Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ ७ सु. २२३-२३० अध्ययन समाप्ति
४८९
अग्गमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चुलणीपियावत्तव्वया, नवर अरुणभूए विमाणे उववन्ने जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहि ५ ॥ २३० ॥ निक्खेवो ॥
सत्तमस्स अगस्स उवासगदसाण सत्तम
अज्झयण समत्त ॥ ७ ॥
अग्निमित्रा भार्या कोलाहल श्रुत्वा भणति । शेष यथा चुलनीपितृवक्तव्यता, नवरमरुणभूते विमाने उपपन्नो यावन्महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति ५ || २३० ॥ निक्षेपः ॥ सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशाना सप्तममभ्ययन
समाप्तम् ॥ ७ ॥
-
---
व्याख्या निगदसिद्धा ।। २२३-२३० ।।
इतिश्री - विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ - प्रसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषा+लित ललितकलापालापक- प्रविशुद्ध गद्यपद्यनेकग्रन्थ निर्मापक - वादिमानमर्दक- श्रीशाछत्रपति - कोल्हापुरराजप्रदत्त - " जैनशास्त्राचार्य " - पदभूपित - कोल्हापुर राजगुरु' बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैन धर्म दिवाकर - पूज्य - श्री घासीलालप्रति विरचितायामुपासकदशाद्ग सूत्रस्याऽगारधर्मसञ्जीवन्या
ख्याया व्याख्याया सप्तम सद्दालपुत्राख्यमभ्ययन समाप्तम् ॥ ७ ॥
कही। शेष सब बातें चुलनीपिताके समान समझना, हाँ, यह विशेषता है कि शकडालपुत्र अरुणभूत विमान में उत्पन्न होकर यावत् महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा ॥ २३० ॥ निक्षेप पूर्ववत ॥
सातवें अग उपासकदशा के सातवें अध्ययनकी अगारसञ्जीवनी - नामक टीकास हिन्दी भाषार्थ समाप्त ॥ ७ ॥
પિતાની પેઠે જ સમજવી વિશેષતા એટલી છે કે શકડાલપુત્ર અણુભૂત વિમાનમા ઉત્પન્ન થઈને યાવત્ મહાવિદેહ ક્ષેત્રે સિદ્ધ થશે (૨૩૦)
નિશ્ચેષ પૂ વત
સાતમા અગઉપાસક઼દગાના માતમાં અધ્યયનની અગારમજીવની નામક વ્યાખ્યાને ગુજરાતી-ભાષાનુવાદ સમાપ્ત (૭)

Page Navigation
1 ... 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638