Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 597
________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ ८ सू २४०-२४९ रेवतीदुष्फर्मवर्णनम् ४९५ कोलधरिय एगमेग हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव पडिवजइ, पडिवजित्ता महासयएण समणोवालएण सद्धि उरालाइ भोगभोगाइ भुंजमाणी विहरइ ॥२३९ ॥ तए ण सा रेवई गाहावइणी मसलोलुया मंसेसु मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववन्ना वहुविहेहि मंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भजिएहि य सुर च महु च मेरगं च मज च सीधु च पसन्न च आसाएमाणी विहरइ ॥२४०॥ तए ण रायगिहे नयरे प्रयोगेणोपद्रवति, उपद्रुत्य तासा द्वादशाना सपत्नीना मौलगृहिकामेका हिरण्यकोटिमेकैक व्रज स्वयमेव प्रतिपद्यते, प्रतिपद्य महाशतकेन श्रमणोपासकेन सार्द्ध मुदारान् भोगभोगान भुञ्जाना विहरति ॥२३९॥ ततः खलु सा रेवती गाथापत्नी मासलोलुपा मासेपु मूच्छिता, गृद्धा, ग्रथिता, अभ्युपपन्ना, बहुविधैमासैश्च शूल्यश्चि तलितैश्च भर्जितैश्च सुरा च, मधु च, मैरेय च, मय च, सी (शी)धु च, प्रसन्ना चाऽऽम्वादयन्ती ४ विहरति ॥२४०॥ कर उनके मायके (पितृगृह) की एकएक करोड सोनैया और एक एक गोकुल स्वय ले लिया । और महाशतक गाधापतिके साथ विपुल काम-भोग भोगती हुई विचरने लगी ॥ २३९ ॥ टीकार्थ-'तए ण सा' इत्यादि । मांसमे लोलुप, मास भक्षणके दोप न जानकर उसमे मूति , कभी मास-भक्षणसे तृप्त न होनेवाली, अग-अगमें मांस भक्षणके अनुरागसे भरी हुई, मांसभक्षणका ही सदा विचार करती रहनेवाली वह गायापतिनी रेवती, अनेक प्रकारके तले हुए और भूजे हुए मास एव मांसके टुकडोंके साथકરેડ સેના અને એક-એક ગોકુળ પિતે લઈ લીધા અને પછી તે મહાશતક ગાથપતિની સાથે ખૂબ કામગ ભેગવતી વિચવા લાગી (૨૩૯) टीकार्थ-'तए ण सा-त्याहि भासभा सदुप, भासमक्षा योन oneीने તેમાં મૂર્થિત, કઈ વાર પણ માસ ભક્ષણથી તૃપ્ત ન થનારી, અગેઅ ગમા માસ ભક્ષણના અનુરાગથી ભરેલી, માંસભક્ષણને જ સદા વિચાર કરતી રહેનારી એ ગાથા પતિની રેવની, અનેક પ્રકારના તળેલા અને ભૂજેલા માસ તેમજ માસના ટુકડા સાથે

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