Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 562
________________ - - ४६२ उपासकदशास्त्रे पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओं महावीरस्स अंतिए पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविह गिहिधम्म पडिवजाहि ॥ २०४ ।। तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सहालपुत्तस्स समणोवासगस्स 'तहत्ति' एयमह विणएण पडिसुणेइ ॥२०५ ॥ । तए णं से सदालपुत्ते समणोवासए कोडंबियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एव वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया। लहुकरणजुत्तजोइयसमखुरवालिहाणसमलिहियसिगएहि जंबणया मयकलावजोत्तपइविसिट्रएहि रययामयघटसुत्तरज्जुगवरकेचण यावत्समवसृतः तद् गच्छ खलु त्व श्रमण भगवन्त महागीर व दस्व, यावत्पर्युपास्स्त्र श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्ति के पश्चाणुव्रतिक मप्तशिक्षाबतिक द्वादशविध गृहिधर्म प्रतिपवस्व ।।२०४॥ तत' खलु साऽग्निमिना भार्या सद्दालपुत्रस्य श्रमणापासकस्य तथेति' एतमर्थ विनयेन प्रतिशृणोति ॥२०५।। ततः ग्वलु स सद्दालपुत्र श्रमणोपासकः कौटुम्विकपुरुपान् शब्दयात, शब्दयित्वैवमवादीत्-क्षिप्रमेव भो देवानुपियाः! लघुकरणयुक्तयौगिक्समखुरवालधानसमलिखितशृङ्गकाभ्या जाम्बूनदमयकलापयोक्त्रमतिविशिष्टाभ्या रजतमय घण्टसूत्ररज्जुकवरकाञ्चनखचितनस्तपग्रहात्रगृहीतकाभ्या नीलोत्पलकृताऽऽपीडकाभ्या टीका निगदसिद्धव ॥२०१-२०५॥ अत तुम जाओ, श्रमण भगवान महावीरको वन्दना नमस्कार करो यावत् उनकी पर्युपासना करो, और उनसे पाच अणुव्रत तथा सात शिक्षाबन, इस तरह बारह प्रकारका गृहस्थधर्म स्वीकार करो" ॥२०४॥ अग्निमित्राने सद्दालपुत्रके कयनको 'तथेति' (ठीक है) कह कर विनयपूर्वक स्वीकार किया ॥२०॥ પધાર્યા છે, માટે તમે જાએ, અને શ્રી શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પ્રભુને વદના નમસકાર કરે ચાવત તેમની પર્યું પાસના કરે, અને તેઓશ્રીની પાસેથી પાચ અણુવ્રત તખ સાત શિક્ષાવ્રત, એ રીતે બાર પ્રકારને નૃહસ્થધર્મ સ્વીકારે” (ર૪) આનુમિત્રાને સદાલપુત્રના કથનને “તતિ” (બરાબર છે) એમ કહીને વિનયપેક સવીકાર્યું (૨૦૦૫)

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