Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 570
________________ ४७० उपासकदशाङ्गमुत्रे संहत्ता आजीवियसंघसपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे जेणेव आजीवियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आजीवियसभाए भडगनिक्खेव करे, करिता कइवएहिं आजीविएहिं सद्धि जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छइ ॥ २१४॥ मूलम् -तएण से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसाल मंखलिपुत एजमाण पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए सचिट्ठा ॥ २१५ ॥ तए ण से गोसाले ऽऽजीविकसङ्घ सपरिवृतो येनैव पोलासपुर नगर येनैवाऽऽजी विकसभा तेनैवोपागच्छति उपागत्याऽऽजीविकसभाया भाण्डक निक्षेप करोति, कृत्वा कतिपयैराजीविकै साद येनैव सद्दालपुत्र. श्रमणोपासकस्तेनैवोपागच्छति ॥ २१४॥ टीका छायागम्यैव ॥२०९-२१४॥ · छाया - तत• खलु स सद्दालपुत्रः श्रमणोपासको गोशाल मसलिपुत्र मेजमान पश्यति, दृष्ट्वा नो आद्रियते नो पारिजानाति । अनाद्रियमाणोऽपरिजानन् तूष्णीकः सतिष्ठते ॥१५॥ ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रः सद्दालपुत्रेण श्रमणोपासकेश्रमणके मतका त्याग कराकर फिर आजीविक मतका अनुयायी बनाऊँ।" ऐसा विचार कर वह आजीविक सघसे घिरा हुआ, पोलासपुरमें जहा आजीविक सभा थी वहा आया । वहा आकर आजीविक सभामें अपने भाण्ड उपकरण रख दिये और कुछ आजीविक के साथ शकडालपुत्र श्रावकके पास आया || २१४ ॥ टीकार्थ -- 'तएण से, इत्यादि ॥ शकडालपुत्र श्रावकने मखलिपुत्र गोशालको आते देखा । देखगर उसने न आदर किया न परिज्ञान ही किया- चुप-चाप बैठा रहा ||२१५ || जब गोशालने देखा कि यह પાલાસપુરમા જ્યા આજીવિક સભા હતી ત્યા આવે તેણે આવિક સભામા પેાતાના પાત્ર —ઉપકરણાદિ મૂકયા અને કેટલાક આજીવિકાની સાથે તે શકડાલપુત્રની પાસે આવ્યે (૨૧૪) टीकार्य - 'तए न से' इत्याहि शडासपुत्र श्रावडे भ असिपुत्र गोशासने આવતા જોયે જોઈને તેણે તેને આદર ન કર્યો કે રિજ્ઞાન પણ ન કર્યું ઝુપચાપ એસી રહ્યો (૨૧૫) જ્યારે ગાલે જોયુ કે મારો આદર કરતા નથી કે પરિક્ષાન

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