Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 567
________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ ७ अग्निमित्रावतपारणवर्णनम् ४६९ तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओसहस्संववणोओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता वहिया जणवयविहार विहरइ ॥२१२॥ तए णं से सदालपुत्ते समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ॥२१३॥ तए णं से गोसाले मखलिपत्ते इमीसे कहाए लट्टे समाणे-"एवं खलु सदालपुत्ते आजीवियसमय वमित्ता समणाण निग्गथाणं दिट्टि पडिवन्ने, तं गच्छामि णं सद्दालपुत्त आजीविओवासयं समणाण निग्गंथाण दिदि वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिदि गेहावित्तए'-ति कट्ठ एव सपेहेइ, महावीरोऽन्यदा कदाचित्पोलासपुरात्सहस्रानवणात्मतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य वहिर्जनपदविहार विहरति॥२१॥ततः खलु स सदालपुत्रःश्रमणोपासकोऽअभिगत जीवाजीवो यावद्विहरति ।२१३॥ ततः खलु स गोशालो मखलिपुतोऽस्या कथाया रब्धार्थ सन्-"एव खलुसद्दालपुत्र आजीविकसमय वमित्वाश्रमणानानिग्रेन्यानादृष्टि प्रतिपन्न, तद् गच्छामि खलु सदालपुत्रमाजीविकोपासक श्रमणाना निर्ग्रन्यानां दृष्टिं वामयित्वा पुनरप्याजीविकदृष्टिं ग्राहयितुम्" इति कृत्वा,एव सम्प्रेक्षते,सम्प्रेक्ष्याअनन्तर किसी समय, श्रमण भगवान् महावीर पोलासपुरके सहस्रा. भ्रवन उद्यानसे निकले और बाहर देशो देश विहार करने लगे ॥२१॥ और श्रमणोपासक शकडालपुत्र जीव अजीवका जानकार यावत् विचरता है। __जय मखलिपुत्र गोशालने यह वृत्तान्त सुना कि शकडालपुत्रने आजीविक मतको त्यागकर निग्रन्थ श्रमणका मत अगीकार कर लिया है, तो उसने सोचा-"मैं जाऊँ और आजीविकोपासक शकडालपुत्रको निर्ग्रन्थ ત્યારપછી કોઈ સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પલાસપુરના સહસ્ત્રામવન ઉદ્યાનથી નીકળ્યા અને બહાર દેશદેશ વિહાર કશ્વા લાગ્યા (૨૧૨) અને શ્રમણોપાસક શકડાલપુત્ર જીવ અજીવને જાણકાર ચાવત્ વિચારવા લાગ્યું (૨૦૧૩) જ્યારે મખલિપુત્ર શાલકે એ વૃત્તાત સાભળે કે શકટાલપુત્રે આજીવિક મતને ત્યાગ કરીને નિગ્રંથ શ્રમણને મત અગીકાર કરી લીધું છે, ત્યારે તેણે વિચાર્યું , “હું જઉ અને આજીવિકેપસક શકડાવપુત્રને નિર્ચન્ય શ્રમણને મત છોડાવીને પાછું આજીવિકા મતને અનુયાયી બનાવ” એમ વિચારીને તે આજીવિક સંઘથી વિંટળાઈ,

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