Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 569
________________ - अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ० ७ सद्दालपुत्रगोशालवार्तालापवर्णनम् ४७१ मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तेण समणोवासएणं अणाढाइजमाणे अपरियाणिजमाणे पीढफलगसेज्जासंथारट्राए समणस्स भगवओ महा वीरस्स गुणकित्तणं करेमाणे सद्दालपुत्तं समणोवासय एव वयासी आगए ण देवाणुप्पिया। इहं महामाहणे ॥२१६॥ तए ण से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मखलिपुत्त एव वयासी के णं देवाणुप्पिया। महामाहणे ॥२१७॥ तए णं से गोसाले मंखलि. पुत्ते सद्दालपुतं समणोवासयं एव वयासी समणे भगव महावीरे महामाहणे। से केणट्रेणं देवाणुप्पिया। एव वुच्चइ समणे भगवं नानााद्रयमाणोऽपरिज्ञायमान पीठफलकशय्यासस्तारार्थाय श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य गुणकीर्तन कुर्वाणः सद्दालपुत्र श्रमणोपासकमेवमवादीत्-आगतः खलु देवानुपिय ! इह महामाहनः ॥२१६|| ततः खलु स सदालपुत्रः श्रमणोपासको गोशाल मङ्खलिपुत्रमेवमवादीत्-क. खल देवानुमिय! महामाहनः।।२१७॥ ततः खलु स गोशालो मझलिपुत्र. सद्दालपुत्र श्रमणोपासकमेवमवादीत-श्रमणो भगवान् महावीरो महामाहनः। तत्केनार्थेन देवानुमिय! एवमुच्यते श्रमणो भगवान् महान आदर करता है, न परिज्ञान करता है तो पीठ, फलक, शय्या और सधारे प्राप्त करनेके लिए श्रमण भगवान महावीरके गुणोंका बखान करता हुआ कहने लगा गोशाल-"देवानुप्रिय ! यहा क्या महामहान पधारे थे" ॥२१६॥ शकडालपुत्र-“देवानुप्रिय ! आप किस महामानके लिए पूछ रहे हो" ॥ २१७ ॥ ___ गोशाल-"श्रमण भगवान् महावीर महामान"। પણું કરતો નથી, એટલ પીઠ, ફલક, શવ્યા અને સ થારે પ્રાપ્ત કરવાને માટે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના ગુણેના વખાણ કરતા તે કહેવા લાગ્યું – शा - “देवानुप्रिय! मी शु महामासन पधार्या त ?” (२१९) શકહાલપુત્ર–“દેવાનુપ્રિય! આપ કયા મહામાહનના સબ ધમાં પૂછી २६॥ छ। (२१७) गा -"श्रम भगवान महावीर महाभारन"

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