताऽवतसको गन पील. ॥७॥ भार्याओंके नाम-१ आनद श्रावककी भार्या शिवानदा २ कामदेवकी भार्या भद्रा ३ चुलनी पिताकी भार्या श्यामा ४ सुरादेवकी भार्या धन्या ५ चुलशता को भार्या ला ६ कुडको. लिककी भार्या पूपा ७ सद्दालपुत्र की भार्या अग्निमित्रा ८ महाशतक की भार्या रेवती ९ नदिनीपिता की भार्या अश्विनी और १० गालिनी पिताकी भार्या फाल्गुनी ॥३॥ उपसर्ग-२ आनदको देवकृत उपमर्ग हुआ तथा अवधिज्ञान हुवा २ कामदेवको देवकृत पिशाच, गज और मर्पका उपमर्ग हुवा ३ चुलनीपिताका देवकृत उपसर्ग और माताने प्रतिगोधढिया सुरादेवको देवकृत उपसर्ग, में देवने व्याधिकी धमकी दी ५ चुहानको देवकृत उपसर्ग में देवने धनहरण कियेजानेकी धमकीदी ६ कुडकौलिक्को देवकृत उपसर्ग, में देवहारा वस्त्र (दुपट्टा) और नाममुद्रिकाका अप हरण दुवा । ७ सालपुत्रको देवकृत उपसर्ग, और उसे अपनी अग्निमित्रा नामकी सुव्रताभार्याने व्रतमे स्थिर किया ८ महाशतक को अपनी रेवती नामकी दुर्वता (दुराचारिणी) मार्या द्वारा उपमर्ग और अवधिज्ञान ९-१० नदिनीपिना और शालिनी पिता इन दोनोसो कोई उपसर्ग नहीं हवा ||४|| गत्यन्तर-दमोंही श्रावक सलेग्वना मरणसे मौधर्म नामके प्रथम देवलोकमें जहा उत्पन्न हर उन विमा के नाम-१ आनन्द श्रावक मौधर्म देवलोकमे अम्ण नामके विमानमें उत्पन्न हवा । . कामदेव अरुणाभ विमानमें ३ चुलनीपिता अरुणप्रम विमानमें ४ सुरा

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