Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 585
________________ अगारधर्म सञ्जीवनीटीका अ०७ मृ २२३-२३० सहालपुत्र-देवोपसर्गवर्णनम् ४८५ तए ण तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहुर्हि सील जाव भावेमाणस्स चोदस सवच्छरा वइक्ता। पणरसमस्त संवच्छरस्स अतरा वट्टमाणस्स पुवरत्तावरत्त काले जाव पोसहसालाए समणस्स भगवओमहावीरस्स अतियं धम्मपण्णति उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥२२३॥ तए ण तस्स सदालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुवरत्तावरत्त काले एगे देवे अंतिय पाउन्भवित्था ॥२२४॥ तएणं से देवे एग मह नीलुप्पल जाव असि गहाय सदालपुत्त ___ तत• खलु तस्य सद्दालपुत्रम्य श्रमणोपासकस्य बहुभिः शील-यावद्भावयतश्चतुर्दशसवत्सरा व्युत्क्रान्ताः । पञ्चदशसवत्सरमन्तरा वर्तमानस्य पूर्वरात्रा परत्र काले यावत्पोपधशालाया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽऽन्तिकी धर्मप्रज्ञप्तिमुपसम्पध विहरति ॥२२३॥ ततः खलु तस्य सदालपुत्रस्य श्रमणोपासकस्य पूर्वरात्रापरत्र काले एको देवोऽन्तिके मादुरासीत् ॥२२४॥ ततः खलु स देव एक महान्त नीलोत्पल-यावद् असिं गृहीत्वा सद्दालपुत्र श्रमगोपासकमेवमवादी-यथा टीकार्थ-' तए ण से' इत्यादि इस प्रकार सहालपुत्र श्रावकको विविध प्रकारके शील आदि पालन करते यावत् आत्माको भावित (सस्कार युक्त) बनाते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गये। पन्द्रहवा वर्ष जब चालू था, पूर्वरात्रिके उत्तरार्द्ध भागमें यावत् पोपधशालामें श्रमण भगवान् महावीरके अतिनिकटकी धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार कर (सद्दालपुत्र) विचरने लगा ॥ २२३ ॥ तब पूर्व रात्रिके उत्तरार्ध कालमें उसके समीप एक देवता आया ॥ २२४ ॥ वह देव नील कमलके समान काली यावत् तलवार लेकर उससे बोला । चुलनीपिता श्रावकके टीकार्य-'तए ण' या 2 प्रभाय ARRY श्रावने विविध प्रश्ना शाख આદિ પાલન કરતા યાવત્ આત્માને સાવિત (સ સ્કારયુક્ત) બનાવતા ચૌદ વર્ષ વ્ય તીત થઈ ગયા પદનમુ વર્ષ જ્યારે ચાલતું હતું, ત્યારે પૂર્વ રાત્રિના ઉત્તરાર્ધ ભાગમાં યાવત પૌષધશાળામાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની અનિનિકટની ધર્મપ્રજ્ઞપ્તિ સ્વીકારીને શકડાલપુત્ર વિચરવા લાગે (૨૨૩) પછી પૂર્વ રાત્રિના ઉત્તરાર્ધ કાળે તેની સમીપે એક દેવતા આજો (૨૨૪) તે દેવ નીલ કમળના જેવી વાત તલવાર લઈને તેને કહેવા લાગે ચુલનીપિતા શ્રાવકની પેઠે તે દેવતાએ બધા

Loading...

Page Navigation
1 ... 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638