Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उपासकदशसूत्रे एत्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए सबुद्ध ॥ २०१॥ तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगव महावीर बदइ नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता एव वयासी-इच्छामि णं भंते। तुभ अतिए धम्मं निसामेत्तए ॥ २०२ ॥ तए ण समणे भगवं महावीरे सदालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य जाव धम्म परिकहेइ ॥२०३॥ तए ण से सदालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा निसम्म हट्ट तुट्ट जाव हियए जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवजइ, नवरं एगा __ अत्र खलु स सद्दालपुत्र आजीवीकोपासक. सम्बुद्ध ॥ २०१॥ ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकः श्रमण भगवन्त महावीर वदन्ते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत-इच्छामि खलु भदन्त ! युष्माकमन्निके धर्म निशामयितुम् ॥२०२॥ तत खलु श्रमणो भगवान महावीर सद्दालपुनस्याऽऽ जीविकोपासकस्य तस्या च यारद्धर्म परिकथयति ॥२०३॥ तत खलु म सदालपुत्र आजीविकोपासक श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्ट यावहृदयो यथाऽऽनन्दस्तथा गृहिधर्म प्रतिपद्यते, नवरमेका हिरण्यकोटी निधान
'एत्य ण' इत्यादि इतना वार्तालाप होने पर आजीविको पासक सद्दालपुत्रको प्रतियोष हुआ ॥ २०१ ॥ उसने श्रमण भगवान महावीरको वन्दना नमस्कार किया और बोला-" भदन्त ! आपसे धर्मका स्वरूप सुनना चाहता हूँ ॥ २०२।। तब श्रमण भगवान् महावीरने आजीविकोपासक सद्दालपुत्रको धर्मोपदेश दिया ॥२०॥ - धपदेश सुन्कर महालपुत्रं मनने खूष प्रसन्न हुआ और आनन्द श्रावककी तरह उसने गृहस्थ धर्मको स्वीकार किया ।
टीकार्थ-'एस्थ -याहि परसो पातfen५ यता मालविकास महाम પુગને પ્રતિબંધ થયે (૨૧) તેણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વેદના નમસ્કાર કર્યા અને કહ્યુ “ભદન્ત! આપની પાસેથી ધર્મનું સ્વરૂપ સાભળવા છુ છું” ૨૦૨) એટલે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે આજીવિકપાસક સદાલપુત્રને ધર્મોપદેશ આ (૨૩). ધર્મોપદેશ સાંભળીને સદાલપુત્ર મનમાં ખૂબ પ્રસન્ન થયા અને આનદ શ્રાવકની પેઠે તેણે ગૃહસ્થ ધર્મને સ્વીકાર કર્યો આનદ કરતા સાપુત્રમા

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