Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 586
________________ ४८४ .. • उपासकशास्त्र पाडिहारियपीढ जाव ओगिहित्ता कविहरइ ॥ २२१ ॥ तए ण से गोसाले मलिपुत्तं सदालपुत्त समणोवासयं जाहे नो संचाण्ड वहहिं आघवणाहिय पण्णवणाहिय सण्णवणाहिय विण्णवणाहि य निग्गथाओ पावयणोओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे सते तते परितंते पोलासपुराओ नगराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिस्खमित्ता पहिया जणवयविहार विहरइ ॥२२२॥ ततः खलु स गोशालो मलिपुत्रः सद्दालपुत्रस्य यमणोपासकस्यैतमर्थ प्रतिशृणोति, पतिश्रुत्य कुम्मकारापणेषु प्रातिहारिक पीठ यावद् अवगृह्य विहरति ॥२२१।। तत' खलु स गोशालो मसलिपुत्र सदालपुत्र श्रमणोपासक यदा नो शक्नोति बहुभिराख्या पनाभिश्च मज्ञापनाभिश्च सज्ञापनाभिश्व विज्ञापनाभिश्व नैनन्ध्यात्मवचनाचालयितु वा क्षोभयितु वा विपरिणमयित वा तदा शान्तस्तान्तः परितान्तः पोलासपुरानगरा त्पतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहार विहरति ॥२२२॥ टीका-आग्व्यापनाभिः-आख्यान. सामान्यत कथनैरित्यर्थः, प्रज्ञापनाभि -विविधवस्तुमरूपणाभिः, सज्ञापनाभिः प्रतियोधनः, विज्ञापनाभि =अनुनयवचनः। लिए आप जाइए और मेरी कुम्भकारीकी दुकानोंसे पडिहारे पीठ फलक आदि ले लीजिए ॥२२०॥ मखलिपुत्र गोशाल श्रमणोपासक सदालपुत्रकी यह बात सुनकर उसकी दुकानोंसे पडिहारे पीठ यावत् ग्रहण कर विचरने लगा ॥२२१॥ इसके अनन्तर गोशाल मखलिपुत्र जब सामान्य बातोंसे, विविध प्रकारकी प्ररूपणाओंसे, प्रतिबोधक वाक्योसे और अनुनय-विनय (आरजू-मिन्नत स्वार्थमय-विनय) करके सद्दालपुत्र श्रावकको निग्रन्थ प्रवचनसे डिगाने,क्षुब्ध करने यावत् परिणाम पलटा देने में असमर्थ रहा तो शान्त, उदास और ग्लान (निराश) होकर पोलासपुर नगरसे निकला, निकल कर बाहर देशो देश विचरने लगा ।। २२२॥ તેથી આપ જાઓ અને મારી કુભકારીની દુકાનમાંથી પ્રાતિહારિક (પડિહાપાછા આપી દેવાય તેવ) પીઠ ફલક આદિ લઈ (૨૦) મ ખલિપુત્ર શાળ શ્રમણોપાસક કડાલપુત્રની એ વાત સાંભળીને તેની દુકાનમાથી પડીહારા પીઠ યાવત, ગ્રહણ કરી વિચરવા લાગ્યા (૨૧) ત્યારપછી ગોશાળ મ ખલિપુત્ર ત્યારે સામાન્ય વાતેથી, વિવિ પ્રકારની પ્રરૂપણાએથી પ્રતિબંધક વાકયથી અને અનુનયનવિનય (સ્વાર્થમય વિનય) કરીને શકટાલપુત્ર શ્રાવકને નિન્ય પ્રવયનથી ડગાવવા, ક્ષુબ્ધ કરવા ચાવત્ પરિણામે પલટાવવામાં અસમર્થ રહો ત્યારે શાન્ત, ઉદાસ અને મહાન (નિરાશ) થઈને પિલાસપુર નગરથી નીકળે અને બહાર રદેશ વિચરવા એ. (૨૨)

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